अमिता पिछले पन्द्रह दिनो से अपने पति राज से झगड़ रही है कि पिछले साल जिस प्रकार से राज ने अक्षय तृतीया के दिन धोखा दिया था, वह इस बार धोखा नहीं देगा। इस साल अक्षय तृतीया के दिन सोने के कंठहार वह लेकर रहेगी, क्योंकि पिछले दिनों एक पंडित जी ने कहा था कि अक्षय तृतीया के दिन सोने का कोई न कोई आभूषण अवश्य खरीदना चाहिए, क्योंकि सोना कभी क्षय नहीं होता, उससे लाभ ही लाभ होता है, घर में सुख-शांति आती है, समृद्धि आती है। बेचारा राज, उसे पिछले साल की तरह इस साल भी आमदनी में कुछ खास वृद्धि नहीं हुई, पर पत्नी ने ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया है कि उसके हालत पस्त है। अमिता और राज की तरह ऐसे कई घर और परिवार है, जो अक्षय तृतीया के नये मिजाज से अपने घर को तबाह करने में लग गये है।
उसका कारण है कि इन दिनों नये ढंग के पंडितों, नये ढंग के अखबारों-चैनलों और नये ढंग के व्यापारियों ने जन्म ले लिया हैं। इन तीनों ने मिलकर इस प्रकार से अक्षय तृतीया की ब्रांडिंग कर दी है, कि आम आदमी इस पर्व के चक्कर में अपनी खुशियां बड़े-बड़े धन्ना सेठों के यहां गिरवी रखने को मजबूर हैं।
पंडितों (पंडित का मतलब जाति नहीं समझ लीजियेगा, अगर आप इसे जाति से तौलेंगे तो धोखे में पड़ जायेंगे, आजकल हर जातियों में नये – नये पंडित जन्म ले लिये है, जो गांवों-शहरों में जन्मकुंडली देखने का दुकान खोल लिये है, मैं उनकी बात कर रहा हूं) को देखिये तो वे बेसिर-पैर की बातें वैदिक मंत्रों से जोड़कर आम-आदमी को मूर्ख बना रहे है, जबकि उन वैदिक मंत्रों का उससे कोई लेना – देना नहीं होता।
दूसरी ओर अखबार और चैनलवाले बड़े-बड़े व्यापारियों, जिनकी दुकानें, व्यापारिक प्रतिष्ठानें शहरों में चल रही है, उनसे विज्ञापन इस प्रकार वसूलते है, वह भी उनके गर्दन पर छुरी रखकर, कि अगर वे विज्ञापन नहीं देंगे तो वे आयकर विभाग से उसकी शिकायत करके, उसकी सारी दुकानदारी मटियामेट कर देंगे और इस प्रकार व्यापारियों और मीडिया के लोगों का मधुर संबंध बनता है, भर-भर पेज विज्ञापन मुक्त कंठ से ये व्यापारी वर्ग अखबारों को उपलब्ध कराते है और इस प्रकार झूठ का व्यापार जमकर एक दिन चलता है, जिसका नाम है – अक्षय तृतीया।
मैं पूछता हूं कि आम जनता पूछे, उन ढोंगी पंडितों, अखबारवालों और व्यापारियों से कि वे बतायें कि...
• किस सनातन-वैदिक ग्रंथों में लिखा है कि हमारे भगवान राम सीता के संग, भगवान शिव पार्वती के संग, भगवान विष्णु लक्ष्मी के संग या कोई भी देवता अपनी-अपनी पत्नी के संग, किसी व्यापारी के यहां जाकर अक्षय तृतीया के दिन स्वर्णाभूषण या अन्य वस्तूएं खरीदी थी?
• अक्षय का अर्थ क्या होता है?
• दुनिया में वह कौन ऐसा चीज है, जो अक्षय है, जिसकी प्राप्ति के बिना जीवन सफल नहीं हो सकता, आगे नहीं बढ़ सकता?
• अक्षय तृतीया के दिन किस चीज को प्राप्त करने से जीवन सुलभ हो जाता है?
• आखिर अक्षय तृतीया के दिन सोने-चांदी या अन्य सुख-सुविधाओं के सामान क्यों नहीं खरीदने चाहिए?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर आपको कोई ढोंगी पंडित, कोई अखबार या कोई व्यापारियों का समूह नहीं देगा, क्योंकि ये सभी व्यापार के नाम पर यहां की जनता को बेवकूफ बना रहे है और अपना उल्लू सीधा करते है।
और
अब हम आपको सारे प्रश्नों का जवाब दे देते है...
• हमारे भगवान कभी भी विलासिता संबंधी वस्तुओं को खरीदने की सलाह नहीं देते, उनका केवल यहीं कहना होता है कि आप उन्हें स्मरण करें, जीवन सफल हो जायेगा।
• अक्षय का अर्थ होता है, जिसका कभी क्षय नहीं हो।
• दुनिया में जितनी वस्तूएं हैं, सभी क्षय होनेवाली है। उनका नाश तय है, इसलिए ये अक्षय हो ही नहीं सकती, इसलिए इन चीजों को खरीदना नहीं चाहिए, लेकिन दुनिया में एक चीज है, जिसका कभी क्षय नहीं होता, वह है प्रभुकृपा अथवा अपने से बड़ों का आशीर्वाद। यह ऐसी वस्तु है, जिसका कभी क्षय नहीं हो सकता, इसलिए हमें प्रभुकृपा और आशीर्वाद की ललक को जागृत करना चाहिए।
• जो भी व्यक्ति प्रभुकृपा और अपने से बडों का आशीर्वाद को त्याग कर भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए दिमाग लगाता है, वह उसी तरह नष्ट हो जाता है, जैसे भौतिक वस्तूएँ।
और अंत में,
इन ढोंगियों से पूछिये कि बताओं, राम, कृष्ण, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, कबीर, तुलसी, सूरदास, मीराबाई, लक्ष्मीबाई, सुभद्रा कुमारी चौहान जैसी महान विभूतियां किस साल अक्षय तृतीया के दिन भौतिक वस्तूओं की प्राप्ति के लिए, सुख-सुविधा की प्राप्ति के लिए अक्षय तृतीया तुम्हारे कथनानुसार मनाया था और जब उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो हमें आप ऐसा करने को प्रेरित क्यों कर रहे हो? आओ देश बनाएं, न कि स्वयं रसातल में चले जाये और ढोंगियों का बराबर शिकार बनते रहे।
उसका कारण है कि इन दिनों नये ढंग के पंडितों, नये ढंग के अखबारों-चैनलों और नये ढंग के व्यापारियों ने जन्म ले लिया हैं। इन तीनों ने मिलकर इस प्रकार से अक्षय तृतीया की ब्रांडिंग कर दी है, कि आम आदमी इस पर्व के चक्कर में अपनी खुशियां बड़े-बड़े धन्ना सेठों के यहां गिरवी रखने को मजबूर हैं।
पंडितों (पंडित का मतलब जाति नहीं समझ लीजियेगा, अगर आप इसे जाति से तौलेंगे तो धोखे में पड़ जायेंगे, आजकल हर जातियों में नये – नये पंडित जन्म ले लिये है, जो गांवों-शहरों में जन्मकुंडली देखने का दुकान खोल लिये है, मैं उनकी बात कर रहा हूं) को देखिये तो वे बेसिर-पैर की बातें वैदिक मंत्रों से जोड़कर आम-आदमी को मूर्ख बना रहे है, जबकि उन वैदिक मंत्रों का उससे कोई लेना – देना नहीं होता।
दूसरी ओर अखबार और चैनलवाले बड़े-बड़े व्यापारियों, जिनकी दुकानें, व्यापारिक प्रतिष्ठानें शहरों में चल रही है, उनसे विज्ञापन इस प्रकार वसूलते है, वह भी उनके गर्दन पर छुरी रखकर, कि अगर वे विज्ञापन नहीं देंगे तो वे आयकर विभाग से उसकी शिकायत करके, उसकी सारी दुकानदारी मटियामेट कर देंगे और इस प्रकार व्यापारियों और मीडिया के लोगों का मधुर संबंध बनता है, भर-भर पेज विज्ञापन मुक्त कंठ से ये व्यापारी वर्ग अखबारों को उपलब्ध कराते है और इस प्रकार झूठ का व्यापार जमकर एक दिन चलता है, जिसका नाम है – अक्षय तृतीया।
मैं पूछता हूं कि आम जनता पूछे, उन ढोंगी पंडितों, अखबारवालों और व्यापारियों से कि वे बतायें कि...
• किस सनातन-वैदिक ग्रंथों में लिखा है कि हमारे भगवान राम सीता के संग, भगवान शिव पार्वती के संग, भगवान विष्णु लक्ष्मी के संग या कोई भी देवता अपनी-अपनी पत्नी के संग, किसी व्यापारी के यहां जाकर अक्षय तृतीया के दिन स्वर्णाभूषण या अन्य वस्तूएं खरीदी थी?
• अक्षय का अर्थ क्या होता है?
• दुनिया में वह कौन ऐसा चीज है, जो अक्षय है, जिसकी प्राप्ति के बिना जीवन सफल नहीं हो सकता, आगे नहीं बढ़ सकता?
• अक्षय तृतीया के दिन किस चीज को प्राप्त करने से जीवन सुलभ हो जाता है?
• आखिर अक्षय तृतीया के दिन सोने-चांदी या अन्य सुख-सुविधाओं के सामान क्यों नहीं खरीदने चाहिए?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर आपको कोई ढोंगी पंडित, कोई अखबार या कोई व्यापारियों का समूह नहीं देगा, क्योंकि ये सभी व्यापार के नाम पर यहां की जनता को बेवकूफ बना रहे है और अपना उल्लू सीधा करते है।
और
अब हम आपको सारे प्रश्नों का जवाब दे देते है...
• हमारे भगवान कभी भी विलासिता संबंधी वस्तुओं को खरीदने की सलाह नहीं देते, उनका केवल यहीं कहना होता है कि आप उन्हें स्मरण करें, जीवन सफल हो जायेगा।
• अक्षय का अर्थ होता है, जिसका कभी क्षय नहीं हो।
• दुनिया में जितनी वस्तूएं हैं, सभी क्षय होनेवाली है। उनका नाश तय है, इसलिए ये अक्षय हो ही नहीं सकती, इसलिए इन चीजों को खरीदना नहीं चाहिए, लेकिन दुनिया में एक चीज है, जिसका कभी क्षय नहीं होता, वह है प्रभुकृपा अथवा अपने से बड़ों का आशीर्वाद। यह ऐसी वस्तु है, जिसका कभी क्षय नहीं हो सकता, इसलिए हमें प्रभुकृपा और आशीर्वाद की ललक को जागृत करना चाहिए।
• जो भी व्यक्ति प्रभुकृपा और अपने से बडों का आशीर्वाद को त्याग कर भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए दिमाग लगाता है, वह उसी तरह नष्ट हो जाता है, जैसे भौतिक वस्तूएँ।
और अंत में,
इन ढोंगियों से पूछिये कि बताओं, राम, कृष्ण, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, कबीर, तुलसी, सूरदास, मीराबाई, लक्ष्मीबाई, सुभद्रा कुमारी चौहान जैसी महान विभूतियां किस साल अक्षय तृतीया के दिन भौतिक वस्तूओं की प्राप्ति के लिए, सुख-सुविधा की प्राप्ति के लिए अक्षय तृतीया तुम्हारे कथनानुसार मनाया था और जब उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो हमें आप ऐसा करने को प्रेरित क्यों कर रहे हो? आओ देश बनाएं, न कि स्वयं रसातल में चले जाये और ढोंगियों का बराबर शिकार बनते रहे।
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