Saturday, March 25, 2017

शरद यादव जी, आपकी पार्टी भी कोई दूध की धूली नहीं है...........

23 मार्च 2017
राज्यसभा, नई दिल्ली
जदयू सांसद शरद यादव गरज रहे है...
वे पत्रकारिता जगत में आयी गिरावट, कुरीतियों एवं अखबार-चैनल के मालिकों द्वारा की जा रही गंदी हरकतों और उससे शर्मसार होता लोकतंत्र पर केन्द्र सरकार का ध्यान आकृष्ट करा रहे हैं। विषय गंभीर है, पर राज्यसभा में गिने-चुने सदस्य ही मौजूद है, स्वयं जदयू के कई सांसद राज्यसभा से गायब है। सरकार के नुमाइंदों की संख्या भी कम है। ले-देकर एक केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ही मौजूद है, जो एक तरह से नमूने ही कहे जायेंगे।
जदयू सांसद शरद यादव, बहुत अच्छा बोलते है, इसमें कोई दो मत नहीं, कई बार मैंने उनके लोकसभा और राज्यसभा में वक्तव्यों को सुना है, पर क्या कारण है कि उनकी बात ठीक उसी प्रकार काफूर हो जाती है, जैसे विभिन्न कारखानों के चिमनियों अथवा घरों से निकलनेवाली धुओँ का हवा में विलीन हो जाना।
आखिर जदयू सांसद ने राज्यसभा में क्या कहा, स्वयं देखिये। उन्होंने कहा कि...
• अखबारों - चैनलों के मालिक-प्रबंधक, मजीठिया वेज बोर्ड द्वारा दी गई सुविधाओं से अपने यहां कार्यरत पत्रकारों को वंचित रखते है और अपने यहां कार्यरत संवाददाताओं-पत्रकारों को ठेके पर रखते है, जिससे यहां कार्यरत संवाददाताओं-पत्रकारों का जीवन प्रभावित हो गया है।
• अखबारों – चैनलों के मालिक-प्रबंधक अपने यहां कार्यरत संवाददाताओं-पत्रकारों को दोयम दर्जे का समझते है और उनके साथ न्याय नहीं करते।
• अखबारों – चैनलों के मालिक-प्रबंधक अपने संवाददाताओं-पत्रकारों से वे कार्य कराते है, जिसकी इजाजत इंसानियत भी नहीं देती, ये लोग पेड न्यूज चलाते है, जिससे लोकतंत्र खतरे में है, वे इसके लिए कई उदाहरण भी प्रस्तुत करते हैं।
• पूरे देश में पूंजीपतियों का बोलबाला हो गया है, जो अखबारों-चैनलों पर कब्जा कर रखे है, और अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, इन चैनलों-अखबारों का इस्तेमाल करते है, ये करोड़ों की जमीन, प्रापर्टी इसके माध्यम से खड़े कर रहे है और इसमें सरकार भी इनका सहयोग करती है।
• यहीं नहीं ये अखबारों-चैनलों के मालिक-प्रबंधक-संपादक, पत्रकारिता का धौंस दिखाकर एमपी भी बन जा रहे है, इसलिए सरकार एक कानून बनाये ताकि पत्रकारिता में शामिल कोई भी पूंजीपति या मालिक एमपी न बन सकें या दूसरा उद्योग न खोल सकें।
मेरा मानना है कि...
जो बातें राज्यसभा में सांसद शरद यादव ने उठायी, उसे किसी भी प्रकार से गलत नहीं कहा जा सकता, पर सवाल स्वयं राज्यसभा में इस मुद्दे को उठानेवाले जदयू सांसद शरद यादव से...
आपकी पार्टी ने भी तो वहीं कुकर्म किये है, जिन कुकर्मों को लेकर आपने सदन का, सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया...
जैसे...
प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश को राज्यसभा में भेजना, क्या जदयू द्वारा प्रभात खबर को अपने ग्रिप में लेने का प्रयास नहीं था... क्या हरिवंश ने प्रधान संपादक की आड़ में नीतीश कुमार का महिमा मंडन अपने अखबार में नहीं किया... क्या आप बता सकते है या आपके पास कोई प्रमाण है कि प्रभात खबर ने आपके नेता नीतीश कुमार के खिलाफ एक भी खबर छापी...
क्या ये सही नहीं कि प्रभात खबर में कार्यरत, जिन लोगों ने मजीठिया वेज बोर्ड की सुविधा प्राप्त करने के लिए, आंदोलन किया, उनके साथ दोयम दर्जें का व्यवहार किया गया, उनकी हालत बद से बदतर कर दी गयी और आप की पार्टी ने ऐसे लोगों को सम्मानित ही नहीं किया, बल्कि राज्यसभा का सदस्य बनवा दिया। वह आदमी आपके ही साथ, संसद में बैठता है, जरा पूछिये, उससे। क्या वह जवाब दे पायेगा।
उत्तर होगा – नहीं। आप ही के ये सांसद कभी अपनी सुविधानुसार पत्रकार तो कभी सांसद बनकर जनता के सामने उपस्थित होते है... ये दोहरा चरित्र क्या बताता है?
दूसरा उदाहरण कशिश टीवी के मालिक-बिल्डर सुनील चौधरी को जदयू का टिकट दिलवाना और उसे बिहार विधानसभा में भेजकर विधायक बनाने का प्रयास क्या बताता है?
कमाल है, शरद यादव जी, आप वहीं कुकर्म करें, तो आनन्द और दूसरा यहीं कुकर्म करें, तो उसे सदन में अपमानित और उसे गलत कहने की परिपाटी आपने कब से सीख लिया। पहले स्वयं में सुधार लाइये, फिर दूसरे पर अंगूली उठाइये। इससे आपके बात की वजन भी बढ़ेगी और आप हंसी के पात्र भी नहीं बनेंगे।
मैं जानता हूं कि भारत में छपनेवाले अखबार हो, या चलनेवाले चैनल। इसके मालिक और यहां काम करनेवाले, उनके इशारों पर चलनेवाले प्रबंधक या संपादक, सभी पेड न्यूज चलाते है और इसमें सरकार भी सहयोग करती है। ये सारे सभी पत्रकारों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करते है, उन्हें ठेके पर रखते है और पत्रकार-संवाददाता भी ठेके पर रहने के लिए, गुलामी सहने के लिए व्याकुल रहते है, वे इसके लिए अपनी लज्जा और शर्म को अपने घर की खूंटी पर टांग कर आते है, क्योंकि उनके भी बच्चे है, बीवियां है, बेचारे उनका भरण-पोषण कैसे करेंगे?  इसी क्रम में वे अपना जमीर बेच देते है, घूंट-घूंट कर मरते है। आजकल तो स्थिति ऐसी हो गयी कि अब ये पत्रकार आत्महत्या भी करने लगे है, पर इन प्रबंधकों-मालिकों को शर्म नहीं आती, उन्हें तो सिर्फ अपने कल-कारखानों की ही चिंता होती है ताकि उनका करोड़ों-अरबों का व्यापार प्रभावित न हो, ये इसकी आड़ में करोड़ों-अरबों की जमीन लूट रहे है और इसमें सरकार भी इनकी मदद करती है...
ऐसे में, ये लोकतंत्र जीवित रहेगा, हमें शक लगता है...
चलिए, शरद यादव जी, आप भी दूध के धूले नहीं है, आपकी भी पार्टी इसी रंग में रंगी है, पर आपने इस मुद्दे को राज्यसभा में उठाया। अच्छा लगा। आप इसी तरह इन महत्वपूर्ण मामलों को उठाते रहिये, एक दिन ऐसा जरुर आयेगा कि कोई सरकार इस मामले पर गंभीरता से विचार करेगी और पत्रकारिता की गंगा की धारा जो गंदगियों के कारण अविरल नहीं बह रही, उसमें धार लाने का प्रयास करेगी...
बहुत-बहुत धन्यवाद।

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