झारखण्ड के शराबियों के
लिए खुशखबरी,
अब उन्हें फिक्र करने की जरुरत नहीं, सरकार स्वयं शराब बेचेगी
और झारखण्ड पुलिस शराब बेचवाने में मदद करेगी। बिहार के मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार को अपने मुख्यमंत्री रघुवर दास से सीख लेनी चाहिए। बिहार के
मुख्यमंत्री है – नीतीश कुमार। उन्होंने 2016 में बिहार में शराबबंदी का
ऐसा बीजारोपण किया कि पूरे देश में वे हीरो के रूप में उभरे। शराबबंदी के
मुद्दे पर बिहार की महिलाएं तो उन्हें अपनी दुआओं से पाट दिया है। कुछ
मामलों में तो, मैं नीतीश का घुर विरोधी हूं, पर शराबबंदी के मामले में,
मैं नीतीश के साथ हूं। नीतीश की एक खासियत है कि वे राजनीति करना बहुत
अच्छे ढंग से जानते है, तभी तो लालू और मोदी दोनों को समय-समय पर वे डोज
देते रहते है। लालू की हिम्मत नहीं कि नीतीश से समर्थन वापस ले लें और मोदी
की हिम्मत नहीं कि अब वे नीतीश को ठिकाने लगा दें... ऐसे भी 2016 में भारत
में दो ही नेता कमाल दिखाये, एक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिन्होंने
नोटबंदी कर देश को भ्रष्टाचारमुक्त करने का एक बड़ा फैसला लिया, जिसकी
तारीफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी की, तो दूसरी ओर बिहार में
शराबबंदी का ऐलान कर नीतीश कुमार ने बिहार को शराबमुक्त करने का जनोपयोगी
फैसला लिया।
पर झारखण्ड को देखिये... यहां के मुख्यमंत्री को देखिये। हाल ही में कैबिनेट में जब शराब का मुद्दा उठा, तो जनाब रघुवर दास ने कहा कि राज्य में शराब सरकार बेचेगी। लीजिये फिर क्या था, रघुवर दास की यह सोच राज्य में चर्चा का विषय बन गया। हम अच्छी तरह से जानते है कि राज्य की कोई भी सरकार, अगर शराबबंदी का ऐलान करती है, तो शायद ही कोई दल होगा, जो इस फैसले का समर्थन नहीं करेगा। झामुमो तो इस मुददे पर सबसे पहले समर्थन करेगी, क्योंकि मैं शिबू सोरेन को अच्छी तरह जानता हूं कि वे शराबबंदी पर क्या सोचते है... स्वयं रघुवर मंत्रिमंडल में शामिल कई मंत्री ऐसे है, जो इस मुददे पर रघुवर दास के इस सोच का विरोध कर रहे है, जैसे राज्य के नगर विकास मंत्री सी पी सिंह ने साफ कह दिया कि सरकार शराब बेचे, ठीक नहीं है, राज्य में शराबबंदी लागू क्यों नहीं कर देते... राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय तो इस मुद्दे पर एक कदम और आगे बढ़ जाते है और कहते है कि शराबबंदी ही क्यों? पूर्णतः नशाबंदी पर सरकार अमल करें... पर हमारे मुख्यमंत्री तो ऐसे है, जिनकी सोच को कोई चुनौती दे ही नहीं सकता, क्योंकि वे इस मंत्र पर विश्वास रखते है कि एकोअहम् द्वितियो नास्ति।
इधर मुख्यमंत्री रघुवर दास से हरी झंडी मिली और लीजिये मुख्य सचिव ने भी इस पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया। मुख्य सचिव ने अधिकारयों को खुदरा शराब दुकान तलाशने का निर्देश दे दिया। उत्पाद अधिकारियों के अलावा इस काम में अंचलाधिकारियों और थाना प्रभारियों की मदद भी ली जा रही है। राज्य सरकार के इस फैसले को जमीन पर उतारने के लिए, इससे संबंधित निर्देश पत्र को सभी जिलों को भेजा जा चुका है और इस संबंध में तीन दिनों में रिपोर्ट भी मांगी गयी है, यानी इस मुद्दे पर युद्धस्तर पर काम शुरू हो गया। निर्देश यह भी है कि अधिकारी पूर्व में चल रहे शराब दुकानों के मालिकों से संपर्क स्थापित करें और उन्हें अपनी दुकान किराये पर देने के लिए लिखित सहमति लें। अब जरा सोचिये, कितना अच्छा लगेगा कि जब अधिकारी शराब बेंचेंगे, पुलिस उनकी मदद करेंगी तो राज्य में कितना सुंदर माहौल बनेगा। शराबियों का दल, मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस सोच पर अभी से ही बलिहारी है, और रघुवर दास की इस दूरगामी सोच की जय-जयकार करने में अभी से ही लग गये है...
बदलता झारखण्ड
विकास की ओर उन्मुख झारखण्ड
पर झारखण्ड को देखिये... यहां के मुख्यमंत्री को देखिये। हाल ही में कैबिनेट में जब शराब का मुद्दा उठा, तो जनाब रघुवर दास ने कहा कि राज्य में शराब सरकार बेचेगी। लीजिये फिर क्या था, रघुवर दास की यह सोच राज्य में चर्चा का विषय बन गया। हम अच्छी तरह से जानते है कि राज्य की कोई भी सरकार, अगर शराबबंदी का ऐलान करती है, तो शायद ही कोई दल होगा, जो इस फैसले का समर्थन नहीं करेगा। झामुमो तो इस मुददे पर सबसे पहले समर्थन करेगी, क्योंकि मैं शिबू सोरेन को अच्छी तरह जानता हूं कि वे शराबबंदी पर क्या सोचते है... स्वयं रघुवर मंत्रिमंडल में शामिल कई मंत्री ऐसे है, जो इस मुददे पर रघुवर दास के इस सोच का विरोध कर रहे है, जैसे राज्य के नगर विकास मंत्री सी पी सिंह ने साफ कह दिया कि सरकार शराब बेचे, ठीक नहीं है, राज्य में शराबबंदी लागू क्यों नहीं कर देते... राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय तो इस मुद्दे पर एक कदम और आगे बढ़ जाते है और कहते है कि शराबबंदी ही क्यों? पूर्णतः नशाबंदी पर सरकार अमल करें... पर हमारे मुख्यमंत्री तो ऐसे है, जिनकी सोच को कोई चुनौती दे ही नहीं सकता, क्योंकि वे इस मंत्र पर विश्वास रखते है कि एकोअहम् द्वितियो नास्ति।
इधर मुख्यमंत्री रघुवर दास से हरी झंडी मिली और लीजिये मुख्य सचिव ने भी इस पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया। मुख्य सचिव ने अधिकारयों को खुदरा शराब दुकान तलाशने का निर्देश दे दिया। उत्पाद अधिकारियों के अलावा इस काम में अंचलाधिकारियों और थाना प्रभारियों की मदद भी ली जा रही है। राज्य सरकार के इस फैसले को जमीन पर उतारने के लिए, इससे संबंधित निर्देश पत्र को सभी जिलों को भेजा जा चुका है और इस संबंध में तीन दिनों में रिपोर्ट भी मांगी गयी है, यानी इस मुद्दे पर युद्धस्तर पर काम शुरू हो गया। निर्देश यह भी है कि अधिकारी पूर्व में चल रहे शराब दुकानों के मालिकों से संपर्क स्थापित करें और उन्हें अपनी दुकान किराये पर देने के लिए लिखित सहमति लें। अब जरा सोचिये, कितना अच्छा लगेगा कि जब अधिकारी शराब बेंचेंगे, पुलिस उनकी मदद करेंगी तो राज्य में कितना सुंदर माहौल बनेगा। शराबियों का दल, मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस सोच पर अभी से ही बलिहारी है, और रघुवर दास की इस दूरगामी सोच की जय-जयकार करने में अभी से ही लग गये है...
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