Tuesday, May 30, 2017

यह अच्छा निर्णय है, इसका स्वागत होना चाहिए...........

यह अच्छा निर्णय है, इसका स्वागत होना चाहिए...
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने योगेश किसलय को प्रेस सलाहकार पद से हटा दिया और योगेश किसलय की जगह अपने राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार को इस पद पर नियुक्त कर दिया, अर्थात् आप कह सकते है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अजय कुमार का जहां पर कतरा, वहीं योगेश किसलय को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
आम तौर पर देखा जाय तो ऐसे पद मुख्यमंत्री अपनी सुविधानुसार बनाते है, रखते है फिर मिटा देते है, पर इससे आम जनता को क्या फायदा होता है? या मुख्यमंत्री को ये लोग कितना सलाह दे पाते है, उसका सबसे सुंदर उदाहरण है, योगेश-अजय प्रकरण।
पूर्व में ज्यादातर राज्यों में मुख्यमंत्री उन लोगों को अपने निकट रखते थे, जो सचमुच विभिन्न विषयों के अच्छे जानकार होते थे, ताकि उसका फायदा वे ले सकें और उससे राज्य की जनता को फायदा पहुंच सके, पर झारखण्ड में ज्यादातर देखा गया कि मुख्यमंत्रियों ने ऐसे लोगों को अपना सलाहकार रखा, जो उनकी समय-समय पर आरती उतारा करें, लाइजनिंग किया करें, अगर एक पंक्ति में कहें तो वह सारा काम उसका करें, जो एक सलाहकार को शोभा नहीं देता।
जरा नमूना देखिये। एक अखबार पढ़ रहा हूं, जिसमें योगेश किसलय का बयान है कि उनके पास कोई काम नहीं था, मन नहीं लग रहा था, इस वजह से उन्होंने इस्तीफा दे दिया, तो मेरा सवाल है कि जब कोई काम नहीं था तो आप दो सालों से वहां कर क्या रहे थे? आपको तो बहुत पहले इस्तीफा दे देना चाहिए था, पर आपने इस्तीफा कब दिया है? जब मुख्यमंत्री ने निर्णय ले लिया कि आपको हटाना है, और आपकी जगह पर अजय कुमार को रखना है, तब आपको ज्ञान प्राप्ति हुआ, और आप इस्तीफा देने का नाटक करने लगे। उदाहरण आइपीआरडी की अधिसूचना है, जो बताता है कि कब आपको हटाने का निर्णय लिया गया।
ऐसे भी योगेश किसलय मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार के रुप में कभी नजर नहीं आये और न उन्होंने इस पद की मर्यादा रखी, जरा इनका फेसबुक देखिये, क्या एक प्रेस एडवाइजर की ऐसी भाषा होती है? अपने विरोधियों के लिए गालियों का प्रयोग, एक समुदाय पर लगातार कड़ी टिप्पणी जो मर्यादा के अनुरुप नहीं और भी ऐसी-ऐसी बातें है, जो बताने के लिए काफी है कि योगेश किसलय ने प्रेस सलाहकार की मर्यादा नहीं रखी, इसलिए मुख्यमंत्री रघुवर दास को तो ये निर्णय लेना ही था।
जरा उदाहरण देखिये-
योगेश किसलय ने फेसबुक पर पाकिस्तान से लौटी उज्मा पर कुछ उलूल-जुलूल बाते लिखी। ये घटना 27 मई की है। जिस पर भाजपा प्रवक्ता प्रवीण प्रभाकर ने इनको करारा जवाब दिया। प्रवीण प्रभाकर ने अपने कमेंटस में कहा कि हल्की बातें करना ठीक नहीं। मुस्लिम समाज के किसी एक या कुछ व्यक्तियों के कारण पूरे समाज को न घसीटें। फेसबुक को सार्थक बहस का माध्यम बनाएं न कि अधकचरी बातों का। इस समाज ने कलाम और अब्दुल हमीद भी दिया है। जब भाजपा प्रवक्ता के अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार के विरुद्ध इस प्रकार के बयान हो, तो भला भाजपा का ही मुख्यमंत्री ऐसे लोगों को क्यों झेलेगा? इसी प्रकार ऐसे कई उदाहरण है, जो बताता है कि इनकी भाषा कैसी है? बहुत सारे युवा इनके बेकार की बातों पर गरमागरम बहस भी कर चुके है, जिन्हें ये बाद में अनफ्रेंड भी कर चुके है।
इन्हें मालूम होना चाहिए कि प्रेस एडवाइजर मुख्यमंत्री का इमेज बिल्डिंग करता है, न कि उसकी इमेज डैमेज करता है, जब प्रेस एडवाइजर की भाषा ही गलत होगी, तब मुख्यमंत्री की इमेज क्या होगी? समझा जा सकता है।
सच्चाई यह है कि इस व्यक्ति ने, न तो अपनी मर्यादा रखी और न ही कोई काम किया, ऐसे में ये व्यक्ति कैसे इतने दिनों तक बिना काम के, वेतन लेता रहा, आश्चर्य है। ये मैं नहीं कह रहा, ये  महोदय स्वयं कह रहे है कि उनके लिए कोई काम नहीं था। सच पूछिये, तो मैं ऐसे जगह पर एक दिन भी न ठहरूं, जहां बिना काम के पैसे लेने पड़े। मैंने स्वयं डेढ़ साल आइपीआरडी में सेवा दी है, कैसा काम किया है, लोग जानते है, मैं अपने काम का ढिंढोरा नहीं पीटता, पर जब कोई चुनौती देगा, तो मैं उसे बताउँगा कि देखों मैंने क्या किया, इसलिए हमें चुनौती देनेवाले संभल जाये।
हां, एक बात जरुर कहूंगा कि योगेश किसलय कनफूंकवा नहीं थे, क्योंकि सीएम रघुवर दास ने कभी इन्हें पसंद ही नहीं किया और न अपने आस-पास इन्हें फटकने दिया, इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये कनफूंकवा नहीं है, बल्कि अभी तक मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कनफूंकवों को उनकी औकात नहीं बताई है, जिस दिन कनफूंकवों की वे औकात बताना शुरु करेंगे और योग्य, ईमानदार व्यक्ति को सम्मान देना शुरु करेंगे, निश्चय ही ये उनके लिए भी और झारखण्ड राज्य के लिए भी शुभ संकेत होगा।

Friday, May 26, 2017

सचिन, सचिन................

सचिन, सचिन.....
26 मई, आज पूरे देश में विश्व के महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर को समर्पित एक फिल्म रिलीज हुई है, फिल्म का नाम है – सचिन ए बिलियन ड्रीम्स।
हमारे विचार से हर परिवार को यह फिल्म अपने बच्चों के साथ देखने चाहिए, क्योंकि बहुत दिनों के बाद ऐसी फिल्मे देखने को मिलती है, जिससे बच्चों को एक नई दिशा मिलती है।
फिल्म में क्या है? और फिल्म में क्या नहीं है? वो हर चीजे हैं, जो आप सचिन के बारे में जानना चाहते है।
जरा देखिये, सचिन तेंदुलकर ने क्या कहा, अपने पिता के बारे में, सचिन का कहना है कि उनके पिता ने कहा था कि जो तुम बनना चाहते हो, बनो, पर उससे ज्यादा जरुरी है कि तुम एक अच्छे इंसान बनो।
सचिन तेंदुलकर के शब्दों में, जब वे फील्ड में राष्ट्र गान गा रहे होते है, तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है, गर्व महसूस होता है, रोंगटे खड़े हो जाते है, पर मैंने सिनेमा हाल में देखा कि जब फिल्म प्रारंभ होने के पूर्व राष्ट्र गान प्रारंभ हुआ तो कई लोग ऐसे भी थे, जो खड़े तक नहीं हुए, क्यों खड़े नहीं हुए?, मैं इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहता, क्योंकि कुछ लोग जन्मजात लंठ होते है, उन्हें आप सुधार नहीं सकते।
देशभक्ति सीखना हो, तो सचिन तेंदुलकर से सीखिये...
इंसानियत सीखनी है, तो सचिन तेंदुलकर से सीखिये...
एक स्पोर्टसमैन कैसा होना चाहिए, तो उसका सबसे सुंदर उदाहरण है – सचिन तेंदुलकर।
खेल के प्रति ईमानदारी देखनी है, तो उसके सबसे सुंदर उदाहरण – सचिन तेंदुलकर।
देश में एकता और अखंडता के पर्याय है – सचिन तेंदुलकर।
पर अफसोस, यह फिल्म राज्य सरकार द्वारा करमुक्त नहीं हुई है। भाई करमुक्त करने का क्या पैमाना है? ये राज्य सरकार ही जाने।
पर मेरा मानना है कि राज्य सरकार को यह फिल्म बिना किसी हाय तौबा के करमुक्त कर देना चाहिए, ताकि लोग यह फिल्म आराम से देख सके, यहीं नहीं इस फिल्म को हर स्कूल व कॉलेज में दिखाया जाना चाहिए ताकि युवा समझ सकें कि देश उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है।
एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे सचिन अपनी ईमानदारी, खेल के प्रति निष्ठा, तथा देशभक्ति के कारण पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गये। वे भारत रत्न से सम्मानित हुए।
इस देश को कपिलदेव और धौनी के नेतृत्व में विश्व कप मिला। दोनो बेहतर इंसान है, पर इसमें कोई दो मत नहीं कि सचिन इन दोनों से भी बेहतर है।
सचिन तेंदुलकर को भारतीयों से बहुत प्यार मिला है, पर सच्चाई ये भी है कि कई बार इन्हें अपमान भी झेलने पड़े, उसके बावजूद एक अच्छे इंसान के रुप में सचिन ने जो प्रतिष्ठा पाई है, उसकी प्रशंसा करनी होगी।
बधाई, फिल्म निर्माताओं, फिल्म में शामिल कलाकारों आपने बहुत ही ईमानदारी से सचिन की छवि, भारतीय जनमानस में पेश की। मराठी और अंग्रेजी शब्दों का हिन्दी रुपान्तरण बहुत ही बेहतरीन ढंग से किया। सचिन की पाकिस्तान यात्रा और अब्दुल कादिर की बॉलिंग विश्लेषण खराब करना, आस्ट्रेलिया को बुलाकर खेलने की साहस करना और भारत को प्रतिष्ठित करना, उस वक्त जब भारत फार्म में नहीं था, ये फैसला सिर्फ सचिन ही ले सकते है, दूसरा कोई नहीं। पिता के निधन का समाचार सुनने के बाद भी विचलित न होते हुए देश के लिए, देश की ओर से क्रिकेट खेलने का फैसला लेना, सचमुच प्रशंसनीय ढंग से उसका फिल्मांकण कर, आप सब ने बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभाई। एक बार फिर आप सब को बधाई।

Thursday, May 25, 2017

रघुवर दास का आम जनता के बीच अलोकप्रिय होने के प्रमुख कारण...

झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का आम जनता के बीच अलोकप्रिय होने के प्रमुख कारण...
1. राज्य में कनफूंकवों के शासन की शुरुआत।
2. रघुवर शासन में लड़कियों और महिलाओं पर अत्याचार का बढ़ना, स्वयं जहां मुख्यमंत्री जन संवाद केन्द्र चलता है, वहां की लड़कियों ने राज्य महिला आयोग को पत्र लिखा कि यहां कार्यरत महिला संवादकर्मियों के साथ बराबर दुर्व्यवहार होता है। इन संवादकर्मियों को न्याय दिलाने के बजाय, इस पूरे मामले को ही मुख्यमंत्री जन संवाद केन्द्र चलानेवाले लोगों ने, मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ मिलकर उन लड़कियों का आवाज सदा के लिए दबा दिया। यहां तक कि राज्य महिला आयोग ने उन लड़कियों के द्वारा भेजे गये पत्र का संज्ञान तक नहीं लिया। यहीं नहीं ये लड़कियां सीएमओ तक गयी, सब ने कहां न्याय मिलेगा, पर न्याय तो दूर, उन लड़कियों की आवाज ही सदा के लिए दबा दी गयी।
3. एक पीड़ित पिता जब मुख्यमंत्री रघुवर दास से मिला तब मुख्यमंत्री ने उसे भरी सभा में बेईज्जत कर दिया, इसका फूटेज आज भी बहुत लोगों के पास है, जिसे जब चाहे देखा जा सकता है।
4. अयोग्यों और बेवकूफों को सम्मान और योग्य तथा विद्वानों को अपमान करने की परंपरा की शुरुआत।
5. आम जनता की बात को दरकिनार कर जबर्दस्ती सीएनटी-एसपीटी कानून को जमीन पर उतारने की कोशिश।
6. निकम्मे अफसरों पर नकेल नहीं कसना और छोटे-छोटे कर्मचारियों पर गाज गिराने की शुरुआत।
7. झारखण्ड लोक सेवा आयोग में भ्रष्टाचार चरम पर।
8. स्पष्ट नीति का अभाव, कई नीतियां बनी पर जमीन पर उतराने में नाकाम।
9. नक्सलियों को महिमामंडन करने की परंपरा की शुरुआत।
10.  डोभा निर्माण और वन लगाओं अभियान में बड़े पैमाने पर लूट।
11.  ठेकेदारों, अभियंताओं को लूट की छूट और आम जनता को अपमानित करने का काम प्रारंभ।
12.  आम जनता के प्रति मुख्यमंत्री रघुवर दास का नजरिया ठीक नहीं होना। जब सामान्य जनता इनसे मिलने की कोशिश करती है तो ये उससे इस प्रकार बाते करते  है, ऐसा इनका बॉडी लेग्वेंज होता है कि उनसे बात करनेवाला सामान्य नागरिक खुद को अपमानित महसूस करता है।
13.  भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ मुख्यमंत्री रघुवर दास का रवैया ठीक नहीं होना। स्थिति ऐसी है कि कोई भी भाजपा कार्यकर्ता आज की स्थिति में रघुवर दास को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है।
14.  संघ के स्वयंसेवकों से बढ़ती दूरियां। संघ के बड़े अधिकारियों ने मुख्यमंत्री की अक्षमता और स्वयंसेवकों के प्रति इनके द्वारा उठाये जा रहे कठोर रवैये की सूचना नागपुर और दिल्ली तक पहुंचाई।
15.  अपने विरोधियों के साथ दमनात्मक रवैया, तथा विपक्षी दलों के प्रमुख और शीर्षस्थ नेताओं को अपमानित करना।
16.  परिवारवाद को बढ़ावा देना।
17.  आत्मप्रशंसा के लिए अयोग्य कंपनियों पर करोड़ों लूटाना, उन कंपनियों पर जो राज्य के एक मंत्री अमर कुमार बाउरी को अमर कुमारी बना देता है, जो राज्य के नक्शे के साथ खिलवाड़ कर देता है और उस पर एक्शन तक नहीं लिया जाता, बल्कि उसे और बढ़ावा दिया जाता है।
18.  राज्य में आधारभूत संरचना का बुरा हाल। पूरे राज्य में अभूतपूर्व बिजली संकट, पेयजल संकट और सड़कों का बुरा हाल।
19.  झूठ बोलने की कला में माहिर। बोकारो के एक दो पंचायत को कैशलेस बनाने की घोषणा कर देना और बाद में पता चलता है कि वह पंचायत तो कैशलेस हुआ ही नहीं है।
20.  स्वच्छता अभियान की हवा निकल जाना।
21.  मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर करोड़ों का खेल करना और उसका फायदा झारखण्ड को न के बराबर मिलना।
22.  दीपावली के दिन चीनी सामानों का विरोध और बाद में चीन तथा अन्य देशों के व्यापारियों को झारखण्ड बुलाकर उनकी आरती उतारने की शुरुआत।
23.  आत्ममुग्धता में बहने के कारण अच्छे और सही लोगों की बात नहीं सुनना और कनफूंकवों मे रमे रहना।
24.  आरती उतारनेवाले पत्रकारों की जय-जय और राह दिखानेवाले पत्रकारों पर प्राथमिकी और उसे अपमानित करने का कार्य प्रारंभ।

Tuesday, May 23, 2017

कनफूंकवों के इशारे पर...........

कनफूंकवों के इशारे पर हुई प्राथमिकी.....
रांची से प्रकाशित कुछ राष्ट्रीय अखबारों ने मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवों को खुश करने के लिए हाथों में गजरा लगाकर ठुमरी गाया.....
भाजपा नेता ने ही रघुवर को राम बनाया और भाजपा नेता ने ही उस चित्र को मुझे भेजा और भाजपा नेता ने ही कनफूंकवों के इशारे पर मेरे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी, यानी ऐसे चल रहा है, रघुवर शासन और ऐसे चल रही है रघुवर के इशारे पर यहां की पत्रकारिता.....
जी हां, रांची में ऐसे ही पत्रकारिता हो रही है। हिन्दुस्तान अखबार को छोड़कर, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर और प्रभात खबर ने मुझे पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया है, जबकि प्रभात खबर अच्छी तरह जानता है कि उसके अखबार में मेरे कई आलेख पत्रकार के रुप में प्रकाशित हो चुके है, उसके द्वारा संचालित पत्रकारिता संस्थान में, मैं कई बार सेवा भी दे चुका हूं, पटना के दानापुर अनुमंडल से प्रभात खबर को मैंने संवाददाता के रुप में सेवा भी दी है, पर आज उसे रतौंधी हो चुकी है, इस रतौंधी के कारण उसने हमें पत्रकार के रुप में पहचानने से इनकार कर दिया। ये वहीं प्रभात खबर है, जो भारत के कश्मीर को एक नहीं कई बार पाकिस्तान का अंग बता चुका है, राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करता है, उसका गलत चित्र अपने अखबार में प्रकाशित करता है, पर उस प्रभात खबर के खिलाफ एक बार भी राष्ट्रद्रोह का मुकदमा न तो मुख्यमंत्री कराता है और न उसके आस-पास रहनेवाले कनफूंकवें, आखिर वे ऐसा क्यों नहीं करते, ये तो रघुवर और उनके कनफूंकवे ही बतायेंगे।
दैनिक जागरण, यहां भी मैंने मोतिहारी और धनबाद में कार्यालय प्रमुख के रुप में सेवा दी है, पर ये हमारे लिए शख्स का प्रयोग कर रहा है, ये ऐसा क्यों कर रहा है, वह मैं अच्छी तरह जानता हूं, यहां काम कर रहे एक शख्स को हमे देखते ही मिर्ची लग जाती है, इसलिए उसे एक छोटा सा मौका मिला, खूब जमकर अपनी भड़ास निकाल ली, ऐसे उसकी हिम्मत नहीं कि वो हमें दोषी ठहरा दें, पर अखबार में भड़ास अगर निकल जाता है, तो क्या गलत है?
दैनिक भास्कर तो नया – नया अखबार है, उसमें काम करनेवाले कई लोग हमारे फेसबुक फ्रेंड है, वहाटस ग्रुप में भी है, पर इसने भी मर्यादा को ताड़-ताड़ कर दिया, यानी इसके भी नजर में मैं पत्रकार नहीं हूं।
आखिर पत्रकार होता क्या है?
क्या जो मुख्यमंत्री के आगे नाचते हुए ठूमरी गाये, वो पत्रकार है।
क्या पत्रकार वो है, जो मुख्यमंत्री और उनके कनफूंकवों के आगे अपनी कलम बेच दे।
अरे पत्रकार तो वह होता है, जो अपनी जमीर किसी भी हालत में न बेचे।
इन अखबारों ने प्राथमिकी देखी और बस न्यूज लिख दिया, जबकि इन लोगों के पास हमारे मोबाइल नंबर है, पर इन लोगों ने पत्रकारिता की एथिक्स को ही मटियामेट कर दिया। यानी बेशर्मी की सारी हदें, पार कर दी, पर शायद इन्हें नहीं पता कि आज उनकी सारी हेकड़ी, सारी अकड़ सोशल साइट्स ने निकाल दी है।
इनकी वश चले तो ये हमें सूली पर चढ़ा दे, पर इन्हें नहीं पता कि मैं जब भी कुछ लिखता हूं तो उसका आधार होता है. और वह आधार मेरे पास है।
कौन ये चित्र बनाया,
किसने पेश किया,
किसने वायरल किया,
जवाब मैं दूंगा,
और जब मैं जवाब दूंगा तो सबकी फटेगी...
फटेगी उन कनफूंकवो की भी
और
फटेगी मुख्यमंत्री और कनफूंकवों के आगे ठूमरी गानेवाले उन तथाकथित अखबारों की भी।
और अब बात धार्मिक भावना की...
ये धार्मिक भावना तब नहीं भड़कती, जब मुख्यमंत्री खूलेआम श्रीरामचरितमानस की चौपाईयों से स्वयं को जोड़ता है...
ये धार्मिक भावना तब नहीं भड़कती, जब मुख्यमंत्री स्वयं को रघुकुल यानी भगवान राम के कुल से स्वयं को जोड़ता है...
ये धार्मिक भावना तब नहीं भड़कती, जब गोस्वामी तुलसीदास की रचना का इस्तेमाल एक मुख्यमंत्री स्वयं के लिए करता है, और संविधान के प्रस्तावना में उद्धृत धर्मनिरपेक्ष भावना का अनादर करता है।
सबूत आपके सामने है, जरा देखिये, पूरे रांची में कैसे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने श्रीरामचरितमानस की चौपाईयों और धर्मनिरपेक्षता की धज्जियां उड़ा दी...
आश्चर्य इस बात की है कि एक मुख्यमंत्री और उसका तबका खूलेआम धार्मिक भावना की धज्जियां उड़ा रहा है, पर उसके खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं होती, और एक व्यक्ति सत्य लिखता है, सत्य को प्रतिष्ठित करता है, तो ये मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवे तथा इनके इशारे पर ठूमरी गानेवाला कुछ अखबारों का समूह एक ईमानदार व्यक्ति को ही कठघरे में रख देता है।
अरे मैं चुनौती देता हूं कि इस पूरे मामले की जांच करो, पर तुम जांच नहीं करा पाओगे, क्योंकि फंसेगा और कोई नहीं, वहीं फंसेगा जो ज्यादा अभी काबिल बन रहा है, क्योंकि मेरे पास पक्के सबूत है कि किस भाजपा नेता ने रघुवर दास का राम के रुप में चित्र बनाया और किसने वायरल किया, और इस पर किसने, किससे क्या संवाद किया।
है हिम्मत तो मैं तूम्हे चुनौती देता हूं, इस चुनौती को स्वीकार करो।
और
धमकी किसे देते हो, मूर्खों,
मैं कोई बहुत बड़ा तोप थोड़े ही हूं,
अभी भी साधारण तरीके से एक किराये के घर में रहता हूं, आ जाओ, हमें खत्म करा दो।
तुम्हे किसने रोका है,
जागीर तुम्हारी,
शासन तुम्हारा
कनफूंकवे तुम्हारे
और ठुमरी गानेवाले अखबार तुम्हारा
फिर दिक्कत किस बात की....

Thursday, May 18, 2017

झारखण्ड रघुवर के हाथों असुरक्षित............

आज राज्य के सभी समाचार पत्रों में मुख्यमंत्री रघुवर दास का भारी-भरकम विज्ञापन छपा हैं। मात्र 3 माह के भीतर, 20+ परियोजनाएं, शिलान्यास को तैयार। 21000 से अधिक नौकरियों के सृजन की क्षमता। 8 क्षेत्रों में साझेदारी, यानी एक बार फिर राज्य की जनता की आंखों में धूल झोंकने की तैयारी।
शायद कनफूंकवों ने राज्य की जनता को निरा बेवकूफ समझ रखा है कि वे जो मुख्यमंत्री रघुवर दास से बोलवायेंगे, जनता मान लेगी। हमें लगता है कि जो ऐसा सोच रहे हैं, वे मुगालते में है।
• पहली बात, एमओयू और शिलान्यास में कोई फर्क नहीं होता। जैसे एमओयू हो गया तो वो काम हो ही जायेगा, इसकी अनिश्चितता बरकरार रहती है, ठीक उसी प्रकार शिलान्यास होने पर काम हो ही जायेगा, इसकी भी अनिश्चितता बरकरार रहती है। उदाहरणस्वरुप रघुवर दास से पूछिये कि जब वे बाबूलाल मरांडी सरकार में मंत्री थे, तो उसी वक्त भाजपा के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने सुकुरहुट्टू में नई राजधानी बनाने के लिए एक शिलान्यास किया था, क्या रघुवर दास बता सकते है कि वो राजधानी वहां बनी है या नहीं बनी। अरे छोड़िये, कम से कम वो पत्थर ही लाकर दिखा दें, जिस पर शिलान्यास किया गया। हम मान लेंगे कि रघुवर की सारी योजनाएं सफल हो गयी या हो जायेंगी।
• दूसरी बात, व्यवसायियों को जमीन दिलाने का काम अब मुख्य सचिव का रह गया है क्या? मैं तो देख रहा हूं कि व्यवसायियों को जमीन दिलाने का काम अब सिर्फ मुख्य सचिव का रह गया है, क्योंकि वहीं आजकल जमीन देखने का काम कर रही है, यानी जो काम हलका कर्मचारी, सर्किल इंस्पेक्टर, अंचलाधिकारी, भूमिसुधार उप समाहर्ता, उपायुक्त, राजस्व सचिव का है, वह काम अकेले मुख्य सचिव देख रही है, यानी राज्य में सारा सिस्टम फेल।
• तीसरी बात, आज जो खेलगांव में कार्यक्रम रखा गया, जिसमें कहा जा रहा है सरकार के पिछलग्गूओं द्वारा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खेलगांव से झारखण्ड के नवनिर्माण की नींव रखी तो ये बतायें कि इस प्रकार के शिलान्यासों को कराने के लिए व्यवसायियों ने इनको आमंत्रित किया था क्या? या खुद सरकार अपने विरोधियों को बताना चाहती है कि हम बहुत अच्छा कर रहे है, गर ऐसा ही है तो यह राज्य के लिए दुर्भाग्य की बात है, न की सराहनीय।
• सच्चाई यह है कि आज भी गोड्डा में अदानी परिवार को पावर प्लांट बनाने में पसीने छूट रहे है, ये अलग बात है कि एक अखबार ने अदानी को मजबूती प्रदान करने के लिए उसके पक्ष में समाचार छाप दिये है।
• आज भी रांची में सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल चलाने के लिए कोई तैयार नहीं है, जबकि रांची के अलबर्ट एक्का चौक पर ढांचा बनकर तैयार है।
• जो भी कंपनी का आज नाम दिया जा रहा है, वो सिर्फ राज्य सरकार अपना लाज बचाने के लिए तथा विरोधियों को जवाब देने के लिए ऐसा कर रही है, क्योंकि सच्चाई सब को पता है।
आजकल जो विभिन्न चौक चौराहों पर रघुकुल रीति वाली जो होर्डिंग्स लगाई गयी है, उससे कई लोग अभी से ही कांप गये है, क्योंकि उनका रघुवर दास का रघुकुल जमशेदपुर में किस प्रकार आतंक फैला रहा है, वह किसी से छुपा नहीं।
हां एक बात की दाद दुंगा, कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहा करते थे कि जब वे काला धन भारत लायेंगे तो प्रत्येक भारतीयों के खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख रुपये स्वयं आ जायेंगे, जिसका शुभारंभ राज्य सरकार द्वारा कुंदन पाहन जैसे नक्सलियों के खाते में पन्द्रह लाख रुपये देकर कर दिया गया।
यानी समझते रहिये कि झारखण्ड, रघुवर दास के हाथों में कितना सुरक्षित है?

Wednesday, May 17, 2017

“रघुकुल रीति सदा चलि आई” पर दाग मत लगाइये............

रघुवर जी, स्वयं को बदलिये...
आज जिस भाषा का आप प्रयोग कर रहे है, वो कतई ठीक नहीं, जनता को चिढ़ाइये नहीं, प्यार करिये।
माननीय मुख्यमंत्री जी, श्रीरामचरितमानस की सुंदर चौपाई “रघुकुल रीति सदा चलि आई” पर दाग मत लगाइये, इसे विवादित मत बनाइये। आप न तो रघुकुल में जन्म लिये है और न राम है। सत्ता संभालने के तुरंत बाद, जमशेदपुर के एक कार्यक्रम में अपने नाम का आपने सुंदर भाव प्रकट किया था। आपने कहा था रघुवर दास यानी रघुवर का दास अर्थात् हनुमान, पर शायद आपको मालूम नहीं कि हनुमान को हनुमान बनानेवाले जाम्बवन्त थे, पर आपके आसपास कोई जाम्बवन्त ही नहीं, जो आपको हनुमान बना सकें।
सच पूछिये, तो आप जाम्बवन्त की जगह कनफूंकवों से घिरे है, ऐसे में आप झारखण्ड का क्या हाल कर रहे है? वो किसी से छुपा नहीं। स्थिति ऐसी है कि आप जनता के बीच इतने अलोकप्रिय है कि कोई जनता आपको अब एक मिनट भी झेलने को तैयार नहीं, आज स्थिति यह है कि भाजपा नेताओं में अर्जुन मुंडा लोकप्रियता में शीर्ष पर है।
सीएनटी-एसपीटी पर आपका बयान, जनता के दिलों को चीर रहा है, आज तक भारत में कोई ऐसा नेता नहीं हुआ, जो जनता की बातों को तवज्जों न दें। आप शायद भूल रहे है कि इस देश में राजतंत्र नहीं लोकतंत्र है। आपको जनता ने आधारभूत संरचना को ठीक करने के लिए, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क आदि की बेहतरी के लिए चुना था, पर आप तो राजा बन बैठे और जनता के उपर मूंग दलने लगे।
आज नीतीश कुमार की सभा में आयी भीड़ नीतीश की लोकप्रियता के कारण नहीं आयी थी, कुछ महीने पहले अरविन्द केजरीवाल भी रांची आये थे, वहां भी भीड़ जुटी थी, वो अरविन्द केजरीवाल की लोकप्रियता के कारण नहीं जुटी थी, बल्कि आपकी अदूरदर्शिता और कनफूंकवों की मदद से चला रहे शासन, साथ ही आपकी अलोकप्रियता के कारण उनकी सभाओं में भीड़ जुटी थी।
इन दिनों आपके फोटो के साथ, जो एड फैक्टर ने विज्ञापन बनाया है, जो चौक-चौराहों पर लगे है, वो जनता को चिढ़ा रहा है, जनता इस विज्ञापन रुपी होर्डिंग को देख कर भड़क रही है, पर कनफूंकवे आपको बता रहे है कि जनता खुश है, ऐसा नहीं है।
अभी भी वक्त है, संभलिये, स्वयं को बदलिये, बहुत अच्छा लगा था, उस वक्त जब जनता के बीच आप जा रहे थे, उस वक्त माकपा की वृंदा करात, कांग्रेस के सुखदेव भगत और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने भी आपकी प्रशंसा की थी, पर इधर आप इस प्रकार स्वयं को जनता के समक्ष पेश कर रहे है, जैसे लगता है कि जनता आपकी दया पर निर्भर है, पता नहीं, कैसे-कैसे लोगों को आप अपने पास बैठाकर गलत निर्णय ले रहे है, जिससे जनता स्वयं को ठगी महसूस कर रही है।

Saturday, May 13, 2017

जनता की नजरों में मुख्यमंत्री रघुवर दास............

झारखण्ड की जनता की नजर में मुख्यमंत्री रघुवर दास की कोई इज्जत नहीं। कल की ही बात है, मैं रांची मेन रोड स्थित सुप्रसिद्ध व्यवसायी एवं उद्योगपति एक जैन परिवार से मिला। पूरा परिवार भाजपा एवं संघ से जुड़ा हुआ और जब मैंने उनसे राज्य और सरकार के बारे में खुलकर बात की, तो मैं सुनकर हैरान रह गया। वे इस बात को लेकर दुखी थे कि मुख्यमंत्री रघुवर दास को बात करने की तमीज तक नहीं। उनका कहना था कि मुख्यमंत्री रघुवर दास को कहा क्या बोलना है? कैसे बोलना है? कैसे अपनी बात रखनी है? इसका ज्ञान ही नहीं। ऐसे में यह राज्य उनके नेतृत्व में प्रगति करेगा, उन्हें ऐसा नहीं लगता। ढाई साल बीतने को आये, ढाई साल शेष है, जब आपने ढाई साल में कुछ काम नहीं किया तो मैं ये कैसे मान लूं कि आनेवाला ढाई साल ये कुछ अच्छा कर लेने में कामयाब हो जायेंगे। वे तो इतने दुखी थे कि वे ये भी कहने लगे कि यार काम करो या न करो, आपको बात करने में क्या परेशानी है? बात में रुखापन क्यों? आप किसी को इज्जत क्यों नहीं देते?
ठीक यहीं बात चर्च रोड स्थित एक व्यवसायी और गोस्सनर कॉलेज में पढ़ाई कर रहे एक युवा छात्र ने कहीं कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के लक्षण कुछ ठीक नहीं दीख रहे, अगली बार जब भी कभी विधानसभा के चुनाव होंगे, इस सरकार के जाने की पूरी गारंटी है, पर पुनः आने की संभावना दूर – दूर तक नहीं दीखती।
चुटिया में भाजपा कार्यकर्ताओं की एक बड़ी टीम बताती है कि आनेवाले लोकसभा चुनाव में वे मोदी जी के लिए काम करेंगे पर विधानसभा चुनाव में वे इस राज्य सरकार को हटाने के लिए जोर लगायेंगे, क्योंकि जनता को जवाब मुख्यमंत्री को नहीं देना होता है, कार्यकर्ताओं को देना होता है, इस मुख्यमंत्री के व्यवहार ने उन कार्यकर्ताओं को कहीं का नहीं छोड़ा है, इनसे कहीं अच्छे मुख्यमंत्री के रुप में अर्जुन मुंडा थे, जिनका कार्यकर्ताओं पर ध्यान रहता था, पर ये तो किसी को सुनते ही नहीं, पता नहीं कौन कनफूंकवा इनकी कान फूंक देता है और उसी के फूंक पर ये दीवाने होकर वे काम कर रहे है, जिससे पार्टी जनता से दूर होती चली गयी।

Monday, May 8, 2017

यहां तो सीएम और उनके उच्चाधिकारी टेंडर मैनेज कराते है, ये भ्रष्टाचार क्या रोकेंगे? – बाबू लाल मरांडी

बाबू लाल मरांडी यानी झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री, जिन्हें कभी झारखण्ड की राजनीति में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का वरद हस्त प्राप्त था। आज भी जो लोग राजनीति में शुचिता व शुद्धता की बात करते है, वे बाबू लाल मरांडी को पसंद करते है। हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह बयान की झारखण्ड के मुख्यमंत्री पद के लिए बाबू लाल मरांडी ही उपयुक्त है, ये बात बताती है कि आज भी विपक्षी खेमे में बाबू लाल मरांडी का व्यक्तित्व और उनका जादू बरकरार है।
याद करिये बाबू लाल मरांडी के मुख्यमंत्रित्व काल में झारखण्ड का विकास का पहिया कितनी तीव्र गति से चल रहा था, शायद यहीं कारण था कि बाबू लाल मरांडी उस वक्त देश के सर्वश्रेष्ठ तीन मुख्यमंत्रियों में बहुत जल्द शामिल हो गये थे।
उन्ही के शासनकाल में...
1.  स्कूली लड़कियों को साइकिल देने की योजना लागू हुई थी।
2.  उन्हीं के समय में बीटीबीसी की पुस्तकों की जगह झारखण्ड में एनसीईआरटी की पुस्तकों ने स्थान ले लिया था। लक्ष्य था झारखण्ड के बच्चों को राष्ट्रीय स्तर तक के पाठ्यक्रम से परिचय कराना।
3.  आधारभूत संरचनाओं को ठीक करने का काम, इन्हीं के शासनकाल में हुआ। जो सड़कें पूर्व में सिर्फ कागजों पर बन जाया करती थी, सहीं मायनों में सड़कों का रुप ले सकी थी, लोग कहने लगे थे कि हम झारखण्ड पहुंच गये है, वह भी तब जब लोग बिहार या ओड़िशा से सड़क मार्ग से झारखण्ड में प्रवेश करते थे, आज की क्या स्थिति है?  सभी को मालूम है।
4.  आदिवासी छात्र-छात्राओं के लिए होस्टल और खेलकूद में रुचि रखनेवाले छात्र-छात्राओं को विशेष व्यवस्था के साथ हॉस्टल खुलवाने का काम किया जाने लगा।
5.  लघु उद्योग जो दम तोड़ रहे थे, उन्हें भी ठीक किया जाने लगा।
6.  उग्रवाद कारण और निवारण विषयक संगोष्ठी कराकर, उग्रवाद के सफाये के लिए विशेष अभियान चलाने की कोशिश की गयी।
7.  आदिवासी इलाकों में विशेष ऋण देने, 90 प्रतिशत अनुदान पर बस उपलब्ध कराने की व्यवस्था करायी गयी ताकि आदिवासी समुदाय अपने पैरों पर खड़े हो सके।
8.  गांव – गांव में छोटे-छोटे पुल-पुलियों को ठीक किया जाने लगा।
9.  भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए निगरानी ब्यूरो को चुस्त-दुरुस्त किया गया। इन्हीं के समय में भ्रष्ट अधिकारियों के समूह में हड़कम्प मचा, कई जेल भेजे गये।
पर देखते  ही देखते बाबू लाल मरांडी की बढ़ती लोकप्रियता ने उस वक्त के नीतीश कुमार की पार्टी में रह रहे लाल चंद महतो, जलेश्वर महतो, बच्चा सिंह, रमेश सिंह मुंडा, मधु सिंह आदि मंत्रियों की नींद उड़ा दी। इन सभी ने ऐसा कुचक्र रचा, जिसके शिकार बाबू लाल मरांडी हो गये, हालांकि उस वक्त भी नीतीश कुमार और देश के उच्च स्तर के राजनीतिज्ञों ने बाबू लाल मरांडी का साथ नहीं छोड़ा। इन नेताओं का दबाव था कि बाबू लाल मरांडी अपने पद से इस्तीफा न दे, पर समय की परिस्थितियों को भांपते हुए बाबू लाल मरांडी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
जो लोग उन्हें जानते है, आज भी उन्हें सम्मान करते है, इधर वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सत्ता संभालने के बाद, जो कुछ ठोस निर्णय लिया था, उससे लगा था कि रघुवर दास, बाबू लाल मरांडी का रिकार्ड तोड़ देंगे, पर इधर कुछ छः सात महीनों से वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जो निर्णय लिया है, उससे वे राज्य की जनता ही नहीं, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं के नजरों से भी गिर गये है। हाल ही में धनबाद में भाजपा विधायक ढुलू महतो के घर वैवाहिक कार्यक्रम में शामिल होने गये मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भाजपा कार्यकर्ताओं से दूरियां बनाई, उससे भाजपा कार्यकर्ताओं में गहरा आक्रोश है, जिसे वहां के वरिष्ठ पत्रकारों ने अपने अखबारों और सोशल साइट पर स्थान भी दिया।
अब से दो दिन पूर्व ही हमारी मुलाकात बाबू लाल मरांडी से हुई। उनसे राज्य के राजनीतिक हालात, जनता के हालात और विभिन्न मुद्दों पर बातचीत हुई। उन्होंने हमसे खुलकर हर उन बिन्दुओं पर अपना पक्ष रखा, जो बताता है कि राज्य के वर्तमान हालात ठीक नहीं है।
कृष्ण बिहारी मिश्र – राज्य की जनता रघुवर सरकार से बहुत ही नाराज है, अभी चुनाव हो जाये तो रघुवर सरकार की बुरी तरह हार तय है, आप की पार्टी इस वक्त क्या कर रही है? क्या वर्तमान राजनीतिक हालात को देखते हुए कुछ आपने प्लान बनायी?
बाबू लाल मरांडी – इन्हीं हालातों को देखते हुए, हमने अपनी पार्टी को मजबूत करने का काम शुरु किया है, चूंकि झारखण्ड की स्थिति एक समान नहीं है, अलग – अलग क्षेत्रों में अलग – अलग लोगों की बाहुल्यता है, उनकी परंपराएं – संस्कृतियां अलग – अलग है, कहीं कोई और पार्टी मजबूत है तो कहीं और, ऐसे में समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मिलकर एकरुपता लाने की हम कोशिश कर रहे है। हम एक ऐसा एजेंडा तैयार कर रहे है, जिसमें एक समानता हो। इस कार्य में सफलता मिल रही है। सभी पार्टियां इस बात को स्वीकार कर रही है कि भाजपा को शिकस्त देने के लिए एकता आवश्यक है, वोटो का बिखराव न हो, इस पर ज्यादा ध्यान है।
कृष्ण बिहारी मिश्र – राष्ट्रपति चुनाव में किसे समर्थन करेंगे?
बाबू लाल मरांडी – निःसंदेह हम सत्तारुढ़ दल के प्रत्याशी का विरोध करेंगे और विपक्षी दलों के प्रत्याशी का समर्थन करेंगे।
कृष्ण बिहारी मिश्र – रघुवर सरकार को आप कहां-कहां गलत देख रहे है?
बाबू लाल मरांडी – आप स्वयं बताए कि ये सही कहा है?  राज्य में कानून-व्यवस्था नहीं है। गुंडागर्दी चरम पर है। जमशेदपुर में मुख्यमंत्री के परिवार का आंतक है, स्वयं भाजपा के लोग, कार्यकर्ता आंतकित है, उनसे दूर होने लगे है। भ्रष्टाचार चरम पर है, कोई ऐसा विभाग नहीं, जहां बिना घूस के काम हो जाये। हमें याद है कि जब मैं मुख्यमंत्री था तब मैने कहा था कि जब हमें जानकारी मिलती है कि कहीं भ्रष्टाचार हो रहा है तो हमें नींद नहीं आती, जिसे लोग ने बहुत बड़ा मुद्दा बनाया था, पर आज की क्या स्थिति है? यहां तो मुख्यमंत्री के लोग टेंडर मैनेज कराते है।  मुख्यमंत्री और उच्चाधिकारियों का दल इसमें संलिप्त रहता है। पैसे मिले और उधर टेंडर मनमुताबिक लोगों को मिला। ये क्या हो रहा है?  झारखण्ड में। ये कैसा विकास है कि कई साल पहले रांची में एक अस्पताल बन कर तैयार है और वह काम नहीं कर रहा है, कैसी सरकार है यहां,  जो अपने जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा उपलब्ध नहीं करा रही, स्किल डेवलेपमेंट के नाम पर इन सब ने लूट मचा रखी है। सिंचाई का बुरा हाल है, डोभा के नाम पर पैसे की खुली लूट हुई, जनता को क्या मिला?  सरकार बताये कि कहां डोभा है और उस डोभे में कितना पानी है?
कृष्ण बिहारी मिश्र – कहा जाता है कि आपकी पार्टी को प्रदीप यादव ने डूबा दिया, जो भी विधायक पार्टी छोड़े, उन्होंने प्रदीप यादव की निरंकुशता पर अपना ध्यान आकृष्ट कराया?
बाबू लाल मरांडी – ये सफेद झूठ है, जिन्हें जाना है, वे जायेंगे, उन्हें कुछ न कुछ बोलना है, बोलेंगे।
सच्चाई यह है कि भाजपा और भाजपा के लोगों को बाबू लाल मरांडी और उनका दल हमेशा आंखों में खटकता है। वे जानते है कि भाजपा का कोई नुकसान करेगा तो वह है बाबू लाल मरांडी, क्योंकि झारखण्ड में जितनी पार्टियां है, उनके वोट बैंक अलग है, वो भाजपा को प्रभावित नहीं करती, चूंकि हमारी पार्टी जितना मजबूत होगी, उतना ही भाजपा को नुकसान होगा, ये बाते भाजपा के लोग जानते है, इसलिए वे बाबू लाल मरांडी को नुकसान पहुंचाने का कार्य करते है. हाल ही में झाविमो विधायकों को लालच दिखाकर उन्हें तोड़ना और भाजपा में शामिल कराना उसी की एक कड़ी है और मैं इन सबसे न तो घबराता हूं और टूटता हूं, अपना काम करता हूं, जनता सब देख रही है, परिणाम आयेगा।
कृष्ण बिहारी मिश्र – सरकार विकास के लिए लैंड बैंक बनायी है, कहती है कि उनके पास जमीन की कोई कमी नहीं है?
बाबू लाल मरांडी – अगर उनके पास जमीन है तो फिर आदिवासियों के जमीन पर उनकी नजर क्यों गड़ी है?  वे उन जगहों पर अपनी नजर क्यों नहीं गड़ाते, जहां जनसंख्या नहीं है, कौन उन्हें रोक रहा है? सच्चाई यह है कि लैंड बैंक के नाम पर भी सरकार लोगों को धूल झोंक रहीं है, क्योंकि जो लैंड के नाम पर सर्वे हुए है, वे बहुत पहले हुए है, और आज की जो स्थिति है, वह दूसरी है, शायद रघुवर दास और उनके उच्चाधिकारियों को मालूम नहीं।
कृष्ण बिहारी मिश्र – आप जब सत्ता में थे तो ग्रेटर रांची की बात करते थे पर आज सरकार स्मार्ट सिटी की बात कर रही है तो आप उसका विरोध क्यों कर रहे है?
बाबू लाल मरांडी – ग्रेटर रांची और स्मार्ट रांची में आकाश – जमीन का अंतर है। मेरे ग्रेटर रांची में रांची की जनता और झारखण्ड की जनता के बीच अनुकूलता और उसकी उपयोगिता पर बल दिया गया है। हमारे ग्रेटर रांची में कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य आधारभूत संरचनाओं का समावेश है, वह भी जरुरतों को मुताबिक, जबकि स्मार्ट सिटी में ये बातें नहीं दिखती, ये उनलोगों के लिए बनायी जा रही है जो आर्थिक रुप से समृद्ध है, जिन्हें झारखण्ड की समझ नहीं है, इसका विरोध व्यापक स्तर पर होना चाहिए, अभी स्थिति है कि हमारे पास पीने को पानी नहीं है और चल रहे है स्मार्ट सिटी बनाने, ये क्या दिमागी फित्तूर है, हमें समझ में नहीं आ रहा, आज तो रांची के लोगों की जरुरतों को पूरा नहीं कर पा रही सरकार, स्मार्ट सिटी में बसनेवालों का क्या हाल होगा?
कृष्ण बिहारी मिश्र – राज्य सरकार स्थानीय नीति, सीएनटी-एसपीटी नीति लाई है, क्या आपकी सरकार आयेगी तो इसे बदलेंगे?
बाबू लाल मरांडी – निः संदेह बदलेंगे.  हम अपने झारखण्डियों के सपनों के अनुरुप कार्य करेंगे, न कि किसी पूंजीपतियों-उद्योगपतियों के मनोबल बढ़ाने और राज्य की जनता को गर्त में धकलेनेवाले नीतियों पर राज्य की जनता को ले चलेंगे।
कृष्ण बिहारी मिश्र – गोड्डा प्रकरण पर क्या कहेंगे?
बाबू लाल मरांडी – हमारा दृष्टिकोण साफ है, अगर कोई बेईमानी पर उतर जाये तो हम आंदोलन करेंगे।
कृष्ण बिहारी मिश्र – आपके दल से टिकट लेकर जीते लोग, दल बदल लिए, ढाई साल सरकार के होने चले, आखिर आपको न्याय कब मिलेगा?  जब सरकार अपने कार्यकाल पूरे पांच वर्ष पूरा कर लेगी तब?
बाबू लाल मरांडी – जब कोई बेईमानी पर उतर जाये, जब कोई संविधान को मानने से इनकार कर दें, जब अनुसूची 10 में स्पष्ट है कि कोई निर्दलीय भी अगर दल बदल करता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है, तो हम क्या कर सकते है?  हम कह सकते है कि झारखण्ड विधानसभा के विधानसभाध्यक्ष ने मर्यादा तोड़ी है, उन्होंने संविधान के प्रति निष्ठा न रखकर, अपने दल के प्रति निष्ठा रखी, जो सहीं नहीं है। ये तो उन्हें खुद आत्ममंथन करना चाहिए, क्योंकि स्पीकर का पद किसी दल का नहीं होता, वह तो संवैधानिक है।

Saturday, May 6, 2017

बदलता झारखण्ड, विकास की ओर उन्मुख झारखण्ड............

राज्य के सुखी संपन्न आईएएस-आईपीएस, ठेकेदारों, अभियंताओं, दलालों, कनफूंकवों एवं चाटुकारिता करनेवाले लोगों की कथित गरीबी दूर करने के लिए राज्य में अनेक योजनाएं लागू...
बदलता झारखण्ड, विकास की ओर उन्मुख झारखण्ड का नया अध्याय...
कई योजनाओं की शुरूआत...
1. कारपोरेट समृद्धि योजना – इसमें सरकार कारपोरेट जगत को उपर उठाने के लिए जमकर उन्हें लूटने का लाइसेंस देती है, जैसे हाल ही में एक पूर्व में ब्लैक लिस्टेड कंपनी को राज्य सरकार ने अपने ब्रांडिग के लिए बुलाया और उसे मुंहमांगी रकम देकर, झारखण्ड को बर्बाद और कारपोरेट जगत को मालामाल कर रही है, जिससे कारपोरेट जगत राज्य के सीएम की ब्रांडिग की चक्कर में झारखण्ड की असली तस्वीर ही दूसरों के समक्ष गायब कर दे रहा है। स्थिति ऐसी है कि झारखण्ड का मानचित्र बंगाल की खाड़ी में तैरता नजर आता है...
2. मारवाड़ी – पंजाबी संपन्न योजना – इसमें मारवाड़ियों और पंजाबियों को कहा जाता है कि वे झारखण्ड की ऐसी-तैसी कर दें। इन लोगों को कहा जाता है कि वे सड़ी गाड़ियों के सहारे पूरे राज्य में एलइडी चलाएं, वो एलइडी चले या न चले, पर वे समय – समय पर करोड़ों रुपये सरकार से अवश्य लें, इससे पंजाबियों की गरीबी दूर हो रही है। दूसरी ओर जनसंवाद जैसे कार्यक्रम के माध्यम से पूरे राज्य को उल्लू बनाते हुए मारवाड़ियों को संपन्न किया जा रहा है।
3. वैश्य समृद्धि योजना – अगर आप तेली या वैश्य जाति से है, तो राज्य सरकार आपको इसका लाभ देगी।
4. निवेशक बुलाओ, झारखण्ड लूटवाओ योजना – इसमें सरकार देश के अन्य उद्योगपतियों को या विदेशियों को बुलवाकर उनकी आरती उतारती है तथा यहां के नागरिकों की जमीन लूटवाती है तथा यहां के उद्योगपतियों को भीख मांगने पर मजबूर कराती है।
5. आईएएस संपन्न योजना – इस योजना के द्वारा यहां के आइएएस को खुली छुट देती है कि वे अपने बुद्धिहीन होने का विशेष परिचय देते हुए, पूरे अर्थतंत्र को पंगु बना दें ताकि ये राज्य कभी ठीक से खड़ा ही न हो सकें।
6. योजना लूटवाओं योजना – इसमें राज्य सरकार का मुखिया गांव – गांव जाकर, वहां के लोगों के बदहाली को देख, उनके नाम पर विभिन्न योजना बनाकर आईएएस और उनके परिवारों और एनजीओ संस्थाओं के साथ मिलकर योजना की राशि की बजट विधानसभा से पास करवाकर लूटवा देता है और उसमें ये सभी लोग बम बम हो जाते है और राज्य की जनता सदा के लिए भीख मांगने पर मजबूर रहती है।
7. गरीबी बढ़ाओ योजना – इस योजना में राज्य के गरीबों की गरीबी और बढ़ाने पर विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि अगर गरीबी खत्म हो गयी तो फिर योजनाओं की बाढ़ कैसे आयेगी? इसका ख्याल रखा जाता है।
8. मूरख बनाओ योजना – इस योजना में वैसे प्रोफेसरों – लेक्चररों और बुद्धिजीवियों को रखा जाता है, जो गाहे बगाहे टीवी, रेडियो अथवा अखबारों में बेवजह के प्रवचन दे जाते है, और राज्य सरकार को कटघरे में रख देते है, इससे राज्य बहुत तेजी से बढ़ता है और मूरख और मूरख बनाने की कला में पारंगत हो जाते है।
9. मेयर समृद्धि योजना – इस योजना में पार्टी से जूड़े मेयरों की आर्थिक शक्ति और उनकी गुंडागर्दी को और समृद्ध किया जाता है। जैसे हाल ही में धनबाद के मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल का पक्ष लेते हुए, एक ईमानदार आइएएस घोलप को धनबाद से ही आउट करा दिया गया।
10. ले और दे योजना – इसमें राज्य सरकार या उसके मातहत काम करनेवाले विभाग विभिन्न अखबारों और चैनलों, साथ ही विभिन्न संस्थाओं को मुंहमांगी रकम उपलब्ध कराती है, जिसके एवज में ये सारे लोग मुख्यमंत्री या उनके विभिन्न विभागों में कार्य कर रहे वरीय अधिकारियों को पीतल का सामान और सफेद कागज के टूकड़े पर कुछ-कुछ लिखकर दे देते है, जिन्हें सम्मान कहा जाता है।
गुंडागर्दी बढ़े, झारखण्ड लूटे
सत्तारुढ़ दल के नेता, बम बम रहे
आइये मिलकर लूटे, मिलकर अपनी शक्ति का इजहार करे
जब हम हैं, आपके साथ
तो डर किस बात का...
सबका साथ, सिर्फ उनका और उनके लोगों का विकास...

Wednesday, May 3, 2017

मर जवान, मर किसान...........

कभी इसी देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने एक नारा दिया था – जय जवान, जय किसान। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने वैज्ञानिकों की कर्मठता को देखा तो उस नारे में दो शब्द और जोड़े और फिर हुआ – जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, पर आज देश की क्या स्थिति है? न जवान की जय हो रही है, न किसान की जय हो रही है और न ही विज्ञान की जय हो रही है, तब जय किसकी हो रही है...
जाहिर है...
• नेताओं की, उनकी पत्नियों की और उनके बेवकूफ औलादों की।
• उद्योगपतियों की, उनके उदयोगों की तथा उनके नाजायज संपत्तियों की।
• आईएएस व आईपीएस अधिकारियों की, जो जब तक जिंदा रहे, मस्ती से नौकरी किये और फिर बाद में नेताओं के तलवे चाटकर नेतागिरी में पिल पड़े है।
• नीच पत्रकारों के समूहों की, जो अपना जमीर बेचकर इन तीनों की आरती उतारने में लगा है।
आखिर ये कब तक चलेगा?, जाहिर है जब तक देश का युवा, गरीब, चरित्रवानों का समूह इन्हें लूटने का मौका देगा।
जरा स्थिति देखिये...
देश की गरीब जनता की औलादें, कभी आतंकियों के हाथों सरहद पर, तो कभी देश के अंदर नरपिशाचरुपी नक्सलियों के हाथों मारे जा रहे हैं, और सरकार का काम क्या रह गया है? बस कड़ी निंदा करने की, क्योंकि इनके पास ताकत ही नहीं, ताकत आयेगी भी कहां से, इस देश का नेता तो अपनी बेवकूफ औलादों और अपनी पत्नी तथा प्रेमिकाओं के आगे कुछ जानता ही नहीं।
आखिर देश का जवान क्यों शहीद हो रहा है? उसका कारण जानिये...
• क्योंकि देश के लिए मर-मिटनेवालों में कोई नेता, कोई अधिकारी या कोई उद्योगपतियों का बेटा या बेटी शामिल नहीं होता। इन सभी का मानना है कि उनके औलादों का जन्म केवल मस्ती करने के लिए पैदा हुआ हैं।
• जिन गरीबों के बच्चे जवान बनते है, उन्हें मरने के लिए उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाता है, न तो उन्हें बेहतर खाना दिया जाता है, न बेहतर पोशाक और न ही आतंकियों और नरपिशाच रुपी नक्सलियों से लड़ने के लिए बेहतर हथियार उपलब्ध कराये जाते है। ये नेता इतने बेहूदे और कमीने होते है कि देश की रक्षा के लिए खरीदे जानेवाले हथियारों की खरीद में भी कमीशन खाते है।
• नरपिशाचरुपी नक्सलियों और आतंकियों के बचाव के लिए मानवाधिकार के नाम पर साम्यवादियों का दल देश के जवानों को ही कटघरें में खड़ा कर देता है।
जिस देश में बेईमान नेता, बेईमान अधिकारी, बेईमान पूंजीपति और बेईमान-लालची किस्म के पत्रकार होते है, उस देश में देश की रक्षा करनेवाला जवान तिल-तिल मरता हैं।
मैं कहता हूं कि ऐ देश में रहनेवालों गरीबों, वंचितों, भूख से मरनेवालों, क्या देश की सुरक्षा के लिए तुमने ही ठेका ले रखा है? 
मत भेजो, अपने बच्चों को, देश की रक्षा के लिए,  छोड़ दो तुम भी देश को अपने हाल पर, और तुम भी उसी प्रकार जिओ, जैसे तुम्हारा मन करता है, क्यों देश के लिए अपनी औलादों को शहीद करवा रहे हो?
अरे देश के सारे नेता एक ही है, चाहे वह मोदी हो या मनमोहन। सभी एक थैले के चट्टे-बट्टे है, जरा पूछो मोदी से, कि कल जैसे मनमोहन को इसी बात के लिए वह कटघऱे में खड़ा करता था, आज उसकी घिग्घी क्यों बंध गयी है?
पूछो, देश के रक्षा मंत्री अरुण जेटली से कि क्या उसे केवल धन इकट्ठे करने के सिवा, देश की रक्षा कैसे की जाती है? उसको पता है?
कमाल है, देश का रक्षा मंत्रालय प्रभार पर चल रहा है, प्रधानमंत्री मोदी के पास कोई ऐसा आदमी नहीं, जो रक्षा मंत्रालय को संभाल सकें?
देखो, इन नेताओं को अपने लिए पेंशन और हर प्रकार की सुविधा की व्यवस्था कर लिया और आपके बच्चे, जो अर्द्धसैनिक बलों में कार्य कर रहे है, उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया, यहां तक की उसकी पेंशन तक समाप्त कर दी, इन देश के गद्दारों ने। देश को नामर्द बना कर खड़ा कर दिया है, इनलोगों ने।
इसलिए, हम उन सारे लोगों से अपील करते है, खासकर उनसे...
• जो माता-पिता सुलेसन से चमड़े साटकर अपने बच्चों को जवान करते है...
• जो माता-पिता सफाईकर्मी का कार्य करते है...
• जो माता-पिता अट्टालिकाओं में स्वयं को शोषण का शिकार बनाते हुए, अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रहे है...
• जो पंडित दो पैसों के लिए, अपने जजमानों के यहां शंख फूंक रहे है।
• जो गली-कुची में छोटी-छोटी दुकानें खोलकर अपनी जिंदगी जी रहे है...
यानी वे सारे लोग, जो किसी भी जाति के क्यों न हो, पर गरीबी से जिनका नाता है, वे अब अपने बच्चों को सिर्फ मरने के लिए सेना या अर्द्धसैनिक बलों में न भेजे, क्योंकि वर्तमान सरकार हो, या पूर्व की सरकार या कोई भी आनेवाले समय में आनेवाली सरकार हो, सभी ने आपके बच्चों को मारने की तैयारी कर रखी है, ऐसे में, आप अपने बच्चों को अपने साथ रखे, भले गरीब रहेगा, पर कम से कम आंखों के सामने तो रहेगा, किसी नेता, किसी अधिकारी या किसी उदयोगपति के शोषण का शिकार तो नहीं बनेगा, नहीं तो सबसे पहले नेता, अधिकारी और उदयोगपतियों के घर की औलादे भी देश के लिए जवान गंवाने के लिए तैयार रहे, क्या देश की सुरक्षा के लिए जान गंवाने का ठेका, यहां के गरीबों ने ही केवल ले रखा है?