यह अच्छा निर्णय है, इसका स्वागत होना चाहिए...
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने योगेश किसलय को प्रेस सलाहकार पद से हटा दिया और योगेश किसलय की जगह अपने राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार को इस पद पर नियुक्त कर दिया, अर्थात् आप कह सकते है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अजय कुमार का जहां पर कतरा, वहीं योगेश किसलय को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
आम तौर पर देखा जाय तो ऐसे पद मुख्यमंत्री अपनी सुविधानुसार बनाते है, रखते है फिर मिटा देते है, पर इससे आम जनता को क्या फायदा होता है? या मुख्यमंत्री को ये लोग कितना सलाह दे पाते है, उसका सबसे सुंदर उदाहरण है, योगेश-अजय प्रकरण।
पूर्व में ज्यादातर राज्यों में मुख्यमंत्री उन लोगों को अपने निकट रखते थे, जो सचमुच विभिन्न विषयों के अच्छे जानकार होते थे, ताकि उसका फायदा वे ले सकें और उससे राज्य की जनता को फायदा पहुंच सके, पर झारखण्ड में ज्यादातर देखा गया कि मुख्यमंत्रियों ने ऐसे लोगों को अपना सलाहकार रखा, जो उनकी समय-समय पर आरती उतारा करें, लाइजनिंग किया करें, अगर एक पंक्ति में कहें तो वह सारा काम उसका करें, जो एक सलाहकार को शोभा नहीं देता।
जरा नमूना देखिये। एक अखबार पढ़ रहा हूं, जिसमें योगेश किसलय का बयान है कि उनके पास कोई काम नहीं था, मन नहीं लग रहा था, इस वजह से उन्होंने इस्तीफा दे दिया, तो मेरा सवाल है कि जब कोई काम नहीं था तो आप दो सालों से वहां कर क्या रहे थे? आपको तो बहुत पहले इस्तीफा दे देना चाहिए था, पर आपने इस्तीफा कब दिया है? जब मुख्यमंत्री ने निर्णय ले लिया कि आपको हटाना है, और आपकी जगह पर अजय कुमार को रखना है, तब आपको ज्ञान प्राप्ति हुआ, और आप इस्तीफा देने का नाटक करने लगे। उदाहरण आइपीआरडी की अधिसूचना है, जो बताता है कि कब आपको हटाने का निर्णय लिया गया।
ऐसे भी योगेश किसलय मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार के रुप में कभी नजर नहीं आये और न उन्होंने इस पद की मर्यादा रखी, जरा इनका फेसबुक देखिये, क्या एक प्रेस एडवाइजर की ऐसी भाषा होती है? अपने विरोधियों के लिए गालियों का प्रयोग, एक समुदाय पर लगातार कड़ी टिप्पणी जो मर्यादा के अनुरुप नहीं और भी ऐसी-ऐसी बातें है, जो बताने के लिए काफी है कि योगेश किसलय ने प्रेस सलाहकार की मर्यादा नहीं रखी, इसलिए मुख्यमंत्री रघुवर दास को तो ये निर्णय लेना ही था।
जरा उदाहरण देखिये-
योगेश किसलय ने फेसबुक पर पाकिस्तान से लौटी उज्मा पर कुछ उलूल-जुलूल बाते लिखी। ये घटना 27 मई की है। जिस पर भाजपा प्रवक्ता प्रवीण प्रभाकर ने इनको करारा जवाब दिया। प्रवीण प्रभाकर ने अपने कमेंटस में कहा कि हल्की बातें करना ठीक नहीं। मुस्लिम समाज के किसी एक या कुछ व्यक्तियों के कारण पूरे समाज को न घसीटें। फेसबुक को सार्थक बहस का माध्यम बनाएं न कि अधकचरी बातों का। इस समाज ने कलाम और अब्दुल हमीद भी दिया है। जब भाजपा प्रवक्ता के अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार के विरुद्ध इस प्रकार के बयान हो, तो भला भाजपा का ही मुख्यमंत्री ऐसे लोगों को क्यों झेलेगा? इसी प्रकार ऐसे कई उदाहरण है, जो बताता है कि इनकी भाषा कैसी है? बहुत सारे युवा इनके बेकार की बातों पर गरमागरम बहस भी कर चुके है, जिन्हें ये बाद में अनफ्रेंड भी कर चुके है।
इन्हें मालूम होना चाहिए कि प्रेस एडवाइजर मुख्यमंत्री का इमेज बिल्डिंग करता है, न कि उसकी इमेज डैमेज करता है, जब प्रेस एडवाइजर की भाषा ही गलत होगी, तब मुख्यमंत्री की इमेज क्या होगी? समझा जा सकता है।
सच्चाई यह है कि इस व्यक्ति ने, न तो अपनी मर्यादा रखी और न ही कोई काम किया, ऐसे में ये व्यक्ति कैसे इतने दिनों तक बिना काम के, वेतन लेता रहा, आश्चर्य है। ये मैं नहीं कह रहा, ये महोदय स्वयं कह रहे है कि उनके लिए कोई काम नहीं था। सच पूछिये, तो मैं ऐसे जगह पर एक दिन भी न ठहरूं, जहां बिना काम के पैसे लेने पड़े। मैंने स्वयं डेढ़ साल आइपीआरडी में सेवा दी है, कैसा काम किया है, लोग जानते है, मैं अपने काम का ढिंढोरा नहीं पीटता, पर जब कोई चुनौती देगा, तो मैं उसे बताउँगा कि देखों मैंने क्या किया, इसलिए हमें चुनौती देनेवाले संभल जाये।
हां, एक बात जरुर कहूंगा कि योगेश किसलय कनफूंकवा नहीं थे, क्योंकि सीएम रघुवर दास ने कभी इन्हें पसंद ही नहीं किया और न अपने आस-पास इन्हें फटकने दिया, इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये कनफूंकवा नहीं है, बल्कि अभी तक मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कनफूंकवों को उनकी औकात नहीं बताई है, जिस दिन कनफूंकवों की वे औकात बताना शुरु करेंगे और योग्य, ईमानदार व्यक्ति को सम्मान देना शुरु करेंगे, निश्चय ही ये उनके लिए भी और झारखण्ड राज्य के लिए भी शुभ संकेत होगा।
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने योगेश किसलय को प्रेस सलाहकार पद से हटा दिया और योगेश किसलय की जगह अपने राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार को इस पद पर नियुक्त कर दिया, अर्थात् आप कह सकते है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अजय कुमार का जहां पर कतरा, वहीं योगेश किसलय को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
आम तौर पर देखा जाय तो ऐसे पद मुख्यमंत्री अपनी सुविधानुसार बनाते है, रखते है फिर मिटा देते है, पर इससे आम जनता को क्या फायदा होता है? या मुख्यमंत्री को ये लोग कितना सलाह दे पाते है, उसका सबसे सुंदर उदाहरण है, योगेश-अजय प्रकरण।
पूर्व में ज्यादातर राज्यों में मुख्यमंत्री उन लोगों को अपने निकट रखते थे, जो सचमुच विभिन्न विषयों के अच्छे जानकार होते थे, ताकि उसका फायदा वे ले सकें और उससे राज्य की जनता को फायदा पहुंच सके, पर झारखण्ड में ज्यादातर देखा गया कि मुख्यमंत्रियों ने ऐसे लोगों को अपना सलाहकार रखा, जो उनकी समय-समय पर आरती उतारा करें, लाइजनिंग किया करें, अगर एक पंक्ति में कहें तो वह सारा काम उसका करें, जो एक सलाहकार को शोभा नहीं देता।
जरा नमूना देखिये। एक अखबार पढ़ रहा हूं, जिसमें योगेश किसलय का बयान है कि उनके पास कोई काम नहीं था, मन नहीं लग रहा था, इस वजह से उन्होंने इस्तीफा दे दिया, तो मेरा सवाल है कि जब कोई काम नहीं था तो आप दो सालों से वहां कर क्या रहे थे? आपको तो बहुत पहले इस्तीफा दे देना चाहिए था, पर आपने इस्तीफा कब दिया है? जब मुख्यमंत्री ने निर्णय ले लिया कि आपको हटाना है, और आपकी जगह पर अजय कुमार को रखना है, तब आपको ज्ञान प्राप्ति हुआ, और आप इस्तीफा देने का नाटक करने लगे। उदाहरण आइपीआरडी की अधिसूचना है, जो बताता है कि कब आपको हटाने का निर्णय लिया गया।
ऐसे भी योगेश किसलय मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार के रुप में कभी नजर नहीं आये और न उन्होंने इस पद की मर्यादा रखी, जरा इनका फेसबुक देखिये, क्या एक प्रेस एडवाइजर की ऐसी भाषा होती है? अपने विरोधियों के लिए गालियों का प्रयोग, एक समुदाय पर लगातार कड़ी टिप्पणी जो मर्यादा के अनुरुप नहीं और भी ऐसी-ऐसी बातें है, जो बताने के लिए काफी है कि योगेश किसलय ने प्रेस सलाहकार की मर्यादा नहीं रखी, इसलिए मुख्यमंत्री रघुवर दास को तो ये निर्णय लेना ही था।
जरा उदाहरण देखिये-
योगेश किसलय ने फेसबुक पर पाकिस्तान से लौटी उज्मा पर कुछ उलूल-जुलूल बाते लिखी। ये घटना 27 मई की है। जिस पर भाजपा प्रवक्ता प्रवीण प्रभाकर ने इनको करारा जवाब दिया। प्रवीण प्रभाकर ने अपने कमेंटस में कहा कि हल्की बातें करना ठीक नहीं। मुस्लिम समाज के किसी एक या कुछ व्यक्तियों के कारण पूरे समाज को न घसीटें। फेसबुक को सार्थक बहस का माध्यम बनाएं न कि अधकचरी बातों का। इस समाज ने कलाम और अब्दुल हमीद भी दिया है। जब भाजपा प्रवक्ता के अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार के विरुद्ध इस प्रकार के बयान हो, तो भला भाजपा का ही मुख्यमंत्री ऐसे लोगों को क्यों झेलेगा? इसी प्रकार ऐसे कई उदाहरण है, जो बताता है कि इनकी भाषा कैसी है? बहुत सारे युवा इनके बेकार की बातों पर गरमागरम बहस भी कर चुके है, जिन्हें ये बाद में अनफ्रेंड भी कर चुके है।
इन्हें मालूम होना चाहिए कि प्रेस एडवाइजर मुख्यमंत्री का इमेज बिल्डिंग करता है, न कि उसकी इमेज डैमेज करता है, जब प्रेस एडवाइजर की भाषा ही गलत होगी, तब मुख्यमंत्री की इमेज क्या होगी? समझा जा सकता है।
सच्चाई यह है कि इस व्यक्ति ने, न तो अपनी मर्यादा रखी और न ही कोई काम किया, ऐसे में ये व्यक्ति कैसे इतने दिनों तक बिना काम के, वेतन लेता रहा, आश्चर्य है। ये मैं नहीं कह रहा, ये महोदय स्वयं कह रहे है कि उनके लिए कोई काम नहीं था। सच पूछिये, तो मैं ऐसे जगह पर एक दिन भी न ठहरूं, जहां बिना काम के पैसे लेने पड़े। मैंने स्वयं डेढ़ साल आइपीआरडी में सेवा दी है, कैसा काम किया है, लोग जानते है, मैं अपने काम का ढिंढोरा नहीं पीटता, पर जब कोई चुनौती देगा, तो मैं उसे बताउँगा कि देखों मैंने क्या किया, इसलिए हमें चुनौती देनेवाले संभल जाये।
हां, एक बात जरुर कहूंगा कि योगेश किसलय कनफूंकवा नहीं थे, क्योंकि सीएम रघुवर दास ने कभी इन्हें पसंद ही नहीं किया और न अपने आस-पास इन्हें फटकने दिया, इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये कनफूंकवा नहीं है, बल्कि अभी तक मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कनफूंकवों को उनकी औकात नहीं बताई है, जिस दिन कनफूंकवों की वे औकात बताना शुरु करेंगे और योग्य, ईमानदार व्यक्ति को सम्मान देना शुरु करेंगे, निश्चय ही ये उनके लिए भी और झारखण्ड राज्य के लिए भी शुभ संकेत होगा।