ऐसे-ऐसे लोग बनेंगे मुख्यमंत्री के प्रेस एडवाइजर, तो झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का बेड़ागर्क होना तय है...
जी हां, झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रेस एडवाइजर है Yogesh Kislay, ये मुख्यमंत्री को क्या सलाह देते होंगे?, पत्रकारों के साथ कैसा इनका संबंध होगा? उसकी बानगी देखिये...
कल १४ अप्रैल था, यानी बाबा साहेब भीम राव अँबेडकर का जन्मदिन। सारा देश अपने – अपने ढंग से इस महापुरुष का जन्मदिन मना रहा था, उनके आगे कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा था, पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रेस एडवाइजर को इन सबसे अलग हटकर एक ऐसा फोटो हाथ लग गया कि वे इसे अपने फेसबुक वॉल पर डाल दिये और यह भी लिखा कि “आरक्षण का कमाल। भीमराव अंबेडकर जयंती पर नेताजी को माल्यार्पण। बिहार से आई तस्वीर” जिसे लगे हाथों Satya Prakash Prasad ने मुद्दा बनाया और इसकी गंभीरता को बहस का विषय बनाया। जो जरुरी था। बहस आज भी चल रही है। इस बहस में कुछ लोग अच्छी बातें भी कर रहे है, जिससे सामाजिक समरसता को बल मिल रहा है, वहीं इस पर कुछ लोग ऐसे भी है जो बाल का खाल निकाल कर पूरे समाज को कैसे आग में झोंक दिया जाय? इसका भी उपाय ढूंढ रहे है, जैसे सत्य प्रकाश प्रसाद के पोस्ट पर Vishnu Rajgadiya की टिप्पणी देखिये – जिसमें उन्होंने लिखा है कि “इससे यह भी समझ लें कि सवर्ण मानसिकता के निशाने पर सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं, दलित-पिछड़े और आदिवासी भी हैं।” यानी इस व्यक्ति के अंदर सवर्णों के प्रति कितना जहर भरा है, वह इस एक वाक्य से पता चल जाता है। भाई दलितों के उपर अत्याचार हो या किसी और पर, एक पत्रकार की ये भाषा या किसी सम्मानित व्यक्ति कि ये भाषा हो सकती है क्या? अगर कोई सवर्ण समुदाय में जन्म ले लिया तो आप उसके खिलाफ विष वमन करोगे, उसकी मानसिकता पर सवाल खड़ा करोगे, धिक्कार है ऐसी सोच पर और ऐसी मानसिकता पर।
और अब बात... योगेश किसलय से...
अगर किसी ने गलती से भी ऐसा कर दिया तो क्या आप इसे आरक्षण से जोड़ेंगे? क्या आपको पता है कि आप जिस जाति से आते है, वहां भी ऐसे लोगों की भरमार है, गलतियों और मूर्खताओं की जाति या आरक्षण से क्या मतलब? हमने बहुत सारे लोगों को देखा है जो विभिन्न जातियों से आते है, स्वयं को बहुत श्रेष्ठ मानते है, पर कुछ ऐसी गलतियां कर देते है, जिससे उनकी जगहंसाई हो जाती है, इसलिए इस पूरे प्रकरण को आरक्षण से जोड़ना निहायत बेवकूफी है, आपको स्वीकार करना पड़ेगा कि आपसे गलती हुई और अगर गलती हुई है तो उससे भी बड़ी बात, अपनी गलती को स्वीकार कर, क्षमा मांगना है, न कि उस पर धृष्टता के साथ अडिग रहना।
आपकी दूसरी गलती ये फोटो बिहार से आई है, आपको क्या लगता है कि बिहार के लोग ही ऐसा करने में माहिर है, ये मानसिकता भी ठीक नहीं, जबकि आपने एक व्यक्ति विशेष के हवाले से कमेंटस दिया है, जिसमें उस व्यक्ति विशेष ने आपको बताया है कि ये पूरा मामला हरदोई का है, तो अब आप बताये कि हरदोई कहां है?
अपना पक्ष...
गलतियां किसी से भी हो सकती हैं, उसे इस प्रकार से तूल देना, उसे जाति-धर्म से जोड़ना, आरक्षण की बातें करने लगना, इसे लेकर एक समुदाय को कटघरे में खड़ा करना, मूर्खता के सिवा कुछ नहीं, हम सब की जिम्मेवारी है, कि कहीं भी गलत होता है, तो उसका विरोध करें, पर बात का बतंगड़ और सामाजिक विद्वेष न फैलायें, एक बात और यह भी ध्यान रखे कि गलत करनेवाला कौन है? सामान्य व्यक्ति की गलतियों को सुधरने या सुधारने का मौका दीजिये, जबकि असामान्य व्यक्ति के लिए माफी की कोई जगह नहीं, यहां जो गलतियां हमें दीख रही है, वह अज्ञानता है औैर कुछ नहीं...
जी हां, झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रेस एडवाइजर है Yogesh Kislay, ये मुख्यमंत्री को क्या सलाह देते होंगे?, पत्रकारों के साथ कैसा इनका संबंध होगा? उसकी बानगी देखिये...
कल १४ अप्रैल था, यानी बाबा साहेब भीम राव अँबेडकर का जन्मदिन। सारा देश अपने – अपने ढंग से इस महापुरुष का जन्मदिन मना रहा था, उनके आगे कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा था, पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रेस एडवाइजर को इन सबसे अलग हटकर एक ऐसा फोटो हाथ लग गया कि वे इसे अपने फेसबुक वॉल पर डाल दिये और यह भी लिखा कि “आरक्षण का कमाल। भीमराव अंबेडकर जयंती पर नेताजी को माल्यार्पण। बिहार से आई तस्वीर” जिसे लगे हाथों Satya Prakash Prasad ने मुद्दा बनाया और इसकी गंभीरता को बहस का विषय बनाया। जो जरुरी था। बहस आज भी चल रही है। इस बहस में कुछ लोग अच्छी बातें भी कर रहे है, जिससे सामाजिक समरसता को बल मिल रहा है, वहीं इस पर कुछ लोग ऐसे भी है जो बाल का खाल निकाल कर पूरे समाज को कैसे आग में झोंक दिया जाय? इसका भी उपाय ढूंढ रहे है, जैसे सत्य प्रकाश प्रसाद के पोस्ट पर Vishnu Rajgadiya की टिप्पणी देखिये – जिसमें उन्होंने लिखा है कि “इससे यह भी समझ लें कि सवर्ण मानसिकता के निशाने पर सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं, दलित-पिछड़े और आदिवासी भी हैं।” यानी इस व्यक्ति के अंदर सवर्णों के प्रति कितना जहर भरा है, वह इस एक वाक्य से पता चल जाता है। भाई दलितों के उपर अत्याचार हो या किसी और पर, एक पत्रकार की ये भाषा या किसी सम्मानित व्यक्ति कि ये भाषा हो सकती है क्या? अगर कोई सवर्ण समुदाय में जन्म ले लिया तो आप उसके खिलाफ विष वमन करोगे, उसकी मानसिकता पर सवाल खड़ा करोगे, धिक्कार है ऐसी सोच पर और ऐसी मानसिकता पर।
और अब बात... योगेश किसलय से...
अगर किसी ने गलती से भी ऐसा कर दिया तो क्या आप इसे आरक्षण से जोड़ेंगे? क्या आपको पता है कि आप जिस जाति से आते है, वहां भी ऐसे लोगों की भरमार है, गलतियों और मूर्खताओं की जाति या आरक्षण से क्या मतलब? हमने बहुत सारे लोगों को देखा है जो विभिन्न जातियों से आते है, स्वयं को बहुत श्रेष्ठ मानते है, पर कुछ ऐसी गलतियां कर देते है, जिससे उनकी जगहंसाई हो जाती है, इसलिए इस पूरे प्रकरण को आरक्षण से जोड़ना निहायत बेवकूफी है, आपको स्वीकार करना पड़ेगा कि आपसे गलती हुई और अगर गलती हुई है तो उससे भी बड़ी बात, अपनी गलती को स्वीकार कर, क्षमा मांगना है, न कि उस पर धृष्टता के साथ अडिग रहना।
आपकी दूसरी गलती ये फोटो बिहार से आई है, आपको क्या लगता है कि बिहार के लोग ही ऐसा करने में माहिर है, ये मानसिकता भी ठीक नहीं, जबकि आपने एक व्यक्ति विशेष के हवाले से कमेंटस दिया है, जिसमें उस व्यक्ति विशेष ने आपको बताया है कि ये पूरा मामला हरदोई का है, तो अब आप बताये कि हरदोई कहां है?
अपना पक्ष...
गलतियां किसी से भी हो सकती हैं, उसे इस प्रकार से तूल देना, उसे जाति-धर्म से जोड़ना, आरक्षण की बातें करने लगना, इसे लेकर एक समुदाय को कटघरे में खड़ा करना, मूर्खता के सिवा कुछ नहीं, हम सब की जिम्मेवारी है, कि कहीं भी गलत होता है, तो उसका विरोध करें, पर बात का बतंगड़ और सामाजिक विद्वेष न फैलायें, एक बात और यह भी ध्यान रखे कि गलत करनेवाला कौन है? सामान्य व्यक्ति की गलतियों को सुधरने या सुधारने का मौका दीजिये, जबकि असामान्य व्यक्ति के लिए माफी की कोई जगह नहीं, यहां जो गलतियां हमें दीख रही है, वह अज्ञानता है औैर कुछ नहीं...
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