ये किसकी हार है? दस लोग दस किस्म की बातें...
कुछ लोग इसे रघुवर सरकार की हार मानते हैं।
कुछ लोग इसे रघुवर दास की व्यक्तिगत हार मानते हैं। कुछ लोग रघुवर सरकार की गलत नीतियों की हार मानते हैं।
कुछ लोग इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हार मानते हैं। कुछ लोग झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की परंपरागत सीट मानते हुए भाजपा की हार को अवश्यम्भावी मानते हैं, पर हार के मूल कारण सिर्फ यहीं है, मैं इसे नहीं मानता... लिट्टीपाड़ा में भाजपा की हार के और भी कई कारण है, जिस पर ध्यान देना जरुरी है, और इस हार पर कोई ध्यान दे या न दें, पर रघुवर दास को इस पर ध्यान देना जरुरी है, अगर वे चाहते है कि उनका राजनीतिक कैरियर उज्जवल रहे।
एक बात और, जो हमारे फेसबुक से जुड़े है या जो भले ही न जुड़े हो, पर गाहे-बगाहे हमारे फेसबुक वाल पर आकर नजरे चार करते है, वे अवश्य जानते है कि मैंने 1 अप्रैल को क्या लिखा था... मैंने खोलकर लिख दिया था कि लिट्टीपाड़ा में भाजपा की हार तय, साइमन को जीत की अग्रिम बधाई। ये बाते मैंने ऐसे ही नहीं लिख दी थी, ये मैंने अपने अनुभवों के आधार पर लिखी थी।
जरा रघुवर दास बताये कि
क्या अर्जुन मुंडा चाहेंगे कि हेमलाल मुर्मू लिट्टीपाड़ा सीट से चुनाव जीत जाये और इस जीत का श्रेय रघुवर दास लेकर चले जाये और फिर इस जीत पर रघुवर दास ये कहें कि जो भाजपा में रहते बाबूलाल नहीं कर सकें, अर्जुन मुंडा नहीं कर सकें, वो रघुवर दास ने कर दिया। क्या भाजपा में ही रहकर लुईस मरांडी चाहेंगी कि वो लिट्टीपाड़ा से हेमलाल मुर्मू को जीता कर संताल परगना क्षेत्र में एक नये प्रतिद्वंदी को जन्म दे दें, जो आगे चलकर उनका ही पत्ता काट दें। ये रघुवर दास को स्वयं सोचना होगा।
यहीं नहीं, लिट्टीपाड़ा में भाजपा के हार के और भी कई कारण है...
पहला कारण भाजपा में आत्मघातियों की संख्या का सर्वाधिक होना, जो कहने को तो भाजपा में थे, पर वे दिल से चाहते थे कि यहां से झामुमो जीते और इस हार का ठीकरा वे रघुवर दास के माथे फोड़े और ये कहें कि रघुवर की नीतियों को जनता नकार दी, वे जिस विकास के मुद्दे पर चल रहे है, जनता उनसे इत्तेफाक नहीं रखती, जबकि सच्चाई यह है कि जिस विधानसभा सीट के आज चुनाव परिणाम आये है, वहां की जनता को भी विकास से कोई मतलब नहीं, वह विकास और वोट का मतलब तीर-धनुष से अधिक नहीं जानती। वहां स्थिति ऐसी है कि आप चाहे जो कर लें, वहां जीतेगा भी तीर-धनुष और हारेगा भी तीर-धनुष, क्योंकि वहां की जो सामाजिक स्थिति ऐसी बन चुकी है कि उसे भेद पाना सामान्य सी व्यक्ति की औकात नहीं।
दूसरा कारण रघुवर दास के कनफूंकवों का आंतक है, मुख्यमंत्री रघुवर दास कनफूंकवों से इस प्रकार घिर गये है, जैसे लगता है कि कनफूंकवे उनके सर्वश्रेष्ठ शुभचिन्तक हैं जबकि सच्चाई यह है कि इन कनफूंकवों ने इनकी हर जगह ऐसी जगहंसाई कर दी है कि अब ये चाहकर भी अपनी बेहतरी नहीं कर सकते, मोमेंटम झारखण्ड का आयोजन कर हाथी को उड़वा देना, उन्हीं में से एक है, जिसकी आलोचना झारखण्ड ही नहीं बल्कि दूसरी जगहों के लोगों ने भी की।
तीसरा कारण भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं को सम्मान न देकर, उनकी खिल्ली उड़ाना, मजाक उड़ाना भी है, साथ ही अपने मंत्रियों को नीचा दिखाते हुए नौकरशाहों को तवज्जों देना भी है, आये दिन देखा जा रहा है कि जहां भी मुख्यमंत्री रघुवर दास का कार्यक्रम होता है, यहां की मुख्य सचिव स्वयं को नेता से कम स्वयं को नहीं शो कर रही है, यहीं हाल राज्य के अन्य आईएएस अधिकारियों का है, स्थिति यह हो गयी कि मंत्रियों को, विधायकों को ये अब आईएएस अधिकारी भाव ही नहीं देते, इससे जनता और जनप्रतिनिधियों में सरकार के प्रति गुस्सा पनप रहा है, जो वोट के रुप में सामने आ रहा है। हाल ही में कई कार्यक्रमों में भाजपा विधायकों-मंत्रियों को भाषण देने का मौका ही नहीं मिल रहा और ये सारा मौका मिल जा रहा है, आईएएस अधिकारियों को, जिनका काम भाषण देना कम, और सरकार के कार्यों और विकासात्मक योजनाओं को क्रियान्वयन करना है, पर देखा जा रहा है कि नौकरशाह काम कम और भाषण कुछ ज्यादा देने लगे है, जिसका परिणाम सामने है।
चौथा कारण संघ से सरकार की दूरी। ज्यादातर राज्यों में जहां भाजपा की सरकारें है वहां संघ और सरकार में एक मधुर संबंध है, जिसके द्वारा सरकार अनेक कार्यक्रमों का सृजन कर समाज और राज्य को नई दिशा दे रहीं है, जबकि इसके उलट यहां की सरकार संघ के पदाधिकारियों और उसके अनुषांगिक संगठनों को ही ठेंगा दिखा रही है, जिससे संघ के लोगों ने लिट्टीपाड़ा विधानसभा चुनाव से स्वयं को दूर कर लिया।
पांचवा कारण रघुवर सरकार ऐसे-ऐसे लोगों को आगे बढ़ा रहीं है, जो किसी भी दृष्टिकोण से भाजपा को पसंद नहीं करते, ऐसे लोगों को हर प्रकार से सहयोग कर रही है, उन्हें पुरस्कृत कर रही है, उन्हें खुलकर आर्थिक मदद कर रही है और जो लोग इनके लिये जान देते है, उन्हें ही शोषण कर रही है, आज ही का परिणाम देखिये एक झामुमो के परिवार को रघुवर सरकार ने कई बार पुरस्कृत किया, उसे मोमेंटम झारखण्ड में बुलाकर उसकी आरती उतारी और आज वहीं शख्स रघुवर दास को फेसबुक वॉल पर गाली दे रहा है, पर रघुवर दास को ये मालूम हो तब न...
छठा कारण रघुवर दास की कार्यप्रणाली के खिलाफ बढ़ता असंतोष, जिसकी जानकारी मुख्यमंत्री रघुवर दास को नहीं है, क्योंकि कनफूंकवें उन्हें इस प्रकार से अपहरण कर चुके है, कि उन्हें सही और गलत की जानकारी का ऐहसास नहीं, मैं देख रहा हूं कि जब भी कोई उन्हें सही जानकारी देने की कोशिश करता है, कनफूंकवे उसी व्यक्ति की मुख्यमंत्री के द्वारा मुख्यमंत्री का कान फूंककर, उसकी बांट लगा देते है, जिसका परिणाम सामने है, पहले लोहरदगा, फिर पांकी और अब लिट्टीपाड़ा।
सातवां कारण राज्य में विकास योजनाओं की लूट का बढ़ता प्रचलन- राज्य के आईएएस-आईपीएस अधिकारियों का दल जमकर लूट मचा रहा है और इस लूट में वे अपने घर के बेरोजगार बच्चों को भी शामिल कर रहे है, ठेकेदारों को कहा जा रहा है कि वे अपनी कंपनी में उनके बच्चों के शेयर दें, जिसका लाभ ठेकेदार और वरीय अधिकारी दोनों मिलकर सहजीविता के आधार पर उठा रहे हैं, अगर यहीं सब चलता रहा तो एक दिन झारखण्ड में एक भी विकास योजनाएं जमीन पर नहीं दिखेंगी, जबकि लूटेरों के घर और परिवार मालामाल होकर झारखण्ड से बाहर बस जायेंगे।
अभी भी वक्त है, मुख्यमंत्री रघुवर दास संभल जाये, नहीं तो आनेवाले समय में भाजपा एक भी लोकसभा की सीट नहीं जीत पायेंगी और न विधानसभा में उनका नाम लेनेवाला होगा।
जरा मुख्यमंत्री खुद सोचे, उन्होंने कनफूंकवों के कहने पर सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं को एक लाख स्मार्टफोन दिलवा दिये, तो क्या हुआ, वोट मिल गया... जिन आदिम जनजाति के युवाओं को नियुक्ति पत्र मिल चुकी थी, कनफूंकवों के कहने पर फिर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों नियुक्ति पत्र दिलवा दिया, क्या इससे वोट मिल गया... मैं पुछता हूँ कि साहेबगंज में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों इसी समय पुल का शिलान्यास कराने की क्या जरुरत थी, आपने सोचा कि इसका माइलेज मिलेगा और हो गया उलटा... अरे भाई जनता की नब्ज आप नहीं जानते, इसलिए हम बताते है, कनफूंकवों की मत सुनिये, नौकरशाहों पर लगाम लगाइये, जो लोग योग्य है, उन्हें इज्जत दीजिये, जो गलत कर रहे है, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाइये, अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाइये, अपने परिवार के लोगों पर लगाम लगाईये तथा बेहतर झारखण्ड के निर्माण में प्रमुख भुमिका निभाइये पर आप ये बातें मानेंगे, हमें नहीं लगता, क्योंकि कनफूंकवों से आगे आप निकल ही नहीं पायेंगे।
दूसरी ओर झामुमो के हेमंत सोरेन को हम बधाई जरुर देंगे, क्योंकि जहां एक ओर सत्ता की सारी मशीनिरियां उनकी पार्टी को हराने में लगी थी, हेमंत ने सारी मशीनरियों को धत्ता बताते हुए अपने कार्यकर्ताओं की मदद से भाजपा को उसकी औकात बताई, साइमन को जीत दिलाई, पर साइमन कल क्या करेंगे? खुद साइमन को नहीं पता, इसलिए हेमंत को ज्यादा कूदने की आवश्यकता नहीं, बल्कि वे सामान्य ढंग से इस जीत को ले, ज्यादा न उछले, क्योंकि भाजपा की हार, उसके लोगों ने खुद इस बार मिलकर कराई है...
कुछ लोग इसे रघुवर सरकार की हार मानते हैं।
कुछ लोग इसे रघुवर दास की व्यक्तिगत हार मानते हैं। कुछ लोग रघुवर सरकार की गलत नीतियों की हार मानते हैं।
कुछ लोग इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हार मानते हैं। कुछ लोग झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की परंपरागत सीट मानते हुए भाजपा की हार को अवश्यम्भावी मानते हैं, पर हार के मूल कारण सिर्फ यहीं है, मैं इसे नहीं मानता... लिट्टीपाड़ा में भाजपा की हार के और भी कई कारण है, जिस पर ध्यान देना जरुरी है, और इस हार पर कोई ध्यान दे या न दें, पर रघुवर दास को इस पर ध्यान देना जरुरी है, अगर वे चाहते है कि उनका राजनीतिक कैरियर उज्जवल रहे।
एक बात और, जो हमारे फेसबुक से जुड़े है या जो भले ही न जुड़े हो, पर गाहे-बगाहे हमारे फेसबुक वाल पर आकर नजरे चार करते है, वे अवश्य जानते है कि मैंने 1 अप्रैल को क्या लिखा था... मैंने खोलकर लिख दिया था कि लिट्टीपाड़ा में भाजपा की हार तय, साइमन को जीत की अग्रिम बधाई। ये बाते मैंने ऐसे ही नहीं लिख दी थी, ये मैंने अपने अनुभवों के आधार पर लिखी थी।
जरा रघुवर दास बताये कि
क्या अर्जुन मुंडा चाहेंगे कि हेमलाल मुर्मू लिट्टीपाड़ा सीट से चुनाव जीत जाये और इस जीत का श्रेय रघुवर दास लेकर चले जाये और फिर इस जीत पर रघुवर दास ये कहें कि जो भाजपा में रहते बाबूलाल नहीं कर सकें, अर्जुन मुंडा नहीं कर सकें, वो रघुवर दास ने कर दिया। क्या भाजपा में ही रहकर लुईस मरांडी चाहेंगी कि वो लिट्टीपाड़ा से हेमलाल मुर्मू को जीता कर संताल परगना क्षेत्र में एक नये प्रतिद्वंदी को जन्म दे दें, जो आगे चलकर उनका ही पत्ता काट दें। ये रघुवर दास को स्वयं सोचना होगा।
यहीं नहीं, लिट्टीपाड़ा में भाजपा के हार के और भी कई कारण है...
पहला कारण भाजपा में आत्मघातियों की संख्या का सर्वाधिक होना, जो कहने को तो भाजपा में थे, पर वे दिल से चाहते थे कि यहां से झामुमो जीते और इस हार का ठीकरा वे रघुवर दास के माथे फोड़े और ये कहें कि रघुवर की नीतियों को जनता नकार दी, वे जिस विकास के मुद्दे पर चल रहे है, जनता उनसे इत्तेफाक नहीं रखती, जबकि सच्चाई यह है कि जिस विधानसभा सीट के आज चुनाव परिणाम आये है, वहां की जनता को भी विकास से कोई मतलब नहीं, वह विकास और वोट का मतलब तीर-धनुष से अधिक नहीं जानती। वहां स्थिति ऐसी है कि आप चाहे जो कर लें, वहां जीतेगा भी तीर-धनुष और हारेगा भी तीर-धनुष, क्योंकि वहां की जो सामाजिक स्थिति ऐसी बन चुकी है कि उसे भेद पाना सामान्य सी व्यक्ति की औकात नहीं।
दूसरा कारण रघुवर दास के कनफूंकवों का आंतक है, मुख्यमंत्री रघुवर दास कनफूंकवों से इस प्रकार घिर गये है, जैसे लगता है कि कनफूंकवे उनके सर्वश्रेष्ठ शुभचिन्तक हैं जबकि सच्चाई यह है कि इन कनफूंकवों ने इनकी हर जगह ऐसी जगहंसाई कर दी है कि अब ये चाहकर भी अपनी बेहतरी नहीं कर सकते, मोमेंटम झारखण्ड का आयोजन कर हाथी को उड़वा देना, उन्हीं में से एक है, जिसकी आलोचना झारखण्ड ही नहीं बल्कि दूसरी जगहों के लोगों ने भी की।
तीसरा कारण भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं को सम्मान न देकर, उनकी खिल्ली उड़ाना, मजाक उड़ाना भी है, साथ ही अपने मंत्रियों को नीचा दिखाते हुए नौकरशाहों को तवज्जों देना भी है, आये दिन देखा जा रहा है कि जहां भी मुख्यमंत्री रघुवर दास का कार्यक्रम होता है, यहां की मुख्य सचिव स्वयं को नेता से कम स्वयं को नहीं शो कर रही है, यहीं हाल राज्य के अन्य आईएएस अधिकारियों का है, स्थिति यह हो गयी कि मंत्रियों को, विधायकों को ये अब आईएएस अधिकारी भाव ही नहीं देते, इससे जनता और जनप्रतिनिधियों में सरकार के प्रति गुस्सा पनप रहा है, जो वोट के रुप में सामने आ रहा है। हाल ही में कई कार्यक्रमों में भाजपा विधायकों-मंत्रियों को भाषण देने का मौका ही नहीं मिल रहा और ये सारा मौका मिल जा रहा है, आईएएस अधिकारियों को, जिनका काम भाषण देना कम, और सरकार के कार्यों और विकासात्मक योजनाओं को क्रियान्वयन करना है, पर देखा जा रहा है कि नौकरशाह काम कम और भाषण कुछ ज्यादा देने लगे है, जिसका परिणाम सामने है।
चौथा कारण संघ से सरकार की दूरी। ज्यादातर राज्यों में जहां भाजपा की सरकारें है वहां संघ और सरकार में एक मधुर संबंध है, जिसके द्वारा सरकार अनेक कार्यक्रमों का सृजन कर समाज और राज्य को नई दिशा दे रहीं है, जबकि इसके उलट यहां की सरकार संघ के पदाधिकारियों और उसके अनुषांगिक संगठनों को ही ठेंगा दिखा रही है, जिससे संघ के लोगों ने लिट्टीपाड़ा विधानसभा चुनाव से स्वयं को दूर कर लिया।
पांचवा कारण रघुवर सरकार ऐसे-ऐसे लोगों को आगे बढ़ा रहीं है, जो किसी भी दृष्टिकोण से भाजपा को पसंद नहीं करते, ऐसे लोगों को हर प्रकार से सहयोग कर रही है, उन्हें पुरस्कृत कर रही है, उन्हें खुलकर आर्थिक मदद कर रही है और जो लोग इनके लिये जान देते है, उन्हें ही शोषण कर रही है, आज ही का परिणाम देखिये एक झामुमो के परिवार को रघुवर सरकार ने कई बार पुरस्कृत किया, उसे मोमेंटम झारखण्ड में बुलाकर उसकी आरती उतारी और आज वहीं शख्स रघुवर दास को फेसबुक वॉल पर गाली दे रहा है, पर रघुवर दास को ये मालूम हो तब न...
छठा कारण रघुवर दास की कार्यप्रणाली के खिलाफ बढ़ता असंतोष, जिसकी जानकारी मुख्यमंत्री रघुवर दास को नहीं है, क्योंकि कनफूंकवें उन्हें इस प्रकार से अपहरण कर चुके है, कि उन्हें सही और गलत की जानकारी का ऐहसास नहीं, मैं देख रहा हूं कि जब भी कोई उन्हें सही जानकारी देने की कोशिश करता है, कनफूंकवे उसी व्यक्ति की मुख्यमंत्री के द्वारा मुख्यमंत्री का कान फूंककर, उसकी बांट लगा देते है, जिसका परिणाम सामने है, पहले लोहरदगा, फिर पांकी और अब लिट्टीपाड़ा।
सातवां कारण राज्य में विकास योजनाओं की लूट का बढ़ता प्रचलन- राज्य के आईएएस-आईपीएस अधिकारियों का दल जमकर लूट मचा रहा है और इस लूट में वे अपने घर के बेरोजगार बच्चों को भी शामिल कर रहे है, ठेकेदारों को कहा जा रहा है कि वे अपनी कंपनी में उनके बच्चों के शेयर दें, जिसका लाभ ठेकेदार और वरीय अधिकारी दोनों मिलकर सहजीविता के आधार पर उठा रहे हैं, अगर यहीं सब चलता रहा तो एक दिन झारखण्ड में एक भी विकास योजनाएं जमीन पर नहीं दिखेंगी, जबकि लूटेरों के घर और परिवार मालामाल होकर झारखण्ड से बाहर बस जायेंगे।
अभी भी वक्त है, मुख्यमंत्री रघुवर दास संभल जाये, नहीं तो आनेवाले समय में भाजपा एक भी लोकसभा की सीट नहीं जीत पायेंगी और न विधानसभा में उनका नाम लेनेवाला होगा।
जरा मुख्यमंत्री खुद सोचे, उन्होंने कनफूंकवों के कहने पर सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं को एक लाख स्मार्टफोन दिलवा दिये, तो क्या हुआ, वोट मिल गया... जिन आदिम जनजाति के युवाओं को नियुक्ति पत्र मिल चुकी थी, कनफूंकवों के कहने पर फिर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों नियुक्ति पत्र दिलवा दिया, क्या इससे वोट मिल गया... मैं पुछता हूँ कि साहेबगंज में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों इसी समय पुल का शिलान्यास कराने की क्या जरुरत थी, आपने सोचा कि इसका माइलेज मिलेगा और हो गया उलटा... अरे भाई जनता की नब्ज आप नहीं जानते, इसलिए हम बताते है, कनफूंकवों की मत सुनिये, नौकरशाहों पर लगाम लगाइये, जो लोग योग्य है, उन्हें इज्जत दीजिये, जो गलत कर रहे है, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाइये, अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाइये, अपने परिवार के लोगों पर लगाम लगाईये तथा बेहतर झारखण्ड के निर्माण में प्रमुख भुमिका निभाइये पर आप ये बातें मानेंगे, हमें नहीं लगता, क्योंकि कनफूंकवों से आगे आप निकल ही नहीं पायेंगे।
दूसरी ओर झामुमो के हेमंत सोरेन को हम बधाई जरुर देंगे, क्योंकि जहां एक ओर सत्ता की सारी मशीनिरियां उनकी पार्टी को हराने में लगी थी, हेमंत ने सारी मशीनरियों को धत्ता बताते हुए अपने कार्यकर्ताओं की मदद से भाजपा को उसकी औकात बताई, साइमन को जीत दिलाई, पर साइमन कल क्या करेंगे? खुद साइमन को नहीं पता, इसलिए हेमंत को ज्यादा कूदने की आवश्यकता नहीं, बल्कि वे सामान्य ढंग से इस जीत को ले, ज्यादा न उछले, क्योंकि भाजपा की हार, उसके लोगों ने खुद इस बार मिलकर कराई है...
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