Saturday, February 4, 2017

बियॉन्ड न्यूज.............

बियॉन्ड न्यूज, जब इस पुस्तक का लोकार्पण हो रहा था, तो मैं रांची में ही था, पर यह पुस्तक उस वक्त मेरे हाथ नहीं लगी। पुस्तक लोकार्पण के दूसरे दिन समाचार पत्रों को जब, मैं उलट रहा था। तब जाकर पता चला कि शक्ति व्रत और संजीव शेखर की लिखित पुस्तक बियॉन्ड न्यूज का लोकार्पण हुआ है। लोकार्पण के वक्त झारखण्ड विधानसभा के प्रथम विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा तथा अन्य विद्वान मौजूद थे। हम आपको बता दें कि संजीव शेखर से मेरी पहली मुलाकात उस वक्त हुई, जब वे स्टार न्यूज संवाददाता बनकर पहली बार रांची आये। बेहद ही शालीन और पत्रकारिता के प्रति गहरी निष्ठा, उनके स्वभाव में है, क्योंकि इनका बैक ग्राउंड बहुत ही प्रभावशाली रहा है। इनके पिता डा. शालीग्राम यादव बिहार के जाने माने शिक्षाविद् थे, जो आज दुनिया में नहीं है, पर उनकी कृति आज भी जीवित है। उपनिषद कहता भी है – कीर्तियस्य स जीवति।
विवादरहित संजीव अपने स्वभाव के कारण पत्रकार मित्रों में भी जल्दी ही लोकप्रिय हो जाते है, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यह लोकप्रियता सभी को नसीब नहीं होती। बियॉन्ड न्यूज पुस्तक में तीन पत्रकार मित्रों की कहानी है। जो संजय से जुड़े है। संजीव ने अपने पुस्तक में तीन पत्रकारों के माध्यम से वर्तमान पत्रकारिता में हो रहे ह्रास और सत्यनिष्ठ पत्रकार के दर्द को उकेरा है। एक ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार कैसे जीता है?, कैसे उसके बॉस, उसके तथाकथित पत्रकार मित्र जो दावा करते है कि उनके साथ है, पर समय – समय पर जलील करने से नहीं चूकते? कैसे एक गांव में एक पत्रकार तिल-तिल मर रहा होता है और बड़े महानगरों से आनेवाले संपादक और वरीय संवाददाताओं को दल उनका शोषण करने से नहीं चूकता? कैसे एक ईमानदार पत्रकार जो पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान एक आदर्श को लेकर आगे की ओर बढ़ता है, पर जैसे ही सच्चाई से भेंट होती है, तो उसके आदर्श एक – एक कर धूल – धूसरित होते जाते है? इस पुस्तक में एक पत्रकार के माता-पिता का दर्द तो दिखेगा ही, साथ ही उसकी आदर्श पत्नी का दर्द भी महसूस होगा कि वह कैसे अपने पति को ढाढ़स बंधाती है।
संजय के एक मित्र सजल जिसकी पत्नी मानसिक आरोग्यशाला में भर्ती है, जिसकी छोटी बेटी वसुंधरा है, फिर भी वह पत्रकारिता कर रहा है, अपने उसूलों से समझौता नहीं कर रहा, अपनी बीमार पत्नी को भी देख रहा है, छोटी बिटिया को भी संभाल रहा है, साथ ही पत्रकारिता का धर्म भी निर्वहण कर रहा है, पर उसके इस बलिदान को उसका संपादक नहीं समझ रहा, जब संपादक और अखबार की धज्जियां उड़ती है तो उसे संजय के मित्र सजल की याद आती है...
कमाल है, पत्रकारिता के आदर्श एक – एक कर धूल धूसरित हो रहे है, और उस धूल – धूसरित हो रही व्यवस्था को प्रणाम कर दोनों संजय और सजल आज एक अच्छे मुकाम पर है, सजल की बेटी वसुंधरा तो आईएएस आफिसर है, पर अंजन आज भी पत्रकारिता कर रहा है और उसे तिल-तिल मरना पड़ रहा है, वह जलील भी हो रहा है, जिसके लिए वह सब कुछ लूटा रहा है, वह उसे समझने को तैयार नहीं है...
जरा इसके संवाद देखिये...
संजय के पिताजी का ये कहना – ये सब जिंदगी का एक हिस्सा है। गिरना – उठना लगा रहता है, इससे विचलित और हताश होने के बजाय तुम्हें शिक्षा लेनी चाहिए।
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था – अगर आप सही हैं तो गुस्सा होने की जरुरत नहीं और यदि गलत हैं तो गुस्सा होने का हक नहीं है।
ईमानदार और मेहनती लोग पत्रकारिता में ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकते हैं।
मेरे विचार से, जो युवा पत्रकारिता को अपना लक्ष्य बनाकर चलना चाहते है, कम से कम वे यह पुस्तक अवश्य पढ़े, ये पुस्तक उनके लिए मार्गदर्शक का काम करेगा।
और
जो पत्रकारिता क्षेत्र में हैं, उनके लिए भी यह पुस्तक कम उपयोगी नहीं, उनके लिए तो यह पुस्तक हर प्रकार के रोगों के लिए रामबाण है...
सचमुच शक्तिव्रत और संजीव शेखर जी आपको इस पुस्तक के लिए साधुवाद...

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