Sunday, April 23, 2017

पैसा फेको, तमाशा देखो..................

याद करिये, फिल्म “दुश्मन” का वह गीत जिसमें  सुप्रसिद्ध अभिनेत्री मुमताज बाइसकोप लेकर गांवों में भटकती है और बच्चों का मनोरंजन करती है, साथ ही गा रही होती है “देखो, देखो, बाइसकोप देखो, दिल्ली का कुतुबमीनार देखो, घोड़े पे बांका सवार देखो, देखो ये देखो ताजमहल, घर बैठे सारा संसार देखो, पैसा फेको तमाशा देखो...”
ठीक इसी तर्ज पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री तथा विभिन्न विभागों के मंत्रियों और अधिकारियों ने पुरस्कार लेना प्रारंभ कर दिया है, वे पुरस्कार देनेवाले कंपनियों, अखबारों, चैनलों और आयोजनकर्ताओं को विज्ञापन के नाम पर मुंहमांगी रकम उपलब्ध करा देते है और उसके बदले एक कागज और पीतल का टुकड़ा इन्हें सम्मान के नाम पर थमा दिया जाता है और फिर इसे सामान्य जनता को दिखाते फिरते है कि उन्होंने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया, जबकि सच्चाई कुछ दूसरी होती है।
इस प्रथा की शुरुआत तब से हुई, जब झारखण्ड बना। झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने जब सत्ता संभाली तो उन्हें भी कुछ अच्छा बनने का शौक चढ़ा। इसके लिए उनके आसपास के लोगों ने व्यवस्था शुरु की, इंडिया टूडे ग्रुप से संबंध ठीक-ठाक किया गया, जम कर उन्हें पैसे उपलब्ध कराये गये और देखते ही देखते इंडिया टूडे ग्रुप ने उन्हें भारत का तीसरा सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री घोषित कर दिया,  जबकि उसी समय डोमिसाइल आंदोलन ने इन्हें पूरे देश का सर्वाधिक अलोकप्रिय मुख्यमंत्री बना चुका था, स्थिति ऐसी बनी कि जो उस वक्त फिसले फिर कभी सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर नहीं पहुंच सके, जिन्हें उन्होंने अपना उत्तराधिकारी चुना, यानी हमारा इशारा अर्जुन मुंडा की ओर है, उन्होंने भी इनकी वो हालत कर दी कि ये कहीं के नहीं रहे, स्थिति आज भी वहीं है, इन्हीं की मदद से, इन्हीं की पार्टी के टिकट पर कुछ लोग चुनाव जीते और चुनाव जीतने के कुछ ही दिनों बाद वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास के गोद में जाकर बैठ गये।
इधर मैं देख रहा हूं कि रघुवर दास स्वयं को सर्वाधिक बेहतर घोषित करने के चक्कर में वहीं काम कर रहे है, जो पूर्व के मुख्यमंत्रियों ने किया है। जैसे याद करिये कुछ महीने पहले जीटीवी ने रांची में एक होटल में एक कार्यक्रम आयोजित किया और इसका पैसा भी राज्य सरकार से ही लिया और इसके बदले में मुख्यमंत्री रघुवर दास को एक सम्मान का टुकड़ा थमा दिया, यानी रघुवर भी खुश और माल लेकर जीटीवी भी खुश।
हाल ही में हैदराबाद में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, आयोजनकर्ताओं ने एक स्टाल लगाने के लिए जोर डाला और पैसे मांगे। मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र हैदराबाद पहुंचा और उसे भी पुरस्कृत कर दिया गया।
अभी – अभी पता चला है कि इंडिया टूडे ग्रुप ने राज्य के पर्यटन मंत्री अमर कुमार बाउरी को सम्मानित किया। उसके फोटो आइपीआरडी ने जारी किये, अखबारों में छपा। यह भी पैसे के लेन-देन पर ही आधारित है, नहीं तो जिसके लिए उन्हें एवार्ड मिला, जाकर उस स्थान को देख लीजिये, पता लग जायेगा।
इधर रांची में कुकुरमुत्ते की तरह इस प्रकार के सम्मान प्रदान करनेवालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है, और ऐसे कार्यक्रमों में वे लोग भी शामिल हो रहे है, जिन्हें इससे भी बड़ा सम्मान मिल चुका है, पर चूंकि सम्मान और प्रतिष्ठा के लालचियों को इससे क्या मतलब? उन्हें तो सम्मान चाहिए, कागज और पीतल के टुकड़े में सम्मान नजर आता है, इसलिए वे यहां भी आ धमकते है।
इस प्रकार के आयोजन करने में अखबारों और चैनलवाले आगे है, जबकि इन्हीं के तर्ज पर अब न्यूज एजेंसी में काम करनेवाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है, एक ने तो अपने पिता को ही सम्मान दिलाने के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त एक कोयला व्यवसायी से पैसे लिये, सम्मान कार्यक्रम आयोजित कराया और ले-दे संस्कृति के आधार पर वह स्वयं भी दूसरे जगह सम्मानित हो रहा है और बदले में जो उन्हें दूसरे जगह सम्मान दे रहा है, उसे अपने यहां बुलाकर उसे सम्मान कर रहा है। ये है, झारखण्ड का हाल।
आज ही देखिए, इस ले – दे संस्कृति का क्या हाल है? सम्मान पुरस्कार की क्या स्थिति है?  एक फिल्म “अजब सिंह की गजब कहानी” के निदेशक है ऋषि प्रकाश मिश्र। उनसे स्टार देनेवालों ने पैसे की मांग कर दी, जिसका विरोध उन्होंने अपने फेसबुक वॉल के माध्यम से कर दिया है, यानी सम्मान-पुरस्कार के नाम पर अर्थ संचय करनेवालों ने देश और समाज को किस स्तर पर पहुंचा दिया, आप समझ सकते है। किसी ने ठीक ही कहा है कि जब तक लालचियों का समूह जिंदा है, ठगों की दुनिया आबाद होती रहेगी।

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