Sunday, March 5, 2017

प्यारे बच्चों..................

प्यारे बच्चों,
बहुत दिन हो गये, तुमलोगों से विस्तार से बातचीत किये हुए। सोचा था होली आ रही है, तुम लोग होली की छुट्टी में आओगे, पर इस बार होली में तुम लोग नहीं आ रहे, इसके कारण इस बार की होली भी फीकी रह जायेगी। हमें आशा ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास है कि तुम जिस सीमा पर तैनात हो, बड़ी ही ईमानदारी पूर्वक भारत माता की सेवा कर रहे होगे। इधर एक दुख भरा समाचार भी है, तुम्हारी बुआ का दो दिन पूर्व ही देहांत हो चुका है, उनका श्राद्धकर्म भी दस दिन बाद है, पर चिन्ता मत करना। हमलोग यहां है। मैं जानता हूं कि इस वेला में भी तुम्हारा यहां नहीं रहना, हृदय को विदीर्ण करता होगा, फिर भी हमारा सुझाव होगा, कि ऐसे मौके पर भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली श्रीमद्भगवदगीता काफी महत्वपूर्ण हो जाती है, तुम इस अवसर पर श्रीकृष्ण के कर्मयोग को याद करते हुए, आगे निकल पड़ो।
दुख आते है, मनुष्य को सबल बनाने के लिए, न कि दुर्बल बनाने के लिए...
याद करो अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को, जिनके जीवन में कभी सुख आया ही नहीं, केवल दुख ही दुख था, पर अंत में वे अमरीका के राष्ट्रपति बने और वे बेहतर राष्ट्रपति साबित हुए। जब भी समय मिले, एक अच्छी पुस्तक पढ़ो और उससे कुछ सीखो। भगवान राम को देखो, राजा के बेटे थे, पर उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा, और इन्हीं संकटों से जुझते हुए, वे भगवान और मर्यादा पुरुषोत्तम की श्रेणी में आ गये।
तुमलोगों से इन दिनों बात ठीक ढंग से नहीं हो रही, इसलिए मैंने फेसबुक का सहारा लिया है। आशा है, पढ़कर तुम मेरी भावनाओं को समझोगे। अब आओ कुछ काम की बात करें। आज तुम्हें संत की परिभाषा बताता हूं, जो हमने भारतीय वाड.मय से सीखा है।
संत क्या है?  स+अन्त = जो समस्याओं का अन्त करें, वह संत। जो समस्या को बढ़ा दे, वह संत हो ही नहीं सकता। संत वैरागी होता है, संत भोगी नहीं होता, जो संत भोगी हो गया, वह संत कभी हो ही नहीं सकता। संत अलंकृत नहीं होता, बल्कि वह दूसरों को अलंकृत करता है। वह शासन या राजा के द्वारा किसी पुरस्कार का भूखा नहीं होता, वह तो गोस्वामी तुलसीदास की तरह होता है, जैसे एक बार अकबर के दरबार से गोस्वामी तुलसीदास को बुलाहट हुई, और गोस्वामी तुलसीदास ने पत्रवाहक को यह कहकर अकबर के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया कि मोसो कहां सीकरी सो काम। ऐसे होते है संत।
संत दुकान नहीं खोलता, संत कैटवाक नहीं करता या अध्यात्म की आड़ में व्यवसाय या स्वयं का उद्योग खड़ा नहीं करता, वो तो चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करता है, जिससे समाज में प्रेम की ऐसी गंगा बहे, जिसके प्रवाह में आकर सभी परमात्मा के एकाकार भाव में समाहित हो जाये।
हमारे देश में कबीर, तुलसी, रविदास, मीराबाई, सूरदास, रसखान, रहीम, नानक, ज्ञानेश्वर, स्वामी योगानन्द, स्वामी विवेकानन्द आदि ऐसे संतों की महान परंपराएं है, जिन्होंने देश व समाज को दिया, पर देश और समाज से लिया कुछ भी नहीं।
जरा मीराबाई को देखो, सभी उन्हें कृष्ण भक्त कहते है, पर मैं तो उन्हें कृष्ण की दीवानी कहता हूं, क्योंकि मीराबाई के गुरु थे संत रविदास, और उस वक्त जब भारत में जातियता कूट-कूट कर भरी थी, ऐसे माहौल में देखों, संत परंपरा। मीराबाई, संत रविदास जी को अपना गुरू मानती है, संत रविदासजी राम नाम की रट बराबर लगाया करते, उन्होंने मीरा को राम मंत्र दे डाला और लो मीराबाई राम मंत्र लेते ही, राममय हो गयी और कह डाला...
पायोजी मैने राम रतन धन पायो
वस्तू अमोलक दीयो जी मेरे सदगुरु, किरपा कर अपनायो
पायोजी मैने राम रतन धन पायो...
ऐसे होते है संत...
कबीर निराकार को माननेवाले, तुलसी साकार को माननेवाले, दोनों राम को भजते है, दोनो एक ही रामानन्दाचार्य संप्रदाय से पर किसी में भेदभाव नहीं...
जरा देखो कबीर राम को कैसे भज रहे है...
कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग ढूढ़ै बन माहि।
ऐसे घटि-घटि राम है, दुनिया दीखै नाहि।।
कमाल है, और तुलसी को देखिये...
नाना भांति राम अवतारा।
रामायण सत कोटि अपारा।।
तो तुम्हे इसी प्रकार से अपने जीवन को ले चलना है। संत बनने के लिए गेरुआ वस्त्र या सफेद वस्त्र धारण करने या दाढ़ी-मूंछ बढ़ाने की आवश्यकता नहीं। बस अपने चरित्र की शुद्धता और ईश्वर पर अटूट विश्वास पर ध्यान देने की आवश्यकता है, फिर क्या? तुम्हारा जीवन धन्य। संत रविदास जी बराबर जूते – चप्पल मरम्मत किया करते, वे अपनी कठौती में ही चमड़ों को धोया करते, पर सच्चाई ये भी है कि उस गंदे जल में भी गंगा उसी पवित्रता से वास करती, जैसा कि अध्यात्मिक रुप से पुष्ट मानव के हृदय में। उन्हीं का कथन था – मन चंगा तो कठौती में गंगा।
तुम अपने कर्म से स्वयं को जीतने का प्रयास करो, चरित्र पर ध्यान दो, संस्कार से पुष्ट हो, ये मत देखों की तुम्हें क्या प्राप्त हो रहा है?, हां इतना जरुर ध्यान रखना कि तुमने देश को क्या दिया है?
अंत में,
हम इस बार होली नहीं मनायेंगे, पर इतना जरुर है कि जब भी तुम घर आओगे, होली उसी दिन मनायेंगे। खुब खुश रहो, देश के सभी महान संतों को प्रणम्य करते हुए, जीवन को आगे बढ़ाओ।
क्योंकि
मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू।।
राम भक्ति जहं सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा।।
ऐसे भी तुलसी ने श्रीरामचरितमानस में, जब शबरी ने श्रीराम से नवधा भक्ति सुनने की बात कहीं तो भगवान श्रीराम ने शबरी को प्रथम भक्ति के रुप में क्या कहा?  जरा तुम स्वयं देखो...
भगवान राम ने कहा...
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।
यानी प्रथम भगति जो है वह संतों की संगति है, पर संत कैसा हो? इसका चयन तुम्हें स्वयं करना होगा... ...अगर संत कबीर है, संत स्वामी विवेकानन्द है, तो जीवन नैया बेड़ा पार और अगर संत कालनेमि है, तो समझ लो जीवन अंधकारमय है। फिलहाल भारतवर्ष में कालनेमियों की संख्या बढ़ रही है, फिर भी इनके बीच भी कई संत है, जो देश और समाज को नई दिशा दे रहे है, तुम उन संतों को स्वयं खोजों और अपना मार्ग प्रशस्त करो। ठीक उसी प्रकार जैसे स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस को और स्वामी दयानन्द ने नेत्रहीन स्वामी विरजानन्द सरस्वती को खोजा, और ज्यादा क्या लिखूं, ईश्वर तुम्हारे साथ है... ...हमेशा प्रसन्न रहो।
तुम्हारा पिता
कृष्ण बिहारी मिश्र

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