Monday, December 30, 2013

हे रामचंद्र कह गये सिया से.............

21वीं सदीं चल रही हैं। माना जाता हैं कि 21वीं सदी भारत की हैं। इस सदी में भारत अपने शीर्ष पर होगा। कभी – कभी अच्छी खबरें अखबारों में पढ़ता हूं अथवा टीवी चैनलों के माध्यम से सुनता हूं तो लगता हैं कि सचमुच देश उसी ओर बढ़ रहा हैं, पर जब कभी ऐसी खबरों पर नजर जाती हैं, जिससे देश रसातल में जा रहा होता हैं तो हमें ही क्या, कई भारतीयों को निराशा हाथ लगती हैं कि क्या ऐसे में भारत आगे बढ़ेगा, या यूं ही ख्बाब, ख्बाब ही रह जायेंगे। इन दिनों भारतीय चैनलों और अखबारों में एक से एक बाबाओं और संतों की पोल खुल रही हैं। ऐसे लोगों की पोल खुलनी भी चाहिए। ताकि पता चल सकें कि इन ढोंगियों ने देश का कितना नुकसान किया हैं और वे अपनी लीलाओं से देश को किस प्रकार गर्त में ले जा रहे हैं, पर क्या इसका असर भारत की सामान्य जनता पर पड़ता हैं, या फिर वे वहीं करते हैं, जो उन्हें करना होता हैं। झूठी मन की शांति के लिए, वे ढोंगियों के आगे सर झूकाते हैं और स्वयं के साथ – साथ देश को भी गर्त में ले जाते हैं। हाल ही में एक फिल्म आयी ओह माई गॉड हमें लगा कि इस फिल्म का असर दीखेगा, पर फिल्म आयी और चली गयी। जैसे एक सामान्य बच्चा, स्कूल शिक्षक या अपने से बड़ों की अच्छी बातों को एक कान से सुनता है और दुसरी कान से निकाल देता हैं, वहीं बात यहां आमजन के साथ देखने को मिली। इस फिल्म में सभी धर्माचार्यों और पांखंडियों की पोल खोलकर रख दी गयी थी, चाहे वे किसी भी धर्म के क्यूं न हो, पर मजाल हैं कि हमारे देश के लोगों के कानों पर जूं रेंगी हो। शायद हमारे देश के लोगों के उपर सन् 1970 में बनी फिल्म गोपी का वो सुपरहिट गीत कुछ ज्यादा ही सर चढ़ कर बोल रहा हैं, जिसमें दिलीप कुमार पर्दे पर गा रहे होते हैं। गीत के बोल थे..................
सुनो सिया, कलयुग में काला धन और काले मन होंगे, काले मन होंगे।
चोर, उचक्के नगर सेठ और प्रभु भ्रक्त निर्धन होंगे, निर्धन होंगे।
जो होगा, लोभी और भोगी – 2
वो जोगी कहलायेगा
हंस चुगेगा, दाना तुनका, कौवा मोती खायेगा,
हे रामचंद्र कह गये सिया से...................
अगर इस गीत को ध्यान पूर्वक देखे तो साफ पता चलेगा कि इस गीत के एक – एक बोल आज सही हो रहे है। तथाकथित संतों की हरकते तो साफ बता रही हैं कि वे इस गीत को अक्षरशः सिद्ध करने में ऐड़ी चोटी एक किये हुए हैं। कौन तथाकथित संत कितना धन इक्टठा कर रहा हैं, इसकी अँधी दौड़ चल रही हैं, वे एक दूसरे को पटखनी देने में लगे हैं और यहां की जनता, अँधभक्ति और झूठी सुख शांति के लिए, इनके धनलोलुपता को और बढा रही हैं। कोई तथाकथित संत कृपा लूटा रहा हैं, तो कोई सपने में सोना का खान ढूंढ रहा हैं तो कोई स्वयं गुरु बन कर अपने चेलों को ये कह रहा हैं कि हमारे लिए तुम धरना प्रदर्शन करों ताकि हम जेल से छूट जाये, कोई व्यभिचार में फंस रहा हैं तो कोई मुक्तकंठ से अपने व्यापार को आगे बढ़ाने में लगा हैं। भला संतों का यहीं काम हैं क्या।
तुलसीदासकृत श्रीरामचरितमानस को देखिए, अरण्यकांड में श्रीराम और नारद संवाद हैं। जिसमें नारदजी को श्रीराम कहते हैं कि संतो के लक्षण क्या हैं, कैसे आप संत को पहचानेंगे, संत की परिभाषा क्या हैं, किस प्रकार का संत उन्हें अत्यधिक प्रिय हैं, इस मर्म को तुलसीदास ने बड़े ही सरल चौपाई में लिख डाला हैं, बस थोड़ा सा दिमाग लगाईये, आपको भावार्थ समझने में देर नहीं लगेगी, साथ ही अपने मन में सोचिये कि क्या इनमें से एक भी भाव अथवा लक्षण भारत के इन तथाकथित संतों में दिखाई पड़ते हैं।
षट विकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा।।
अमित बोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी।।
सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना।।
गुनागार संसार दुख रहित बिगत संदेह।
तजि मम चरन सरोज प्रिय तिन्ह कहुं देह न गेह।।
निज गुन श्रवन सुनत सकुचाहीं। पर गुन सुनत अधिक हरषाहीं।।
सम सीतल नहिं त्यागहिं नीती। सरल सुभाउ सबहिं सन प्रीती।।
जप तप ब्रत दम संजम नेमा। गुरु गोबिंद बिप्र पद प्रेमा।।
श्रद्धा छमा मयत्री दाया। मुदिता मम पद प्रीति अमाया।।
बिरति बिबेक बिनय बिग्याना। बोध जथारथ बेद पुराना।।
दंभ मान मद करहिं न काऊ। भूलि न देहि कुमारग पाऊ।।
गावहिं सुनहिं सदा मम लीला। हेतु रहित परहित रत सीला।।
मुनि सुनु साधुन्ह के गुन जेते। कहि न सकहिं सारद श्रुति तेते।।
जो आजकल टीवी चैनलों पर हर सुबह शाम दीख जाते हैं, या जिनको लेकर हाय तौबा मचायी जा रही हैं, या जिन संतों ने बेड़ागर्क कर रखा हैं, इनमें से ज्यादा संत तो टीवी ब्रांड हैं, जिन्हें समय समय पर टीवी चैनलों ने इन्हें अपने फायदे के लिए जनता के समक्ष रखा हैं, और बाद में जब इन तथाकथित संतों की निकल पड़ी तो इन्होंने टीवी चैनलों को आंख दिखाना शुरु कर दिया, और फिर जब बात बन गयी तो लीजिए, कुछेक संत फिर से टीवी पर दिखाई पड़ने लगे, जिनकी कभी चैनलों ने खिचाई की थी। गोस्वामी तुलसीदासकृत श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड का एक प्रसंग। हनुमान सीता की खोज में लंका पहुंच गये। अचानक उन्हें एक घर से राम – राम की संकीर्तन सुनाई पड़ती हैं। वे आश्चर्य में पड़ते हैं कि लंका में तो निशिचर रहते हैं, यहां सज्जनों का निवास कैसे। पता लगाने के लिए, हनुमान अपना वेष बदलते हैं। पता लगता हैं कि ये तो राम भक्त विभीषण का निवास स्थान हैं। जैसे ही विभीषण की रामभक्ति देखते हैं। हनुमान अपने मूलस्वरुप में आ जाते हैं और अचानक विभीषण जी के मुख से ये बाते निकल पड़ती हैं कि
अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहि नहिं संता।।
हे हनुमान जी अब हमें पक्का भरोसा हो गया कि बिना ईश्वरीय कृपा के संत नहीं मिलते। आज हमारे उपर ईश्वरीय कृपा हो गयी। अब जरा बताईये। हनुमान जी की तुलना, बिभीषण संत से कर रहे हैं। क्या हनुमान जी के संत होने पर किसी को संदेह हो सकता हैं। उत्तर होगा – कदापि नहीं। क्योंकि संतों के सारे गुण, सारे लक्षण हनुमानजी में भरें पड़े हैं। संत कैसा होना चाहिए, इसका सुंदर उदाहरण तो हनुमान जी हैं, पर आज के संतों को देख लीजिए। उनमें हनुमानजी का एक भी गुण अथवा लक्षण दिखाई देता हैं, नहीं तो फिर इस प्रकार की नौटंकी क्यों। हमारे यहां संतों की एक परंपरा रही हैं। विशाल परंपरा। न धन की लालच और न पद की महत्वाकांक्षा। सभी का कल्याण हो, एकमात्र यहीं भाव। उठा लीजिये, गुरुनानक, रविदास, समर्थगुरुरामदास, मीराबाई, सुरदास, रसखान, ज्ञानेश्वर जैसे सैकड़ों, हजारों संतों को। इन संतों ने अपने जीवनकाल में अपने लिए क्या किया और समाज के लिए क्या किया। हम ज्यादा दूर नहीं जाना चाहते। एक सवाल पूछना चाहता हूं। देश में एक राजनीतिक संत हुए – महात्मा गांधी। मोहनदास से महात्मा कैसे हो गये। अपने लिए उन्होंने कितने घर बनाये अथवा स्वयं को महिमामंडित करने के लिए कितने आश्रम खोले। उत्तर होगा – नहीं। तो फिर एक छोटी सी बात लोगों के दिलों में क्यूं नहीं समझ आती।
भारत का ध्येयवाक्य हैं –
सत्यमेव जयते।
भारत का प्राण बसता हैं –
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद दुख भागभवेत।।
हमें नही लगता कि इससे अधिक की जानकारी की आवश्यकता हैं। संत चरित्र निर्माण करता हैं। संत व्यक्तित्व निर्माण करता हैं। संत समाज व देश का निर्माण करता हैं। संत समस्याओं का समाधान कर देता हैं। संत खुद ही समस्या नही बन जाता, जो संत समस्या बन जाये, वो खुद एक भयानक रोग के समान हो जाता हैं, जिससे देश और समाज को नुकसान के सिवा कुछ नहीं मिलता। फिलहाल मेरे देश में कुछ संतों को छोड़ दिया जाय तो ज्यादातर इस देश में ऐसे तथाकथित संत हो गये, जो चैनलों व कुछ अखबारों की आड़ में स्वहित देखते हुए, देश को दीमक की तरह चाट रहे हैं। पर वे भूले नहीं, कि अंततः सत्य की विजय होती हैं, वे कितना भी धूर्त क्यों न बन जाये। देश उन्हें अपने ढंग से सजा अवश्य दे देगा।

Sunday, December 29, 2013

दिल्ली के रामलीला मैदान में राम हंस रहे थे........

याद करिये त्रेतायुग। इस त्रेतायुग में एक भारत का लाल जन्मा था। नाम था - राम। उसने ऐसी आदर्श व्यवस्था कायम की,  ऐसी मर्यादाएं उकेरी कि वो राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम हो गये। राम की एक छोटी कहानी सुनाता हूं, शायद आपको अच्छा लगे। राम की तीन माताएं थी। तीनों माताओं में से जन्म देनेवाली मां कौशल्या से भी अधिक स्नेह कैकेयी राम से किया करती थी, पर कैकेयी ने ही जब राम को राज्याभिषेक करने की तैयारी चल रही थी तो राम के लिए बाधाएं बन कर खड़ी हो गयी और महाराज दशरथ से राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया। राम वनवास जाने को तैयार हो गये। यहीं नहीं उनके साथ उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण भी वन जाने को तैयार हो गये। पर अवध नरेश महाराज दशरथ इसके लिए तैयार नहीं थे, वे बार - बार राम को अपने पिता से द्रोह करने की विनती करते हैं, फिर भी देश काल और समाज के कल्याण के लिए राम वन गमन को तैयार हो गये। सारी अयोध्या राम के साथ वन जाने को तैयार हैं, पर राम अपने सत्य मार्ग से विचलित होने को तैयार नहीं, वे अयोध्या, अयोघ्या की राजगद्दी, अयोध्या की जनता को छोड़ने को तैयार हैं पर सत्य और धर्म को छोड़ने को तैयार नहीं। 
जिस कांग्रेस पार्टी को आम आदमी पार्टी और अन्य पार्टियां गाली दे रही हैं। उसमें भी एक महिला नेत्री हैं - सोनिया गांधी। विदेश में जन्मी, पर भारतीय संस्कृति के मूल भाव त्याग को इस प्रकार अपनायी कि वह दस वर्षों से सत्ता में हैं, पर प्रधानमंत्री पद का लालच उन्हें डिगा नहीं सका। याद करिये संसद के सेन्टर हाल में उनके दल के सारे नेता, दिल्ली की जनता उनके दरवाजे पर खड़ी थी, बार - बार अनुरोध कर रही थी, मैडम आप प्रधानमंत्री बन जाइये, पर वो प्रधानमंत्री नहीं बनी और न ही राहुल को सत्ता के केन्द्र बिन्दु में रहने के बावजूद कोई महत्वपूर्ण विभाग दिलवाया। 
हां एक और बात। देश में एक महात्मा हुए, जो मोहनदास से महात्मा गांधी बन गये, क्या वो चाहते तो भारत के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे, पर वो नहीं बने, जवाहर लाल को बनाया। शायद वो जानते थे कि जो सब कुछ बन जाता हैं, वो कुछ नहीं बनता और जो कुछ भी नहीं बनता वो बहुत कुछ बन जाता हैं, जैसे कि मोहनदास, महात्मा और राष्ट्रपिता बन गये। ऐसै भी जब देश की सेवा करनी हैं तो इसमें पद क्या हैं? आप कहीं भी रहकर वो काम कर सकते हैं, जिससे देश खिल उठे। उदाहरण  तो अन्ना हजारे भी हैं, जिन्होंने अपने अनशन से पूरे सदन का ध्यान अपने आंदोलन की ओर खींचा और आज उनके प्रयास से देश में जनलोकपाल विधेयक सामने हैं।
आप पूछेंगे कि ये सब लिखने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी। कल सुबह सुबह उठा। चैनल खोला। तो पता चला कि देश की राजधानी दिल्ली में सरकार बनने- बनाने का बवडंर थमने जा रहा है। आम आदमी पार्टी जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी हैं, कांग्रेस के खिलाफ लड़ी हैं, वो कांग्रेस के साथ ही सत्ता प्राप्त कर रही हैं। अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री बन रहे हैं, और देखते ही देखते अरविंद अपने छह साथियों के साथ दिल्ली की सत्ता संभाल ली। खूब भाषण दिये। गाना गाया। श्रीमद्भागवद्गीता के रहस्यों की विवेचना की। लगा कि बस अब राम राज्य आ ही गया।  पर क्या जो अनैतिक तरीके से सत्ता प्राप्त करता हैं, वो क्या सत्य मार्ग को प्रशस्त कर सकता है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा सकता हैं, उत्तर होगा- नहीं।
कुछ सवालों के जवाब क्या अरविंद दे सकते हैं...................
क. जिसके खिलाफ आप चुनाव लड़े और उसी के साथ मिलकर आप सरकार बनाये, क्या ये भ्रष्टाचार नहीं हैं?
ख. आप कहेंगे कि आपने जनता से राय मांगी और जनता ने राय दिया, तब सरकार आपने बनायी, तो फिर सवाल आप से ही कि उसी जनता ने आपको स्पष्ट जनादेश क्यों नहीं उस वक्त दे दिया, जब चुनाव हुए थे?
ग. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद, जनता से यह कहना कि जब आप कोई सरकारी विभाग में काम कराने जाओ और कोई घूस मांगे तो घबराओं नहीं, इनसे कैसे सलटना हैं, हम सलट लेंगे,  क्या ये मुख्यमंत्री की भाषा हो सकती है?
घ. लोकतंत्र में एक बड़ी पार्टी को सत्ता से हटाकर, दूसरे नंबर और तीसरे नंबर की पार्टी मिलकर सरकार बनाये और कहे कि हमें जनादेश मिला हैं, इससे बड़ा भ्रष्टाचार और क्या हो सकता हैं?
ड. पिछले कई दिनों से अरविंद के भाषण सुन रहा हूं, जो आदमी अपने ही दिये गये भाषणों और वक्तव्यों पर कायम नहीं रहे, उस पर हम ये कैसे विश्वास करें कि वो अच्छा करेगा? जैसा कि अरविंद ने दिल्ली चुनाव परिणाम आने के पहले कहा था कि हम न भाजपा और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनायेंगे और न ही सरकार को सहयोग देंगे और अब कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता हथिया ली। ये तो भ्रष्टाचार का रिकार्ड तोड़ेनेवाला कीर्तिमान हैं। आप कहेंगे कि जनता से राय लिया तब सरकार बनायी। अरविंद जी, यहीं जनता राम को भी वनवास न जाने के लिए अनुरोध किया था पर राम ने जनता के उस अनुरोध को अस्वीकार करते हुए, अपने वचनों पर कायम रहे। अरे सोनिया को तो जनता ने जनादेश तक दे दिया पर सोनिया ने प्रधानमंत्री की पद ठुकरा दी। आप तो सोनिया की पार्टी कांग्रेस से भी गये गुजरे हो।
उपनिषद् कहता हैं ----------------
जो अच्छे लोग हैं वे मन, वचन ओर कर्म से एक होते हैं
जबकि दुर्जन, मन, वचन और कर्म इन तीनों से अलग होते हैं।
अब आप बताओ केजरीवाल कि आपने दिल्ली चुनाव परिणाम आने के पहले कहा कुछ और चुनाव परिणाम आने के बाद किया कुछ ये क्या बताता हैं, सज्जनता या दुर्जनता? चलो एक बात के लिए आपको बधाई तुम्हारा बेटा आज ये कहने के लायक हो गया कि मेरा पापा दिल्ली का मुख्यमंत्री हैं, पत्नी कहेगी कि मेरा पति दिल्ली का मुख्यमंत्री हैं। दिल्ली की जनता कहेंगी कि दिल्ली का मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं। पर जिन्हें राजनीति में आदर्श और शुचिता स्थापित करनी हैं या देश को एक बेहतर राजनीतिक स्थिति में ले जाना चाहते हैं, उन्हें तुम्हारी सत्ता स्थापित होने से कोई फर्क नहीं पड़ा हैं। 
हां एक बात हैं, आप कुछ ऐसा करों कि जिससे लगे कि आपने कुछ किया। अभी तक तो आप बोलते ही रहे हो। और वो बोले जो किये ही नहीं, अथवा वचन पर कायम नहीं रहे। ऐसे में आपसे आशा भी रखना, मूर्खता को सिद्ध करने के बराबर हैं। हां एक बात और, अभी सारे के सारे चैनल और दूसरे मीडिया हाउस आपकी चरणवंदना में लगे हैं, पर ये कब तक आपके साथ रहेंगे, वो आपको भी मालूम होना चाहिए, क्योंकि ये किसी के नहीं हैं, कब पलटी मारेंगे और फिर आप कहां दीखेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। शायद यहीं कारण था कि दिल्ली के रामलीला मैदान में जब अरविंद लीलाएं कर रहे थे, भगवान राम आकाश से उन लीलाओं को देख हंस रहे थे............

Wednesday, December 18, 2013

आप वाले संभलिये - कहीं चौबे गये छब्बे बनने वाली कहावत न चरितार्थ हो जाये आपके साथ.....

 
अपने देश में एक पार्टी की चर्चा है – आम आदमी पार्टी की। अखबार हो या टीवी। सभी पर ये ही विराजमान हैं, जैसे लगता हैं कि अब देश में गर कोई ईमानदार पार्टी हैं तो बस सिर्फ आम आदमी पार्टी। पर जिस देश में चरित्र कौड़ियों के भाव बिकता हो, वहां एक पार्टी इतनी चरित्रवान कैसे हो सकती हैं। समझा जा सकता हैं। फिर भी मीडिया जो न करायें। अभी देश की मीडिया आम आदमी पार्टी को सरताज बनाने में लगी हैं। ये वही मीडिया हैं जो पैसे लेकर कभी निर्मल बाबा तो कभी आसाराम बापू को एक नंबर संत बनाने का काम की थी, जिसका खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा हैं। हालांकि मीडिया का एक चरित्र तरुण तेजपाल के रुप में सारे देश के सामने है, कि इस मीडिया में कैसे – कैसे लोग आकर देश का सर्वनाश कर रहे हैं।
जब से दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ और उसके परिणाम आये। जिसे देखो – बस आम आदमी पार्टी के गुणगान में लगा है। इस गुणगान को देख आम आदमी पार्टी से जूड़े लोग भी अतिप्रसन्नता के शिकार हैं और वे वो कार्य कर रहे है, जिसकी इजाजत एक सभ्य समाज नहीं दे सकता हैं। वे एक स्वर से देश में कार्यरत विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं को गालियां दे रहे हैं, जैसे लगता है कि दुनिया की सारी खुबसुरती इन्हीं की पार्टी में समा चुकी हैं और बाकी पार्टियां और उसमें शामिल नेता निर्ल्लज है।
जबकि सच्चाई ये हैं कि बारीकी से अध्ययन किया जाय तो आम आदमी पार्टी में भी वे सारे दुर्गुण मिल जायेंगे, जिसकी शिकार अन्य पार्टियां भी हैं, और इसके उदाहरण एक नहीं अनेक हैं ----
क.   आम आदमी पार्टी के ही एक नेता हैं – योगेन्द्र यादव। कल तक कांग्रेस भक्त हुआ करते थे. और कांग्रेस भक्ति में लीन होने के कारण कांग्रेस के नेताओं ने इन्हें कई जगहों पर कृपा भी लूटाई। हाल तक एक देश के एक बड़े आयोग के एक बड़े पदाधिकारी थे और अब कांग्रेस को उपदेश दे रहे हैं।
ख.  चुनाव के दौरान ही आप का एक नेता, जो स्वयं को कवि भी   बताता हैं, भारतीय सम्मान पद्मश्री की धज्जियां उड़ा रहा था, साथ ही दिल्ली स्टाईल में सभी को गालियां दे रहा था – चुनावी सभा के दौरान वो कहते हैं न बाबाजी की............। क्या ये भाषा शराफत में विश्वास रखनेवाले किसी पार्टी की हो सकती हैं।
ग.   आम आदमी पार्टी के लिए काम कर रहा एक संगीत दल – दूसरी पार्टियों को कमीना बता रहा था और इस संगीत दल के कार्यक्रम में आनन्द ले रहे थे – आम आदमी पार्टी के बड़े बडे नेता। आम आदमी पार्टी के नेता बताये कि वे कमीना शब्द का प्रयोग किसके लिए कर रहे थे।
घ.    आम आदमी पार्टी के ही एक नेता हैं – प्रशांत भूषण जो कश्मीर को भारत का अंग नहीं मानते। जिसे लेकर एक सिरफिरे ने उन्हीं के कार्यालय में जाकर, उनके साथ अभद्र व्यवहार किया था। क्या कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं।
ङ.     स्वयं को बेहतर और दूसरे को निर्लज्ज बताने का जो जज्बा तैयार किया हैं आम आदमी पार्टी ने क्या उसे मालूम नहीं कि उसी के एक पार्टी के विधायक पर लड़की के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप भी हैं, पर ये कहेंगे कि विरोधियों ने उन्हें बदनाम करने के लिए ऐसा किया हैं।
च.   ज्यादातर आम आदमी पार्टी के नेता व कार्यकर्ता करोड़पति हैं – ऐसे मैं ये आम आदमी की पार्टी कैसे हो गयी।
अन्ना के आंदोलन में शामिल होना और तिरंगे लहराना और फिर उसी आंदोलन का फायदा उठाकर एक राजनीतिक दल बनाकर अन्य सारे राजनीतिक दलों को गाली देना – किस किताब में लिखा हैं। गर इतना ही शौक था तो ये खुद पांव घिसते,  आंदोलन करते और फिर पार्टी बनाते। अन्ना के आँदोलन को हाईजैक कर पार्टी बनानेवाले, शायद नहीं जानते कि जो जनता 28 दे सकती हैं तो दो पर लटका भी सकती हैं। अभी तो 28 सीट क्या मिला ये पागल हो गये हैं। वो कहते हैं न रामचरितमानस की चौपाई में लिखा हैं --------
छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई।
जस थोरेहुं धन खल इतराई।।
साथ ही आम आदमी पार्टी के नेताओं के व्यंग्य बाण या यो कहें निर्लज्जता वाले बयान जिस प्रकार से अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं पर पड़ रहे हैं, उससे साफ लगता हैं कि हालात हैं-----
बूंद अघात सहहिं गिरि कैसे।
खल के वचन संत सह जैसें।।
कहने का तात्पर्य हैं कि हर व्यक्ति अथवा हर राजनीतिक दल को मर्यादा में रहनी चाहिए, गर आप मर्यादा तोड़ेंगे तो जनता आपको भी औकात दिखा देगी। चाहे आप कितने ही बड़े मीडिया मैनेजमेंट क्यों न कर रखे हो। आम आदमी पार्टी को मालूम होना चाहिए कि जूता कितना भी कीमती हो, वह पांव में ही पहना जाता हैं। ठीक उसी प्रकार झाडूं सिर्फ दूसरों पर नहीं चलती, बल्कि कभी – कभी अपने घरों में भी चलानी पड़ती हैं, नहीं तो घर में गदंगी अधिक होने पर, घर में रह रहे लोग बीमारी के शिकार हो सकते हैं। मैं तो देख रहा था कि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता मस्ती में इतने पागल हो गये है कि वे झाडूं को टोपी बनाकर पहन रहे हैं। ऐसे उनकी मर्जी कि वे झाडूं को टोपी बनाकर पहने अथवा झाडूं को झाडूं रहने दे। हमें इससे क्या। पर इतना जरुर कह देना चाहता हूं कि ज्यादा इतराये नहीं। वो जो सोच रहे हैं कि कांग्रेस आठ सीटों पर जाकर थम गयी या भाजपा 32 पर आकर अटक गयी तो ये उनकी बड़ी भूल हैं। राजनीति में तो ये सब चलता ही रहता हैं। पर राजनीति में अहंकार नहीं चलता। आप को अहंकार ही ले डूबेगा। ये जो सोच रहे है कि दिल्ली में फिर विधानसभा चुनाव होगा तो वे बहुमत में आ जायेंगे। मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं। क्योंकि भारत में एक मुहावरा हैं – चौबे गये छब्बे बनने, दूबे बनकर आये। क्योंकि अगले चुनाव में क्या होगा, मुददे क्या होंगे। कोई नहीं जानता। ऐसा नहीं कि शीला दीक्षित इस बार हार गयी तो दुबारा भी हार जायेंगी। शीला दीक्षित के हार के कई दूसरे कारण है और भाजपा के बहुमत नहीं मिलने के दूसरे कारण पर आप के जीत के कोई कारण नहीं हैं, ये तो मीडिया मैनेंजमेंट हैं, और योगेन्द्र यादव इसके माहिर खिलाड़ी। पर ये माहिर खिलाड़ी हमेशा जीतते ही रहेंगे और आप पार्टी को जीतवाते ही रहेंगे। ऐसा नहीं हैं।
 

Monday, November 11, 2013

आप चिंता मत करिये, अगले साल हम दस दिन पहले से भीख लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लेंगे..............

हमारे देश में कैसे चरित्रहीनता के छोटे से पौधे ने बरगद का पेड़ का रुप धारण कर लिया हैं, उसकी बानगी मैंने इस बार छठव्रत में देखी। आम तौर पर ज्यादातर लोग छठव्रत के दौरान, उदारता दिखाते हैं। इस उदारता के दौरान आपको अजीबोगरीब हरकतें देखने को मिलेंगी। जिस व्यक्ति ने अपनी जिंदगी में कंजूसी के विश्व रिकार्ड बनाये हैं, वह भी छठ व्रत के दौरान, इस प्रकार की उदारता दिखाता हैं कि जैसे वो व्यक्ति अपनी उदारता के लिए भी विश्वरिकार्ड बनाने के लिए उतावला हो। मेरा बचपन पटना के एक छोटे से मुहल्ले सुलतानपुर में बीता हैं। वहां मैंने बचपन में देखा हैं कि जिसके घर मैं कद्दू होता, वो छठ आने के एक महीने पहले से ही कद्दू के पौधे पर ध्यान देता और जैसे ही नहाय खा का दिन होता, वो अपने यहां पैदा हुए कद्दू को बड़े ही सहेज कर, उन घरों तक कद्दू को मुफ्त में इस प्रकार पहुंचाता, जैसे वो भी इस महाव्रत के दौरान थोड़ा सा पुण्य का भागीदार बन जाये। इसी प्रकार सूप बनानेवाले दलितों का समूह, वहीं भाव लेता जो जरुरी हो, न कि छठ के बहाने सूप से अधिक कमाई करने की उसकी मंशा होती। चूंकि वो जानता था कि छठव्रत के दौरान लोग, मोल जोल नहीं करते, जो मुंह से निकल गया, दे देते। क्या वो दिन थे, सेवा भाव के। हर गली-मुहल्ले सेवा भाव से ओत-प्रोत होते। जिसका आटे का मिल होता, वो तो खरना के दिन सुबह से ही अपने मिल को साफ सफाई करके तैयार रखता और छठव्रती अपना आटा मुफ्त पीसा लिया करते, कोई पैसा देने की बात भी करता, तो मिल वाला यह कहकर पैसा लेने से इनकार करता कि यहीं बहाने छठि मइया हमारी सेवा स्वीकार कर रही हैं, यहीं क्या कम हैं। पर अब ऐसी बात नहीं दिखती। सभी मुनाफा कमाने में लगे हैं, क्योंकि अब उन्हें लगता है कि छठ साल में एक बार आनेवाला पर्व हैं, चलो कमालो, नहीं तो फिर ऐसा मौका बार बार नहीं मिलेगा। भला कद्दू, सूप, दौरा, केला, गुड़ और गेहूं आदि के लिए लोग इस प्रकार की मार्केंटिग हमेशा थोड़े ही किया करते हैं, प्रोफेशनल बन जाओ, अपने जमीर को थोड़े दिनों के लिए मिटा दो और शुद्ध मुनाफा कमाने के लिए मुनाफाखोर बन जाओ।
चलिए छोड़िये, कहा भी जाता हैं कि जीने के दो मार्ग हैं एक सत्य का रास्ता और दूसरा असत्य का। जब से सृष्टि बनी है, तभी से ये मार्ग जीवंत हैं, जो लोग सत्य का मार्ग चूनते हैं, उन्हें भी आनन्द मिलता हैं और जो असत्यमार्ग पर चलते हैं, उन्हे भी आनन्द मिलता हैं, अब कौन किस प्रकार का आनन्द लेता हैं, वो जाने। ठीक छठ में भी वो चीजें सामने दिखाई पड़ रही हैं, किसी को छठव्रतियों की सेवा में आनन्द प्राप्त होता हैं तो किसी को छठव्रतियों के सेवा के नाम पर उनसे पूरा सेवाकर वसूलने में आनन्द प्राप्त होता हैं।
इधर मैं कई वर्षों से रांची के चुटिया में रहता हूं। वहां मैंने इस बार अजीबोगरीब चीजें दिखी। चुटिया थाने के ठीक सामने एक दवा की दुकान हैं। संभवतः वो दुकान विक्की सिंह की हैं। जब से इलेक्ट्रानिक मीडिया से मेरा नाता टूटा हैं, तब से मैं थोड़ी देर के लिए वहां से गुजरने के क्रम में विक्की सिंह के दुकान में बैठ जाया करता हूं। इसी बीच छठव्रत आया, पता चला कि विक्की सिंह, हिन्दुस्तानी क्लब चलाते हैं, जिसमें कई युवा शामिल हैं। इस हिन्दुस्तानी क्लब के अध्यक्ष खुद विक्की सिंह हैं। एक सायं जब मैं दुकान पर बैठा था, तो कुछ लोग आये, और विक्की सिंह को कहा कि मेरा नाम लिख लीजिये। विक्की सिंह उठे और उन लोगों का नाम लिख लिये। मैंने विक्की सिंह से पूछा कि विक्की, आप बताये ये नाम लिखाने का क्या चक्कर हैं। विक्की सिंह ने बताया कि पिछले चार सालों से वे छठव्रत के खरना के दिन, उनलोगों के बीच छठव्रत की सामग्री( जैसे – सूप, साड़ी, नारियल, फल, दूध, ईख इत्यादि) बांटते हैं, जो छठव्रत करने में असमर्थ हैं। हमें ये सुनकर अच्छा लगा कि चलों आज के युवा भी इस प्रकार के कार्यों में निस्वार्थ भाव से लगे हैं। मैंने दूसरे सवाल पूछे कि कितने लोगों को आप बांटते हैं और ये पैसा कहां से आता हैं। विक्की ने बताया कि वे पिछले चार सालों से बांटते आ रहे हैं, शुरुआत 36 लोगों से हुई थी, इस बार 95 लोगों को देना हैं। जिसमें सूप उन्हीं के क्लब के रमेश शर्मा और दूध का इंतजाम मुन्ना सिंह कर देते हैं, बाकी सारी व्यवस्था उनकी यानी विक्की की हैं। सुनकर बहुत आनन्दित हुआ, देर रात हो चली थी, मैं घर पहुंचा। बहुत ही आत्मविभोर हुआ, कि छठव्रत का अर्थ ही सेवा भाव हैं, और ये युवा गर ऐसा करते हैं तो सचमुच वे प्रभु के बहुत ही निकट हैं, उसे और कुछ करने की क्या जरुरत हैं। उसके दुकान और आंगन में तो ऐसे ही सूर्यनारायण और छठि मइया खेलती होंगी। उसे कही जाने की कोई जरुरत ही नहीं। इसी सोच में दूसरे दिन हम फिर विक्की की दुकान पर पहुंचे, पता चला कि अब रजिस्ट्रेशन का काम पूरा हो चला हैं। रजिस्ट्रेशन का मतलब, जिन्हें छठव्रत की सामग्री देनी होती हैं, हिन्दुस्तानी क्लब के लोग, उसकी पूर्व में ही सूची बना लेते हैं, ताकि वितरण के दिन, कोई गड़बड़ी नहीं हो। मैं बहुत ही खुश था। अचानक, कुछ महिलाओं का समूह उनके दुकान पर आ गया। महिलाएं बोली कि उनका नाम भी लिख लिया जाय। दुकान पर बैठे, क्लब के सदस्यों के साथ विक्की ने कहा कि चूंकि जितने लोगों का इस बार देना हैं, उनकी सूची पूरी हो गयी हैं, अब हम देने में असमर्थ हैं, अब हम आपको अगले साल देंगे, पर शर्त यहीं हैं कि जिस दिन हमलोगों तिथि मुकर्रर करते हैं, अपना नाम सूची में दर्ज कराने की, उस तिथि तक आपलोग अपना नाम दर्ज करा दें। इन महिलाओं ने कहा कि आप चिंता मत करिये, अगले साल हम दस दिन पहले से भीख लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लेंगे..............। पर इस बार दे दीजिये। ये वो लोग थे, जिन्हें ईश्वर ने गरीब नहीं बनाया, जिनके हाथों व कानों में सोने के गहने साफ बता रहे थे, कि इन्हें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है, पर मुफ्त में छठव्रत करने का एक शायद अपना अलग आनन्द होगा, और मुफ्त में सूप, साड़ी वगैरह मिल जाये तो क्या गलत हैं। हद तो तब हो गयी कि ये महिलाएं, पूर्व विधानसभाध्यक्ष सी पी सिंह से पैरवी भी करवा ली। अब युवा क्या करते। उन्हें इनका नाम दर्ज करना पड़ा। यानी हवन करने में युवाओँ के हाथ जलने का खतरा साफ नजर आ रहा था, पर मुफ्त में छठव्रत के नाम पर बेवजह कष्ट प्रदान करनेवालों को दया नही आ रही थी। कमाल हैं, जिस देश में ऐसे ऐसे लोग हो, जो छठ के नाम पर भी, भीख मांगने की कला पर गर्व करते हो, और ये कहते हो कि हम एक साल बाद भीख मांगने के लिए, पहले से ही रजिस्ट्रेशन करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे तो क्या आपको लगता हैं कि ऐसे लोगों पर भगवान सूर्य नारायण और छठि मइया कृपा लूटायेंगी। जो लोग दूसरे के मुख का आहार छीनने में अपनी शान समझते हो, उस पर ईश्वर की दया कैसे हो सकती हैं। इन युवाओं ने तो उन बेसहारों और गरीबों के लिए कार्यक्रम चलाया, जिनको ईश्वर ने कुछ भी नहीं दिया, पर इन बेसहारों और गरीबों पर लालचियों को दया नहीं आ रही तो क्या कहेंगे। ऐसे हम उन बेसहारों और गरीबों को भी कह देते हैं कि आपको व्रत करने के लिए किसी भी चीज की जरुरत नहीं, बस आप इतना करिये कि किसी भी जलाशय अथवा कूएं पर चल जाइये। जिस दिन पहला अर्घ्य हो, उस दिन भगवान भास्कर के समक्ष दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो जाइये और एक लोटा जल लेकर अर्घ्य दे दीजिए और यहीं कार्य दूसरे दिन करिये। आपका व्रत सफल हो जायेगा और ईश्वर मनोवांछित वर अवश्य देंगे, क्योंकि भगवान केवल भाव देखते हैं, क्या आपको पता नहीं भगवान राम तो भाव में बहकर शबरी के जूठे बेर खा लिये थे तो ऐसे में आपके एक लोटे जल क्यों नहीं भगवान भास्कर, और छठि मइया अर्घ्य स्वरुप ग्रहण करेंगी। धन्य हैं। हिन्दुस्तानी क्लब के वे युवा जो इस मंहगाई में भी छवठ्रतियों की सेवा में स्वयं को समिधा बना डाला। ईश्वर की उन पर कृपा अवश्य हो, ईश्वर से हमारी यहीं प्रार्थना है।

Wednesday, November 6, 2013

लो, अब लताजी भी सांप्रदायिक हो गयीं.............

लो कर लो बात, अब विश्व की सुप्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर जी भी सांप्रदायिक हो गयी, क्योंकि उनकी दिली ख्वाहिश है कि नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और ये उद्गार उन्होंने अपने एक निजी कार्यक्रम में व्यक्त कर दिया। उन्होंने ऐसा बयान देकर, भाजपा के घुर विरोधियों की नींद उड़ा दी है। जो सोते जागते एक ही सपना देखते हैं कि कैसे नरेन्द्र मोदी का अहित हो। नरेन्द्र मोदी का अहित चाहनेवालों में केवल राजनीतिक पार्टियां ही नहीं, देश के वे कांग्रेस व नीतीश भक्त राष्ट्रीय चैनलों के पत्रकार और मालिक भी हैं, जिन्हें नरेन्द्र मोदी फूटी आंख भी नहीं सुहाते। बस इन्हें मौका मिलना चाहिए, नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मीन-मेख निकालने की। फिर क्या सारा काम-काज छोड़कर, नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मीन-मेख निकालने लगेंगे, भद्दी-भद्दी गालियां देंगे, कीचड़ उछालेंगे, विष-वमन करेंगे और उसके बाद भी, इनकी हरकतों पर आम जनता पर कोई असर, अगर नहीं पड़ा तो जनता को ही कटघरे में खड़ें कर देंगे और कहेंगे कि भारत की जनता तो एकदम खत्म हैं। इधर इन राजनीतिज्ञों और कांग्रेस – नीतीश भक्त पत्रकारों का एक ही सूत्री कार्यक्रम हैं – वो कार्यक्रम है सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी का विरोध करना। अभी कई चैनलों के मालिक और पत्रकार विधवा प्रलाप करने में लगे हैं, ये कहते हुए कि हाय, लताजी आप तो बहुत अच्छी थी, आपको तो हम भी बहुत मानते थे, पर आपने ये क्या कह दिया, आखिर क्यों आप नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनवाने पर तूली हैं, गर आप नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का इरादा रखती भी हैं, तो आपने इस इरादे को क्यों व्यक्त किया, अपने मन की बात, मन में ही रखती। अब हम कर ही क्या सकते हैं, हमारी तो आदत हैं, नरेन्द्र मोदी को गाली देने की और उन्हे भी गाली देने की जो नरेन्द्र मोदी के पक्ष में बयान देते हैं, इसलिए अब हम आपको भी नहीं छोड़ेंगे। इसलिए बयानवीर नेताओं के बयानों के आधार पर हम आप में भी मीन-मेख निकालेंगे, आपको भी नहीं छोड़ेंगे, जहां तक ताकत होगा, कांग्रेस भक्त और नीतीश भक्त पत्रकार और नेता, आपके खिलाफ भी विषवमन करने से बाज नहीं आयेंगे। ये अलग बात हैं कि इस विषवमन अभियान से आपका अहित होता हैं या नहीं होता, पर आपके खिलाफ हम अभियान शुरु कर चुके हैं और आज से आप भी सांप्रदायिक हो गयी, क्योंकि आप भी नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं, जिसका विरोध हम जन्म-जन्मातंर से कर रहे हैं। हमारे पास एक से एक उदाहरण है। एक राष्ट्रीय चैनल के पत्रकार का विधवा प्रलाप देखिए। हाल ही में नरेन्द्र मोदी बिहार आये, पटना ब्लास्ट में प्रभावित परिवारों से मिलने गये। मीडिया से बाद में उन्होंने बातचीत की, पर जब इस राष्ट्रीय चैनल के पत्रकार के किसी प्रश्नों का जवाब नरेन्द्र मोदी ने नहीं दिया, तो वह दोपहर में अपने एंकर के सवालों का जवाब न देकर, वो नरेन्द्र मोदी को ही भला-बुरा कहने लगा और अपनी बातों को सही करने के लिए कपिल सिब्बल तक का सहारा ले लिया, ऐसे हैं पटना के ये मठाधीश पत्रकार और ऐसा ही इनका चैनल। आजकल इस चैनल को नीतीश में केवल गुण ही गुण नजर आ रहे हैं और सारे दुर्गुण उसे नरेन्द्र मोदी में ही नजर आते हैं। इस चैनल की सायं और रात की विशेष बुलेटिन में नीतीश का गुणगान देखा जा सकता हैं, पर नीतीश की कुटिल मुस्कान और उसके द्वारा अपने विरोधियों के प्रति अभद्र भाषा का किया गया प्रयोग, इसे सुनायी नहीं देता, शायद उस राष्ट्रीय चैनल के प्रबंधक, या पटना में रह रहा उसका संवाददाता या एंकर बहरा हो जाता होगा, जब कुटिलता से लवरेज नीतीश, अपने विरोधियों के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे होते हैं। धन्यवाद दूंगा, आजतक व जी मीडिया को, जिसने सही को सही रखने का प्रयास किया। शायद यहीं कारण हैं कि इन दोनों चैनलों ने देश में अपनी साख पूर्व की तरह बरकरार रखी हैं, पर जरा उस वामपंथी विचारधारावाले निकम्मों, पत्रकारों और उसके प्रबंधकों को देखिये। जबसे लता जी ने नरेन्द्र मोदी के पक्ष में, वे प्रधानमंत्री के रुप में दीखे – बयान दिया। जदयू के एक नेता के सी त्यागी, कांग्रेस के राजीव शुक्ला, सपा और पता नहीं दीमक की तरह देश में कितनी पार्टियों के नेता हैं, जो कभी नगरपालिका के वार्ड आयुक्त का चुनाव तक नहीं जीत सकते, लता जी के खिलाफ अनाप-शनाप बयान दे डाला। जिसकी जितनी निंदा की जाय कम है। यहीं नहीं इन नेताओं ने मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ दी। ये अपनी अभिव्यक्ति के लिए तो एडी-चोटी एक कर देते हैं, पर लता मंगेशकर जैसी महान गायिका के प्रति घटिया स्तर के शब्दों का प्रयोग करने से नहीं चूकते। बयान देखिये इन घटियास्तर के नेताओं का – सुरसाम्राज्ञी को सलाह देते हैं कि वे राजनीति से दूर रहे। कमाल हैं देश को रसातल में ले जानेवाले ये नेता और इनकी पार्टी राजनीति में रहे, पर देश को मान-सम्मान बढ़ानेवाली लताजी राजनीति से दूर रहे। वो अपनी भावनाओं को भी अभिव्यक्त नहीं करें। ये घटियास्तर के नेता, जिनकी औकात नहीं कि वे जहां रहते हो, वहां ही रह रहे किसी चरित्रवान व्यक्ति की आंखों में आंख डालकर बात कर सकें। ये लता जी को राजनीति का एबीसीडी सीखाने चल पड़े और देखिये इन पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्षों को जो इन सड़क-छाप नेताओं के खिलाफ एक्शन भी नहीं लेते कि वे लता जी के खिलाफ क्यूं इस प्रकार का वक्तव्य दे रहे हैं। यानी धर्मनिरपेक्षता का सारा ठेका, इन्होंने ही ले रखा हैं, बाकी सभी सांप्रदायिक हो गये। लानत हैं, इन नेताओं और घटियास्तर के उन पत्रकारों को, जो घटियास्तर का सोच रखते हैं और लताजी जैसी महान गायिका पर कीचड़ उछालने से नहीं चूकते। ऐसे भी कीचड़ उछालने वाले और कर ही क्या सकते हैं। जिन्होंने देश में महंगाई, भ्रष्टाचार और अपने हित में दंगा करवाकर देश को नरक बना डाला हो, उनसे हम उम्मीद ही क्या कर सकते हैं। लताजी आप, आप हैं, आप ने अपनी गीतों से कभी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरुजी को रुलाया हैं। आपने देश ही नहीं बल्कि विश्व में रहनेवाले करोड़ों – करोड़ भारतीयों का मान बढ़ाया हैं। भारतीय सैनिकों के मनोबल बढाने के लिए आपने क्या नहीं किया। कभी मां, तो कभी बहन, तो कभी बेटी, पता नहीं कितने रिश्तों को आपने गीतों में जीया हैं, आप देश की शान हैं, आप भारत रत्न हैं, और भारत रत्न को कैसे सम्मान दिया जाता हैं, गर यहां के नेता नहीं जानते, पत्रकार नहीं जानते तो आप इन्हें माफ कर दीजिये, क्योंकि आपका दिल बड़ा हैं, आपके गीत लोगों को जोड़ते हैं पर ये तोड़नेवाले नेता क्या जाने, कि आपने किस भाव से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। लता जी आपको अपनी भावना जन-जन तक रखने के लिए कोटिशः धन्यवाद, साथ ही नरेन्द्र मोदी के घुरविरोधियों को उनकी औकात बताने के लिए शत् शत् नमन।

Sunday, November 3, 2013

जो राम को पा गया, जो राम में समा गया, उसी ने दिवाली मनाया.......................

जो राम को पा गया,
जो राम में समा गया,
उसी ने दिवाली मनाया,
किसी अन्य को आज तक मैंने दिवाली मनाते देखा ही नहीं। दिवाली क्या हैं, आनन्द को महसूस करने, आनन्द में खो जाने का एक विशिष्ट पर्व। पर लोग इस विशिष्ट पर्व में भी आनन्द से विमुख हो जाय, तो ऐसे लोगों को क्या कहेंगे। शायद ऐसे ही लोगों के बारे में कबीर ने कहा –
पानी बिच मीन पियासी,
मोहि सुन सुन आवै हांसी।
घर में वस्तु नजर नहीं आवत,
बन बन फिरत उदासी।
आत्मज्ञान बिना जग झूठा,
क्या मथुरा, क्या कासी।
कबीर ने साफ कह दिया कि जिस परम आनन्द को प्राप्त करने के लिए, लोग इधर से उधर भटक रहे हैं, वो तो घर में ही हैं, पर लोग परम आनन्द को प्राप्त करने के लिए जीवन भर वो सब करते हैं, जिसे करने की कोई जरुरत नहीं, जरुरत हैं आत्मज्ञान की ओर ध्यान देने की, क्योंकि आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य स्वयं को प्रकाशित कर लेता हैं, फिर मनाते रहिए, आप प्रत्येक दिन दिवाली, कौन रोक रहा हैं आपको।
कहा भी गया हैं ------
सदा दिवाली संत की,
आठों प्रहर आनन्द,
अकलमता कोई उपजा,
मिले इँद्र को रंक
अर्थात् संतों को जब आत्मसुख प्राप्त करना होता हैं, या स्वयं को प्रकाशित करना रहता हैं, परम आनन्द को प्राप्त करना होता हैं तो बस अपने हृदय में झांक लेते हैं, और सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं, पर देवताओं के राजा होने के बाद भी इँद्र को वो सुख प्राप्त नहीं होता, जो संतों को सहज ही प्राप्त होता है।
जरा मीरा को देखिये, जब मीरा को उनके गुरुदेव से रामरुपी धन प्राप्त हो जाता है, तो वह कितना परम आनन्दित हो जाती हैं। वो कैसे स्वयं को धन्य करते हुए, अतिप्रसन्न होकर, गाने लगती हैं, वो भी आत्मसुख प्राप्त करते हुए...............
पायोजी मैने रामरतन धन पायो,
वस्तु अमोलक दी मेरे सद्गुरु कृपा कर अपनायो,
खर्च न खूटे, चोर न लूटे, दिन-दिन बढत सवायो,
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरषि हरषि यश गायो,
सत की नाव खेवटिया सद्गुरु, भवसागर तर आयो
पायो जी मैंने रामरतन धन पायो,
कमाल हैं, गुरु से मिला भी तो क्या। राम रुपी धन। सोना-चांदी, हीरा-जवाहरात नहीं। आखिर रामरुपी धन ही मीराबाई को क्यों मिला, क्योंकि मीरा को परम आनन्द चाहिए थी, और परम आनन्द राम में ही समाया हैं, भौतिक सुख अथवा भौतिक संसाधनों में नहीं। मीरा का गर्व देखिये – ये ऐसा धन हैं, जो खर्च ही नहीं होता, खर्च करने की सोचे तो दिन –दिन बढ़ता जाता हैं. अंततः मीरा ये भी कहती हैं कि सत्य रुपी नाव को सिर्फ एक अच्छा गुरु, नेक गुरु, स्वार्थ और धन के प्रति लालच न रखनेवाला गुरु ही भवसागर पार करा सकता हैं, राम से साक्षात्कार करा सकता हैं, इसलिए मुझसा धन्य कौन है।
भारतीय वांग्मय कहता हैं
अधमाः धनम् इच्छन्ति
धनम् मानम् च मध्यमाः।
उत्तमाः मानम् इच्छन्ति
मानो हि महतां धनम्।।
अर्थात् जो दुष्ट होते हैं, वे सिर्फ धन की कामना करते हैं, जो मध्यमवर्गीय होते है वे धन और मान दोनों की कामना करते हैं पर जो सर्वोतम लोग हैं, वे कभी धन की कामना नहीं करते, वे तो सिर्फ सम्मान को ही सर्वोतम धन मानते हैं। इसलिए अपने देश में धन को उतना मह्त्व दिया ही नही गया। पर लोग दिवाली को धन से जोड़कर देखते हैं, दिवाली धन की कामना का पर्व नहीं, बल्कि परम आनन्द को प्राप्त करने का पर्व हैं। जरा सोचिये, एक छोटा सा मोहनदास, महात्मा कैसे बन गया, क्या धन की लालच के कारण, अथवा देश के लिए सर्वस्व का त्याग, और राम के प्रति उसकी अटूट श्रद्धा ने उसे दिव्यता प्रदान कर दी। भला दीपक जलायेंगे तो घर प्रकाशित होगा, पर मन को प्रकाशित करने के लिए आपने कुछ सोचा हैं। आप कैसे प्रकाशित होंगे, इसकी परिकल्पना की हैं, गर नहीं तो सोचिये। ये प्रकाश पर्व, प्रतिवर्ष आकर आपको ऐहसास कराता हैं, पर आप ऐहसास करने की जरुरत नहीं समझते। बस दिवाली आई, गणेश-लक्ष्मी की पूजा की, पटाखे छोड़े, विदेशी वस्तुओं से घर को सजा दिया और दिवाली हो गयी। ऐसा तो हम बरसों से करते आये हैं, फिर भी हमें कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ, और बगल का पड़ोसी चीन, हमसे आगे निकल गया। आखिर ऐसा क्यूं हुआ। आखिर आप चेतेंगे कब, जब सब कुछ हाथ से निकल जायेगा तब, हमारी प्राचीन संतों व ऋषियों की विशिष्ट परंपरा आपसे कुछ कहती हैं, कहती हैं कि आप इस मूलमंत्र के भाव को समझिये। तोता जैसा रटिये नहीं, चलिये। सदियों से भारत के कण – कण में ये मंत्र गूंजता आया हैं, वो आपसे कहता हैं कि अपने मन में ये भाव लाइये और फिर दीपावली मनाइये तभी इस पर्व की सार्थकता को आप समझ पायेंगे, तभी भारत विशिष्ट हो पायेगा, अन्यथा नहीं।
असतो मा सदगमय
तमसो मा ज्योर्तिगमय
मृत्योर्मां अमृतंगमय

Thursday, September 19, 2013

महंगाई बढ़ावे सरकार हो, सैया खिलाव कमलवा.................

मोदी के आइल बहार हो,
सैया लाव कमलवा,
महंगाई बढ़ावे सरकार हो,
सैया खिलाव कमलवा.................
ये लोकगीत के बोल रांची में खूब सुनने को मिल रहे हैं। इन लोकगीतों में महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर वर्तमान सरकार को कोसा जा रहा हैं, वहीं नरेन्द्र मोदी में आस्था व्यक्त भी की जा रही हैं, लोक कलाकारों को लगता हैं कि सरकार बदलने से उन्हें राहत मिलेगी। जरा देखिये गीत के दूसरे बोल...........
मोदी के खिलाफ मत बोल, मोरे सैया,
देशवा के नाक बचइह मोरे सैया,
अँगना में कमल खिलइह मोरे सैया.........
इस लोक गीत में साफ स्पष्ट हैं कि एक महिला वर्तमान सरकार के करतूतो से खफा हैं और महिला अपने पति से साफ कहती हैं कि गर आपने मोदी के खिलाफ उसके सामने कुछ कहा तो ठीक नहीं होगा, वो ये भी कहती हैं कि देश का सम्मान अब बचाने का वक्त हैं, इसलिए इस बार किसे वोट देना हैं, आप समझ लीजिये।
लोकगीत हमेशा से धारदार हथियार रहे हैं, चुनावी जंग में। ज्यादातर लोकगीत पार्टी और दलों के लोग बनवाते और कैसेट - सीडी तैयार कर चलवाते हैं, पर यहां स्थिति उलट हैं। यहां किसी दल ने इन गीतों को तैयार नहीं किया, बल्कि आम लोगों ने गीत बनायी और शुरु हो गये - ढोल-हारमोनियम-करताल और झाल के सहारे, अपने मन को खुश करने। न तो इन्हें किसी दल से मतलब हैं और न किसी से राग-द्वेष, मन में आया तो शुरु हो गये। इधर इनकी जूबां पर नरेन्द्र मोदी कुछ ज्यादा ही आ बसे हैं। इनका साफ कहना हैं कि भाई हमलोग रोज कमानेवाले और खानेवाले हैं. महंगाई ने उनका जीना दूभर कर दिया। सरकार के पास हम जा नहीं सकते और सरकार उनकी बात नहीं सुन सकती, इसलिए हमलोग शुरु हो गये - अपने लोकगीतों द्वारा अपने मन की बात कहने.............। कुछ आस बंधी हैं, नरेन्द्र मोदी से, लगता हैं कुछ ये करेंगे, पर ये भी गर जीना दूभर करेगे तो देखेंगे। लेकिन अभी तो मोदी ही मोदी हैं.................
टीवी पे मोदी,
अखबार में मोदी
शहर में मोदी
अरे, गांव में मोदी
मोदी के आइल बहार हो, सैया.................
चलिए भाजपाइयों के लिए, एक तरह से खुशखबरी हैं कि यहां नरेन्द्र मोदी की जादू का असर दीखता जा रहा हैं पर कांग्रेस के लिए स्थिति सुखद नहीं दीखती, जोर लगाना पडे़गा, क्योंकि महंगाई और भ्रष्टाचार ने आम जनता को जीना दूभर कर दिया हैं, शायद यहीं कारण हैं कि जनता कांग्रेस से दूर और भाजपा के नजदीक होती जा रही हैं, इसलिए सभी जगह मोदी कथा और चर्चाएं ही दीखती हैं, और अब तो हद हो गयी, लोकगीतों में भी मोदी का असर इतनी जल्द दीखेगा, हमें मालूम नहीं था, सचमुच ये आश्चर्यजनक हैं।

Wednesday, August 28, 2013

श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे ..............................

श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे ।
हे नाथ नारायण वासुदेव ।।
श्रीकृष्ण यानी समस्तकलाओं से युक्त भगवान विष्णु के अवतार। साक्षात् नारायण। जिनका जन्म ही मानवकल्याण के लिए हुआ। तभी तो किसी ने स्वरबद्ध होकर कह डाला ---
धन्य कंस का कारागार।
हरि ने लिया जहां अवतार।।
द्वापर में देवकी के गर्भ से उत्पन्न, कंस के कारागार में जन्मे। इस महामानव ने वो संदेश दिया, जिसकी परिकल्पना किसी ने नहीं की थी।
संपूर्ण विश्व को योग, कर्म, सांख्य और जीवन के विभिन्न पहलूओं पर स्वयं के जीवन द्वारा परिभाषित करनेवाले श्रीकृष्ण से आप राजनीति ही नहीं बल्कि कुटनीति के गुण भी सीख सकते हैं। यहीं नहीं शाश्वत प्रेम और संगीत के माधुर्य भाव को भी आप उनसे ग्रहण कर सकते हैं।
कहनेवाले तो ये भी कहते हैं कि श्रीकृष्ण में क्या नहीं हैं................
गर रहीम की बात करें तो वे साफ कहते हैं..................
जे गरीब पर हित करे,
ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो,
कृष्ण मिताई जोग।।
यानी गरीबों का हित चाहनेवाला, भला श्रीकृष्ण से बड़ा कौन हो सकता हैं, मित्रों पर कृपा लूटानेवाला भला श्रीकृष्ण से बड़ा कौन हो सकता हैं। सचमुच ये रहीम की आंखे थी, जो कृष्ण को ढूंढ ली थी, वो भी दोस्ती और गरीबी में।
जरा रसखान को देखिये...........
मानुष हौ तो वहीं रसखान, बसौं ब्रज गोकुल गांव के ग्वारऩ।
जो पशु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।।
पाहन हौ तो वहीं गिरि को, जो लियो कर छत्र पुरन्दर कारऩ।
जो खग हौं तो बसेरो करौं, मिलि कालिन्दि कुल कदम्ब की डारन।।
रसखान साफ कहते हैं कि गर मैं जन्म लूं और यदि मनुष्य बनु तो मैं गोकुल के ग्वालों और गायों के बीच जीवन बिताना चाहूंगा। यदि में बेबस पशु बनूं तो मैं नंद की गायों के साथ चरना चाहूंगा। गर मैं पत्थर बना तो उस पहाड़ का पत्थर बनूं जहां श्रीकृष्ण ने इन्द्र के गर्व को चूर करते हुए अपनी अंगूली पर उस गोवर्द्धन पहाड़ को उठा लिया था और यदि मैं पक्षी बनूं तो मैं यमुना के तट पर कदम्ब वृक्ष पर जीवन बसर करनेवाला बनूं।
यानी श्रीकृष्ण के प्रति अटूट भक्ति और श्रद्धा का भाव क्या हो, कोई सीखना चाहे तो रसखान से सीखे। सचमुच श्रीकृष्ण ऐसे हैं ही, जिनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इस बार की जन्माष्टमी भी खास हैं, इस बात को लेकर नहीं कि ग्रह-नक्षत्र-योग-लग्नादि का महासंयोग बना हैं, बल्कि इसलिए कि देश और काल की परिस्थितियां बताती हैं कि आज श्रीकृष्ण कितना जरुरी हैं...............

Sunday, August 18, 2013

सावधान - पत्रकारों, अधिकारियों, नेताओं और बिल्डरों के नापाक गठजोड़ झारखंड को निगलने पर लगे हैं..........


आजकल जिसे देखों, एक चैनल खोल रहा हैं। शुरु में तो चैनल खोलने के इस अभियान को वो अपना शौक करार देता हैं, पर सच्चाई ये हैं कि वो इस चैनल की आड़ में स्वयं के द्वारा पूर्व में चलाये जा रहे नापाक हरकतों की रक्षा का काम लेता हैं। वो अपनी हर बेइमानी और गंदी हरकतों को छुपाने का कार्य, या उसे सहारा देने का कार्य चैनल में कार्य कर रहे पत्रकारों से ही करवाता हैं और स्वयं को दुनिया की नजर में जगद्गुरु शकंराचार्य की श्रेणी में ला खड़ा करता हैं। ऐसे लोगों को बचाने का काम राज्य के नेता, दूसरे अखबारों में काम करनेवाले संपादक, विभिन्न प्रशासनिक अधिकारी बखूबी करते हैं और इसके एवज में वे चैनल चलानेवालों से अनुप्राणित भी होते हैं। इसके कई उदाहरण भी हैं, गर इसकी सीबीआई जांच अथवा ईमानदारी से निगरानी जांच हो जाये तो ये सभी जेल के अंदर भी होंगे, पर होना क्या हैं, इस राज्य में कुछ भी नहीं होता.........।
एक बात और फिलहाल संजीवनी बिल्डकॉन प्रकरण पर सीबीआई जांच चल रही हैं। मैं पूछता हूं कि सीबीआई जांच संजीवनी बिल्डकॉन पर ही क्यों, इसका दायरा और बढ़ना क्यूं नहीं चाहिए। क्या राज्य सरकार व सीबीआई इस बात का रहस्योद्घाटन होने का इंतजार कर रही हैं कि अब और कौन बिल्डर, नेता अथवा प्रशासनिक अधिकारी जनता के सपनों को तोड़कर, माल इकट्ठा कर चुकी हैं। खैर, जिन्हें जो करना हैं वो करें। अब हम आपको बताते हैं कि कैसे पत्रकारों, अधिकारियों, नेताओं और बिल्डरों के नापाक गठजोड़ झारखंड को निगलने पर लगे हैं..........
ये उस समय की बात हैं जब मैं न्यूज 11 में कार्य कर रहा था। उसी समय कशिश से मुझे बुलाहट हुई। चैनल हेड गंगेश गुंजन और बिल्डर सुनील चैौधऱी ने मुझे कशिश से जोड़ा और मैं अपना कार्य करने लगा। इसी दौरान चैनल का मालिक बिल्डर सुनील चौधरी आफिस में आता और खूब शेखी बघारता, कहता वो अपनी शौक के लिए चैनल खोला हैं, फिर बार - बार लोगों को ये भरोसा दिलाता कि चैनल से संबंधित जो भी कार्य अथवा शिकायत हो, वो इसके लिए चैनल हेड गंगेश गुंजन से संपर्क करें और बाद में अपनी ही इस बात से मुकर जाता और अपने अन्य मातहतों से गंगेश गुंजन को ही सबकी नजरों से गिराने का कार्य करता। मैं इन बातों को अच्छी तरह जानता था यहीं कारण हैं कि उसके द्वारा दिये गये भोज या अन्य कार्यक्रमों में, मैं शामिल नहीं होता। ये वहीं बिल्डर हैं जो हमारे सामने कहा था, उस वक्त गुंजन जी भी मौजूद थे - कि हम क्या करें विजय भास्कर एडिटर इन चीफ हैं, पर कुछ काम नहीं करते हैं और मुफ्त में वेतन ले जाते हैं। ये वहीं बिल्डर था - जब उसकी हालत खराब थी तब तत्कालीन भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री मथुरा महतो के पास गया था और शेखी बघारी थी कि हमारे यहां इमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तियों की फौज हैं, जब मथुरा महतो ने हमे देखकर कुछ बाते की थी। पर आज देखिये..........इस बिल्डर के सुर बदल गये हैं। कहा जाता हैं कि समय देखकर, बाते करना धूर्तों के लक्षण हैं। ऐसे में कोई धूर्त व्यक्ति इस प्रकार की हरकतें करता हैं तो ये समयानुकूल भी हैं, क्योंकि उससे अच्छाई की आशा करना भी मूर्खता हैं।
अब सर्वप्रथम इन दिनों जो कशिश में चल रहा हैं, उसकी बात...................
इधर कशिश में कर्मचारी हटाओ अभियान चल रहा हैं। ये कर्मचारी हटाने का काम शुरु हुआ हैं। 8 जुलाई 2013 से और ये जो शुरु हुआ अभी रुकने का नाम नहीं ले रहा। किसी को टर्मिनेट किया जा रहा हैं तो किसी से जबर्दस्ती इस्तीफे लिये जा रहे हैं, इसी दरम्यान टर्मिनेट अथवा इस्तीफे लेनेवाले का जाति मैथिल ब्राह्मण निकल जा रहा हैं तो उससे ये कहा जा रहा है कि गलती से आपको ऐसा कहा गया आप काम करते रहेंगे। हम आपको बता दें कि बिल्डर मैथिल ब्राह्मण हैं और मैथिल ब्राह्मणों व उससे जूड़े इस जाति के अधिकारियों को वो उपकृत करता रहता हैं साथ ही इन्ही अधिकारियों से वो समय समय पर उपकृत भी होता रहता हैं। हम आपको बता दे कि झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अमिताभ चौधरी भी मैथिल ब्राह्मण हैं और इस बिल्डर ने जेएससीए की जमीन पर फाइभ स्टार होटल बनाने का काम भी लेने का मन बनाया हैं, जिसकी स्वीकृति अमिताभ चौधरी ने दे दी हैं, पर कई लोगों के इस पर प्रश्नचिह्न लगा दिये जाने से इस पूरे मामले पर ब्रेक लगता दीख रहा हैं, फिर भी पिछले दरवाजे से मैथिल ब्राह्मण अमिताभ चौधरी ने सुनील को जेएससीए के कार्य में फायदा दिलाने का भरोसा दिलाया हैं। दुसरी ओर बिल्डर सुनील चौधरी ने इसके लिए अमिताभ चौधरी का एक बहुत बड़ा काम किया हैं। सुनील ने अपने मातहत काम करनेवाले नये - नये एडीटर दिलीप श्रीवास्तव नीलू से एक पत्र लिखवाया हैं जो पत्र अमिताभ चौधरी चाहते थे, जिसके आधार पर वे जेएससीए से जूड़े सदस्य सुनील सिंह को हटा सकें, पर वे हटा पायेंगे या नहीं ये तो वक्त बतायेगा, पर पत्र को देखकर साफ लगता हैं कि दिलीप श्रीवास्तव नीलू ने पत्रकारिता के नियम और कानून को ही ताक पर रख दिया और सिर्फ अपने मालिक बिल्डर सुनील चौधरी के आदेश के तहत वो काम कर दिया जिसकी इजाजत पत्रकारिता नहीं देता। धिक्कार हैं ऐसे लोगों पर जो पत्रकारिता की धज्जियां उड़ा रहे हैं और वो भी सिर्फ दो पैसों के लिए। यहीं नहीं बिल्डर सुनील चौधरी ने ही केवल झूठी शान और फाइव स्टार होटल बनवाने की आड़ में एकाएक पांच लोगो को अपने चैनल से बाहर का रास्ता दिखाया - ये थे गंगेश गुंजन, कृष्ण बिहारी मिश्र, शैलेन्द्र कुमार, नेहा पांडेय और प्रशांत कुमार। गंगेश गुंजन की गलतियां ये थी कि वो बिल्डर के नापाक इरादों के आगे नहीं झूके, यानी जो काम दिलीप श्रीवास्तव नीलू ने किया वो काम गंगेश गुंजन करने को तैयार नहीं थे। कृष्ण बिहारी मिश्र को इसलिए हटाया गया क्योंकि 11 अप्रैल को प्रभात खबर के संपादक एवं मैथिल ब्राह्मण विजय पाठक को कृष्ण बिहारी मिश्र ने सूचना भवन में औकात बतायी थी और विजय पाठक ने उसी दिन कृष्ण बिहारी मिश्र के चैनल से  हटाने का अनुरोध अपने आका मैथिल ब्राह्मण सुनील चौधरी से की थी। उसी दिन तय हो गया था कि कृष्ण बिहारी मिश्र को हटाना तय हैं पर इंतजार किया जा रहा था उस वक्त का कि कब वो दिन आये और वो दिन आ गया। जब गंगेश गुंजन ने बिल्डर सुनील चौधरी को ये कह दिया कि वे डमी एडीटर नहीं हैं कि जो चाहे वो उनसे करा ले। फिर क्या था गुस्से से तमतमाया मैथिल ब्राहमण सुनील चौधरी, अपने अन्य मैथिल ब्राह्मणों अमिताभ चौधरी और संपादक विजय पाठक से राय ली और इन्हीं के कहने पर 7 और 8 जुलाई को अपना चैनल बंद कर दिया। आफिस में ताले लटका दिये। साथ ही वहां कार्य कर रहे सभी कर्मचारियों को 8 जुलाई को अपने केडीएल ( कशिश डेवलपर्स लिमिटेड ) में बुलाया और भाषण दिया कि जो लोग यहां कांम कर रहे हैं, और जो इस सभा में मौजूद हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर निकाला नहीं जायेगा, सभी काम करेंगे, वे बहुत ही दयालु हैं, किसी को डरने की जरुरत नहीं, पर जरा देखिये आज की स्थिति क्या हैं। अब तक 20 लोगों से भी ज्यादा लोगों को टर्मिनेशन के नाम पर तो किसी से जबर्दस्ती इस्तीफे ले लिये गये। हमें तो कशिश में कार्य कर रहे कई लोगों पर दया आती हैं, क्योंकि उनकी स्थिति वैसी ही हैं, जैसे एक कसाई के यहां कई बकरें और बकरियों का झूंड  बंधा होता हैं और कसाई एक - एक कर उन बकरें-बकरियों को समय - समय पर काटता चला जाता हैं। यहां काम कर रहे किसी भी कर्मचारी को कब बाहर का रास्ता दिखा दिया जाय। कुछ कहा नहीं जा सकता। फिर भी ये कर्मचारी बेचारे बनकर अपना काम करते जा रहे हैं ये सोचकर कि, उनकी नौकरी सुरक्षित रहेंगी। 
यहां काम कर रहे उच्चस्तर पर ऐसे -ऐसे भयंकरानंद हैं कि मैं अपने ब्लाग पर लिख नहीं सकता। उनकी रासलीला न्यूज 11 से लेकर कशिश तक गूंजी हैं। फिलहाल वहां कार्यरत दिलीप श्रीवास्तव नीलू भी उनकी रासलीला के बार में जानते हैं कि कैसे न्यूज 11 में कार्यरत एक युवा ने कशिश की ईट से ईंट बजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उस भयंकरानंद को भी पता है कि जब वो युवा उसकी रासलीला पर अपनी भृकुटि तानी थी तो कौन उसे बचाया था, पर किया ही क्या जा सकता हैं। आज भयंकरानंद, दिलीप श्रीवास्तव नीलू के साथ मिलकर कशिश को उच्चस्तर पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। भला चरित्रहीन व्यक्ति भी देश और समाज अथवा चैनल को नयी दिशा दिया हैं। ये तो गर्त में ले जाने के लिए पैदा लिये हैं।
यहीं पर कार्य कर रहा एक दूसरा भयंकरानंद हैं जो गंगेश गुंजन जी के घर जाकर उनकी गणेश परिक्रमा करता रहता था पर जैसे ही उसे सुनील की याद आयी, फिलहाल सुनील चौधरी की परिक्रमा करने में लगा हैं, पर मै जानता हूं कि वो कब तक सुनील चौधरी की परिक्रमा करेगा। इसे तो आज गंगेश गुंजन की हरी झंडी मिली ये सब कुछ छोड़कर गंगेश जी के चरणोदक पीने घर पर आ जायेगा।

Monday, July 1, 2013

झारखंड की जनता की छाती पर मूंग दलने को मचलते झामुमो और कांग्रेस के पत्नीभक्त नेता...................................

झारखंड के कांग्रेस-झामुमो से जूड़े नेताओं-विधायकों की पत्नियां, बेटे-बेटियां, दामाद और उनके लटके - झटके दुखी है। जब से भाजपा-झामुमो-आजसू की खिचड़ी सरकार झारखंड में गिरी, तब से इनके हाल बेहाल हैं, क्योंकि इनके नेता बार-बार कहा करते थे, कि झामुमो आज भाजपा से नाता तोड़े और लीजिये कल झामुमो और कांग्रेस की सरकार बन कर तैयार, पर ये क्या राष्ट्रपति शासन के छह महीने बीतने को आये पर अभी तक झामुमो-कांग्रेस की राज्य में सरकार नहीं बनी। बेचारे हेमंत के हाड़ में हल्दी नहीं लगी, बेचारे मुख्यमंत्री नहीं बने, क्योंकि उनकी दिली तमन्ना हैं कि एक - दो महीने के लिए ही सही कम से कम मुख्यमंत्री की सूची में उऩका नाम तो अब लिख ही दिया जाना चाहिए, पर सफलता नही मिल रही, लेकिन कांग्रेस के पूर्व झारखंड प्रभारी शकील अहमद ने उनके अरमानों पर बड़ा ध्यान दिया और उनकी बाते अपने अन्नदाता राहुल तक पहुंचा दी, साथ ही ये भी बता दिया कि गर कांग्रेस ने हेमंत के हाड़ में हल्दी लगवा दी तो देर सबेर इसका फायदा कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव में अवश्य मिलेगा। जैसे ही शकील के सरकार बनाने की हवा देने के बाद कांग्रेस - झामुमो के नेताओँ व विधायकों को मिली, बेचारे खुशी से पगला गये। इनकी पत्नियां, बेटे-बेटियां-दामाद खुशी से पागल हो गये। फिर सरकार बनेगी, दोनों हाथों में लड्डू होंगे, जैसे पूर्व की सरकार में शामिल मंत्रियों, विधायकों की पत्नियां, बेटे-बेटियां और दामाद विदेश यात्रा का आनन्द लेते थे, अब वे भी 18 महीनों में सारा कसर निकाल लेंगे। उन्होंने कोई पाप किया हैं क्या। उन्हें भी विदेश यात्रा और दुनिया का सारा सुख लेने का अधिकार हैं, जनता ने उन्हें मौका दिया हैं, इसका फायदा क्यों न उठाये। और लीजिये इन्हीं सारी तिकड़मों के लिए सरकार बनाने का दौर चलना शुरु हो गया हैं। हां एक बात और हम तो ये लिखना भी भूल रहे हैं, पर अब याद आ गया हैं, लिख देता हूं। यहां का मीडिया जगत भी चाहता हैं कि राष्ट्रपति शासन के बजाय जनता के प्रतिनिधियों का शासन हो, क्योंकि वो जानता हैं कि यहां के जनप्रतिनिधियों को अपनी अंगूलियों पर नचाकर, यहां के प्रशासनिक अधिकारियों से अपने हित में वो काम कराया जा सकता हैं, जो फिलहाल राष्ट्रपति शासन में होता नहीं दीखता, चाहे वो विज्ञापन से संबंधित ही मामला क्यूं न हो। राष्ट्रपति शासन में विज्ञापन मीडिया को उतने नहीं मिलते, जितना की अर्जुन मुंडा के शासनकाल मे अथवा कांग्रेस -झामुमो के शासनकाल में संभव है, और गर किसी कारण से विज्ञापन नहीं मिला तो फिर अपना ब्लैकमेलिंग का धंधा हैं ही। इसलिए यहां का मीडिया जगत भी दिलोजां से चाहता हैं कि यहां सरकार बने, चाहे वो पांच दिन के लिए ही क्यूं न हो।
इस सरकार बनाने में, जनहित और राज्यहित की बात खूब हो रही हैं, पर जरा सोचिये ये जनहित और राज्यहित की बात करनेवालों का चरित्र क्या हैं। सबसे पहले बात कांग्रेस की - यहां काँग्रेस के नेता राजेन्द्र प्रसाद सिंह हैं जो अर्जुन मुंडा के शासन काल में नेता प्रतिपक्ष थे। इनके गुट ने बी के हरिप्रसाद, प्रभारी, झारखंड कांग्रेस के रांची आगमन पर क्या गुंडागर्दी दिखायी ये बताने की जरुरत नहीं। इन्हीं के बेटे हैं - अनूप सिंह जो प्रदेश में एक बड़े पद पर हैं और अपने ही विधायक मन्नान मल्लिक को वो सबक सिखाया कि पूछिये मत। आज भी रांची कोतवाली थाना में इनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हैं, जरा सोचिये ऐसे ऐसे लोग सत्ता में होंगे तो राज्य और जनता का कितना हित होगा। अब जरा झामुमो की बात कर ले। इनके सुप्रीमो है- दिशोम गुरु शिबू सोरेन। ये हमेशा गर्त में जा रहे कांग्रेस को संभालते हैं। पहली बार रिश्वत लेकर नरसिंहा राव की सरकार बचानेवाले शिबू सोरेन की महिमा निराली हैं। इन्हीं की बहू सीता सोरेन हैं, जो सीबीआई के शिकंजे में हैं, जिन्होंने वोट बेचने की अपनी पार्टी की परंपरा का खूब निर्वहण किया और उन पैसों से क्या किया। झारखंड की जनता को मालूम हैं। ऐसे तो इनके सारे विधायक वोट बेचने की परंपरा में पीएचडी हासिल कर ली हैं। इसी पार्टी की कृपा से कई राज्यसभा के सांसद बन गये और कई झारखंड को चारागाह समझ कर यदा कदा झारखंड का परिभ्रमण करते रहते हैं। 
सवाल उठता हैं कि जिस प्रांत के नेताओं का चरित्र इस प्रकार का हो। वहां सरकार बने अथवा न बने क्या फर्क पड़ता हैं। आखिर जनहित और राजहित में सरकार बनाने की बात करनेवाले ये जनता को इतना बेवकूफ क्यों समझते हैं, कि जैसे जनता जानती ही नहीं। अरे जनता यहां की सब जानती हैं तभी तो ऐसे लोगों को अपना नेता चूनती हैं ताकि वो विधानसभा पहुंचकर उनकी छाती पर मूंग दल सकें, और इधर कई महीनों से जनता की छाती पर मूंग नहीं दली गयी, इससे जनता भी परेशान हैं। भला एक व्यक्ति को जनता की छाती पर मूंग दलने का अधिकार जनता ने तो नहीं दिया, इसलिए यहां के सभी विधायकों और मंत्रियों को अधिकार हैं कि वे झारखंड की जनता के छाती पर मूंग दलकर, अपनी पत्नियों, बेटे-बेटियों और दामाद-बहूंओं के लिए सात पुश्तों तक पूंजी जमा कर लें, ताकि इनके मरने के बाद, इनकी आत्मा को कोई मलाल न हो, कि वे झारखंड में जन्म लिये पर झारखंड को मुहम्मद गोरी और गजनी की तरह लूट न सके।

Tuesday, June 18, 2013

बिहार के दंगाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गुंडागर्दी.............................

आज बिहार में भाजपा विश्वासघात दिवस मना रही हैं, पूरे राज्य में बिहार बंद का आह्वान किया हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को दंगाई बतानेवाला बिहार का दंगाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गुंडागर्दी देखिये। वे अपने जदयू कार्यकर्ताओं को आह्वाऩ कर रहे हैं कि वे सड़कों पर उतरे। भाजपा कार्यकर्ताओं का मुकाबला करें और इनके आह्वाऩ पर जदयू कार्यकर्ताओं ने वहीं किया जो उनके आलाकमान नीतीश ने कहा - जमकर भाजपा कार्यकर्ताओं पर लाठियां बरसायी। भाजपा कार्यकर्ताओॆं को घायल कर दिया। इनके कार्यकर्ता राइफल लेकर भी पहुंचे, ये राइफल लेकर सड़कों पर भजन गाने के लिए तो आये नहीं थे। अंततः जदयू के इस गुंडागर्दी और स्वयं पर लाठियां बरसते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं ने वहीं किया जो सामान्य व्यक्ति ऐसी अवस्थाओं में करता हैं।
मैं पूछता हूं - कि नीतीश बिहार के खुद मुख्यमंत्री हैं। वे सरकार में हैं। पुलिस उनकी। प्रशासन उनका। ऐसे में वे पुलिस प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने के बदले, जदयू कार्यकर्ताओं को उकसाने का काम क्यों किया। ऐसा काम सेक्यूलर नेता नहीं बल्कि एक गुंडा करता हैं। ये बिहार ही नहीं, बल्कि देश का बच्चा - बच्चा जानता हैं। क्या नीतीश बता सकते हैं कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता जदयू के कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा कार्यालय क्यों गये थे। उनकी मंशा क्या थी। ऐसे में नीतीश के पुलिसकर्मी क्या कर रहे थे, वे क्या इंतजार कर थे, कि जदयू कार्यकर्ता, भाजपा कार्यालय जाये, भाजपा कार्यकर्ताओं को जमकर, उनकी औकात बताये। ऐसे में पूरे राज्य में कानून व्यवस्था गर बिगड़ी तो उसका जिम्मेदार कौन होगा।
कल तक भाजपा अच्छी, सत्ता से उसके साथ चिपकने में अच्छा लगा और अब लगे भाजपा और भाजपा कार्यकर्ताओं को औकात बताने। धर्मनिरपेक्षता का इतना ही ठेका ले रखा हैं, तो लोकनायक जयप्रकाश नारायण का लबादा क्यों ओढ़ रखा हैं, उसे फेंक दो और जाओ सोनिया व राहुल के चरणों में बलिहारी जाओ। ऐसे भी सोनिया और राहुल के इशारों पर ठूमके लगानेवाला, भारत का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तुम्हें धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण पत्र आज दे ही दिया हैं। इस देश की विडम्बना हैं, कि सत्ता से बाहर रहने पर सारे के सारे नेताओं को भाजपा अच्छी लगती हैं, उसके कंधों पर मुख्यमंत्री बनना अच्छा लगता हैं, पर जैसे ही उसे अपनी मूर्खता पर अभिमान आने लगता हैं, उसे भाजपा और भाजपा के नेता दंगाई नजर आने लगते हैं। पूरे बिहार को विकास का हौवा खड़ाकर, बिहार का नाश करनेवाला, बिहार की लड़कियों से काला दुपट्टा उतरवानेवाला नीतीश, पूरे बिहार को बर्बाद कर के रख दिया। फिर भी पता नहीं, नीतीश भक्त पत्रकार, आर्थिक विश्लेषक और उसके टुकड़ों पर पलनेवाले मूर्खों को नीतीश क्यूं अच्छा लगता हैं, समझ में नहीं आता। 
आश्चर्य तो तब हुआ, कि कल रांची से प्रकाशित एक अखबार ने लंदन में अपनी पूरी जिंदगी गुजारनेवाला एक व्यक्ति का आलेख छापा - कि नीतीश बिहार को संभाल लेंगे। उसका नमूना तो आज ही दीख गया कि नीतीश कैसे बिहार को संभालने का प्रबंध कर रखा हैं। अरे जो नेता, अपने ही नेता जार्ज फर्नांडिंस, दिग्विजय सिंह को ठिकाने लगा दे और अब शरद यादव को उसकी औकात बताते हुए, पूरे पार्टी से लोकतंत्र समाप्त कर दे और खुद को स्वयंभू नेता घोषित कर दे, वो देश या प्रांत का नेता या सेवक नहीं होता, वो तो विशुद्ध रुप से तानाशाह कहलाता हैं, और आज जिस प्रकार से उसने अपने कार्यकर्ताओं को पूरे प्रदेश में सड़कों पर उतरने का आह्वान कर दिया, उससे साफ लगता हैं कि ये काम तो गुंडें का भी नहीं, ये तो पूर्णतः दंगाई का काम हैं, पर देश के अन्य नेताओं को नीतीश का ये कुकृत्य दिखाई नहीं देता।

Monday, June 17, 2013

घबराइये नहीं - इस बार बारिश के नक्षत्र दगा नहीं देंगे, खूब बरसेंगे.......................

घबराइये नहीं - इस बार बारिश के नक्षत्र दगा नहीं देंगे, खूब बरसेंगे.......................
जी हां। संदेश तो कुछ इसी प्रकार के दे रहे हैं, ये नक्षत्र। भारतीय मणीषियों ने नक्षत्रों के आधार पर, उनका विश्लेषण करते हुए पूर्व में भविष्यवाणियां किया करते थे, और ये बाते सत्य साबित होती थी। पिछले कई वर्षों से मैंने भी महसूस किया कि ऐसा सहीं हैं। जब - जब नक्षत्रों ने ये संदेश दिया कि इस बार बारिश नहीं होगी तो हुआ भी ऐसा ही बारिश नहीं हुई। जब नक्षत्रों ने सामान्य अथवा मूसलाधार बारिश के संकेत दिये तो उस साल भी इसी प्रकार की घटना घटित हुई। इस बार ये नक्षत्र क्या कह रहे हैं। इसे देखना वर्तमान में जरुरी हैं। बारिश के कई नक्षत्र हैं जो विभिन्न प्रकार से संदेश दे रहे हैं। ये कह रहे हैं कि भारतीय जनता घबराये नहीं, वैज्ञानिक कुछ भी कहें, नक्षत्र इस बार दगा नही देंगे। केवल एक ही नक्षत्र आश्लेषा मे्ं अल्पवृष्टि के संकेत हैं। आइये देखते हैं, नक्षत्रों के दृष्टिकोण में मानसून...................
क. आर्द्रा - 22 जून को दिन 11.41 से प्रारंभ - सामान्य वृष्टि
ख. पुनर्वसु - 6 जुलाई को दिन 1.16 से प्रारंभ - सामान्य वृष्टि
ग. पुष्य - 20 जूलाई को दिन 2.43 से प्रारंभ - सामान्य वृष्टि
घ. आश्लेषा - 3 अगस्त को दिन 2.03 से प्रारंभ - अल्प वृष्टि
ड. मघा - 17 अगस्त को दिन 1.51 से प्रारंभ - सामान्य वृष्टि
च. पूर्वा फाल्गुन - 31 अगस्त को दिन 10.33 से प्रारंभ - वार्युवृष्टिश्च
छ. उत्तरा फाल्गुन - 13 सितम्बर को रा. 4.42 से प्रारंभ - वार्युवृष्टिश्च
ज. हस्त - 27 सितम्बर को रा. 8.06 से प्रारंभ - वार्युवृष्टिश्च
झ. चित्रा - 11 अक्टूबर को दि. 8.35 से प्रांरभ - वार्युवृष्टिश्च
यानी साफ संकेत हैं कि एक नक्षत्र को छोड़, सभी नक्षत्रों से सामान्य से अधिक बारिश होने के संकेत हैं, अंतिम के चार नक्षत्र जैंसे पूर्वा फाल्गुन, उत्तरा फाल्गुन, हस्त और चित्रा तो आँधी-पानी के साथ बरसने के संकेत दे रहे हैं यानी झमाझम बरसेंगे नक्षत्र और लहलायेंगी फसलें................

Saturday, June 15, 2013

नीतीश बदनाम हुआ, मुसलमां तेरे लिए.......

बहुत पहले एक गाना सुना था -- लौंडा बदनाम हुआ, नसीबन तेरे लिए......। ये गीत अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश पर पूरी तरह फिट बैठ रही हैं और वह भी इस प्रकार- नीतीश बदनाम हुआ, मुसलमां तेरे लिए...........,क्योंकि नीतीश सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम वोट के लिए, वो सारे कार्य कर रहे हैं, जो किसी भी राजनीतिज्ञ को शोभा नहीं देता। इन्हें ये लगता हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करके ये पूरे बिहार में मुसलमानों के रहनुमा बन जायेंगे। अकेले बिहार में लोकसभा और विधानसभा में जदयू का परचम लहरा देंगे, तो ये उनकी मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं। मुस्लिम मतदाता चाहे वह बिहार का हो या किसी अन्य प्रांत का, हमें नहीं लगता कि वो इतना मुर्ख हैं कि सिर्फ मोदी का विरोध कर देने से, इनके साथ अथवा किसी अन्य राजनीतिक दल के साथ चिपक जायेगा।बिहार में कभी कांग्रेस, कभी लालू को अपना हीरो चुननेवाली मुस्लिम मतदाता, कल तक नीतीश के साथ थी, पर महराजगंज लोकसभा उपचुनाव ने ये सिद्ध कर दिया कि मुस्लिम मतदाताओं को ज्यादा दिनों तक कोई भी मुर्ख नहीं बना सकता, पर जब कोई मुर्ख बनने को तैयार हैं, अपने घर में आग लगाकर खुद तमाशा देखना चाहता हैं तो उसे किया ही क्या जा सकता हैं। उसे भी अपना घर फूंकने का पूरा अधिकार है।
राजनीतिक दृष्टिकोण से भारत एक महान देश हैं और बिहार उसमें अनोखा। एक फिल्म में बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा ने डायलाग बोला था। डायलॉग था - बिहार में तो मां के पेट में ही बच्चा राजनीति सीख लेता हैं। तब समझ लीजिये, बिहार में राजनीति कैसे सर चढ़कर बोलता है। फिलहाल बिहार में नीतीश कुमार को, नरेन्द्र मोदी से चिढ़ हैं। उनका कहना हैं कि नरेन्द्र मोदी सांप्रदायिक हैं। उन पर 2002 में गुजरात में हुए दंगे का दाग हैं। उनके इस चिढ़ को उनके आसपास अथवा उनकी कृपा से दिल्ली के राज्यसभा तक पहुंचने वाले चिरकुट नेता शिवानन्द तिवारी अथवा कृषि मंत्नी नरेन्द्र सिंह बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं और बताते हैं कि नीतीश सर्वाधिक सेक्यूलर नेता है, पर इन नेताओं के चेहरे से तब हवाइंया उड़ने लगती है। जब एक देशभक्त सवाल पूछ देता हैं, वो सवाल हैं............................
क. जब 2002 में गुजरात जल रहा था, उस वक्त नीतीश कुमार केन्द्र में मंत्री थे, उसी समय वे नरेन्द्र मोदी के खिलाफ इतनी उग्रता क्यों नहीं दिखाई, क्यों नही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक्शन लेने के लिए दबाव बनाया।
ख. आडवाणी सेक्यूलर कैसे हो गये, आडवाणी को वे प्रधानमंत्री बनाने के लिए इतने आतुर क्यों हैं, जबकि उन्हीं की पार्टी के कई नेता अच्छी तरह जानते हैं कि  रामरथ यात्रा निकालकर आडवाणी ने क्या किया था।
ग. भाजपा धर्मनिरपेक्ष नहीं पर कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष कैसे हो गयी, जबकि इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद देश में हुए दंगे के दौरान हजारों सिक्खों का कत्लेआम कर दिया गया। हाल ही में असम में एक बहुत बड़ा नरसंहार हो गया, वहां किस समुदाय के लोग मारे गये, ये नीतीश बहुत अच्छी तरह जानते हैं। यानी भाजपा करे तो दंगे और कांग्रेस व नीतीश की पार्टी करे तो हर हर गंगे।
घ. पूरा बिहार जानता हैं कि नीतीश बिहार के विकास की हवा खड़ा करते हैं, पर स्वयं घोर जातिवादी हैं, ये तो फूट जालो शासन करों में विश्वास रखते हैं, जैसे देखिये दलितों में भी बंटवारा खड़ा कर दिया और एक वर्ग को महादलित घोषित कर दिया, क्या इससे उस समुदाय का कल्याण हो गया।
ड. नीतीश ने विकास का हवा खड़ा कर, सर्वाधिक फायदा उन अपराधियों को पहुंचाया जो इनके दल में शामिल थे, और जो अपराधिक किस्म के नेता दूसरे दलों में थे, उन्हें चून-चूनकर जेलों के अंदर पहुंचाया, ताकि नीतीश का सामना कोई कर ही न सकें।
च. नीतीश ने नीतीश भक्त पत्रकारों को खूब फायदा पहुंचाया।  नीतीश भक्त पत्रकारों ने भी नीतीश को जमकर फायदा पहुंचाया। उसका नमूना देखिये, जब भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी पटना में तो एक चैनल ने पटना में आयोजित भाजपा कार्यकारिणी की बैठक का समाचार दो मिनटो में खत्म कर दी और नीतीश की एक सभा के समाचार को 21 मिनट स्थान दिया। बाद में जब हमने पता लगाया तो पता चला कि नीतीश के समर्थन में ये पेड न्यूज था।
छ. इसी नीतीश ने अपनी ही पार्टी के टॉप स्तर के नेता को ठिकाने लगाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जान बूझकर बांका संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से दिग्विजय सिंह का टिकट काटा। अंत में दिग्विजय सिंह खुद निर्दलीय लड़ गये और नीतीश को उसकी औकात बता दी। फिलहाल दिग्विजय सिंह दुनिया में नहीं हैं।
ज. सच्चाई ये हैं कि जदयू कोई राष्ट्रीय पार्टी नहीं हैं, ये क्षेत्रीय पार्टी हैं जो बिहार में भाजपा के वैशाखी पर टिकी है, नीतीश इसके एकमात्र नेता हैं, जो कुर्मी जाति से आते हैं। इस नीतीश ने जदयू को पूरी तरह से हाईजैक कर लिया हैं। शरद यादव तो मुखौटा हैं, उनकी इतनी हिम्मत भी नहीं कि नीतीश के खिलाफ बगावत या आवाज बुलंद कर सकें, क्योंकि उन्हें भी लोकसभा पहुंचना हैं, राजनीति करनी हैं और वे जानते हैं कि नीतीश उन्हें लोकसभा में आराम से पहुंचा सकते हैं, इसलिए ये चाहकर भी राजग गठबंधन को मजबूती नहीं प्रदान कर सकते, ये वहीं करेंगे, जो नीतीश कहेंगे, इसलिए बेचारे शरद यादव पर क्या लिखना और क्या बोलना।
हमारे देश में अल्पसंख्यक का मतलब। बौद्ध, जैन, यहुदी अथवा पारसी नहीं होता। इनके खिलाफ कुछ भी अत्याचार कोई भी कर दे, किसी भी नेता के आंख से आंसू नहीं दिखाई पड़ेंगे पर जैसे ही मुस्लिम या इसाईयों के खिलाफ गर छिटपुट हिंसा भी हो जाये तो फिर देखिये इन घडि़याली नेताओँ के घड़ियाली आंसू, इतने आंसू टपकायेंगे कि पूछिेय मत। ये इसलिए घड़ियाली आंसू टपकाते है, क्योंकि कई विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रो में ये वोटर के रुप में निर्णायक हैं। गर इन्हें पता लग जाये कि मुस्लिम या इसाई वोट अब निर्णायक नहीं रहे तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये घडि़याली आंसू क्या ये तो एक बूंद पसीने भी इनके लिए नहीं बहाये। ये हैं हमारे देश के वर्तमान घटियास्तर के नेताओं का चरित्र। विधायक और सांसद बनने के बाद तो ये शपथ लेते है कि वे भारत के संविधान की मर्यादाओं की रक्षा करेंगे पर सच्चाई ये  हैं कि जितना संविधान की धज्जियां ये उड़ाते हैं, उतना कोई नहीं और वोट के लिए तो ये कहीं मुसलमान तो कहीं घोर जातिवादी होने से भी नहीं चूकते। हम कहते हैं कि जब मुस्लिम वोटरों की इतनी ही चिंता हैं तो हमारा सलाह हैं कि नीतीश धर्मपरिवर्तन क्यों नहीं कर लेते। इससे अच्छा तो दूसरा कुछ हो ही नहीं सकता। मुस्लिम भी कहेंगे कि देखो ये नीतीश को, जो इस्लाम कबूल कर लिया, अपने हिंदू धर्म से खुद को अलग कर लिया। नेता हो तो ऐसा हो, जो वोट के लिए अपना ईमान और धर्म भी बदल लिया हैं, इसलिए वोट तो हम नीतीश कुमार जो अब मो.नीतीशुद्दीन बन गये हैं, उन्हें ही देंगे। इससे जदयू भी मजबूत हो जायेगा और सदा के लिए नीतीश बिहार के मुसलमानों में लोकप्रिय और ऐतिहासिक पुरुष हो जायेंगे................

Wednesday, June 12, 2013

बिहार में नरेन्द्र मोदी की बहती बयार व जदयू नेताओं का पागलपन.....................

नरेन्द्र मोदी को भाजपा ने चुनाव प्रचार अभियान समिति का कमान क्या सौंपा। भाजपा में शामिल आडवाणी ने भाजपा की नैया में पहली कील ठोक दी। फिर क्या था, जदयू जो पहले से ही गुजरात की जनता और वहां के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को खूलेआम गाली दे रहा था, उसे मौका मिल गया। अब तो वो ताल ठोक कर नरेन्द्र मोदी को दंगाई कह रहा हैं, भाजपा से तलाक लेने की बात कर रहा है, भाजपा से खुद को अलग कर 2014 की लोकसभा के चुनाव लड़ने की बात कह रहा है। उसे ऐसा करना भी चाहिए, उसकी ताकत का उसे अंदाजा लगना भी चाहिए। हम बार - बार कह भी रहे हैं कि 2014 का चुनाव जब भी हो, लालू यादव के पास खोने के लिए कुछ नहीं, जबकि नीतीश के पास पाने के लिए कुछ भी नहीं, क्योंकि लालू के वोटर कल भी नहीं उससे खिसके थे, आज भी नहीं खिसके है। महराजगंज का लोकसभा का उपचुनाव परिणाम बताने के लिए काफी है।
आज नीतीश सरकार में शामिल जदयू कोटे से शामिल कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह ने बयान दिया हैं कि मोदी दंगाई है। ये वहीं नरेन्द्र सिंह हैं जो एक जनता दरबार में एक आम जनता को अपने संबोधन में ये कह देता हैं कि थोड़ा सा हमने आपको सम्मान दिया और लगे आप सर चढ़कर ........। ये वहीं नरेन्द्र सिंह हैं जो अन्ना हजारे को मां बहन की गाली भी दे देता हैं, वो भी तब जब संवाददाताओं को समूह उससे अन्ना हजारे से संबंधित सवाल पूछते हैं। ये वहीं नरेन्द्र सिंह हैं, जिसे ईश्वर ने भयंकर सजा भी दी, पर उसे ईश्वर की मार के बाद भी बुद्धि नहीं खुली। राजनीति में कायरता व अपराध का संगम का सबसे बड़ा नमूना नरेन्द्र सिंह आज बिहार के किसानों का भाग्य निर्माता बना बैठा हैं। ऐसे ही कई जदयू में नेता हैं, जो अपराधी किस्म के हैं, पर विधायक और मंत्री बने बैठे हैं, जिन पर कई - कई अपराधों की लंबी फेहरिस्त हैं, पर जदयू के बड़े नेताओं का इन पर ध्यान नहीं जाता। ऐसे कई नेता जो विधायक बन कर जदयू के नेता बने हैं, जिससे बिहार की छवि दूसरे प्रांतों में बदनाम होती हैं, पर ये अपने को पाक साफ बताते हैं और मोदी को गाली देने में शान समझते हैं।
जदयू को लगता हैं कि नरेन्द्र मोदी को गाली देने, गुजरात की जनता को गाली देने से, 2014 में लोकसभा की सीट बढ़ जायेगी तो उसे मुगालते में नहीं रहना चाहिए। भाजपा और उससे जूड़े अन्य संगठन कोई चूड़़ियां पहनकर नहीं बैठी हैं। उन्हें भी जवाब देना आता है। नरेन्द्र मोदी, बिहार आयेंगे और चुनाव प्रचार करेंगे। पता लग जायेगा कि बिहार में नरेंद्र मोदी क्या हैं। अगर नीतीश को हिम्मत हैं तो गुजरात जाकर लोकसभा की एक भी सीट जीतकर दिखा दें या नरेंद्र मोदी की तरह जनसभा में भीड़ एकत्रित कर दिखा दें। सारा गर्व ही चूर हो जायेगा। इधर नीतीश और उनके नेता मोदी के बयार से इतने पागल हो गये कि उन्हें रात-दिन सोते जागते मोदी - मोदी ही नजर आ रहे हैं। आश्चर्य इस बात की हैं कि जदयू के इन घटियास्तर के नेताओं को मोदी दंगाई नजर आते हैं, पर इसी पार्टी के लाल कृष्ण आडवाणी को धर्म निरपेक्ष बताने से नहीं चूक रहे। कमाल हैं कि ये वहीं आडवाणी हैं, जिन्होंने रामरथ यात्रा निकाला। जिसकी वजह से बाबरी मस्जिद का आज नामोनिशां नहीं हैं। जिनके वजह से पूरे देश में धर्मनिरपेक्षता को खतरा उत्पन्न  हो गया था, देश के कई शहरों में हिंदू मुस्लिम दंगे हो गये। जिनके बारे में इसी पार्टी के कई नेता, उस वक्त दूसरे दलों में थे, आडवाणी को देश के लिए खतरा मानते थे, आज उसके लिए वे झंडे ढोने को बेताब हैं।
कमाल इस बात की हैं, इसी देश में एक प्रधानमंत्री राजीव गांधी हुए। जिनके कार्यकाल में पूरे देश में सिक्खों का कत्लेआम हुआ, पर इन नेताओं को कांग्रंसी धर्मनिरपेक्ष दिखाई पड़ते हैं। क्योंकि सिक्खों की संख्या मतदाताओं के रुप में उतना प्रभावशाली नहीं, इसलिए सिक्खों के लिए इनके आंखों से आंसू नहीं बहते और न ही बयान आता हैं। हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा अथवा सर्टिफिकेट का वितरण समय -समय पर मतदाताओं को ध्यान में रखकर रचा अथवा वितरित किया जाता हैं। धन्य हैं, भारत और भारत की जनता और इसके नेता। चीन पांच किलोमीटर अंदर तक घूसकर सड़क का निर्माण कर लिया। 20 किलोमीटर अंदर तक घूस गया, पर इनकी बेचैनी इस पर नहीं दिखी, पर नरेन्द्र मोदी के लिए बेचैनी देखिये। चीन की साम्राज्यवादी नीयतों पर इन्हें शक नहीं, उसके खिलाफ बयान हीं नहीं, बल्कि चीन का दौरा होता हैं, उसे गुरु बनाने की कोशिश होती हैं, और अपने ही देश के नागरिकों को देशद्रोही बताकर, पूरे विश्व के सामने नीचा दिखाने की कोशिश करने में, इन नेताओं को कितना आनन्द आता हैं। वाह रे नीतीश, वाह रे जदयू के घटियास्तर के नेता। तुम्हारा जवाब नहीं। बस एक साल का इंतजार करो, जनता बिहार की तैयार हैं, बताने के लिए कि तुम्हारी जगह कहां हैं...................................

Tuesday, June 11, 2013

आडवाणी का कुर्सी प्रेम और भाजपा.........................

निः संदेह लाल कृष्ण आडवाणी देश के बड़े नेता है, पर इतने भी बड़े नहीं, जिनका आचरण हम अपने जीवन में उतार सके या हम किसी को कह सके कि तुम आडवाणी जैसे नेता बनो। किसी भी नेता का जीवन-दर्शन, उसके संपूर्ण जीवन पर निर्भर करता हैं कि उसने अपने जीवन काल में क्या किया और क्या नहीं किया। क्या करने से उसके द्वारा देश को बल मिला, पार्टी को बल मिला अथवा उसकी पार्टी या देश की दुर्गति हो गयी। कमाल हैं ये वहीं आडवाणी है जो किसी समय दिल खोलकर ये बोला करते थे, कि गर देश में भाजपा सत्ता में आयी तो देश के प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी विराजमान होंगे, उन्होंने ऐसा किया भी और कभी भी वाजपेयी के आगे अपना कद उचा करने की कोशिश नहीं की, जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए, पर आज नरेन्द्र मोदी के आगे आते ही, इतने बड़े नेता ने जो ओछी हरकत की, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिख, जिन बातों का पत्र में उल्लेख किया, उससे ऐसा लगता है कि इस व्यक्ति ने अपने जीवन के सारे कार्यकाल पर खुद से पानी फेर दिया। हमें तो अब संदेह होता हैं कि किसी कालखंड में इस व्यक्ति ने अटल बिहारी वाजपेयी के लिए, अपना सर्वस्व त्याग भी किया होगा।
पत्र में क्या हैं - पत्र में इस नेता ने वर्तमान भाजपा में शामिल नेताओं पर देश के लिए कम और निजी जिंदगी के लिए राजनीति करने का घिनौना आरोप लगाया है। ये कहकर उसने खुद को पाक साफ और सभी भाजपाइयों पर तोहमत लगा दी। ये दिव्य ज्ञान भी लाल कृष्ण आडवाणी को तब आया, जब गोवा में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नरेन्द्र मोदी को चुनाव प्रचार अभियान की कमान सौंप दी गयी। उसके पहले इन्हें दिव्य ज्ञान नहीं आया था। ये दिव्य ज्ञान आडवाणी को उस वक्त भी नहीं आया, जब नीतीश कुमार और उसकी पार्टी के  घटिया स्तर के नेताओं ने नरेन्द्र मोदी के खिलाफ, गुजरात  की जनता के खिलाफ लगातार विष वमन करते रहे। आडवाणी को पता नहीं कि नरेन्द्र मोदी आज समय की मांग हैं। आम जनता नरेन्द्र मोदी की तरफ देख रही हैं, क्योंकि उसे लगता हैं कि ये व्यक्ति ऐसा हैं कि वो देश के लिए कुछ कर सकता हैं। आडवाणी बता सकते हैं कि उन्होंने देश के लिए अब तक क्या किया हैं। सिवाय कुर्सी प्रेम के। अरे आडवाणी को तो सोनिया गांधी से सीखना चाहिए, वो चाहे तो भारत की प्रधानमंत्री बन सकती थी, बन सकती हैं पर उसने कभी भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ध्यान ही नहीं दिया। और इनको देखिये, प्रधानमंत्री बनने के लिए इतने बेचैन हैं, उस कुर्सी पर सोने के लिए इतने बेचैन हैं, कि जैसे ही उन्हें ये भनक मिली कि नरेन्द्र मोदी उनके आगे दीवार बनकर खड़े हो गये। भाजपा के सारे बड़े पदों से इस्तीफा दे दिया। ये जनाब ब्लाग भी लिखते हैं। ब्लाग में महाभारत का प्रसंग भी ऱखते हैं, पर उन्हें नहीं मालूम कि समय की मांग को देखते हुए, उस महाभारत के कई पात्रों ने कब और किस समय, किन - किन चीजों का त्याग किया।
आडवाणी को ये भी शायद मालूम नहीं हैं कि इसी देश में महात्मा गांधी थे, जो चाहते तो भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे, पर उन्होंने प्रधानमंत्री पद से ज्यादा अपने लिए गोली चुन ली। आज वे मोहनदास से महात्मा गांधी और राष्ट्रपिता बन गये। कहा भी जाता हैं कि जिसे सब कुछ मिल जाता हैं, उसे कुछ भी नहीं मिलता और जिसे कुछ नहीं मिलता, उसे सब कुछ मिल जाता हैं। क्या ये प्रसंग आडवाणी को मालूम नहीं। आडवाणी तो आज उस कसाई की तरह हो गये जो, एक बकरे को बड़े प्यार से पालता हैं और फिर उसी बकरे की अपने हित में हत्या भी कर डालता हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने भाजपा को उंचाईयों पर लाकर खड़ा किया, पर ये भी सही हैं कि जिस प्रकार की कारगुजारी, उन्होंने कल दिखायी। लगता है ंकि वो चाहते हैं कि वे अपने ही हाथों से भाजपा का गला घोंट दे। नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक जीवन की कैरियर ही समाप्त कर दे। पर उन्हें नहीं मालूम कि भारत की जनता ने कुछ फैसला किया हैं। वो फैसला देशहित में, जनहित में हैं। देश को उचांई पर ले जाने का वक्त हैं. ऐसे में लालकृष्ण आडवाणी कुछ ऐसा न करें, जिससे देश की जनता और देश उन्हें कभी माफ ही न करें। ऐसे वो कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। नीतीश तो आपको धर्मनिरपेक्ष होने का सर्टिफिकेट भी दे चुके हैं। ये वहीं नीतीश हैं जिनकी धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा समय - समय पर बदलती रहती हैं। फिर भी जब आप अपने कैरियर को खुद ही डूबो देना चाहते हैं तो कोई कर ही क्या सकता हैं। 

Thursday, June 6, 2013

बिहार ने लालू की लालटेन की लौ बढ़ाई, जबकि नीतीश के तीर भोथर किये.................

बिहार में महराजगंज लोकसभा के उपचुनाव के परिणाम आ गये। राजद के प्रभुनाथ सिंह 1 लाख 37 हजार से भी अधिक मतों से जीते। जदयू के पी के शाही दूसरे नंबर पर रहे, जबकि कांग्रेस की जमानत तक जब्त हो गयी। लालू की बल्ले - बल्ले है। चुनाव परिणाम के पहले चक्र की मतगणना के बाद ही वे दहाड़ रहे थे। टीवी पर उनका बयान आ रहा था, कह रहे थे कि प्रभुनाथ लालटेन लेकर दौड़ रहा हैं। नीतीश का हाल क्या होगा - गइल गइल भइसिया पानी में। ब्रह्मर्षि समाज की जय जयकार कर रहे थे, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इस बार ब्रह्मर्षि समाज के लोगों ने दिल खोलकर उनका साथ दिया हैं और हुआ भी ऐसा ही। बेचारे पी के शाही जिस नीतीश के विकास का तीर लेकर महराजगंज में खूंटा गाड़ने का प्रयास कर रहे थे, उनका खूंटा प्रथम चक्र की मतगणना के बाद ही उखड़ गया। उन्होंने बयान दे डाला कि कार्यकर्ताओं का उत्साह व जोश नहीं था और पार्टी के अंदर चल रही भीतरघात और गठबंधन धर्म के ठीक से निर्वहन नहीं होने के कारण उनकी हार हो गयी। इधर लालू दहाड़ रहे थे, और दिल्ली में नीतीश, छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह से गुफ्तगूं कर रहे थे। टीवी पर ये भी दिखा कि जब नीतीश, रमण सिंह से बातें कर रहे थे, तब छायाकारों का समूह, इनकी छवि को अपने कैमरे में कैद कर रहा था, पर ये क्या जैसे ही नरेन्द्र मोदी उधर से निकले छायाकारों का समूह मोदी की ओर दौड़ पड़ा। 
पांच जून को देश के कई हिस्सों में हुए लोकसभा और विधानसभा के चुनाव परिणामों ने सभी पार्टियों को सबक सिखायी हैं, पर सच्चाई ये हैं कि किसी भी दल ने इस सबक को सीखने की कोशिश नहीं की।
गुजरात में चार विधानसभा सीटों और दो लोकसभा सीटों पर भाजपा को मिली भारी जीत, इस बात का संकेत हैं कि गुजरात की जनता नरेन्द्र मोदी को छोड़ना नहीं चाहती, उसे लगता हैं कि नरेन्द्र मोदी के हाथों में ही गुजरात का भविष्य हैं। जनता का फैसला शिरोधार्य होना भी चाहिए। पर बिहार में क्या हो रहा हैं। लगातार नीतीश के विकास का हव्वा खड़ा करनेवाले नीतीश के चाटूकारों की हवा निकल गयी हैं। बोलती बंद हैं। कल तक नीतीश - नीतीश जपनेवाले और इसी दरम्यान भाजपा की वैशाखी पर सरकार चलाते हुए भाजपा को ही आंख दिखानेवाले, मौसमी शेर गायब दीखे। महराजगंज की हार ने, उनकी सारी हेकड़ी निकाल दी हैं। जदयू के इन छुटभैयें नेताओं को लगता था कि बिहार की जनता नीतीश के आगे नतमस्तक हैं। जो नीतीश बोलेंगे, वो मानेगी। नीतीश का विकास, बिहार में सर चढ़कर बोल रहा हैं। ये हवाई किले बनानेवाले को पता नहीं कि विकास कोई सड़क बनाने और बिजली का खंभा खड़ा करने का ही नाम नहीं, उसके आगे रोजगार उपलब्ध कराने का भी नाम हैं। हद तो तब हो गयी कि आज भी बिहार के सुदुरवर्ती गांवों के लोग महाराष्ट्र और गुजरात में रोजी - रोटी कमाने के लिए जा रहे हैं, पर इन्हें रोकने के लिए बिहार सरकार ने कोई योजनाएँ नहीं बनायी। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के चिरकुट नेता बिहारियों को गाली देते थे और उसी महाराष्ट्र में जाकर नीतीश मनसे की जी हुजूरी करते दीखे। शायद बिहार की जनता इस दोहरे चरित्र को भूल गयी, उन्हें लगता होगा और जिस गुजरात ने आजतक बिहार की जनता के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला, उस गुजरात की जनता का अपमान, इस नीतीश ने बार - बार किया, नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विषवमन कर। नीतीश को लगता हैं कि दुनिया की सारी खूबियां इन्हीं में हैं। खुब अहं में डूबे हैं। विज्ञापन के चाबूक से अखबार और इलेक्ट्रानिक मीडिया के संपादकों को हांक रहे हैं, समझते हैं कि सम्राट अशोक हो गये, पर उन्हें नहीं मालूम कि बिहार की जनता तो असल में बिहार की जनता हैं। सबसे अनोखी। यहां जातिवाद सर चढ़कर बोलता हैं। लालू ने जातिवाद की सीढ़ी चढकर महराजगंज की लहलहाती फसल दुबारा काटी हैं। राजपूत -यादव तो उसके परंपरागत वोट हैं, भला वो मतदाता राजद से छिटके कब थे, छिटके तो मुस्लिम थे, फिर ससर गये, और लालू के लालटेन की जीत पक्की। रही बात भूमिहार जाति की, तो ये जाति अभी नीतीश से बिदकी हैं ही, ब्याज समेत इसने अपना किराया वसूल लिया और पी के शाही की तीर को भोथर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
हमें याद हैं कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुर ने सामान्य बातचीत के दौरान कहा था कि भला बिहार में विकास के नाम पर वोट मिलता हैं क्या। यहां तो जातिवाद और बयार पर वोट मिलता हैं। जनता को जातीयता का बीयर पिलाते रहिए, अपना उल्लू सीधा करते रहिए और जब जीत जाईये तो अपने अनुसार उसका अर्थ निकालिये। ये हैं हमारा बिहार। उसे कभी तीर तो कभी लालटेन और कभी कमल खिलाने में आनन्द आता हैं पर वो भी जाति के आधार पर, धर्म के आधार पर। बेचारी कांग्रेस जो कल तक इसी के सहारे राज करती थी, आज सारी जातियां उससे बिदक गयी हैं, देखते हैं, ये बिदकी जातियां कब कांग्रेस की ओर आती हैं  या कांग्रेस इसी तरह पिछलग्गू बनकर, बिहार में अपना काम चलाती रहेगी। फिलहाल बिहार की जनता ने लालू और उसकी पार्टी को च्यवनप्राश खिलाया हैं, ताकत दी हैं। ताकत मिलते ही, लालू अपनी आदत से लाचार हैं ही, फिर से शुरु कर दिया हैं दहाड़ना। देखते हैं कब तक दहाड़ते हैं, रही बात नीतीश की, तो मैं कहूंगा, कि अब भी वक्त हैं, अहं त्यागे और किसी की आलोचना व किसी के खिलाफ विषवमन करने से अच्छा हैं, बिहार की जनता का सम्मान बरकरार रखने में ध्यान लगाये। यहीं उनके लिए और उनकी पार्टी की सेहत के लिए बेहतर होगा।

Thursday, May 16, 2013

पटना की परिवर्तन रैली, नीतीश और लालू दोनों के लिए एक संदेश हैं, जनता की भावना को समझिये.....

15 मई को पटना में लालू की परिवर्तन रैली बहुत कुछ कह रही हैं। ये लालू के लिए भी सबक हैं और नीतीश के लिए भी। नीतीश के लिए ये कि उनके पास खोने के सिवा कुछ नहीं और लालू के लिए ये कि उन्होंने जनता द्वारा मिली सत्ता का जिस प्रकार दुरुपयोग किया, जनता आज तक वो भूली नहीं, यानी कहीं न कहीं वो दर्द जनता के बीच आज भी विद्यमान हैं। ये अच्छी बात हैं कि लालू ने इस परिवर्तन रैली के दौरान कोई ऐसी बात नहीं की, जो जनभावनाओं को ठेस पहुंचाये। ये अलग बात हैं कि वे अपने विरोधियों की तुलना कुत्तों से करने से नहीं चुके। लालू प्रसाद को मालूम होना चाहिए कि अपने विरोधियों को भी सम्मान करना, बिहार की संस्कृति रही हैं। गर आप इस प्रकार की संस्कृति को तिलांजलि दे, जब ये कहते हैं कि आप बिहार के सम्मान को बरकरार रखेंगे तो आम जनता को शक होने लगता हैं।
जब कोई राजनीतिक दल सत्ता से दूर रहे, तो उसे आत्ममंथन करना चाहिए। वो आत्ममंथन तब तक करना चाहिए, जब तक वो समस्याओं को न जान लें, कि किन कारणों से उसे सत्ता से वंचित रहना पड़ा हैं और जब समस्या मालूम हो जाये तो उसका समाधान करना चाहिए। हमें लगता है कि लालू जी ने अभी भी, इस ओर ध्यान नहीं दिया, गर ये ही हाल रहा तो नीतीश भले ही अपनी कुछ सीटे गवां दे, पर बहुमत उन्हें ही मिलेगी। ये लालू जी को मालूम होना चाहिए, जबकि सच्चाई ये हैं कि नीतीश विकास - विकास का हौवा खड़ाकर, इतने अहं में डूब गये हैं कि उन्हें अपने सामने सभी लोग जीरो दिखाई दे रहे हैं। जिसका फायदा लालू को उठाना चाहिए, पर लालू इसका फायदा उठा पायेंगे, इस पर हमें संदेह हैं। वह भी तब जबकि लालू को आज भी बिहार का एक बड़ा वर्ग अपना नेता मानता हैं। ऐसे में लालू जी को चाहिए कि वे स्वयं को पहचाने।
कुछ सवाल आज भी लालू से हैं कि जब आप रेलमंत्री बनते हैं और रेल मंत्रालय को नई दिशा दे देते है, तब आपने 15 सालों में बिहार का कबाड़ा क्यूं बनाया, और इसके लिए आप बिहार की जनता से क्यूं क्षमा नहीं मांगते। क्षमा तो अच्छे - अच्छे पालिटिशयनों ने मांगा हैं, अपनी गलतियों का पश्चाताप करते हुए, जनता से माफी मांगना कोई बुराई नहीं, क्योंकि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि हैं। फिर जनता को विश्वास दिलाना कि वे उनकी विकास को लेकर चिंतित हैं, ये भी जनता को दिखाना होगा, पर आप कर क्या रहे हैं, अपने बेटे और बेटियों को लांच कराने में लगे है, यानी पत्नी और ससुराल से शुरु करते हुए अब बेटे और बेटियों तक पहुंच गये। लालू जी, आप ये जान लीजिये, जिसमें नेतृत्व करने की क्षमता होती हैं, वहीं नेता होता हैं, आप लाख अपने बेटे - बेटियों को लांच कर ले, गर उनमें क्षमता होगी तो खुद ब खुद टाप के राजनीतिज्ञ हो जायेंगे। आपने तो एक बेटे को क्रिकेटर बनाने की सोची, क्या वो धौनी बन गया। ये छोटी सी बात आपको क्यों नहीं समझ आती। अरे लालूजी आपको ईश्वर ने बिहार की जनता की सेवा करने को बनाया हैं, आपके परिवार की सेवा के लिए आपको नहीं बनाया। आप परिवार को छोड़िये, जनता के बीच जाइये। सारी जनता को अपना परिवार समझिये। उनके दर्द को समझिये, फिर देखिये। नीतीश क्या, सारे के सारे लोग आपके पीछे रहेंगे, पर ऐसा कर पायेंगे। हमें संदेह हैं.......................................