Thursday, March 30, 2017

इसलिए वह जाहिल है, हिन्दू है.........

वह होली मनाता है...
वह दीपावली मनाता है...
वह रक्षाबंधन पर्व मनाता है...
वह दुर्गापूजा, रामनवमी, जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि का पर्व मनाता है...
वह भारत में स्थित तीर्थस्थानों का परिभ्रमण करता है...
वह गौ को पूजता है...
वह नदियों को पूजता है...
वह पहाड़ों को पूजता है...
वह पेड़ों को पूजता है...
इसलिए वह जाहिल है, हिन्दू है...
भारत में रह रहे ऐसे बहुसंख्यक हिन्दु समुदाय को – बीबीसी, एनडीटीवी, प्रभात खबर, वामपंथी बुद्धिजीवियों और वामपंथी पत्रकारों, साथ ही यहां धर्मांतरण का खेल कर रही ईसाई मिशनरियों का दल जाहिल और मूर्ख समझता है, इसलिए हिन्दू विरोधी आलेखों एवं समाचार प्रसारण ही इनका मुख्य केन्द्र बिन्दु बनता जा रहा है। ये लोग अन्य धर्मों में व्याप्त अँधविश्वास एवं रुढ़िवाद को अपने यहां चर्चा का केन्द्र बिन्दू नहीं बनाते। उसका मुख्य कारण है -  भारतीयों और हिन्दूओं को पूरे विश्व के सामने आले दर्जें का मूर्ख और जाहिल बताना... ...साथ ही वे ये भी जानते है कि अगर वे हिन्दूओं को छोड़कर अन्य धर्मों के खिलाफ कुछ लिखेंगे या चलायेंगे तो उनकी दुकान बंद होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी, चूंकि हिन्दू सहिष्णु होते है और हिन्दूओं के अंदर ही एक वर्ग ऐसा भी होता है, जो गाली देने से लेकर स्वयं गाली सुनने में भी आनन्द की प्राप्ति करता है, ये चैनल और अखबारवालों ने ऐसे लोगों के संरक्षण में अपना काम करना शुरु कर दिया है।
इन दिनों जब से भाजपा का देश में प्रादुर्भाव हुआ और विभिन्न राज्यों में भाजपा एक सशक्त दल के रुप में उभरी, तब से लेकर आज तक इनके पेट में दर्द इस प्रकार बढ़ा है कि पागलों की तरह ये अकबका रहे है, नाना प्रकार की झूठी-अतार्किक कार्टूनों-समाचारों-फिल्मों का निर्माण कर एक दूसरे के यहां छापने- दिखाने का दौर इनके यहां चल पड़ा है। आजकल तो ये इतने गुस्से में है कि वे भारतीय मतदाताओं को भी उलटा-सीधा बोल रहे है, उन्हें सांप्रदायिक बता रहे है...
भारतीय मतदाताओं को सांप्रदायिकता की तराजू में तौलनेवाले, पैसा और पद को ही एकमात्र अपना जीवन का अंग समझनेवाले इन मूर्खों का दल फिलहाल भारत के सम्मान के साथ खेल रहा है। ये लोग परिचर्चा का विषय कुछ अलग भी रखेंगे, फिर भी ये ले-देकर हिन्दू-भाजपा पर ही आ खड़ें होंगे। जिससे भारतीय जनता में इनके खिलाफ नाराजगी का बोध साफ दिखाई पड़ रहा है, शायद यहीं कारण है कि इनकी घटियास्तर की मनोवृत्ति से आजिज होकर भारत के मतदाता भी जोर-शोर से भाजपा के पक्ष में खड़े हो रहे हैं...
स्थिति ऐसी है कि अब तो जनता भी इनके खिलाफ लोहा ले रही है, पर बेशर्मों को शर्म नहीं। याद करिये नवरात्र का समय भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अमरीका दौरा। एक पत्रकार राजदीप सरदेसाई, अमेरिका में कैसे भारतीयों के खिलाफ अनाप-शनाप बक रहा था, जिससे गुस्से में आकर वहां के अमेरिकन भारतीय मूल के नागरिकों ने मिलकर उसे उसी समय छट्ठी रात का दूध याद दिला दिया। पत्रकारिता का मतलब या आपके पास अवैध ढंग से पैसे आ गये तो इसका मतलब ये नहीं कि आप भारतीयों को गाली दें, आप उन्हें नीच दिखाये, आप नैतिक मूल्यों को जीवन में प्रतिष्ठित करनेवाले भारत के गर्भ से निकली महाकाव्यों-ग्रंथों को गालियों से सीचें। एक बात जान लीजिये, ऐसे भी अब पहलेवाली बात नहीं रही, कि आप जो बोलेंगे और जनता आपके साथ हो लेगी, जनता आप सब को जवाब दे रही है, पर आप सुधरने का नाम नही ले रहे, वो कहते है न कि रस्सी जल गया पर बल नहीं गया...
आप अपना काम करते रहिये, भारतीयों का दल अपनी गति से चलेगा, भारत अपनी गति से चलेगा... क्योंकि भारतीय जानते है कि उन्हें करना क्या है? आपके विधवा प्रलाप का कोई असर इन भारतीयों पर पड़ने नहीं जा रहा...  अब आप स्वयं आकलन करिये कि जाहिल कौन है? जिन्हें आप जाहिल बता रहे है वे या स्वयं आप, समझे बीबीसी, एनडीटीवी, प्रभात खबर, वामपंथी बुद्धिजीवियों और वामपंथी पत्रकारों, साथ ही यहां धर्मांतरण का खेल कर रही ईसाई मिशनरियों...

Monday, March 27, 2017

नकलची राजा सुबल दास की कथा................

बहुत दिनों की बात है, भारत देश में एक भूखण्ड नामक राज्य था। जहां सुबल दास नामक नकलची राजा का शासन चलता था। उसके आस-पास उसे बुद्धिदेनेवाले कनफूंकवों की खुब चलती थी।
कनफूंकवे जानते थे, कि सुबल दास को बुद्धि नहीं है, इसलिए वे उसे ऐसी-ऐसी बुद्धि दिया करते, जिससे उसका सम्मान राज्य की जनता की नजरों में दो कौड़ी से अधिक नहीं थी। भूखण्ड राज्य की प्रजा भी जानती थी कि उसका राजा बेवकूफ व नकलची है, इसलिए उसे वह ज्यादा भाव नहीं देती।
एक दिन नकलची सुबल दास को उनके कनफूंकवों ने बताया कि आप राज्य में योजना बनाओ अभियान की शुरुआत करिये, इससे आपको पब्लिसिटी भी मिल जायेगी, राज्य की जनता का भला भी हो जायेगा और आपकी सर्वत्र जय-जय हो जायेगी। राजा सुबल दास ने ऐसा ही किया, देखते ही देखते उसकी जय-जय होने लगी। इसी बीच कनफूंकवों ने देखा कि सुबल दास उसके ग्रिप में आ गया है, तो कनफूंकवों ने कहा कि महाराज जी, बहुत दूर एक राज्य है, जिसका नाम गुर्रात है, वहां भाइब्रेंट गुर्रात हुआ, जिससे वहां निवेश की ऐसी धारा निकली, कि गुर्रात राज्य बहुत आगे निकल गया, फिर क्या था – राजा सुबल ने ऐलान कराया कि वह भी अपने भूखण्ड प्रदेश में इसी से मिलता-जूलता एक मोमेंटम भूखण्ड करायेगा। इसे कराने के लिए पैसे की कोई चिन्ता नहीं रहेगी, पैसा पानी की तरह वह बहायेगा, अपना चेहरा चमकायेगा।
इधर दूसरे राज्यों में रह रहे कई चेहरा चमकाने वाले ब्रांडिंग कंपनियों को पता चला कि भूखण्ड राज्य के राजा सुबल को अपना चेहरा चमकाने की बीमारी लग गयी, तो वे भी अपने लाव-लश्कर के साथ आ जूटे और जमकर भूखण्ड राज्य का दोहन किया और अंत में अच्छी-खासी राशि लेकर वे अपने प्रदेश को लौट गये।
इसी बीच अपने प्रदेश लौटे, इन कंपनियों को लगा कि सुबल राजा से और पैसे लिये जा सकते है, तो उन्होंने फिर बिल बनाया और कहा कि महाराज आपके भोजन पर करोड़ों खर्च हो गये, उसे भी दिया जाय। सुबल राजा ने कहा – आदेश का पालन हो, और इन सबको मुंहमांगी रकम दी जाये। राजा सुबल दास के आदेश से ये काम भी पूरा हो गया।
दो साल बीतने के बाद पड़ोस के एक प्रदेश में आम चुनाव हुए, वहां भारी मतों से एक सुनाथ नामक संत का शासन आया। सुनाथ ने लड़कियों के सम्मान की रक्षा के लिए एंटी सोमियो नामक अभियान चलाया और कहा जाता है कि सुनाथ जहां से आता था, वहां कई कस्बों और मुहल्लों के नाम भी उसने बदल दिये थे, जिसके कारण उसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। कनफूंकवों ने भूखण्ड राज्य के राजा सुबल दास को बताया कि वह भी सुनाथ की तरह ऐसे ही निर्णय ले लें। फिर क्या था – सुबल राजा ने अपने सिपाहियों को बुलाया और कहा कि उसके राज्य में भी एंटी सोमियो नामक अभियान चलाया जाये और सगर हुटारी शहर को खुशी नगर घोषित किया जाय।
फिर क्या था – राजा सुबल दास के आदेश पर यह भी काम हो गया। सुबल दास के चाहनेवाले अखबारों और चैनलों में सुबल की चर्चाएं होने लगी, फिर भी जो सुनाथ को लोकप्रियता मिल रही थी, वह लोकप्रियता सुबल दास को नहीं मिल रही थी। हार-पछता कर सुबल दास क्या करें?, नकल का कौन सा, ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाएं, इस पर चर्चा करने के लिए उसने पुनः अपने आस-पास के मूर्खों-कनफूंकवों को वह अपने विशेष कक्ष में बुलाया, क्योंकि उसके राज्य में सिट्टीपाड़ा नामक जगह पर उपचुनाव होनेवाला था, जिसमें उसके विरोधियों ने सुबल दास को औकात बताने के लिए हर प्रकार का प्रबंध कर दिया था। इधर उप चुनाव में उसके लोग जीते, इसके लिए सुबल दास को कनफूंकवों ने बताया कि वह अपने राज्य में अल्पसंख्यकों के हितों पर ध्यान दें तथा बहुसंख्यकों पर ध्यान देना बंद करें, जैसे कैबिनेट से अल्पसंख्यक नगर को बसाने का प्रबंध किया जाये, उनके लिए एक विशेष हाउस बनाया जाये। राजा सुबल दास ने ऐसा ही किया, पर भला अल्पसंख्यक सुबल दास को अपना राजा मान लें, ऐसा संभव ही न था। बेचारा सुबल दास, इसी उधेड़-बुन में घुलता जा रहा था।
इधर भूखण्ड राज्य के राजा सुबल दास के विरोधियों का खेमा, खुश था कि सुबल दास के कनफूंकवों की वजह से उन सबकी लोकप्रियता बढ़ रही थी। बिना किसी विरोध या आंदोलन के ही भूखण्ड राज्य की जनता सुबल दास को सबक सिखाने के लिए मन बनाने का संकल्प ले रही थी। जैसे ही सुबल दास को इस बात की जानकारी मिली तो उसने अपने पार्टी के मुख्यालय में अपने मंत्रियों का दरबार लगवाना प्रारंभ करवाया, और ये दरबार लगवाने का भी फायदा सुबल दास को नहीं मिला। सुबल दास के इन हरकतों से राज्य की जनता उसे नकलची, तो कभी उछलने-कूदने वाले फिल्म स्टार का तमगा दे दी, साथ ही आनेवाले तीन साल का इंतजार करने का मन भी बनाली, जैसे ही तीन साल बीता, भूखण्ड राज्य के राजा की सदा के लिए विदाई हो गयी। जिस कारण, वह राजा फिर कभी भूखण्ड राज्य में दिखाई नहीं पड़ा और उसके साथ रहनेवाले कनफूंकवों को भी जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।
शिक्षा – क. कनफूंकवों और मूर्खों से हमेशा दूरी बनाये रखनी चाहिए।
ख. नकल, नकल होता है, इसलिए जनता की आवश्यकता के अनुरुप राजा को फैसला लेना चाहिए।
ग. राजा की जो आरती उतारते है, वे राजा को गर्त में धकेल देते है, हमेशा जो सही राह बतायें, चाहे वह कटु क्यों न हो, राजा को उसकी सलाह माननी चाहिए।

Saturday, March 25, 2017

शरद यादव जी, आपकी पार्टी भी कोई दूध की धूली नहीं है...........

23 मार्च 2017
राज्यसभा, नई दिल्ली
जदयू सांसद शरद यादव गरज रहे है...
वे पत्रकारिता जगत में आयी गिरावट, कुरीतियों एवं अखबार-चैनल के मालिकों द्वारा की जा रही गंदी हरकतों और उससे शर्मसार होता लोकतंत्र पर केन्द्र सरकार का ध्यान आकृष्ट करा रहे हैं। विषय गंभीर है, पर राज्यसभा में गिने-चुने सदस्य ही मौजूद है, स्वयं जदयू के कई सांसद राज्यसभा से गायब है। सरकार के नुमाइंदों की संख्या भी कम है। ले-देकर एक केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ही मौजूद है, जो एक तरह से नमूने ही कहे जायेंगे।
जदयू सांसद शरद यादव, बहुत अच्छा बोलते है, इसमें कोई दो मत नहीं, कई बार मैंने उनके लोकसभा और राज्यसभा में वक्तव्यों को सुना है, पर क्या कारण है कि उनकी बात ठीक उसी प्रकार काफूर हो जाती है, जैसे विभिन्न कारखानों के चिमनियों अथवा घरों से निकलनेवाली धुओँ का हवा में विलीन हो जाना।
आखिर जदयू सांसद ने राज्यसभा में क्या कहा, स्वयं देखिये। उन्होंने कहा कि...
• अखबारों - चैनलों के मालिक-प्रबंधक, मजीठिया वेज बोर्ड द्वारा दी गई सुविधाओं से अपने यहां कार्यरत पत्रकारों को वंचित रखते है और अपने यहां कार्यरत संवाददाताओं-पत्रकारों को ठेके पर रखते है, जिससे यहां कार्यरत संवाददाताओं-पत्रकारों का जीवन प्रभावित हो गया है।
• अखबारों – चैनलों के मालिक-प्रबंधक अपने यहां कार्यरत संवाददाताओं-पत्रकारों को दोयम दर्जे का समझते है और उनके साथ न्याय नहीं करते।
• अखबारों – चैनलों के मालिक-प्रबंधक अपने संवाददाताओं-पत्रकारों से वे कार्य कराते है, जिसकी इजाजत इंसानियत भी नहीं देती, ये लोग पेड न्यूज चलाते है, जिससे लोकतंत्र खतरे में है, वे इसके लिए कई उदाहरण भी प्रस्तुत करते हैं।
• पूरे देश में पूंजीपतियों का बोलबाला हो गया है, जो अखबारों-चैनलों पर कब्जा कर रखे है, और अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, इन चैनलों-अखबारों का इस्तेमाल करते है, ये करोड़ों की जमीन, प्रापर्टी इसके माध्यम से खड़े कर रहे है और इसमें सरकार भी इनका सहयोग करती है।
• यहीं नहीं ये अखबारों-चैनलों के मालिक-प्रबंधक-संपादक, पत्रकारिता का धौंस दिखाकर एमपी भी बन जा रहे है, इसलिए सरकार एक कानून बनाये ताकि पत्रकारिता में शामिल कोई भी पूंजीपति या मालिक एमपी न बन सकें या दूसरा उद्योग न खोल सकें।
मेरा मानना है कि...
जो बातें राज्यसभा में सांसद शरद यादव ने उठायी, उसे किसी भी प्रकार से गलत नहीं कहा जा सकता, पर सवाल स्वयं राज्यसभा में इस मुद्दे को उठानेवाले जदयू सांसद शरद यादव से...
आपकी पार्टी ने भी तो वहीं कुकर्म किये है, जिन कुकर्मों को लेकर आपने सदन का, सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया...
जैसे...
प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश को राज्यसभा में भेजना, क्या जदयू द्वारा प्रभात खबर को अपने ग्रिप में लेने का प्रयास नहीं था... क्या हरिवंश ने प्रधान संपादक की आड़ में नीतीश कुमार का महिमा मंडन अपने अखबार में नहीं किया... क्या आप बता सकते है या आपके पास कोई प्रमाण है कि प्रभात खबर ने आपके नेता नीतीश कुमार के खिलाफ एक भी खबर छापी...
क्या ये सही नहीं कि प्रभात खबर में कार्यरत, जिन लोगों ने मजीठिया वेज बोर्ड की सुविधा प्राप्त करने के लिए, आंदोलन किया, उनके साथ दोयम दर्जें का व्यवहार किया गया, उनकी हालत बद से बदतर कर दी गयी और आप की पार्टी ने ऐसे लोगों को सम्मानित ही नहीं किया, बल्कि राज्यसभा का सदस्य बनवा दिया। वह आदमी आपके ही साथ, संसद में बैठता है, जरा पूछिये, उससे। क्या वह जवाब दे पायेगा।
उत्तर होगा – नहीं। आप ही के ये सांसद कभी अपनी सुविधानुसार पत्रकार तो कभी सांसद बनकर जनता के सामने उपस्थित होते है... ये दोहरा चरित्र क्या बताता है?
दूसरा उदाहरण कशिश टीवी के मालिक-बिल्डर सुनील चौधरी को जदयू का टिकट दिलवाना और उसे बिहार विधानसभा में भेजकर विधायक बनाने का प्रयास क्या बताता है?
कमाल है, शरद यादव जी, आप वहीं कुकर्म करें, तो आनन्द और दूसरा यहीं कुकर्म करें, तो उसे सदन में अपमानित और उसे गलत कहने की परिपाटी आपने कब से सीख लिया। पहले स्वयं में सुधार लाइये, फिर दूसरे पर अंगूली उठाइये। इससे आपके बात की वजन भी बढ़ेगी और आप हंसी के पात्र भी नहीं बनेंगे।
मैं जानता हूं कि भारत में छपनेवाले अखबार हो, या चलनेवाले चैनल। इसके मालिक और यहां काम करनेवाले, उनके इशारों पर चलनेवाले प्रबंधक या संपादक, सभी पेड न्यूज चलाते है और इसमें सरकार भी सहयोग करती है। ये सारे सभी पत्रकारों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करते है, उन्हें ठेके पर रखते है और पत्रकार-संवाददाता भी ठेके पर रहने के लिए, गुलामी सहने के लिए व्याकुल रहते है, वे इसके लिए अपनी लज्जा और शर्म को अपने घर की खूंटी पर टांग कर आते है, क्योंकि उनके भी बच्चे है, बीवियां है, बेचारे उनका भरण-पोषण कैसे करेंगे?  इसी क्रम में वे अपना जमीर बेच देते है, घूंट-घूंट कर मरते है। आजकल तो स्थिति ऐसी हो गयी कि अब ये पत्रकार आत्महत्या भी करने लगे है, पर इन प्रबंधकों-मालिकों को शर्म नहीं आती, उन्हें तो सिर्फ अपने कल-कारखानों की ही चिंता होती है ताकि उनका करोड़ों-अरबों का व्यापार प्रभावित न हो, ये इसकी आड़ में करोड़ों-अरबों की जमीन लूट रहे है और इसमें सरकार भी इनकी मदद करती है...
ऐसे में, ये लोकतंत्र जीवित रहेगा, हमें शक लगता है...
चलिए, शरद यादव जी, आप भी दूध के धूले नहीं है, आपकी भी पार्टी इसी रंग में रंगी है, पर आपने इस मुद्दे को राज्यसभा में उठाया। अच्छा लगा। आप इसी तरह इन महत्वपूर्ण मामलों को उठाते रहिये, एक दिन ऐसा जरुर आयेगा कि कोई सरकार इस मामले पर गंभीरता से विचार करेगी और पत्रकारिता की गंगा की धारा जो गंदगियों के कारण अविरल नहीं बह रही, उसमें धार लाने का प्रयास करेगी...
बहुत-बहुत धन्यवाद।

Friday, March 24, 2017

जय गुरु......................

जय गुरु
पहली बार रांची मेरा पदार्पण 4 जून 1985 को हुआ था, क्योंकि 5 जून को मेरी शादी रांची में थी। मेरी पत्नी उस वक्त योगदा सत्संग विद्यालय की नौंवी कक्षा की छात्रा थी, उनके हाथों में कई बार योगी कथामृत मैंने देखा था, पर कभी पढ़ नहीं सका। उसी समय से कभी कभार योगदा सत्संग आश्रम में आना – जाना लगा रहा, कभी योगदा सत्संग द्वारा चलाये जा रहे औषधालय गया तो कभी योगदा सत्संग द्वारा चलाये जा रहे मोतियाबिंद के आपरेशन में शामिल हुआ। हम आपको बता दें, कि छोटी-छोटी बीमारियों को लेकर अपनी पत्नी योगदा सत्संग द्वारा संचालित औषधालयों का लाभ लेने के लिए यदा-कदा जाया करती थी, पर मैं योगदा सत्संग से दिल से कभी नहीं जूड़ सका।
इसी बीच ईटीवी से जुड़ा, तब उस वक्त ईटीवी को देख रहे गुंजन सिन्हा ने हमें ईटीवी रांची में योगदान देने को कहा, और मैं ईटीवी रांची से जूड़ गया। ईटीवी से जुड़ने के दौरान समाचार संकलन के लिए हमें यदा-कदा योगदा सत्संग आश्रम जाना पड़ा। इसी दौरान हमें योगदा सत्संग आश्रम के बारे में जानकारियां मिलनी शुरु हो गयी। कुछ लोग गलत धारणाओँ से जूड़े होने के कारण गलत बताते तो कुछ आध्यात्मिक उत्थान के लिए इसे आवश्यक बताते। रांची आने के बाद हमें अपने दो बच्चों की पढ़ाई के लिए चिंता हुई, उस वक्त रांची में कई कान्वेंन्ट और अंग्रेजी पद्धति के विद्यालय थे, पर मैं इन विद्यालयों में अपने बच्चों को देना नहीं चाहता था, क्योंकि मेरा मानना था कि आप शिक्षित है, पर संस्कारित नहीं है, तो ऐसी शिक्षा आपके जीवन को नरकमय बना देती है। अचानक मैं समाचार संकलन के उद्देश्य से जगन्नाथपुर गया, जहां मेरी नजर सुदुर और रमणीक क्षेत्र एवं एकान्त में बने योगदा सत्संग विद्यालय पर पड़ी, जहां इस विद्यालय के प्राचार्य डा. विश्वम्भर मिश्र मौजूद थे। मैंने उनसे अपने बच्चों की पढ़ाई और उनके भविष्य पर चर्चा की। उनकी बातें और विद्यालय का परिदृश्य देख, मैंने अपने बच्चों को इसी विद्यालय में नामांकन कराया। बड़ा बच्चा नौवी कक्षा में तो छोटे बच्चे का नामांकन सातवीं कक्षा में हुआ, चूंकि मेरी आर्थिक स्थिति भी ठीक नही थी कि मैं अपने बच्चों को बड़े स्कूलों में दे सकूं। ऐसे भी ईटीवी की ओर से मुझे उस वक्त छह हजार रुपये मासिक मिला करते थे, जिसमें 2200 रुपये तो किराये में ही चल जाते थे, ऐसे में घर चलाना और बच्चों को पढ़ाना दोनों मुश्किल था, इसलिए मैंने ऐसा स्कूल चुना, जहां कम पैसे में बच्चे संस्कार और शिक्षा दोनों प्राप्त कर लें और इसके लिए योगदा सत्संग स्कूल जैसा विद्यालय मेरी नजर में सर्वश्रेष्ठ मालूम पड़ता था।
सन् 2003 की बात है।
हमें पता चला कि योगदा सत्संग आश्रम में हर वर्ष छठी कक्षा के बच्चों के लिए एक सप्ताह का विशेष शिविर लगाया जाता है। मैंने उसी वक्त प्राचार्य डा. विश्वम्भर मिश्र से बात की, कि क्या मेरे छोटे बच्चे को उस शिविर में भाग लेने दिया जा सकता है? उनका कहना था कि ऐसा संभव नहीं, चूंकि मेरा बच्चा सातवीं कक्षा का छात्र था। इसी बीच आज स्वामी निष्ठानन्द जी, जो उस वक्त कमल जी के नाम से जाने जाते थे, मुलाकात हुई। मैंने उनसे प्रार्थना की, कि वे मेरे छोटे बच्चे को उस शिविर में रखने की अनुमति दें। उन्होंने कहा कि वे देखते है कि, वे क्या कर सकते है?  इसी बीच कोई सूचना हमें प्राप्त नहीं हुई। गर्मी की छुट्टी थी, बच्चे अपने दादी के पास पटना जाने की जिद कर रहे थे और उनकी जिद के आगे मैं अपने बच्चों को पटना भेज दिया। तभी प्राचार्य डा. विश्वम्भर मिश्र जी का मेरे पास फोन आया कि मिश्र जी आपके बच्चे को शिविर में जाने की अनुमति मिल गयी है। मुझे खुशी का ठिकाना नहीं रहा, मैंने तुरंत पटना फोन किया कि छोटे वाले बच्चे को पटना-रांची वाली बस पर बिठा दें, हम उसे रांची में ले लेंगे। मेरा छोटा बच्चा रांची आया, शिविर में भाग लिया और उस शिविर में भाग लेने का प्रभाव यह पड़ा कि उसका जीवन ही बदल गया। आज भी योगदा सत्संग आश्रम का प्रभाव उसके दैनिक जीवन पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
हमें खुशी है कि मेरी पत्नी और मेरे दोनों बच्चे योगदा सत्संग विद्यालय से ही अपनी पढ़ाई की शुरुआत की और वे सभी बेहतर है, संस्कारित है, सुशिक्षित है, जीवन के मूल उद्देश्यों को समझते है। मैं मानता हूं कि ये सब पूर्व जन्म के संस्कारों व किये गये कार्यों से ऐसा संभव हुआ है, नहीं तो रांची की जनसंख्या लाखों में हैं, यहां प्रतिदिन लाखों लोग आते है, जाते है, कई लोग और उनके पूर्वज तो वर्षों से यहां रह रहे है, पर उन्हें तो ऐसा सौभाग्य नहीं प्राप्त होता।
गोस्वामी तुलसीदास ने ठीक ही लिखा है...
अब मोहि भा भरोस हनुमंता।
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।
बिना ईश्वरीय कृपा के, संतों से मुलाकात संभव नहीं होती है...
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर परमहंस योगानंद जी की कृपा नहीं होती तो मेरा परिवार जो आनन्द को प्राप्त कर रहा है, वह आनन्द कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता था। ये सब पूर्व जन्म में किये गये कर्मो का फल है कि हम रांची में है, जहां योगानन्द जी की स्मृतियां हमारा मार्गदर्शन करती है।
एक दृष्टांत...
बात सन् 2014 की। मैं जयपुर में था। भयंकर बीमारी का शिकार हुआ। ऐसा लगा कि अब जीवन का अंत निकट है। मैं 2015 की गुरु पूर्णिमा के दिन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में कार्यरत उप-निदेशक शालिनी वर्मा के साथ योगदा सत्संग आश्रम पहुंचा (इसका वर्णन मैं पूर्व के आलेखों में कर चुका हूं), उसके बाद से वह बीमारी कहां गयी, मुझे पता ही नहीं चला, आज मैं पूर्णतः स्वस्थ हूं।
और इस घटना के बाद से, योगदा सत्संग आश्रम जाने का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ, वो आज भी जारी है। इसी बीच स्वामी योगानन्द के अनन्य भक्त श्यामानन्द झा जी से मुलाकात हुई, उन्होंने हमें आश्रम से जुड़वाने में महत्वपूर्ण मदद की और मैं धीरे- धीरे आश्रम के और निकट होता चला गया।
ऐसे भी, मैं जब भी योगदा सत्संग आश्रम पहुंचा हूं, तो वहां गजब की शांति एवं आध्यात्मिक अनुभूतियों को हमने महसूस किया है। मैंने देखा है कि आश्रम में खड़े वृक्ष और वहां पड़े पत्थरों का समूह भी ईश्वर को भजते नजर आते है। उसका मूल कारण है कि स्वामी योगानन्द जी की इस आश्रम में बिखरी स्मृतियां और यहां उनके गुजरे पल, इस स्थान को ब्रह्म भाव प्रदान कर दिये है, क्योंकि आप जैसे ही इस आश्रम में आयेंगे और यहां से निकलेंगे, आपको स्वयं पता चल जायेगा कि आपने यहां से क्या प्राप्त किया और क्या छोड़ दिया?
इधर कुछ दिनों से योगी कथामृत मैंने पढ़ना शुरु किया है...
इधर मेरे माता-पिता और मेरा बचपन से लेकर शुरु किया गया पाठ, अब विनिद्र संत तक पहुंच गया है, जो धीरे-धीरे मेरे हृदय पटल को और आध्यात्मिकता के प्रति सुदृढ़ कर रहा है...
और अब देखिये, ये हमारा सौभाग्य है कि हम उस वक्त के साक्षी बने, जब योगदा सत्संग सोसाइटी अपना 100 वर्ष पूरा कर रही है। 22 मार्च को स्वामी योगानन्द जी द्वारा स्थापित यह आश्रम उस दिन अपनी दिव्यता का विशेष तौर पर ऐहसास करा रहा था। मेरा  हृदय पुलकित था, आंखे आंसू बहा रही थी और हाथों पर आया मोबाइल फोन उन दिव्यताओं को कैद करने का काम कर रहा था, अगर कोई हमसे उस वक्त पूछता कि स्वर्ग कहां है? तो मैं यहीं कहता कि अगर स्वर्ग की कही परिकल्पना है तो बस यहीं है।
जरा योगी कथामृत देखिये...
गुरु कैसा होना चाहिए?
शिष्य कैसा होना चाहिए?
ईश्वर को जानने और उसे पाने के लिए कैसी प्यास होनी चाहिए?
आध्यात्मिकता की ओर जाने के लिए कैसा दृढ़ विश्वास होना चाहिए?
ईश्वर कहां है?, क्या वह किसी खास जगह पर है?
क्या प्राप्त होने पर, जीवन सरल और सहज हो जाता है?
ऐसे प्रश्नों के उत्तर इतनी सरलता से योगी कथामृत में उपलब्ध है कि पूछिये मत...
योगी कथामृत का एक-एक पृष्ठ बहुमूल्य है, अमृत से युक्त है, हमारे विचार से तो सभी विद्यार्थियों को इसे पढ़ना चाहिए, अगर वे इसे पढ़ते है तो निश्चय ही, उनका जीवन परिवर्तित होगा...
इसमें कोई दो मत नहीं...
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के दौरान अतिव्यस्त होने के बावजूद, 7 मार्च को विज्ञान भवन में आयोजित योगदा सत्संग सोसाइटी के 100 साल पूरे होने पर जो भी कुछ कहा, वह बताता है कि भारत क्या है? और भारत की ताकत क्या है?
भारत की ताकत उसकी आध्यात्मिक शक्तियां है। विश्व भारत से उसकी आध्यात्मिकता को जानना, समझना और उसमें डूबना चाहता है। हम आपको बता दें कि धर्म और आध्यात्मिकता दोनों दो चीजें है।
कमाल है योगानन्द जी की आध्यात्मिकता मुक्ति में नहीं, बल्कि अंतर्यात्रा में निहित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठीक ही कहा कि 65 साल पहले एक शरीर हमारे पास रह गया और सीमित दायरे में बंधी एक आत्मा युगों की आस्था बन कर फैल गयी। 95 फीसदी लोग इस महान योगीजी की आत्मकथा को पढ़ सकते है, किन्तु क्या कारण होगा कि बिना भारत देश और यहां के पहनावे के बारे में जाने विश्व भर के लोग योगी कथामृत को अपनी मातृभाषा में लिखकर जन-जन तक पहुंचाना चाहते है, यह प्रसाद बांटने के समान है, जिसे बांटने में आध्यात्मिक सुख की अनुभूति होती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ठीक ही कहा कि कभी-कभी हठ योग को बुरा माना जाता है, लेकिन परमहंस योगानन्दजी ने इसकी सकारात्मक व्याख्या की है और क्रिया योग की तरफ प्रेरित किया है, जिसके लिए शरीर बल की नहीं बल्कि आत्मबल की आवश्यकता होती है। परमहंस योगानन्द जूते पहनकर मां भारती का स्मरण करते हुए इस दुनिया से जाना चाहते थे। पश्चिम में योग संदेश देने के लिए निकल पड़े, लेकिन भारत को नहीं भूले।
धन्य है परमहंस योगानन्द जी, जब उन्होंने अपना शरीर छोड़ा, उस दिन भी वे कर्मरत थे। भारत के राजदूत के सम्मान समारोह में व्याख्यान दे रहे थे। कपड़े बदलने में भी समय लगता है, लेकिन वे क्षण भर में चले गये। उन्होंने कहा कि जहां गंगा, जंगल, हिमालय, गुफाएं और मनुष्य भी ईश्वर पाने के स्वपन देखती है। वे धन्य है कि उनके शरीर ने उस मातृभूमि को स्पर्श किया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वे बातें आज भी मेरे कानों में गूंज रही है, जो उन्होंने परमहंस योगानन्द जी के बारे में कहा कि, अगर संस्था का मोह होता तो व्यक्ति के विचार, प्रभाव और समय का इस पर प्रभाव होता, लेकिन जो आंदोलन कालातीत होता है, काल के बंधनों में बंधा नहीं होता, अलग-अलग पीढ़ियां आती है, तो भी व्यवस्थाओं को न कभी टकराव आता है, न कभी दुराव आता है। वे हल्के-फुल्के ढंग से अपने पवित्र कार्य को करते रहते है। परमहंस योगानन्द का बहुत बड़ा योगदान है कि वे ऐसी व्यवस्था देकर गये, जिसमें बंधन नहीं है तो भी जैसे परिवार को कोई संविधान नहीं होता, फिर भी परिवार चलता है।
दुनिया आज अर्थजीवन और तकनीक से प्रभावित है, इसलिए दुनिया में जिसका जो ज्ञान होता है, उसी तराजू से वह विश्व को तौलता भी है। भारत को लोग जीडीपी, रोजगार और बेरोजगारी से तौलते है, पर भारत की सबसे बड़ी ताकत है, उसकी आध्यात्मिकता। भारत का आध्यात्मीकरण ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है और इसमें परमहंस योगानन्द जी की भूमिका अतिमहत्वपूर्ण रही है।
किसी ने ठीक ही कहा है कि योग एक प्रक्रिया है, इसे समझिये, क्रिया योग के द्वारा आप इसे बेहतर ढंग से समझ सकते है, आप अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं। इसी क्रिया योग को लेकर, परमहंस योगानन्द जी जन-जन तक पहुंचे थे, आज योगदा सत्संग सोसाइटी उसी कार्य को कर रही है।
आप यह भी जान लीजिये कि योगी, योगी  होता है, वह युगों-युगों तक रहता है, क्योंकि न तो वो आता है, न ही जाता है, नही मिटता है, और नहीं कोई उसे मिटा सकता है। योग अंतिम नहीं है, बल्कि यह प्रवेश द्वार है, उस परमपिता परमेश्वर तक पहुचंने का...
खुशी इस बात की है कि परमहंस योगानन्द जी द्वारा लगाया गया यह वटवृक्ष 100 साल का हो गया है, निरंतर आगे की ओर बढ़ रहा है तथा लोगों को आध्यात्मिकता से जोड़कर, क्रियायोग के माध्यम से विश्व को भारत की आध्यात्मिकता की शक्ति से ओत-प्रोत कर रहा है।
धन्य है योगदा सत्संग सोसाइटी से जुड़े वे संत, वे संन्यासी जो निरंतर चल रहे इस यज्ञ में स्वयं को समिधा बनाकर आहुति के रुप में स्वयं को प्रस्तुत कर रहे है...
ईश्वर से प्रार्थना भी कि यह पुनीत कार्य, चूंकि उन्हीं के द्वारा चल रहा है, हम जैसे लोगों का भी मार्गदर्शन करें, ताकि हमारा जीवन भी सफल हो सकें, हमारा शरीर धारण करना सचमुच में सार्थक हो सकें...
जय गुरु

Thursday, March 23, 2017

इलाका रघुवर का और नाम योगी का...................

झारखण्ड में इन दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चर्चा जोरों पर हैं, लोग उनके बारे में जानना चाहते है, यूपी में वे क्या कर रहे है? कौन सी योजनाओं को जमीन पर उतार रहे है? लोगों की उन्हें जानने की उत्सुकता है। यहीं कारण है कि रांची से प्रकाशित सारे अखबारों में योगी ही योगी छाये हुए है, जबकि इसके विपरीत रघुवर दास उर्फ शाहरुख खान रांची के ही अखबारों में डूमरी के फूल होते दीख रहे है। ऐसे भी रघुवर दास उर्फ शाहरुख खान की जो कार्यशैली है या उनके पीछे जो लोग होते है, उनकी हरकते और उनके मुख से निकले बोल बहुत कुछ बता देते है... ...फिर भी रघुवर दास उर्फ शाहरुख खान झारखण्ड के मुख्यमंत्री के रुप में डटे है। रघुवर दास उर्फ शाहरुख खान की इस स्थिति को देखते हुए इन पर यह लोकोक्ति फिट बैठती है – अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान।
आश्चर्य इस बात की है कि पिछले महीने झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर अपनी ब्रांडिंग कराने में 100 करोड़ रुपये से भी ज्यादा फूंक डाले, पर निकला क्या?  न तो इनकी ब्रांडिंग ही हो सकी और न ही झारखण्ड को कुछ प्राप्त हुआ। हां इतना जरुर हुआ कि बाहर से इनके कनफूंकवों द्वारा बुलाई गयी ब्रांडिंग करनेवाली कंपनियां मालामाल जरुर हो गयी, और ये दुआएं भी दी कि ये राज्य हमेशा मूरख बना रहे, ताकि उनकी दुकानें इसी प्रकार चलती रहे, जबकि इसके विपरीत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी किसी भी ब्रांडिंग कंपनी को अपनी ब्रांडिंग के लिए उत्तर प्रदेश नहीं बुलाया पर इनकी ब्रांडिंग स्वयं देश के विभिन्न राज्यों के मीडिया हाउस बहुत ही शिद्दत से कर रही है।
आखिर मीडिया में आदित्यनाथ योगी क्यों छाये हुए है? उसका कारण है...
उन्होंने सत्ता में आते ही, वह काम करना प्रारंभ किया, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
1. सत्ता में आते ही उन्होंने अपने मंत्रियों से 15 दिनों में आय-संपत्ति का ब्यौरा मांग लिया।
2. नेताओं को बेकार की बयानबाजी बंद करने को स्पष्ट रुप से कहा।
3. यूपी के सरकारी दफ्तरों में पान-गुटखा पर बैन लगाकर दूसरे राज्यों के सामने एक नजीर पेश कर दी।
4. एक सप्ताह के अंदर अपने अनुभागों में रखी फाइलों को व्यवस्थित कराना प्रारंभ किया।
5. महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया, पूरे राज्य में एंटी रोमियो स्क्वायड का गठन कराया, ताकि बेटियों के सम्मान पर कोई आंच नहीं आये।
6. गोरक्षा के प्रति विशेष अभियान चलाया, अवैध बूचड़खानों को सील किया गया, उन पर बूलडोजर चलाया गया।
यहीं नहीं पूरे प्रदेश में एक विश्वास पैदा किया, गुंडों-अपराधियों में खौफ पैदा किया कि अब राज्य का निजाम बदल चुका है, गलत करेंगे तो जल्द ही जेल के अंदर होंगे...
इसके विपरीत झारखण्ड में क्या हो रहा है...
1. बेटियां यहां आज भी सुरक्षित नहीं, स्वयं मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र की महिला संवादकर्मियों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपनी शिकायत दर्ज करायी पर इन महिला संवादकर्मियों को उनकी आवाज बंद करा दिया गया। कस्तूरबा बालिका विद्यालय गढ़वा की आदिवासी बालिका गर्भवती हो गयी, इस मामले को भी दबा दिया गया। बूटी मोड़ की जिस लड़की की बलात्कार कर नृशंस हत्या कर दी गयी, उस मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया, सीबीआई कहती है कि अभी तक उसे इस संबंध में कोई प्रपत्र प्राप्त ही नहीं हुआ, जबकि इसी मामले में मुख्यमंत्री रघुवर दास का बयान आया था कि इस कांड में सफेदपोश लोग भी शामिल है, जल्द उन्हें पकड़ लिया जायेगा, पर क्या हुआ? कोई अभी तक पकड़ा नहीं जा सका, यानी महिलाएं आज भी असुरक्षित महसूस कर रही है, झारखण्ड में।
2. गो हत्या तो यहां आम बात है, रांची की सड़कों पर बड़ी संख्या में सुबह, दोपहर और शाम को इस धंधे में लगे लोग, गायों को लाते है और कत्लखानों में भेज देते है, आज भी इस राज्य में बड़ी संख्या में अवैध बूचड़खानें चल रहे है, पर रघुवर दास की हिम्मत नहीं कि इन पर बुलडोजर चला दें।
3. सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों का हाल ये है कि उन्हें प्रशासन का डर ही नहीं, जमकर भ्रष्टाचार है, बिना पैसे के कोई काम हो ही नहीं सकता, और यह पैसा नीचे से लेकर उपर तक जाता है, जबकि सत्ता इन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ ही मिला था।
4. कानून – व्यवस्था तो पूर्णतः चौपट है, धनबाद में पूर्व मेयर नीरज सिंह समेत 4 की हत्या तो एक बानगी है।
5. मुख्यमंत्री क्या बोलते है? क्या करते है? भगवान ही मालिक है... ...ज्यादा जानकारी के लिए आज का अखबार पढ़ लीजिये, मुख्यमंत्री का भाषण छपा है, जो एक कार्यक्रम से संबंधित है, चूंकि मुख्यमंत्री रघुवर दास के आस-पास मूर्खों का जाल है, ऐसे भी मुख्यमंत्री रघुवर दास को लगता है कि ये मूर्ख ही सर्वाधिक विद्वान है, जिसका नतीजा सामने है, पूरे राज्य में मुख्यमंत्री रघुवर दास और झारखण्ड के सम्मान का बट्टा लग रहा है, याद करिये इस राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 8 मार्च को एक पीड़ित पिता के साथ कैसा दुर्व्यवहार किया था, जिसके कारण पूरे देश में मुख्यमंत्री रघुवर दास की थू-थू हुई थी, जिसे अखबार और चैनलवालों ने नहीं उठाया, बल्कि सोशल साइट ने इसे मुद्दा बनाया।
तो जहां ऐसे मुख्यमंत्री का राज चल रहा हो, जो कनफूकवों की मदद से चलती हो, उस राज्य के मुख्यमंत्री का क्या हाल होगा? आप समझते रहिये। फिलहाल झारखण्ड में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ छाये हुए है... ...अपने विवादित बयानों से नहीं, बल्कि कार्य शैली से और एक जनाब अपने मुख्यमंत्री रघुवर दास उर्फ शाहरुख खान है... ...जो अपने ही राज्य में बेगाने हो चले है।
मैं तो कहता हूं कि अभी भी मौका है, मुख्यमंत्री अपनी कार्यशैली में सुधार लाये, नहीं तो पता चलेगा कि 2019 की लोकसभा चुनाव में हर राज्य से, भाजपा सीट ला रही है और झारखण्ड में कांग्रेस तथा झामुमो की लॉटरी निकल गई है...

Tuesday, March 21, 2017

उत्तर प्रदेश की जनता का अपमान बर्दाश्तयोग्य नहींं...........

उत्तर प्रदेश की जनता का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं हैं...
जी हां, उत्तर प्रदेश की जनता का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं है, चाहे वह देशी मीडिया हो या विदेशी मीडिया। जब से उत्तर प्रदेश की जनता ने भाजपा को जनादेश दिया है, तथाकथित स्वयं को सेक्युलर कहनेवाले लोग और मीडिया उत्तर प्रदेश की जनता को अपमानित करने का कार्य प्रारंभ कर दिया। वर्षों पहले यहीं जनता बसपा को सत्ता सौंपी, फिर समाजवादी पार्टी को सत्ता सौंपी तो यह सांप्रदायिक नहीं थी, और जैसे ही भाजपा को सत्ता सौंपी तो ये सांप्रदायिकता की जीत हो गयी। कमाल तो यह भी है कि ट्रम्प को माथे पर चढ़ाकर घुमानेवाली अमरीकी जनता के खिलाफ, विदेशी मीडिया के सुर नहीं सुनने को मिलते पर भारत की बात हो तो देखिये, स्वयं भारतीय कहलानेवाले लोग भी विदेशी मीडिया के सुर में सुर मिलाते हुए भारतीय लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते है। इन दिनों देशी - विदेशी मीडिया में उत्तर प्रदेश छाया हुआ है। उन मीडिया में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खुब आलोचना हो रही है, जबकि उन्हें मालूम होना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी बड़ा सांप्रदायिक क्यों न हो? उसे भारतीय संविधान के अंतर्गत ही भारतीय जनता की सेवा करनी है, ऐसा नही कि वह अपने मन से जो चाहे, जो कर देगा, जैसा कि विदेशों में देखने को मिलता है।
आज अमरीका में भारतीयों की क्या स्थिति है? वहां चून-चून कर भारतीय मारे जा रहे है, आखिर क्यों? ये भारतीय अमरीकियों के शिकार क्यों हो रहे है, जाहिर सी बात है कि इस्लाम के नाम पर, इन भारतीयों को शिकार बनाया जा रहा है, जबकि मरनेवाले भारतीयों में कोई भी इस्लाम को माननेवाला नहीं था।
ये तो वहीं बात हो गयी, चलनी दूसे सुप के जिन्हें बहत्तर छेद। सारी दुनिया अभी सर्वाधिक किसी से डरी हुई है तो वह है इस्लाम, जबकि मैं स्वयं जानता हूं कि इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म है, पर हो क्या रहा है, इस्लाम माननेवालों में कुछ लोगों के अंदर ऐसी कट्टरता आ गयी है कि उन्हें लगता है कि उनके धर्म से बड़ा दूसरा कोई धर्म ही नहीं, इसलिये इस्लाम के आगे किसी अन्य धर्म को रहने की आवश्यकता ही नहीं और इसी कट्टरता की आड़ में खून-खराबा का वह दौड़ चल पड़ा है कि जिससे मानवता ही कांप उठी है।
मैं भारत में ही देख रहा हूं कि इस्लाम माननेवालों में से कुछ मुट्ठी भर लोग भारत में भाजपा के लिए खाद – बीज का काम करते है, ये कौन है?  किसे नहीं पता।आप भारत में रहकर एक धर्म में फल-फूल रही सांप्रदायिकता को बढ़ावा दोगे और दूसरे धर्म को गाली दोगे तो यह नहीं चलेगा। मैं पूछता हूं कि
क. ओवैसी बंधुओं को किसने बढ़ावा दिया? जो धमकी देता है कि नरेन्द्र मोदी को हैदराबाद में घुसने नहीं देंगे, और जब हैदराबाद में नरेन्द्र मोदी घुसे तो उनकी सारी हेकड़ी निकल गयी। आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री बनने के पूर्व नरेन्द्र मोदी हैदराबाद पहुंचे, जहां लोगों ने टिकट खरीदकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण सुना। यहीं नहीं इसी ओवैसी बंधुओं ने भगवान राम और हिन्दुओं के प्रति ऐसी-ऐसी नफरत फैलानेवाली बाते एक सभा में कहीं और उस सभा में मौजूद लोगों ने तालियां बजा-बजाकर उसका उत्साहवर्द्धन किया। क्या कोई बता सकता है कि इसकी निंदा किसने-किसने की?
ख. उत्तर प्रदेश के ही सहारनपुर का एक कांग्रेसी मुस्लिम नेता नरेन्द्र मोदी को कुट्टी-कुट्टी काटकर फेंक देने की बात करता है, कोई बता सकता है कि इसकी निंदा किसने-किसने की?
ग.  हाल ही में बिहार के एक मुस्लिम मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चित्र को जूते से पीटवाता है, वह भी अपने सामने। क्या कोई बता सकता है कि इसकी निंदा किसने-किसने की?
घ. ममता बनर्जी शासित बंगाल के हावड़ा में क्या हुआ? जिस स्कूल में पिछले 70 सालों से सरस्वती पूजा मनाई जा रही थी, वहां इस्लामिक गुंडों के कहने पर सरकार ने सरस्वती पूजा पर रोक लगा दी, हिन्दू छात्राओं पर बंगाल पुलिस ने बल प्रयोग किया।
ऐसे कई प्रमाण है, जो समाज को विघटन के कगार पर ले जा रहे है...
जरा देखिये, ओवैसी को, जो कहता है कि वंदे मातरम हम नहीं बोलेंगे, भारत माता की जय नहीं बोलेंगे, क्योंकि यह संविधान में नहीं लिखा है। उस मूर्ख को कौन बताये कि हर बात संविधान में नहीं लिखी जाती, चूंकि गलत बोलने से आदमी लोकप्रिय हो जाता है, वह ऐसी हरकते कर रहा है...
जरा देखिये इसी मुसलमानों में जावेद अख्तर साहब है, जिन्होंने ओवैसी की तीखी आलोचना ही नहीं की, बल्कि संसद में कड़े शब्दों में उसका प्रतिकार किया। ये होता है – मुसलमान।
यहीं नहीं, मैंने प्रख्यात मुस्लिम नेता मदनी साहब के साक्षात्कार को भी देखा है, जिन्होंने पाकिस्तानी पत्रकार का मुंह ही बंद कर दिया, वह भी यह कहकर, कि वे जाकर सबसे पहले अपने देश में देखकर आये कि वहां अल्पसंख्यकों के क्या हाल है? भारत में मुसलमान उनसे बेहतर स्थिति में है, पर हमारी स्थिति क्या है?
यहां के पत्रकारों और मीडिया के हालात क्या है? ऐसे लोगों को यह मीडिया सम्मान नहीं देती और न ही ऐसे लोगों के बयान को अपने अखबारों और चैनलों में जगह देते है, पर जैसे ही जाहिलों के जमात की ओर से जाहिलों वाली बात आ गयी, तो देखिये इनकी रंगत...
मैं तो दावे के साथ कहता हूं कि इस देश में सर्वाधिक नुकसान गर किसी ने पहुंचाया है तो वह हैं...
क. बीबीसी – इसमें ज्यादातर पत्रकार भारत विरोधी है, जिनकी भारत विरोध से सुबह होती है और भारत विरोध पर ही इनकी रात खत्म होती है।
ख. एनडीटीवी एवं एबीपी न्यूज – एनडीटीवी एवं एबीपी न्यूज को भारत विरोधी बयान के लिए ही जाना जाता है, भारत विरोधी और वामपंथियों की पैरवीकार के रुप में यह चैनल सर्वाधिक लोकप्रिय है, इसके संवाददाताओं की भाषा बेहद घटियास्तर की होती है, ये अपने विरोधियों के लिए गाली का भी प्रयोग करते है, पर इसी में एक एनडीटीवी लखनऊ के कमाल खान भी है, जिनकी भाषा और शब्द और पत्रकारिता की जितनी प्रशंसा की जाय कम है।
रही बात विदेशी मीडिया कि जैसे न्यूयार्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, द न्यूज, रायटर्स, गार्जियन की, तो ये केवल यह बताये कि इसने कभी भी भारत की सकारात्मक तस्वीर दुनिया में पेश की है, उत्तर होगा – नहीं। ये तो हमेशा से ही भारत की गलत छवि प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते है। इन जगहों पर काम करनेवाले भारतीय पत्रकारों को उच्चे वेतनमान पर इसलिये रखा जाता है कि ये पैसे के लालच में भारत विरोधी आलेख प्रस्तुत करें।
हाल ही में चीन की सरकारी मीडिया के माध्यम से एक भारतीय ने चीनी सामानों के विरोध पर एक आलेख प्रस्तुत किया, जिसमें भारतीयों के देशभक्ति पर ही सवाल उठा दिये गये। अब आप इसी से समझ लीजिये कि ऐसा देश और विदेश में क्यों हो रहा है? उसका मूल कारण है कि बहुत दिनों के बाद कोई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रुप में आया है, जो सवर्ण नहीं है, पिछड़ा है, जिसने सभी देशद्रोहियों के नाक में दम कर रखा है, उनका जीना दुश्वार कर दिया है, ऐसे में ये लोग करेंगें क्या? बस दिन रात नरेन्द्र मोदी का विरोध और अब योगी का विरोध...
आप करते रहिये विरोध, भारत की जनता, अपना मताधिकार का प्रयोग करना जानती है, जो गलत करेगा, दंडित करेगी, और जो बेहतर करेगा उसे मौका देगी। आपलोग क्यों विधवाओं की तरह अपना छाती पीट रहे है...

Monday, March 20, 2017

प्यारे बच्चों.....................

प्यारे बच्चों,
आओ, आज मैं तुम्हें बताता हूं कि हमारे पूर्वज कैसे अभावों में भी शानदार ढंग से जीवन व्यतीत करते हुए अपने जीवन को समाज और देश के लिए उत्सर्ग कर देते थे। मैं कहूंगा कि तुम एक बात गिरह पार लो – तुम अपने जीवन में जितना आवश्यकताओं को सीमित करोगे, तुम उतना ही आनन्द प्राप्त करोगे और इसके विपरीत जितना तुम अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाओगे, तुम उतना ही दुख के सागर में डूबते चले जाओगे। कौन व्यक्ति कहां से धन ला रहा है? और कैसे वह अपनी आवश्यकताओं को पूर्ति कर रहा है? – ऐसी सोच सामान्य बुद्धिवाले लोग रखते है, पर जो असामान्य है, वे इन बातों पर ध्यान ही नहीं देते। वे तो इस ओर ध्यान देते है कि उन्होंने अपने जीवन में ईमानदारी को वहन किया है या नहीं, जैसे ही उन्हें पता लगता है कि उनके पास आया धन बेईमानी से उन तक पहुंचा है, वे विचलित हो जाते है और उसका वे उपयोग करना भी पाप समझते है, ठीक इसके विपरीत अधम लोगों की प्रवृत्ति कैसी होती है? हमें लगता है तुम्हें बताने की जरुरत नहीं।
कहा भी गया है...
अधमा: धनम् इच्छन्ति, धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमा: मानम् इच्छन्ति, मानो हि महतां धनम्।।
अर्थात् जो दुष्ट होते हैं, उन्हें सिर्फ धन की इच्छा होती हैं, जो मध्यमवर्गीय है अर्थात जो न संत है, न अधम है, वे मध्यम मार्ग अपनाते है, उन्हें धन और मान दोनों की आवश्यकता होती है, पर जो संत प्रवृत्ति के लोग है, उनके जीवन में धन की इच्छा कभी नहीं रहती, उनके लिए तो सम्मान से बड़ा कोई धन है ही नहीं।
तुम जहां हो, वहां तुम्हें ये तीन प्रकार के लोग बराबर मिलेंगे, अब तुम्हें ये सोचना है कि तुम किस प्रकार के लोगों का वरण करो? या तुम्हारे मित्र या सखा किस प्रकार के लोग हो? ये निर्णय करने का अधिकार, मैं तुमलोगों पर छोड़ता हूं, मेरा स्वभाव क्या है? ये तुम जानते ही हो।
कुछ लोग कहते है कि जीने के लिए धन की आवश्यकता होती है, पर मैं कहता हूं कि जीने के लिए धन की आवश्यकता होती ही नहीं, और जितनी आवश्यकता होती है, उसका प्रबंध ईश्वर स्वयं कर देता है, ठीक उसी प्रकार जैसे...
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम
दास मलूका कह गये, सब के दाता राम
हमें लगता है कि तुम इस दोहे का अर्थ समझ गये होंगे।
मैं स्वयं 50 वें वर्ष में हूं और जो मैंने तुम्हारे दादा-दादी और अपने गुरुजनों तथा भारत के महान आध्यात्मिक संतों के बताये मार्गों का अनुसरण किया है, उससे साफ पता चलता है कि जीवन में धन उतना महत्वपूर्ण नहीं।
ऐसे भी धन से आप खाट या पलंग खरीद सकते है, पर नींद नहीं। धन से आप स्वादिष्ट व्यजंनों को खरीद सकते है, पर उसका रसास्वादन कर पायेंगे, इसका जवाब खरीदनेवाले के पास भी नहीं होता। आखिर ऐसा क्यों? इस पर चिन्तन की आवश्यकता है।
कुछ लोगों से मैं पूछता हूं कि महात्मा गांधी का घर कहां है? तो वे बताते है कि उनका घर गुजरात के पोरबंदर में हैं, पर उन्हें नहीं मालूम कि जिसे वे महात्मा गांधी का घर बता रहे है, गांधी ने वो घर बनाया ही नहीं, वो तो उनका पैतृक आवास है, गांधी को समय कहां मिला कि वे अपना घर बनायें।
मेरे प्यारे बच्चों,
याद रखों, जो दूसरे का घर बनाता है, वह अपना घर नहीं बना पाता, वो तो दूसरों के घर में ही आनन्द ढूंढ लेता है, तुम इसी बात को सरदार पटेल, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, संत रविदासजी, गुरु नानक, स्वामी विवेकानन्द जी की जीवनी से भी जान सकते हो।
आजकल लोगों को मैं देखता हूं कि वे अपने आस-पास रहनेवाले मित्रों व पड़ोसियों के जीवन शैली को देखते हुए, स्वयं की जीवन शैली को प्रभावित करना प्रारंभ कर देते है, यह भी दुख का कारण है।
भाई मान लिया कि किसी के घर में फ्रिज है, तो कोई जरुरी नहीं कि मेरे घर में भी फ्रिज होने चाहिए, गर आवश्यकता है तो खरीदिये पर लोगों को दिखाने के लिए कि मेरे पास भी फ्रिज है, ये गलत है और ये दुख का कारण है...
जरा मुझे ही देख लो, मैंने तो अपने जिंदगी में फ्रिज खरीदी ही नहीं, और न मैं खरीदूंगा, क्योंकि मुझे ये आवश्यक नहीं लगता, आखिर क्यों, मुझे आवश्यक नहीं लगा, जरा ध्यान दो...
फ्रिज करता क्या है?
फ्रिज में सब्जियों को रख देने से सब्जियां ताजी रहती है, मैं कहता हूं कि मैं इतनी सब्जी खरीदू ही क्यों?  जिसके लिए मुझे भंडारण करनी पड़े, रोज बाजार जाउंगा और ताजी सब्जियां लाउँगा।
फ्रिज में पानी ठंडा रहता है, पर मैं दावे के साथ कहता हूं कि इस पानी से प्यास नहीं बुझती, जबकि घड़ा में पानी भी ठंडा और इससे प्यास भी बुझती है।
फ्रिज में पकाये भोजन के शेषांश को सुरक्षित रखा जा सकता हैं, मैं कहता हूं कि मैं इतना भोजन बनाऊं ही क्यों, जिसके लिए हमें सुरक्षित रखने के लिए फ्रिज की आवश्यकता पड़ जाये।
फ्रिज में आइसक्रीम बन जाती है, भाई हम कोई रईस की औलाद तो है नहीं कि हम रोज दस किलो दूध लाये और आइसक्रीम बनाते जाये, हम तो आइसक्रीम खाने के लिए किसी दुकान पर गये और आइसक्रीम खरीदी, खा लिये।
ऐसे भी फ्रिज रखेंगे, 24घंटे बिजली की खपत अलग और बेवजह का बिजली बिल का भुगतान करने का झंझट अलग।
यहीं नहीं, इसके अलावा फ्रिज से पर्यावरण को भी नुकसान, क्लोरोफ्लोरो कार्बन का उत्सर्जन और ओजोन में छिद्र को बढ़ावा।
यानी कुल मिलाकर हमें नहीं लगता कि हम भारतीयों के लिए ये फ्रिज जरुरी है, पर देखता हूं कि लोग धड़ल्ले से इन फ्रिजों को अपने घर के रसोईघर में रसोईप्रवेश करा रहे है, और मैंने आज तक नहीं लिया।
सच्चाई जानते हो।
कुछ लोगों को देखता हूं कि जब अपने बेटे-बेटियों की शादी करेंगे तो अंधाधुंध खर्च करेंगे, जैसे लगता हो कि वे कितने धन्ना सेठ है, पर हम बता देते है कि ऐसी खर्च से वे अपने बेटे-बेटियों की खुशियां नहीं खरीदते, बल्कि वे स्वयं का नुकसान करते है, समाज और देश का नुकसान करते है, क्योंकि इसी देखा-देखी में लोग अपने घर के सुख को नष्ट कर डालते है। जो धन्ना सेठ है, जिनको ईश्वर ने धन दिया है, उन्हें भी चाहिए कि वे सामाजिक मर्यादा का ध्यान रखे, पर वे ऐसा करेंगे, हमें नहीं लगता।
अगर ईश्वर ने किसी को धन दिया है तो उन्हें उक्त धन को, उन बेटियों की शादी में खर्च करना चाहिए, जिनकी शादियां धन के अभाव में नहीं हो रही। मैं दावे के साथ कहता हूं कि ऐसा करने से जो उन्हें आनन्द प्राप्त होगा, वह स्वयं की शादी में भी उन्हें नहीं आयी होगी।
कहा भी गया है...
संत प्रवृत्ति के लोगों के पास जो धन आता है, वह लोगों के आनन्द पर खर्च होता है और जब यहीं धन दूष्टों के पास पहुंचता है तो वह लोगों के आनन्द को हर लेता है...
संत प्रवृत्ति के लोगों की संख्या आज भी बहुतायत है, बस उन्हें परखने की जरुरत है...
मैं यह क्यों लिख रहा हूं, तुम सब, ये सब लिखने का मतलब समझ गये होगे...
बस करना यहीं है कि कभी भी अपने मेहनत के पैसे को उन जगहों पर जाया नहीं करना है, जो जरुरी न हो। जहां जरुरी है, वहां उन पैसों को खर्च करिये और जहां जरुरी नहीं है, वहां कुछ भी हो जाय, खर्च नहीं करना है, सदैव समाज और देश के लिए पैसे खर्च होने चाहिए।
भामा शाह को देखो, उनके पास खूब धन था, और उन्होंने अपना सारा धन महाराणा प्रताप के चरणों में रख दिया...
महाराजा रघु के दरबार में छोटा सा कौत्स जाता है, और महाराज रघु, कौत्स के पास अपना सारा धन रख देते है, और कौत्स उतना ही लेता है, जितनी की उसे आवश्यकता है। ये प्रमाण बताने के लिए काफी है कि भारत क्या है? और हमें क्या करना चाहिए...
खुब खुश रहो।
तुम्हारा पिता
कृष्ण बिहारी मिश्र

Thursday, March 16, 2017

वाह रे रघुवर उर्फ शाहरुख खान की सरकार...............

झारखण्ड में रह रहे बेईमानों, गुंडों, अपराधियों और अवैध कार्य करनेवालों के लिए बुधवार का दिन खुशियों भरा रहा। राज्य की रघुवर सरकार उर्फ शाहरुख खान की सरकार ने इनके हितों को देखते हुए महत्वपूर्ण निर्णय लिये। वह निर्णय क्या था?
जरा ध्यान दें...
१. झारखण्ड राज्य आवास बोर्ड के विभिन्न प्रमंडलों के अंतर्गत भाड़ा-सह-क्रय हेतु निर्मित मकानों/फ्लैटों में वर्षों से अवैध रूप से रह रहे लोगों को वर्तमान दर पर दंड सहित राशि के साथ अद्यतन कीमत पर भाड़ा-सह-क्रय के आधार पर आवंटन करते हुए नियमितिकरण की स्वीकृति दी गयी यानी राज्य सरकार ने उन तमाम ईमानदारों और कर्तव्यनिष्ठ लोगों के मुंह पर करारा तमाचा मारा जो गलत कार्य कभी भी अपनी जिंदगी में नहीं किये या जिन्होंने संकल्प कर रखा है कि वे किसी भी हालत में सत्य का दामन नहीं छोड़ेंगे। बेईमानों और अपराधियों तथा अवैध कार्य करनेवाले प्रसन्न है, कि उनके द्वारा किया गया कुकृत्य आज सत्य को भी परास्त कर दिया, इसलिए आनेवाले समय में बेईमान बने, कुकर्मी बने, अंततः सरकार बेईमानों के आगे झूकेगी ही और वे विजयी होंगे। ऐसे अवैध कार्यों को आगे बढ़ाने में और बेईमानों तथा अवैध कार्य करनेवाले लोगों के मनोबल बढ़ाने के लिए रघुवर सरकार ने महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया। कुल मिलाकर देखें तो रघुवर का साथ, बेईमानों का साथ का सलोगन आज रघुवर के चाहनेवालों पर सर चढ़कर बोल रहा है।
२. इस्लाम नगर, रांची में ४४४ आवास के निर्माण के लिए ३३ करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये यानी आप कहीं भी सरकारी जमीन पर अवैध बस्तियां बसाइये, मुफ्त में टोकन लगाकर बिजली जलाइये, सरकार द्वारा जारी किये गये विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाइये और कुछ साल के बाद सरकार से बने-बनाये मकान का फायदा उठाइये। मैं पूछता हूं कि जब इसी प्रकार के कार्यों को बढ़ावा देना है तो इस्लाम नगर में अवैध रुप से रह रहे लोगों के लिए ४४४ आवास निर्माण और नागा बाबा खटाल में रह रहे लोगोँ को जिन्हें उजाड़ा गया, उसके लिए राज्य सरकार ने कितने पैसे आवंटित किये, क्या सरकार के पास इसका कोई जवाब है?
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बवाल करनेवाले राजनीतिज्ञ जैसे झाविमो के नेता बाबू लाल मरांडी और कांग्रेसी नेता सुबोधकांत सहाय जैसे नेताओं के मुंह सील गये, क्योंकि इन्हें लगता है कि इस्लाम नगर के लोगों को पेट था, आंखे थी, पर नागा बाबा खटाल में रह रहे लोगों को न तो पेट थी और न आंखे थी। क्या माजरा है भाई? ऐसे-ऐसे लोग इस राज्य में नेता बनते है, जो आम जनता को भी वोटों की तराजू पर तौल कर, उसके लिए न्याय की मांग में भी दोगलेपन का नजरिया रखते है।
अब हम पूछना चाहते है भाजपा के केन्द्रीय नेताओं से कि जब आप, सबका साथ, सबका विकास का नारा देते हो, तो ये बताओं की इस प्रकरण पर ईमानदारी से जीनेवाले लोग कहां है? जिन्होंने सत्य को कभी छोड़ा ही नहीं, ऐसे लोग कहां है? और जब आपके लिए ये कहीं नहीं, तो फिर सबका साथ, सबका विकास का नारा क्या खोखला नहीं... ...रघुवर उर्फ शाहरुख के कैबिनेट के इस फैसले ने तो साफ कर दिया सबका साथ और गुंडों तथा अवैध कार्य करनेवालों का विकास...
#Narendramodi #Amitshah #RSS

Saturday, March 11, 2017

यह चुनाव परिणाम सबक है, सभी नेताओं, पत्रकारों और ब्रांडिंग कंपनियों के लिए..........

आखिर जनता क्या चाहती है?
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की है, ऐसी जीत हासिल की है, कि ऐसी जीत रामलहर में भी नहीं हुई थी। उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड पर शानदार कब्जा जमाया, तो जिस मणिपुर में उसके एक भी सदस्य विधानसभा में नहीं थे, वहां पर सत्ता की प्रबल दावेदार के रूप में उभर कर सामने आयी, गोवा में हालांकि उसे झटका जरुर लगा है, पंजाब में उसकी सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल सत्ता से बाहर हो गयी। इस चुनाव परिणाम के द्वारा उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड की जनता ने नेताओं की ब्रांडिंग करनेवाली कंपनियों और उन पत्रकारों को भी खबरदार किया है, जो राज्यसभा जाने के लिए किसी भी पार्टी के लिए आजकल प्रवक्ता के रूप में स्वयं को चैनल के समक्ष प्रस्तुत कर रहे है। ये वे पत्रकार है, जिनका जनता से कोई सरोकार नहीं होता, बल्कि अपने मालिकों के द्वारा दी गयी चैंबर में एक समाचार पत्र या चैनल के प्रबंधक सह निदेशक के रुप में कार्य करते है। जरा एक उदाहरण देखिये...
एक पत्रकार ने सोशल साइट में स्वयं को खुलकर बसपा के प्रवक्ता के रूप में पेश किया, वे खूब बसपा, हाथी और मायावती के एजेंट के रूप में पेश आये और भाजपा नेता एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जमकर गरियाया। जब वे अपने सोशल साइट पर मायावती का चुनाव प्रचार कर रहे थे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गरिया रहे थे, उसी वक्त उनके समर्थक और पत्रकारिता जगत के मूर्धन्य लोग तथा वामपंथियों का समूह उनके पक्ष में खुलकर उनके प्रति समर्थन जूटा रहा था, पर आज इनकी स्थिति क्या है? सामान्य सा उत्तर – हास्यास्पद। अरे भाई जब हम पत्रकार है, तो हमें किसी खूंटे से बंधे होने की क्या जरुरत? जो सही है, उसे डंके की चोट पर लिखेंगे, बोलेंगे और करेंगे भी।
जरा देखिये, उक्त पत्रकार ने नौ मार्च को सोशल साइट पर क्या लिखा...
बहन जी के द्वार पर, भइ संतन की भीड़
मोटू लाला चंदन घिसै, तिलक देत श्रमवीर
इस दोहे के आधार पर उसने मोटू लाला को नरेन्द्र मोदी और अमित शाह करार दिया, जबकि श्रमवीर कहकर मायावती समर्थकों को मान बढ़ाया।
इसी पत्रकार ने नौ मार्च को ही लिखा...
रन अप टू अप रिजल्ट लेट्स अस रिकॉल बिहार
यानी उक्त पत्रकार ने कह दिया कि ११ मार्च को आनेवाला पांच प्रांतों का चुनाव परिणाम खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम, बिहार के चुनाव परिणाम की याद दिला सकते हैं।
और आज वहीं पत्रकार उत्तर प्रदेश के आये चुनाव परिणाम के बाद मायावती के बारे में लिख डाला कि अब...
मायावती का क्या होगा?
यानी आज उत्तर प्रदेश की जनता द्वारा दिये गये चुनाव परिणाम को भी वह स्वीकार करने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रहा है, ये स्थिति है आज के पत्रकारों की...
जब पत्रकार बसपाई हो जाये
जब पत्रकार भाजपाई हो जाये
जब पत्रकार सपाई हो जाये
जब पत्रकार वामपंथी हो जाये
तो उससे सर्वाधिक नुकसान उस राज्य व देश को होता है, जहां वह पत्रकार रह रहा होता है, अरे कोई जीते, कोई हारे। हमें उससे क्या? हमें तो यह देखना है कि क्या जनता का हित सध रहा है, अगर जनता का हित सध रहा है तो ठीक है, अगर नहीं हित सधा तो हम सरकार किसी का हो, उसकी बैंड बजायेंगे। ऐसा नहीं कि हम हाथी, कमल, हाथ, साइकिल, तीर-धनुष, तीर, लालटेन आदि की सेवा में स्वयं को लगा देंगे और उसके बदले स्वयं को उपकृत करेंगे।
जिस दिन उत्तर प्रदेश का अंतिम चरण का मतदान समाप्त हुआ। उस दिन एक न्यूज चैनल ने अपने परिचर्चा में कई पत्रकारों को बुलाया, जो किसी न किसी पार्टी से जुड़े थे और उसकी प्रशंसा में स्वयं को आत्मानुरागी की तरह पेश कर रहे थे, जो बता रहा था कि आजकल के ये पत्रकार कितने गिर चुके है। हमें तो लगता है कि उन्हें स्वयं इस पर परिचर्चा करनी चाहिए कि आखिर वे कितने गिर सकते है, क्या उन्होंने अब ये ठान लिया है कि वे पत्रकारिता करते-करते बुढ़ापे की ओर कदम बढ़ाते ही, किसी दल की चाटुकारिता या नौकरी करेंगे और उसके बदले राज्यसभा जायेंगे, गर ऐसा है तो वे देश और समाज के सबसे बड़े दुश्मन है, हमें इनसे ज्यादा सावधान होना पड़ेगा, साथ ही देश व समाज को इनसे रक्षा के लिए कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे, क्योंकि निः संदेह इनसे देश को खतरा उत्पन्न हो गया है।
और अब ब्रांडिंग का दुकान चलानेवालों को भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के चुनाव परिणाम ने एक करारा संदेश दिया है, संदेश उन नेताओं को भी दिया जो इन ब्रांडिंग का दुकान चलानेवालों के बल पर सत्ता का स्वाद चखने का मन बना चुके थे। अरे यार, काठ की हांडी एक बार चढ़ती है, बार-बार नहीं। बिहार में आप कमाल दिखा दिये तो इसका मतलब ये नहीं कि यूपी की जनता भी इस चक्कर में आ जायेगी। ऐसा नहीं है कि बिहार की जनता ने प्रशांत किशोर के कहने पर वोट जाकर डाल आयी थी। बिहार की सच्चाई यह थी कि लोकसभा के चुनाव परिणाम के बाद ही नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को पटखनी देने के लिए एक रणनीति बनाई, जातिगत सामाजिक समीकरण को उभारा, मुस्लिम, यादव और कुर्मी तथा अन्य पिछड़ी जातियों को गोलबंद किया और परिणाम सामने आ गया। लालू और नीतीश की जोड़ी मोदी पर भारी पड़ गयी। इसमें प्रशांत किशोर की बाजीगरी कहा थी? और जब ये बाजीगरी थी भी तो फिर ये कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सत्ता में क्यों नहीं ले आयी? उलटे राहुल गांधी की खटिया कैसे खड़ी हो गयी?
यहीं नहीं झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी इस चुनाव परिणाम से सबक लेनी चाहिए, जो वे ब्रांडिंग के नाम पर बेतहाशा पैसे खर्च कर रहे है, जरा पूछिये कि उन्हीं के राज्य में इवाई जिसे वे अपनी ब्रांडिंग के लिए रखा है, वहीं इवाई उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को सत्ता में क्यों नहीं ले आयी? अभी भी वक्त है, रघुवर दास जी समझ जाइये, क्योंकि किसी भी नेता को लोकप्रिय या अलोकप्रिय उसकी हरकतें, उसके काम-काज और जनता के प्रति उसकी संवेदनशीलता ही कराती है, न कि ब्रांडिंग करानेवाली कंपनियां।
इधर, हम स्वीकार करते हैं कि आज के चुनाव परिणाम से बसपा और कांग्रेस- सपा को बेहद निराशा हुई होगी, पर इसका मतलब ये नहीं कि वे मन में निराशा का भाव रखकर सब कुछ भाजपा के हाथों छोड़ दे। आज गर जनता इनसे नाराज हुई है, तो कल जनता इनके साथ भी हो सकती है, क्योंकि जनता तो जनता है, वह किसी की जागीर नहीं होती, जो बेहतर होगा, उनके पास जैसा विकल्प होगा, वह चुन लेगी, फिलहाल जनता को लगा कि भाजपा उसका बेहतर विकल्प है, इस बार भाजपा को सत्ता सौंपी है। याद करिये उत्तरप्रदेश में इसके पूर्व सपा और उसके पूर्व बसपा को इसी जनता ने सत्ता सौंपा था, इसलिए इस जनादेश को सबको सम्मान करना चाहिए, निराशा में आकर जनता का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं, न तो उन पत्रकारों को जो अपने गले में किसी विशेष पार्टी या दल का मंगलसूत्र धारण कर राज्यसभा जाने का ललक रखते हो अथवा वे लोग जो किसी न किसी पार्टी से जुड़े है।
बधाई भाजपा को, कि उसने उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में बड़ी जीत दर्ज की। मणिपुर में अच्छी स्थिति दर्ज की। गोवा में अपेक्षित सफलता नहीं मिली, जबकि पंजाब में उसे करारी हार देखने को मिली। हम चाहेंगे कि वे इस सफलता, इस जीत को सामान्य रुप में लेते हुए, ज्यादा जोश न दिखाये, सीधे जनता से किये वायदे को पूरा करने में अपना समय व्यतीत करें, क्योंकि जनता, तो जनता है, वह किसी की नहीं होती, और नहीं वह किसी खूंटे में रहना पसंद करती है। उसका उदाहरण देखना है तो बिहार के लालू प्रसाद को ही देख लीजिये, बहुत घमंड किया करते थे, पर आज क्या है? बिहार में अकेले बड़ी पार्टी होने के बावजूद सत्ता का रसास्वादन और जनता की सेवा करने का विशेषाधिकार नीतीश को प्राप्त है। इसलिये विपक्षी दल जनता की सेवा को प्रमुख साधन बनाये और पत्रकार सत्ता से चिपकने की जगह जनहित में पत्रकारिता कर, समाज को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाये।

Wednesday, March 8, 2017

आज अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस है..............

आज अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस है...
उन महिलाओं को नमन, जो निर्धन और अभावों में रहते हुए भी अपने बच्चों, परिवार, समाज और देश को एक नई दिशा दी...
उन महिलाओं को नमन, जो खेतों-खलिहानों में, विभिन्न प्रकार के निर्माणों में अपना श्रमदान कर अपने परिवार और बच्चों का भरण पोषण कर रही है और अपने दिव्य संस्कारों से उनका मार्गदर्शन कर रही है...
उन महिलाओं को नमन, जो स्वयं भूखी रहकर अपने परिवार और समाज को ये लखने नहीं देती कि वो कई दिनों से भूखी है...
उन महिलाओं को नमन, जो लाख विरोधों के बीच सत्य को सत्य कहने से नहीं झिझकती, जैसे सुभद्रा कुमारी चौहान, जो डंके की चोट पर ग्वालियर नरेश के खिलाफ यह कहकर बिगुल फूंकती है कि –
अंग्रेजों के मित्र सिंधिंया ने छोड़ी रजधानी थी।
खुब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी।।
उन महिलाओं को नमन जिन्होंने बच्चों में संस्कार जगाने और उनमें छुपे वात्सल्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कमर कसती है, जैसे सुभद्रा कुमारी चौहान को देखिये –
यह कदम्ब का पेड़ अगर मां होता जमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे – धीरे।।
उन महिलाओं को नमन जो परतंत्रता की बेड़ियों से भारत को मुक्त कराने के लिए, पूर्ण स्वतंत्रता के लिए, सशक्त भारत के निर्माण के लिए अपना कलम खोलती है, जैसे सुभद्रा कुमारी चौहान को देखिये, जो कहती है –
वीरों का कैसा हो वसन्त,
आ रही हिमाचल से पुकार,
है उदधि गरजता बार-बार.
प्राची पश्चिम भू नभ अपार,
सब पूछ रहे हैं
दिग-दिगन्त,
वीरों का कैसा हो वसन्त।
जब भी 8 मार्च आता है, महिलाओं के सम्मान देने के नाम पर नाना प्रकार के कार्यक्रम आयोजित होते है, ये कार्यक्रम वे लोग आयोजित करते है, जो सहीं मायनों में महिलाओं को सम्मान देते ही नहीं, इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजन करनेवालों की संख्या बहुतायत है, पर जिनके लिए महिलाएं आज भी सर्वोपरि है, या सम्मान की पात्र है, उनके लिए 8 मार्च कोई मायने नहीं रखता। भारत में आज भी 90 प्रतिशत महिलाएं जो खेतों-खलिहानों या शहरों में मजदूरी का कार्य करती है, जरा उनसे पूछिये कि अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस कब मनाया जाता है या इसका अभिप्राय क्या है? तो पता चलेगा कि उनका इस प्रकार के कार्यक्रम से कोई लेना-देना नहीं और न ही वे इस प्रकार के कार्यक्रम को बारे में जानना या समझना चाहती है, पर नारीत्व के भाव को वो जितना समझती है, शायद ही कोई समझेगा।
रांची जैसे शहर में लड़कियों और महिलाओं की क्या स्थिति है? किसे नहीं पता। लड़कियां यौन शोषण-दुष्कर्म की शिकार हो रही है और पुलिस उन दुष्कर्मियों और यौन-शोषणकर्ताओं को संरक्षण दे रही है, ये किसके इशारे पर हो रहा है, किसे नहीं पता। छोटी – छोटी बच्चियां जो कस्तूरबा बालिका में पढ़ती है और उनके साथ ऐसी हरकतें हो रही है कि हम उसे यहां लिख नहीं सकते। लड़कियां मुख्यमंत्री का द्वार खटखटाती है, पर ये मुख्यमंत्री है, जो उनकी सुनते ही नहीं, तो ऐसे में इस प्रकार के आयोजन बेमानी सिद्ध होते है।
लड़कियों और महिलाओं का सम्मान दिल से होना चाहिए पर मैं यहां देख रहा हूं कि लोग इनका सम्मान दिमाग से करने लगे है, कि इस प्रकार के आयोजन से उन्हें क्या फायदा मिलेगा? जहां इस प्रकार की मानसिकता लोगों की है, वहां महिलाओं का सम्मान हमेशा खतरे में रहेगा।
हमारे देश में रक्षाबंधन का एक त्यौहार होता है, जिस त्यौहार में महिलाएँ पुरुषों को रक्षा सूत्र बांधती है, जिससे पुरुष का यत्र-तत्र-सर्वत्र रक्षा होता रहता है। उस रक्षा सूत्र में महिलाओं के द्वारा आशीर्वाद इस प्रकार से सिंचित होता है कि वह पुरुष का रक्षा कवच का काम करता है, तो जहां ऐसी परंपरा व संस्कृति का वास हो, उस देश में आज महिलाओं की ऐसी स्थिति क्यों? उसका मूल कारण है कि हमने महिलाओं को सम्मान देने में दिमाग का इस्तेमाल किया। आज स्थिति है कि घर का ही पुरुष अपने ही घर की महिलाओं को महिला नहीं समझ रहा, आज स्थिति ऐसी है कि महिलाएं घर में ही सुरक्षित नहीं। ऐसा कौन है – जिसनें हमारी ये स्थिति कर दी। उसका सरल उत्तर है – हमारे देश व समाज में भोगवादी संस्कृति के विष का फैलना, ये विष इस कदर फैल रहा है, जिसका परिणाम अब प्रत्येक दिन दिखाई देने लगा है। जरुरत है, वक्त को पहचानने और स्वयं को संभालने की, नहीं तो स्थिति ऐसी होगी कि आप अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस तो मनायेंगे पर सही मायनों में वहां महिला दिखाई ही नहीं पड़ेंगी।
एक बार पुनः उन महिलाओं को बधाई, जो आज के आडम्बरों से दूर, अपने बच्चों और परिवारों के लिए खेतों-खलिहानों और शहरों की भीड़ में अपना वजूद ढूंढने के लिए निकल पड़ी हैं।

Sunday, March 5, 2017

प्यारे बच्चों..................

प्यारे बच्चों,
बहुत दिन हो गये, तुमलोगों से विस्तार से बातचीत किये हुए। सोचा था होली आ रही है, तुम लोग होली की छुट्टी में आओगे, पर इस बार होली में तुम लोग नहीं आ रहे, इसके कारण इस बार की होली भी फीकी रह जायेगी। हमें आशा ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास है कि तुम जिस सीमा पर तैनात हो, बड़ी ही ईमानदारी पूर्वक भारत माता की सेवा कर रहे होगे। इधर एक दुख भरा समाचार भी है, तुम्हारी बुआ का दो दिन पूर्व ही देहांत हो चुका है, उनका श्राद्धकर्म भी दस दिन बाद है, पर चिन्ता मत करना। हमलोग यहां है। मैं जानता हूं कि इस वेला में भी तुम्हारा यहां नहीं रहना, हृदय को विदीर्ण करता होगा, फिर भी हमारा सुझाव होगा, कि ऐसे मौके पर भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली श्रीमद्भगवदगीता काफी महत्वपूर्ण हो जाती है, तुम इस अवसर पर श्रीकृष्ण के कर्मयोग को याद करते हुए, आगे निकल पड़ो।
दुख आते है, मनुष्य को सबल बनाने के लिए, न कि दुर्बल बनाने के लिए...
याद करो अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को, जिनके जीवन में कभी सुख आया ही नहीं, केवल दुख ही दुख था, पर अंत में वे अमरीका के राष्ट्रपति बने और वे बेहतर राष्ट्रपति साबित हुए। जब भी समय मिले, एक अच्छी पुस्तक पढ़ो और उससे कुछ सीखो। भगवान राम को देखो, राजा के बेटे थे, पर उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा, और इन्हीं संकटों से जुझते हुए, वे भगवान और मर्यादा पुरुषोत्तम की श्रेणी में आ गये।
तुमलोगों से इन दिनों बात ठीक ढंग से नहीं हो रही, इसलिए मैंने फेसबुक का सहारा लिया है। आशा है, पढ़कर तुम मेरी भावनाओं को समझोगे। अब आओ कुछ काम की बात करें। आज तुम्हें संत की परिभाषा बताता हूं, जो हमने भारतीय वाड.मय से सीखा है।
संत क्या है?  स+अन्त = जो समस्याओं का अन्त करें, वह संत। जो समस्या को बढ़ा दे, वह संत हो ही नहीं सकता। संत वैरागी होता है, संत भोगी नहीं होता, जो संत भोगी हो गया, वह संत कभी हो ही नहीं सकता। संत अलंकृत नहीं होता, बल्कि वह दूसरों को अलंकृत करता है। वह शासन या राजा के द्वारा किसी पुरस्कार का भूखा नहीं होता, वह तो गोस्वामी तुलसीदास की तरह होता है, जैसे एक बार अकबर के दरबार से गोस्वामी तुलसीदास को बुलाहट हुई, और गोस्वामी तुलसीदास ने पत्रवाहक को यह कहकर अकबर के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया कि मोसो कहां सीकरी सो काम। ऐसे होते है संत।
संत दुकान नहीं खोलता, संत कैटवाक नहीं करता या अध्यात्म की आड़ में व्यवसाय या स्वयं का उद्योग खड़ा नहीं करता, वो तो चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करता है, जिससे समाज में प्रेम की ऐसी गंगा बहे, जिसके प्रवाह में आकर सभी परमात्मा के एकाकार भाव में समाहित हो जाये।
हमारे देश में कबीर, तुलसी, रविदास, मीराबाई, सूरदास, रसखान, रहीम, नानक, ज्ञानेश्वर, स्वामी योगानन्द, स्वामी विवेकानन्द आदि ऐसे संतों की महान परंपराएं है, जिन्होंने देश व समाज को दिया, पर देश और समाज से लिया कुछ भी नहीं।
जरा मीराबाई को देखो, सभी उन्हें कृष्ण भक्त कहते है, पर मैं तो उन्हें कृष्ण की दीवानी कहता हूं, क्योंकि मीराबाई के गुरु थे संत रविदास, और उस वक्त जब भारत में जातियता कूट-कूट कर भरी थी, ऐसे माहौल में देखों, संत परंपरा। मीराबाई, संत रविदास जी को अपना गुरू मानती है, संत रविदासजी राम नाम की रट बराबर लगाया करते, उन्होंने मीरा को राम मंत्र दे डाला और लो मीराबाई राम मंत्र लेते ही, राममय हो गयी और कह डाला...
पायोजी मैने राम रतन धन पायो
वस्तू अमोलक दीयो जी मेरे सदगुरु, किरपा कर अपनायो
पायोजी मैने राम रतन धन पायो...
ऐसे होते है संत...
कबीर निराकार को माननेवाले, तुलसी साकार को माननेवाले, दोनों राम को भजते है, दोनो एक ही रामानन्दाचार्य संप्रदाय से पर किसी में भेदभाव नहीं...
जरा देखो कबीर राम को कैसे भज रहे है...
कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग ढूढ़ै बन माहि।
ऐसे घटि-घटि राम है, दुनिया दीखै नाहि।।
कमाल है, और तुलसी को देखिये...
नाना भांति राम अवतारा।
रामायण सत कोटि अपारा।।
तो तुम्हे इसी प्रकार से अपने जीवन को ले चलना है। संत बनने के लिए गेरुआ वस्त्र या सफेद वस्त्र धारण करने या दाढ़ी-मूंछ बढ़ाने की आवश्यकता नहीं। बस अपने चरित्र की शुद्धता और ईश्वर पर अटूट विश्वास पर ध्यान देने की आवश्यकता है, फिर क्या? तुम्हारा जीवन धन्य। संत रविदास जी बराबर जूते – चप्पल मरम्मत किया करते, वे अपनी कठौती में ही चमड़ों को धोया करते, पर सच्चाई ये भी है कि उस गंदे जल में भी गंगा उसी पवित्रता से वास करती, जैसा कि अध्यात्मिक रुप से पुष्ट मानव के हृदय में। उन्हीं का कथन था – मन चंगा तो कठौती में गंगा।
तुम अपने कर्म से स्वयं को जीतने का प्रयास करो, चरित्र पर ध्यान दो, संस्कार से पुष्ट हो, ये मत देखों की तुम्हें क्या प्राप्त हो रहा है?, हां इतना जरुर ध्यान रखना कि तुमने देश को क्या दिया है?
अंत में,
हम इस बार होली नहीं मनायेंगे, पर इतना जरुर है कि जब भी तुम घर आओगे, होली उसी दिन मनायेंगे। खुब खुश रहो, देश के सभी महान संतों को प्रणम्य करते हुए, जीवन को आगे बढ़ाओ।
क्योंकि
मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू।।
राम भक्ति जहं सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा।।
ऐसे भी तुलसी ने श्रीरामचरितमानस में, जब शबरी ने श्रीराम से नवधा भक्ति सुनने की बात कहीं तो भगवान श्रीराम ने शबरी को प्रथम भक्ति के रुप में क्या कहा?  जरा तुम स्वयं देखो...
भगवान राम ने कहा...
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।
यानी प्रथम भगति जो है वह संतों की संगति है, पर संत कैसा हो? इसका चयन तुम्हें स्वयं करना होगा... ...अगर संत कबीर है, संत स्वामी विवेकानन्द है, तो जीवन नैया बेड़ा पार और अगर संत कालनेमि है, तो समझ लो जीवन अंधकारमय है। फिलहाल भारतवर्ष में कालनेमियों की संख्या बढ़ रही है, फिर भी इनके बीच भी कई संत है, जो देश और समाज को नई दिशा दे रहे है, तुम उन संतों को स्वयं खोजों और अपना मार्ग प्रशस्त करो। ठीक उसी प्रकार जैसे स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस को और स्वामी दयानन्द ने नेत्रहीन स्वामी विरजानन्द सरस्वती को खोजा, और ज्यादा क्या लिखूं, ईश्वर तुम्हारे साथ है... ...हमेशा प्रसन्न रहो।
तुम्हारा पिता
कृष्ण बिहारी मिश्र

Thursday, March 2, 2017

आखिर प्रभातम पर मुख्यमंत्री रघुवर दास और कनफूंकवें............

आखिर प्रभातम पर मुख्यमंत्री रघुवर दास और कनफूंकवें............
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के रहने के बावजूद राज्य की रघुवर सरकार उर्फ शाहरुख खान की सरकार ने प्रभातम को अपनी ब्रांडिंग के लिए रखा है। ये वहीं प्रभातम है, जिसका पुराना नाम राष्ट्रीया था, जिसने पूर्व में एक नहीं, कई गलत विज्ञापन निकाले थे, जिसको लेकर रांची से लेकर दिल्ली तक हंगामा बरपा था और उस वक्त की तत्कालीन बाबू लाल मरांडी की सरकार ने इसे ब्लैक लिस्टेड कर दिया था। दरअसल हुआ यह था कि इस कंपनी ने अपने विज्ञापनों में स्वर्णरेखा नदी को गोल्डलाइन और आदिम जन जाति के लिए बारबेरियन शब्द का प्रयोग किया था। यहीं नहीं इसके द्वारा की गयी गलतियों की संख्या बहुतायत थी, जिसे लेकर लोगों ने आपत्ति जतायी और राष्ट्रीया एडवर्टाइजिंग एजेंसी कंपनी ब्लैक लिस्टेड हो गयी। यहीं राष्ट्रीया कंपनी एक बार फिर प्रभातम के नाम से झारखण्ड में रघुवर सरकार की ब्रांडिंग कर रही है, जो गलतियां पर गलतियां करती जा रही है, पर इसको ब्लैक लिस्टेड करने के बजाय, इसे जोरदार ढंग से प्रतिष्ठित किया जा रहा है। आश्चर्य इस बात की है एड फैक्टर जिसे मोमेंटम झारखण्ड के लिए सरकार ने ब्रांडिंग करने के लिए बुलाया था, उसने भी गलतियों के रिकार्ड बना डाले हैं, पर राज्य सरकार इन्हें दंडित करने के बजाय, ब्लैक लिस्टेड करने के बजाय इसे करोड़ों रुपये देकर मालामाल कर रही है, और ये सब किसके इशारे पर हो रहा है, समझते रहिये। इस गोरखधंधे में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के निदेशक और कनफूंकवों की बहुत बड़ी भूमिका है।
जरा देखिये...
एड फैक्टर और प्रभातम की कारगुजारी...
1. यह राज्यपाल की स्पेलिंग भी ठीक से नहीं लिख पाता।
2. यह राज्यपाल के नाम भी गलत लिखता है।
3. यह राज्यपाल के नाम के आगे माननीया शब्द का भी प्रयोग नहीं करता।
4. यह अमर कुमार मंत्री को अमर कुमारी बना देता है।
5. यह भोक्ता को भोगता बना देता है।
6. यह झारखण्ड के मानचित्र को बंगाल की खाड़ी में फेंक देता है।
7. आज भी इनकी बनाई गयी विज्ञापनों में ढेर सारी अशुद्धियां है।
पर मजाल है कि इन कंपनियों को हमारी राज्य सरकार ब्लैक लिस्टेड कर दे। कमाल यह भी है कि इस प्रकरण पर राजभवन कार्यालय भी चुप है। अपने मंत्री को पुरूष से स्त्री बना देनेवाले मामले पर पर्यटन विभाग भी मौन साध रखा है। झारखण्ड के मानचित्र को बंगाल की खाड़ी में दिखानेवाले मामले पर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का निदेशक चुप है और विज्ञापन की डिजाइनिंग करने का काम एड फैक्टर और रिलीज करने का काम प्रभातम को दे रखा है, जिसका कमीशन कौन खा रहा है, समझते रहिये... ...अंततः नुकसान किसका हो रहा है, राज्य का, क्योंकि रघुवर दास उर्फ शाहरुख खान आयेंगे और जायेंगे पर राज्य तो वहीं रहेगा। आश्चर्य इस बात की है कि इस पूरे प्रकरण पर संपूर्ण विपक्ष ने भी चुप्पी साध रखी है।
कमाल है एक समय था जब अमित खरे, सचिव, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने राज्य सरकार की सहमति से इन्हीं सभी कारणों को लेकर, राष्ट्रीया एडवर्टाइजिंग एजेंसी को ब्लैक लिस्टेड कर दिया पर वहीं राष्ट्रीया कंपनी, अपना प्रभातम नाम रखकर उसी प्रकार की हरकत कर रही है, पर इस सरकार ने इसे अब तक ब्लैक लिस्टेड नहीं किया, बल्कि उसका मनोबल बढ़ा रही है।
कमाल है कि विज्ञापन रिलीज करने के बाद राशि भुगतान के समय 15 प्रतिशत कटौती करने का अधिकार सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग को है, पर उस कटौती को भी रोक दिया गया है, जिसका सारा पैसा ये कंपनियां आपस में बंदरबांट कर रही है। जिसका कमीशन कौन ले रहा है, आप समझते रहिये। याद करिये इन्हीं सभी गड़बड़ियों को रोकने के लिए, विज्ञापन को रिलीज करने के क्रम में, राशि भुगतान के समय, 15 प्रतिशत राशि कटौती प्राप्त करने के लिए ताकि विभाग के अन्य कार्य सुचारू ढंग से चल सकें, संवाद नामक संगठन बनाने का फैसला, एक साल पूर्व कैबिनेट से पास कराकर लिया गया। चार माह पूर्व ढांचा भी तैयार हो गया, पर यह संवाद आज तक अपने रूप में नहीं आ सका। आखिर इस पर कुंडली किसने मारी? क्यों इसे रोका जा रहा है, समझते रहिये। सच्चाई यह है कि जैसे ही यह अपने रूप में आयेगा, कमीशनखोरों की कमीशन बंद हो जायेगी।
सवाल एक बार फिर से...
रघुवर सरकार जवाब दें...
1. आखिर जो कंपनी ब्लैक लिस्टेड थी, वह फिर अपना नाम बदलकर यहां सेवा दे रही है, और फिर वहीं गलती दुहरा रही है, आप उसे पुनः ब्लैक लिस्टेड क्यों नहीं कर रहे?
2. आपने ही कैबिनेट में फैसला लिया, संवाद के गठन का, इसका गठन कब होगा?
3. जो एड फैक्टर और प्रभातम गड़बड़ियां कर रहे है, उन गड़बड़ियों को रोकने के लिए तथा उन्हें दंडित करने के लिए आपने क्या प्लान बनाया है?
4. आखिर राज्यपाल को अपमान करने का अधिकार तथा झारखण्ड के मानचित्र को बंगाल की खाड़ी तक पहुंचाने का अधिकार इन कंपनियों को किसने दिया?
जनता जानना चाहती है...