अगर ये मुख्यमंत्री की भाषा है...
तो माफ करें, राज्य की हर जनता को ऐसी भाषा पर गहरी आपत्ति होनी चाहिए...
मुख्यमंत्री रघुवर दास जी अपनी भाषा को संयंमित रखिये, नहीं तो बाद में आपको ही बहुत दिक्कत हो जायेगी। अपने से बड़ों और विपक्ष का आदर करना आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि आप सत्ता के सर्वोच्च पायदान पर खड़े हैं। आपकी भाषा से ही राज्य की जनता का मान बढ़ेगा और मान घटेगा भी।
आपने कल शिकारीपाड़ा में जिस प्रकार से संबोधन के क्रम में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और विरोधी दल के नेता हेमंत सोरेन के खिलाफ आग उगला, वह सहीं नहीं हैं। आपका यह कहना कि कब तक ढोओगे शिबू सोरेन को, दर्शाता है कि लिट्टीपाड़ा की हार, आपको अंदर से बेचैन कर दी है, आप ठीक से कई दिनों तक सोये नहीं है, रह-रह कर लिट्टीपाड़ा की हार आपको टीस दे रही है। आप इससे उबरिये, क्योंकि आप मुख्यमंत्री है।
आप ये गांठ बांध लीजिये कि शिबू सोरेन झारखण्ड आंदोलन की उपज है, उन्हें दिशोम गुरु कहा जाता है, झारखण्ड के कई इलाकों में मैंने स्वयं देखा है कि उन्हें भगवान की तरह पूजा जाता है, और ये सब ऐसे ही नहीं है, उन्होंने झारखण्ड को दिया है, आज भी उनकी सादगी, हर झारखण्डी को भा जाता है। ये अलग बात है कि पुत्र-परिवार मोह में, वे भी स्वयं को उबार नहीं पाये। रही बात कि उन्होंने रिश्वत लेकर सरकार बचायी, पर आप ये क्यों भूल जाते है कि आपकी पार्टी में भी एक राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके एक व्यक्ति ने नोट गिने थे, जिसे पूरा देश टीवी पर देखा था। आज सच्चाई यह है कि कोई भी राजनेता दूध का धुला नहीं है।
आज जिस झारखण्ड के आप मुख्यमंत्री है, वह शिबू सोरेन का ही देन है, आपकी पार्टी तो वनांचल का सपना देख रही थी। आप ये भी नहीं भूले कि कभी आप उनके नेतृत्व में उप मुख्यमंत्री बन कर राज्य की जनता को सेवा दी है, अगर आप से यहीं कोई सवाल पूछे कि जो शिबू सोरेन के बारे में आपने कल बातें कहीं, आपका ये ज्ञान 2010 में कहां चला गया था? जब आप विधानसभा में उनके बगल में उपमुख्यमंत्री के रुप में बैठा करते थे, यानी साथ में है तो ठीक और विरोध में हो गये तो गलत। कड़वा-कड़वा थू-थू और मीठा-मीठा चप-चप।
दूसरी ओर नेता विरोधी दल हेमंत सोरेन को लूटेरा और डकैत कहना क्या सहीं है? आपने अपने विरोधियों को डकैत और लूटेरा कहना कब से सीख लिया? कौन सीखा रहा है आपको? अपने विरोधियों के लिए इस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल करने के लिए, ये तो गैर-जिम्मेदाराना वक्तव्य है। मैंने नेता विरोधी दल के रुप में संसद में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज को भी देखा है, साथ ही प्रधानमंत्री के रुप में अटल बिहारी वाजपेयी को भी देखा है, पर आज तक अपने विरोधियों के लिए आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग करते, मैंने भाजपा के इन महान नेताओं को नहीं देखा।
आप ये न भूलें कि आप भाजपा जैसी पार्टी के नेता है, झारखण्ड जैसे राज्य के मुख्यमंत्री है, जहां की भाषा में मिठास है, जहां की बोली में मिसरी घुली हुई है, कृपया अपने इस प्रकार के वक्तव्य से स्वयं को छोटा न करें और भाजपा के खिलाफ एक बड़ी फौज खड़ी करने की कोशिश न करें, क्योंकि लोकतंत्र में जनता सभी नेताओं और पार्टियों को देख रही होती है, अगर शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत ने गलत की है, तो आज उनकी स्थिति क्या है? वे सत्ता से बाहर है।
वक्त आने पर लोकतंत्र में जनता स्वयं ही निर्णय कर देती है, आप इसकी चिंता क्यों कर रहे है? आप चिंता करना छोड़िये। जिस प्रकार की भाषा आपने शिकारीपाड़ा में प्रयोग किया है, अगर ऐसी भाषा का प्रयोग आपने एकाध जगह और कर दिया, तो समझ लीजिये, आपने झामुमो को जीवनदान दे दिया। ऐसे भी आप जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग कर रहे है, आपके आस-पास रहनेवाले लोग भी उसी प्रकार की भाषा का प्रयोग करने लगे है। जो किसी भी प्रकार से सहीं नहीं है। सत्ता का दंभ बहुत को नीचे ले जाता है। ढाई साल पूरे होने को है, ढाई साल और खत्म होने में कितने समय लगेंगे। फिलहाल जो स्थिति है, उसे जानने की कोशिश करें। हेमंत धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहे है और आपकी स्थिति डगमगा रही है, शायद आपको नहीं पता।
तो माफ करें, राज्य की हर जनता को ऐसी भाषा पर गहरी आपत्ति होनी चाहिए...
मुख्यमंत्री रघुवर दास जी अपनी भाषा को संयंमित रखिये, नहीं तो बाद में आपको ही बहुत दिक्कत हो जायेगी। अपने से बड़ों और विपक्ष का आदर करना आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि आप सत्ता के सर्वोच्च पायदान पर खड़े हैं। आपकी भाषा से ही राज्य की जनता का मान बढ़ेगा और मान घटेगा भी।
आपने कल शिकारीपाड़ा में जिस प्रकार से संबोधन के क्रम में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और विरोधी दल के नेता हेमंत सोरेन के खिलाफ आग उगला, वह सहीं नहीं हैं। आपका यह कहना कि कब तक ढोओगे शिबू सोरेन को, दर्शाता है कि लिट्टीपाड़ा की हार, आपको अंदर से बेचैन कर दी है, आप ठीक से कई दिनों तक सोये नहीं है, रह-रह कर लिट्टीपाड़ा की हार आपको टीस दे रही है। आप इससे उबरिये, क्योंकि आप मुख्यमंत्री है।
आप ये गांठ बांध लीजिये कि शिबू सोरेन झारखण्ड आंदोलन की उपज है, उन्हें दिशोम गुरु कहा जाता है, झारखण्ड के कई इलाकों में मैंने स्वयं देखा है कि उन्हें भगवान की तरह पूजा जाता है, और ये सब ऐसे ही नहीं है, उन्होंने झारखण्ड को दिया है, आज भी उनकी सादगी, हर झारखण्डी को भा जाता है। ये अलग बात है कि पुत्र-परिवार मोह में, वे भी स्वयं को उबार नहीं पाये। रही बात कि उन्होंने रिश्वत लेकर सरकार बचायी, पर आप ये क्यों भूल जाते है कि आपकी पार्टी में भी एक राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके एक व्यक्ति ने नोट गिने थे, जिसे पूरा देश टीवी पर देखा था। आज सच्चाई यह है कि कोई भी राजनेता दूध का धुला नहीं है।
आज जिस झारखण्ड के आप मुख्यमंत्री है, वह शिबू सोरेन का ही देन है, आपकी पार्टी तो वनांचल का सपना देख रही थी। आप ये भी नहीं भूले कि कभी आप उनके नेतृत्व में उप मुख्यमंत्री बन कर राज्य की जनता को सेवा दी है, अगर आप से यहीं कोई सवाल पूछे कि जो शिबू सोरेन के बारे में आपने कल बातें कहीं, आपका ये ज्ञान 2010 में कहां चला गया था? जब आप विधानसभा में उनके बगल में उपमुख्यमंत्री के रुप में बैठा करते थे, यानी साथ में है तो ठीक और विरोध में हो गये तो गलत। कड़वा-कड़वा थू-थू और मीठा-मीठा चप-चप।
दूसरी ओर नेता विरोधी दल हेमंत सोरेन को लूटेरा और डकैत कहना क्या सहीं है? आपने अपने विरोधियों को डकैत और लूटेरा कहना कब से सीख लिया? कौन सीखा रहा है आपको? अपने विरोधियों के लिए इस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल करने के लिए, ये तो गैर-जिम्मेदाराना वक्तव्य है। मैंने नेता विरोधी दल के रुप में संसद में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज को भी देखा है, साथ ही प्रधानमंत्री के रुप में अटल बिहारी वाजपेयी को भी देखा है, पर आज तक अपने विरोधियों के लिए आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग करते, मैंने भाजपा के इन महान नेताओं को नहीं देखा।
आप ये न भूलें कि आप भाजपा जैसी पार्टी के नेता है, झारखण्ड जैसे राज्य के मुख्यमंत्री है, जहां की भाषा में मिठास है, जहां की बोली में मिसरी घुली हुई है, कृपया अपने इस प्रकार के वक्तव्य से स्वयं को छोटा न करें और भाजपा के खिलाफ एक बड़ी फौज खड़ी करने की कोशिश न करें, क्योंकि लोकतंत्र में जनता सभी नेताओं और पार्टियों को देख रही होती है, अगर शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत ने गलत की है, तो आज उनकी स्थिति क्या है? वे सत्ता से बाहर है।
वक्त आने पर लोकतंत्र में जनता स्वयं ही निर्णय कर देती है, आप इसकी चिंता क्यों कर रहे है? आप चिंता करना छोड़िये। जिस प्रकार की भाषा आपने शिकारीपाड़ा में प्रयोग किया है, अगर ऐसी भाषा का प्रयोग आपने एकाध जगह और कर दिया, तो समझ लीजिये, आपने झामुमो को जीवनदान दे दिया। ऐसे भी आप जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग कर रहे है, आपके आस-पास रहनेवाले लोग भी उसी प्रकार की भाषा का प्रयोग करने लगे है। जो किसी भी प्रकार से सहीं नहीं है। सत्ता का दंभ बहुत को नीचे ले जाता है। ढाई साल पूरे होने को है, ढाई साल और खत्म होने में कितने समय लगेंगे। फिलहाल जो स्थिति है, उसे जानने की कोशिश करें। हेमंत धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहे है और आपकी स्थिति डगमगा रही है, शायद आपको नहीं पता।
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