ये उस वक्त की बात हैं, जब मेरी उम्र करीब छः - सात साल रही होगी। मां - बाबुजी प्रतिदिन रात के वक्त जब हम सोने जाते, तो एक से एक कहानियां सुनाते। वो कहानी निरंतर, मेरे लिए मार्गदर्शन का काम करती। आज भी, जब मैं एकांत में होता हूं, तो उनकी यादें अनायास, आती रहती हैं, साथ ही जीने का मार्ग प्रशस्त करती हैं। जीवन कैसा हो, किसके लिए हो, ये भी सहज भाव से बता जाया करती हैं। एक बार जब मुझे किसी बात को लेकर बहुत डर लगा, तो मेरी मां ने मुझे समझाया कि भगवान तो सभी जगह हैं, वो हमेशा हमारी सहायता को तत्पर रहते हैं, तो फिर डर किस बात का। बस करना सिर्फ इतना हैं, कि उस प्रभु को हमेशा याद रखना हैं।
प्रभु को याद रखना हैं, ये कहते हुए, मेरी मां ने मुझे एक कहानी सुनाया जो आज भी मुझे प्रेरित करती हैं। चूंकि मां ग्रामीण परिवेश से थी, तो उसकी बातों में ग्रामीण भाषाओं और शब्दों के भाव स्पष्ट रुप से दिखाई पड़ते। मां कहानियां सुनाती और कहानी सुनने के क्रम में, मैं हुंकारी भरे जाता। इधर मां कहानी सुनाने के क्रम में बड़े ही सहज भाव से मेरे सर पर हाथ फिराया करती, तथा मेरे बालों में अपनी उँगलिया फिराया करती। मां का कहानी कहना और हाथों की जादूई स्पर्श, हमें स्वर्ग का आनन्द करा दिया करती। मैं भी उस वक्त रात की प्रतीक्षा करता और खुब ध्यान से मां के द्वारा कही गयी कहानियों को अपने हृदय में भरा करता।
जाड़े की सर्द भरी रात, जमीन पर रखे धान के पुआल पर बिछे फटे चीटे खेंदरे, मां के जादूई स्पर्शवाले हाथों की थाप और मां के मुख से निकली कहानियों के बीच कब नींद आ जाती, हमें पता ही नहीं चलता। सुबह हुई, लीजिए, फटी - पुरानी धोती की गांथी बन गयी और उन गांथियों में ठंड महाराज, हमें हरा दें, ऐसा ठंड महराज का मजाल नहीं। भाई गांथी तो गांथी हैं। इसका जवाब कभी भी, आज के हजारों - लाखों रुपये के गर्म कपड़े नहीं दे सकते, ये तो गंवई पोशाक हैं, जो बिहार के आज भी सुदूरवर्ती इलाकों में, ठेठ गांव में देखने को मिल जायेगा।
लीजिए, हमारी यहीं सबसे बड़ी दिक्कत हैं, हम आपको चले थे कहानी सुनाने और लिख रहे हैं पोशाक वृतांत, ये तो बड़ा ही गड़बड़झाला हैं। तो लीजिए आप भी सुनिये, जो मैने अपनी मां से सुना, वो भी छः - सात साल की उम्र में, शायद आपको अच्छा लगे। मां ने कहना शुरु किया कि बहुत पहले, मेरे जैसा ही एक छोटा सा बालक, जिसका नाम श्याम था। वो अपनी मां के साथ रहा करता था। मां उसकी बहुत गरीब थी, पर उसका श्याम पढ़ लिखकर एक चरित्रवान नागरिक बने, ऐसा सोचा करती। एक दिन, उसने पास के ही एक गांव के स्कूल में श्याम का नाम लिखवा दिया, पर दिकक्त ये थी कि स्कूल जाने से लेकर आने तक में घने जंगल का रास्ता पार करना, श्याम के लिए खतरे से खाली नहीं था। एक दिन उसने अपनी मां से कहा कि मां, मुझे स्कूल जाने में डर लगता हैं। तभी उसकी मां ने कहां कि बेटा जहां भी डर लगे, तुम अपने बड़े भैया, गोपाल भैया को पुकारना। वो आयेंगे और तुम्हें घर से स्कूल और स्कूल से घर तक पहुंचा देंगे। फिर क्या था। श्याम की सारी परेशानी दूर होती दिखाई दी। जब वो घर से स्कूल जा रहा था, तभी जंगल के रास्ते में उसे डर सताने लगी, उसने बड़े ही दर्द भरी आवाज से गोपाल भैया को आवाज दी। श्याम ने कहा -- ऐ गोपाल भैया हमरा डर लागता पहुंचा द....। फिर क्या था गोपाल भैया आये और श्याम की छोटी सी अंगूली को पकड़, स्कूल तक पहुंचा दिया। जब स्कूल से वह घर लौटने लगा तब फिर उसने आवाज दी- ऐ गोपाल भइया हमरा डर लागता पहुंचा द....। पुनः गोपाल भैया आये और श्याम को स्कूल से घर तक पहुंचा दिया। इसी प्रकार से ये रोज का क्रम बन गया। श्याम की गोपाल भैया से दोस्ती हो गयी, गोपाल भैया रोज श्याम के साथ घुलमिलकर स्कूल और घर तक पहुंचाने का कार्य करने लगे।
एक दिन स्कुल में जन्माष्टमी का त्यौहार मनाने का कार्यक्रम रखा गया। स्कूल के प्राचार्य ने सभी बच्चों को अपने अपने घर से दुध लाने का आदेश दिया। सभी बच्चे ने दुध लाने की हामी भरी। दुध से खीर बनाया जाना था, और फिर भगवान कृष्ण को भोग लगाया जाना था, क्योंकि भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव जो था। श्याम ने अपनी मां से दूध की मांग कर दी। बेचारी श्याम की गरीब मां, दुध कहां से लाती, उसके पास तो एक पैसे तक नहीं थे। वो क्या करती। उसने सहज भाव से कह दिया कि श्याम, तुम अपने गोपाल भैया से क्यों नहीं दूध मांग लेते। श्याम ने कहां - ठीक हैं मां ,मैं गोपाल भइया से ही दूध मांग लूंगा। इधर श्याम जैसे ही घर से स्कूल के लिए निकला। उसने गोपाल भैया से दूध की मांग कर दी। गोपाल भैया ने एक छोटी सी लुटिया में दूध की व्यवस्था कर दी। जब श्याम छोटी सी लुटिया में दूध लेकर पहुंचा तो देखा की सभी बच्चे बड़े बड़े पात्रों में दूध लेकर आये थे। स्कूल के शिक्षक, बड़े बड़े पात्रो में लाये गये दूध की अच्छी व्यवस्था कर रहे थे, ताकि वे सारे दूध जल्द से जल्द सुरक्षित रख लिये जाये, पर बेचारे श्याम के पास तो छोटी सी लुटिया हैं, उसकी ओर तो शिक्षक देख ही नहीं रहे। उसने बड़ी ही विनम्रता से शिक्षक से दूध लेने के लिए विनती की। फिर भी शिक्षक ने श्याम की बातों पर ध्यान देना जरुरी नहीं समझा। शायद उन्हें लगा हो कि छोटी सी लुटिया की दूध से कही अच्छा है कि बड़े पात्रों के दूध को जल्द से जल्द रख लिया जाय। शिक्षक द्वारा श्याम की बात को बार - बार अनसूनी कर देने तथा श्याम द्वारा बार - बार अनुरोध किये जाने पर, शिक्षक क्रुद्ध हो, झल्ला उठे। लाओ - अपनी लूटिया, देखते है कितना दूध हैं। शिक्षक ने लूटिया से अपने पात्र में दूध डालना शुरु किया।
ये क्या -- प्रभु की कृपा। लुटिया की दूध तो समाप्त ही नहीं हो रही। सारे के सारे पात्र दूध से भर गये। शिक्षक हैरान, सारे बच्चे हैरान, ये कैसे हो सकता हैं। बात स्कूल के प्राचार्य तक पहुंच गयी। प्राचार्य ने श्याम को बुलाया कि श्याम ये छोटी सी अद्भुत दूध से भरी लुटिया किसने दी। श्याम ने बड़े ही आदर से प्राचार्य को कहा कि गुरुजी ये हमारे गोपाल भैया ने दिया हैं। प्राचार्य ने कहां कि तुम मुझे अपने गोपाल भैया से मिला सकते हो। श्याम ने कहां - क्यों नहीं गुरुजी, वो मेरे साथ हमेशा घर से स्कूल और स्कूल से घर आया जाया करते हैं। प्राचार्य ने कहा कि आज हम तुम्हारे साथ घर चलेंगे। श्याम ने कहा कि क्यों नहीं गुरुजी। आज आप जरुर चले। मेरे गोपाल भैया बहुत ही सुंदर और बहुत ही अच्छे हैं। श्याम ने जैसे ही कहा, प्राचार्य श्याम के साथ स्कूल से श्याम के घर की ओर निकल पड़े। श्याम जैसे ही स्कूल से निकला, उसने आवाज दी - ऐ गोपाल भैया, हमरा डर लागता पहुंचा द। गोपाल भैया ने कहा कि श्याम आज तो तुम्हारे स्कूल के प्राचार्य, तुम्हारे साथ साथ चल रहे हैं, फिर भी डर लग रहा हैं। श्याम ने कहा - भैया, आप हमारे साथ चलिये, हमे बहुत ही अच्छा लगता हैं। गोपाल भैया, श्याम के निश्चल भावयुक्त बातों को सुन प्रभावित हो गये, और श्याम के साथ चल पड़े। इधर स्कूल से घर तक श्याम, अपने प्राचार्य के साथ आ चुका था, पर ये क्या प्राचार्य को, जिनकी तलाश थी, वो तो उन्हें दीखे नहीं। प्राचार्य ने श्याम से शिकायत की, कहा - श्याम तुमने तो कहा था कि तुम गोपाल भैया से मिलाओगे, पर तुमने अपने गोपाल भैया से मिलाया नहीं। श्याम ने कहा कि प्राचार्य महोदय, आपने मेरे गोपाल भैया को देखा नहीं, ये क्या गोपाल भैया, मेरे साथ खड़े हैं, बहुत ही सुंदर, हाथ में मुरली लिए, कितनी इनकी सुंदर छवि हैं, मैं देख रहा हूं, आप नहीं.......।
भगवान मुस्कुराये, शायद, भगवान की मुस्कुराहट कुछ संदेश दे रही थी, कि जो सहज हैं, सरल हैं, सहृदय हैं, उसके लिए, भगवान को तो हर समय आना पड़ता हैं, इसलिए भय कैसा।
मेरी मां ने कहां- भगवान, सर्वत्र हैं, कोई अनाथ नहीं हैं, सभी सनाथ हैं, इसलिए डर कैसा, उन्हें पुकारो, वो तु्म्हारे साथ हैं। आज भी हमें लगता हैं कि वो तो हमारे साथ हैं। कभी वो अलग, हमसे हुए ही नहीं।