Sunday, April 30, 2017

सुकमा का दर्द...........

पिछले कुछ दिनों से सुकमा चर्चा में है। सुकमा में नरपिशाच रुपी नक्सलियों ने पच्चीस सीआरपीएफ के जवानों की नृशंस हत्या कर दी। इसके पूर्व में भी इन नरपिशाचों ने 12 जवानों की हत्या कर दी थी। इन शहीद हुए जवानों के परिवारों के दर्द पर मरहम लगाने के लिए सुप्रसिद्ध अभिनेता अक्षय कुमार और सुप्रसिद्ध क्रिकेटर गौतम गंभीर ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये है, जबकि अन्य धन्नासेठों के लिए सुकमा जैसी घटनाएं कोई महत्वपूर्ण नहीं रखती, वे आज भी अपने धनों की सुरक्षा के लिए तथा अपने नालायक बेटे-बेटियों के लिए धनसंग्रह पर ज्यादा ध्यान दे रहे है।
इधर कश्मीर में आतंकियों और इधर देश के अंदर नक्सली रुपी नरपिशाचों से लड़ने में देश का जवान शहीद हो रहा है और दूसरी ओर इन आतंकियों और नक्सली रुपी नरपिशाचों की सुरक्षा में स्वयं को बुद्धिजीवी कहनेवाला साम्यवादियों का दल इन नरपिशाचों के पक्ष में आकर खड़ा हो गया है। एक वायर रुपी पोर्टल में कुछ अनिल सिन्हा जैसे लोग सवाल उठा रहे है कि भाई आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सड़क बनाने की क्या जरुरत है? वह भी तब, जब आदिवासी चाहते ही नहीं कि उनके इलाके में सड़क बने।
ये वहीं लोग है, जो आदिवासी बहुल इलाकों में जब नक्सलियों का दल स्कूल भवनों को उड़ा देता है, तो बहुत ही प्रसन्न होते है, क्योंकि इन स्कूल भवनों के उड़ने से उन साम्यवादी बुद्धिजीवियों या पत्रकारों के बेटे-बेटियों का भविष्य नहीं प्रभावित होता, क्योंकि इनके बेटे-बेटियां तो देश के विभिन्न महानगरों में चलनेवाले प्रतिष्ठित स्कूलों की शोभा बन रहे होते है।
इन दिनों जब से नक्सलियों और आतंकियों के बीच गुप्त समझौते हुए है, नक्सलियों और आतंकियों ने अपना काम और तेजी से बढ़ा दिया है। आंतकियों ने कश्मीर में सेना पर आक्रमण प्रारंभ किये है तो आतंकियों को नैतिक रुप से समर्थन देने के लिए नक्सली रुपी नरपिशाचों ने देश के अंदर तबाही मचाना प्रारंभ कर दिया है।
जैसे...
• कश्मीर में सेना पर आक्रमण करने के लिए, उन पर हमले करने के लिए, उनकी हौसलों को पस्त करने के लिए पत्थरबाजों और पाकिस्तान परस्त अलगाववादियों ने हाथ मिलाकर सेना और अर्द्ध सैनिक बलों को अपना निशाना प्रारंभ किया है तो नक्सलियों ने देश के अंदर सेना और अर्द्धसैनिक बलों पर हमले करने शुरु कर दिये है ताकि देश पूर्णतः खंडित हो जाये।
• जैसे कश्मीर में सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवानों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें जनता की नजरों में गिराया जाता है, ठीक उसी प्रकार ये नरपिशाच रुपी नक्सली देश में रह रहे भोलेभाले आदिवासियों को इनके प्रति नफरत करने का पाठ पढ़ाते है और इसमें इनका मनोबल बढ़ा रहे होते है, वे लोग जो देश के महानगरों में, छोटे-छोटे शहरों में रहकर वैचारिक खाद देकर उन्हें पुष्ट करते है। इसके लिए इन बुद्धिजीवियों और चैनल में कार्य करनेवाले पत्रकारों को मुंहमांगी रकम विदेशों में रहनेवाले भारतविरोधी तत्वों से प्राप्त होते है, इनकी फंडिग इतनी मजबूत होती है कि पूछिये मत, पर दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए ये फटे पुराने थैले और कपडों का इस्तेमाल करते है, ताकि लोग इन्हें गरीबों का हमदर्द समझ सकें।
• ये आतंकवादी और नरपिशाच रुपी नक्सली हिन्दूओं को अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझते है, तथा धर्मांतरण के लिए ईसाई मिशनरियों और अन्य भारत विरोधी धार्मिक संगठनों के लिए भी काम करते है। ऐसा वे इसलिए करते है क्योंकि इनका मानना है कि जब तक हिन्दू बहुसंख्यक रहेंगे, भारत को तोड़ना मुश्किल रहेगा।
• कई साम्यवादी विचारधारा के लोग जो पूर्ण रुप से गुंडे होते है, ये पूरे देश को एक न मानकर कई देशों का समूह मानने का प्रचार करते हुए विदेशियों के आगे खिलौने बने हुए है तथा लोगों में भारत और भारतीय संस्कृति के खिलाफ विषवमन करने का प्रयास करते है।
• भारत में कई ऐसे चैनल है, जो पूर्ण रुपेण भारत विरोध के लिए काम करते है और समय-समय पर धर्मनिरपेक्षता की आड़ में भारत की अस्मिता पर गंभीर चोट करते है।
नक्सलीरुपी नरपिशाचों के बढ़ने के कारण और उसका निदान....
• भारत में नेता का बेटा नेता बनता है, अधिकारी का बेटा अधिकारी बनता है, फिल्मी हीरो का बेटा फिल्मी हीरो बनता है, कोई देश का जवान या अर्द्सैनिक बलों में शामिल होना नहीं चाहता, क्योंकि वो जानता है कि इसमें जो भी जाता है, मरने के लिए जाता है, हाल ही में पूर्व में जदयू में शामिल नेता जो आज भाजपा में चला गया, उसका तो बयान ही ऐसा था, पर देखिये थेथरई, राजनीतिज्ञों के, जबकि दूसरे देशों में ऐसा नहीं है। जब तक इस देश में इस प्रकार की मनोवृत्ति रहेगी, इस देश से न तो आतंकवाद खत्म होगा और न ही नरपिशाचों का समूह नक्सली।
• इस देश में देशभक्तों की संख्या कम है, ज्यादातर देशद्रोही है, ये भारतीय परंपरा है, ये कभी खत्म नहीं होगा। भगत सिंह को मरवानेवाला शोभा सिंह, महाराणा प्रताप के समय़ पैदा लेनेवाला मानसिंह, पृथ्वीराज चौहान के समय रहनेवाला जयचंद, महारानी लक्ष्मीबाई को मदद न कर अंग्रेजों के तलवे चाटनेवाला सिंधिया परिवार। ये उदाहरण है, जो बताते है कि भारतीय गद्दार होते है, उन्हें देशभक्ति के नाम पर दूसरे देशों के गद्दारों के तलवे चाटने में ज्यादा आनन्द आता है।
• भारत के राष्ट्रपिता है महात्मा गांधी, पर आप किसी भी साम्यवादी विचारधारावाली पार्टियों के कार्यालय में जाइये, आपको गांधी का चित्र नहीं मिलेगा, पर लेनिन, मार्क्स, स्टालिन, माओ के चित्र और उनकी प्रतिदिन पूजा होते आपको बराबर दीख जाया करेगा।
• भारत में सेना में या अर्द्ध सैनिक बलों में वहीं लोग शामिल होते है, जो सुलेशन से चमड़े साटने का काम करते है, जो खेतों-खलिहानों में काम करते है, जो फटेहाल है, जो कम पढ़े-लिखे है, जो गरीबी में ही जीते रहते है, कोई भी धनी-मानी व्यक्ति का परिवार देश के लिए मरना नहीं चाहता, उसका मानना है कि वो देश को मिट्टी में मिलाने के लिए पैदा हुआ है।
• हमारे देश में जो भी नेता है वह कड़ी निन्दा करने के लिए पैदा होता है, जब वह विपक्ष में होता है तो बड़ी-बड़ी ज्ञान की बातें करता है और जब सत्ता में होता है तो उसकी सारी ज्ञान चरने के लिए चली जाती है।
• हमारे देश में जो जवान देश के लिए शहीद होता है, जो वैज्ञानिक देश की सुरक्षा में, जो जासूस देश के लिए अपना प्राणोत्सर्ग करता है, उनके परिवारों के लिए, यह देश कुछ भी नहीं करता, पर जरा नेताओं को देखिये, एक बार विधायक या सांसद बन गये, उसके बाद विधायक या सांसद रहे या न रहे, जब तक जिंदा है, तब तक पेंशन लेंगे और मर गये तो उनकी बीवी और परिवार पेंशन का आनन्द लेंगे, पर अर्द्ध सैनिक बलों के जवान अगर देश के लिए मर भी जाये तो उनके परिवारों को सामान्य जिंदगी जीने के लिए तरस जायेंगे, उन्हें ये सरकार पेंशन तक नहीं देती। थूकता हूं, ऐसी सरकार पर, जो अपने देश के जवानों के परिवारों का सम्मान नहीं करना जानती।
कुल मिलाकर देखे तो फिलहाल अपना देश हिजड़ों का देश बनने में ज्यादा रुचि दिखा रहा है, अब फिल्में भी बनती है तो हिजड़े बनने का उपदेश दे रही होती है, यानी जवान हो जाओ, लड़की पटाओ, ऐश करो, बच्चे पैदा करो और फिर मर जाओ यानी जिंदगी मिलेगी न दुबारा के तर्ज पर खाओ, पीओ, ऐश करो। जो देश इस तर्ज पर चल रहा होता, वह कभी खड़ा नहीं होता, वहां आतंकियों और नरपिशाचों की ही चल रही होती है, यह देश तो आतंकियों और नरपिशाच रुपी नक्सलियों का आश्रयस्थली बन चुका है, जरा देखिये अपने आस-पास के ही देशों को जो कैसे जी रहे है? अरे ज्यादा दूर मत जाइये, छोटा सा देश भूटान और बड़ा सा देश चीन। आपके बगल में ही है, कैसे आगे बढ़ रहा है? और कैसे स्वयं को मजबूत कर रहा है? आप ही का माल, आप ही को दूसरे रुप में पेश कर रहा है और अपनी आर्थिक और सामरिक शक्ति को मजबूत कर रहा है और आप हिजड़े बनकर उसके आगे नाचने को विवश हो रहे है। शर्म आती है ऐसा परिदृश्य देखकर कि हम किस देश में रह रहे है?

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