राज्य की रघुवर सरकार राजधानी रांची में एक ओर 16-17 फरवरी को ग्लोबल
इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन कर रही है, तथा राज्य में पूंजी निवेश को बढ़ावा
देने के लिए देश-विदेश के उद्योगपतियों को मनुहार कर रही है, वहीं 2 फरवरी
को विधानसभा में पेश सीएजी की रिपोर्ट ने पूरे राज्यवासियों को हैरानी में
डाल दिया है। सीएजी ने कहा है कि टाटा ने सरकारी जमीन बेच दी, जिससे राज्य
को 4762 करोड़ की चोट पहुंची, जरा सोचिये अगर रघुवर सरकार द्वारा आयोजित
16-17 फरवरी का ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट अगर सफल हो जाता है तो राज्य की
क्या भयावह स्थिति होगी?
संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने वर्ष 2015-16 के राजस्व प्रबंधन पर सीएजी की रिपोर्ट गुरुवार को विधानसभा में पेश की थी। रिपोर्ट में टाटा और डीवीसी समेत कई कंपनियों और सरकार के राजस्व उगाही करनेवाले विभागों के कार्यकलापों पर गंभीर टिप्पणी की गई है। इसमें कहा गया है कि 11,676 करोड़ रुपये के नुकसान में से 10,282 करोड़ रुपये अभी भी वसूले जा सकते है। शेष 1394 करोड़ रुपये की वसूली संभव नहीं है। महालेखाकार ने तो प्रेस कांफ्रेस कर बताया कि टेस्ट चेक और परफार्मेंस ऑडिट में पता चला कि टाटा स्टील और डीवीसी ने अनधिकृत रूप से सरकारी जमीन बेच दी। लीज खत्म होने के बाद भी 2547 एकड़ जमीन का उपयोग किया। इससे सरकार को 3969 करोड़ रूपये का नुकसान हुआ।
दैनिक भास्कर ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया है, जबकि अखबार नहीं आंदोलन कहीं जानेवाली अखबार प्रभात खबर ने इसे इस प्रकार छापा है, जैसे लगता है कि कुछ हुआ ही नहीं, यानी कल तक सदैव कांग्रेस और अपने विरोधियों को कोसनेवाली भाजपा पर उसी के शासन काल में ऐसा दाग लगा है कि जिसे वो चाहकर भी धो नहीं सकती, फिर भी मुख्यमंत्री रघुवर दास का यह कहना कि उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार नहीं हुआ, उनके अधिकारी ईमानदार है, इससे बड़ा मजाक दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
इस मामले को लेकर हालांकि विपक्षी दलों में सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। झाविमो सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी ने 4 फरवरी को एक प्रेस कांफ्रेस कर कहा कि कैग के रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि टाटा स्टील और डीवीसी ने अब तक 1279 – सब लीज के पट्टे बिना सरकारी अनुमोदन के जारी किये है, जिससे राज्य को 3,376.24 करोड़ का राजस्व घाटा हुआ है। अब बिना देर किये सरकार – गहराई से जांच एवं दोषियों को चिह्न्ति करने के लिए पूरे प्रकरण को सीबीआई को सौंप दे। झाविमो सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी ने साफ कहा कि जब कैग की रिपोर्ट के आधार पर पशुपालन घोटाला, टू जी, थ्री जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कामनवेल्थ गेम घोटाला, कॉलगेट घोटाला की जांच सीबीआई को मिल सकती है, तो इसकी जांच सीबीआई को क्यों नहीं मिल सकती? झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी की बातों में दम भी है। झाविमो नेता ने तो यह भी कह दिया कि वे इस मामले को लेकर अन्य दलों के प्रतिनिधियों के साथ वे जल्द ही राज्यपाल से मिलेंगे।
इस राज्य का दुर्भाग्य है कि चाहे किसी की भी सरकार बने, अंततः यहां की निरीह जनता को ही कष्ट उठाना पड़ा है, वो कहावत है न कि कद्दू पर हसुंआ गिरे या हसुंआ पर कद्दू गिरे, नुकसान तो हर हाल में कद्दू को ही उठाना पड़ा है। सच्चाई यहीं है कि पूरे राज्य में राज्य सरकार ने ऐसी बयार बहा दी है, कि जैसे लगता है कि अगर राज्य में पूंजी निवेश नहीं हो, तो राज्य विकास करेगा ही नहीं, बल्कि इसके उलट झारखण्ड के पड़ोसी राज्य ओड़िशा, बिहार आदि राज्यों ने बिना किसी इस प्रकार के आयोजन के ही राज्य की जनता में ऐसा विश्वास भरा है कि लोगों को लगता है कि राज्य सरकार कुछ कर रही है, पर रघुवर सरकार ने झूठ का ऐसा आडम्बर रचा है कि पूछिये मत। इस झूठ के आडम्बर के खेल में हाथी को भी उड़ा दिया गया है, जबकि राज्य के सभी अखबारों और चैनलों को विज्ञापन की राशि देकर मुंह बंद कर दिया गया है, जिस कारण चाहे वह रांची से प्रकाशित होनेवाले अखबार हो या दिल्ली तथा कोलकात्ता से, सभी अखबारों और चैनलों ने अपने होठ सील लिये है। इससे होनेवाले नुकसान और राज्य की जनता की आवाज को ठेंगे पर रख दिया गया है, तथा रघुवर सरकार की आरती उतारी जा रही है। विपक्षी दलों के नेता अगर सरकार पर अंगूली भी उठा रहे है, तो उनकी बातें नहीं सुनी जा रही। राज्य की जनता इन हालातों को देखकर बेबस है, पर शायद वह अपनी खामोशी तब तक बर्दाश्त कर रही है, जब तक उसके पास विकल्प नहीं आ जाता। लोकतंत्र में पांच साल शासन की मर्यादा ने, राज्य की जनता की जान निकाल दी है। दो वर्ष बीत चुके है, तीन वर्ष अभी और राज्य की जनता को झेलना है, पर कहीं ऐसा नहीं कि राज्य की जनता सरकार के खिलाफ बगावत पर उतर जाये और राज्य के अधिकारी और राज्य के मुखिया, कुछ कर सकने की स्थिति में ही न हो, क्योंकि राज्य के मुखिया को ये नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र में जनता ही मालिक है...
टाटा सबलीज मामले ने पूंजी निवेश की असलियत को जनता के समक्ष रख दिया है, अब शायद ही कोई जनता होगी, जो राज्य सरकार के इस ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के प्रति थोड़ी भी सहानुभूति रखेगी, हांलाकि विरोध तो पंचायत स्तर तक हो रहा है, पर रघुवर दास को लगता है कि वहीं सहीं है, और बाकी जनता मूर्ख...
संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने वर्ष 2015-16 के राजस्व प्रबंधन पर सीएजी की रिपोर्ट गुरुवार को विधानसभा में पेश की थी। रिपोर्ट में टाटा और डीवीसी समेत कई कंपनियों और सरकार के राजस्व उगाही करनेवाले विभागों के कार्यकलापों पर गंभीर टिप्पणी की गई है। इसमें कहा गया है कि 11,676 करोड़ रुपये के नुकसान में से 10,282 करोड़ रुपये अभी भी वसूले जा सकते है। शेष 1394 करोड़ रुपये की वसूली संभव नहीं है। महालेखाकार ने तो प्रेस कांफ्रेस कर बताया कि टेस्ट चेक और परफार्मेंस ऑडिट में पता चला कि टाटा स्टील और डीवीसी ने अनधिकृत रूप से सरकारी जमीन बेच दी। लीज खत्म होने के बाद भी 2547 एकड़ जमीन का उपयोग किया। इससे सरकार को 3969 करोड़ रूपये का नुकसान हुआ।
दैनिक भास्कर ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया है, जबकि अखबार नहीं आंदोलन कहीं जानेवाली अखबार प्रभात खबर ने इसे इस प्रकार छापा है, जैसे लगता है कि कुछ हुआ ही नहीं, यानी कल तक सदैव कांग्रेस और अपने विरोधियों को कोसनेवाली भाजपा पर उसी के शासन काल में ऐसा दाग लगा है कि जिसे वो चाहकर भी धो नहीं सकती, फिर भी मुख्यमंत्री रघुवर दास का यह कहना कि उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार नहीं हुआ, उनके अधिकारी ईमानदार है, इससे बड़ा मजाक दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
इस मामले को लेकर हालांकि विपक्षी दलों में सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। झाविमो सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी ने 4 फरवरी को एक प्रेस कांफ्रेस कर कहा कि कैग के रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि टाटा स्टील और डीवीसी ने अब तक 1279 – सब लीज के पट्टे बिना सरकारी अनुमोदन के जारी किये है, जिससे राज्य को 3,376.24 करोड़ का राजस्व घाटा हुआ है। अब बिना देर किये सरकार – गहराई से जांच एवं दोषियों को चिह्न्ति करने के लिए पूरे प्रकरण को सीबीआई को सौंप दे। झाविमो सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी ने साफ कहा कि जब कैग की रिपोर्ट के आधार पर पशुपालन घोटाला, टू जी, थ्री जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कामनवेल्थ गेम घोटाला, कॉलगेट घोटाला की जांच सीबीआई को मिल सकती है, तो इसकी जांच सीबीआई को क्यों नहीं मिल सकती? झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी की बातों में दम भी है। झाविमो नेता ने तो यह भी कह दिया कि वे इस मामले को लेकर अन्य दलों के प्रतिनिधियों के साथ वे जल्द ही राज्यपाल से मिलेंगे।
इस राज्य का दुर्भाग्य है कि चाहे किसी की भी सरकार बने, अंततः यहां की निरीह जनता को ही कष्ट उठाना पड़ा है, वो कहावत है न कि कद्दू पर हसुंआ गिरे या हसुंआ पर कद्दू गिरे, नुकसान तो हर हाल में कद्दू को ही उठाना पड़ा है। सच्चाई यहीं है कि पूरे राज्य में राज्य सरकार ने ऐसी बयार बहा दी है, कि जैसे लगता है कि अगर राज्य में पूंजी निवेश नहीं हो, तो राज्य विकास करेगा ही नहीं, बल्कि इसके उलट झारखण्ड के पड़ोसी राज्य ओड़िशा, बिहार आदि राज्यों ने बिना किसी इस प्रकार के आयोजन के ही राज्य की जनता में ऐसा विश्वास भरा है कि लोगों को लगता है कि राज्य सरकार कुछ कर रही है, पर रघुवर सरकार ने झूठ का ऐसा आडम्बर रचा है कि पूछिये मत। इस झूठ के आडम्बर के खेल में हाथी को भी उड़ा दिया गया है, जबकि राज्य के सभी अखबारों और चैनलों को विज्ञापन की राशि देकर मुंह बंद कर दिया गया है, जिस कारण चाहे वह रांची से प्रकाशित होनेवाले अखबार हो या दिल्ली तथा कोलकात्ता से, सभी अखबारों और चैनलों ने अपने होठ सील लिये है। इससे होनेवाले नुकसान और राज्य की जनता की आवाज को ठेंगे पर रख दिया गया है, तथा रघुवर सरकार की आरती उतारी जा रही है। विपक्षी दलों के नेता अगर सरकार पर अंगूली भी उठा रहे है, तो उनकी बातें नहीं सुनी जा रही। राज्य की जनता इन हालातों को देखकर बेबस है, पर शायद वह अपनी खामोशी तब तक बर्दाश्त कर रही है, जब तक उसके पास विकल्प नहीं आ जाता। लोकतंत्र में पांच साल शासन की मर्यादा ने, राज्य की जनता की जान निकाल दी है। दो वर्ष बीत चुके है, तीन वर्ष अभी और राज्य की जनता को झेलना है, पर कहीं ऐसा नहीं कि राज्य की जनता सरकार के खिलाफ बगावत पर उतर जाये और राज्य के अधिकारी और राज्य के मुखिया, कुछ कर सकने की स्थिति में ही न हो, क्योंकि राज्य के मुखिया को ये नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र में जनता ही मालिक है...
टाटा सबलीज मामले ने पूंजी निवेश की असलियत को जनता के समक्ष रख दिया है, अब शायद ही कोई जनता होगी, जो राज्य सरकार के इस ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के प्रति थोड़ी भी सहानुभूति रखेगी, हांलाकि विरोध तो पंचायत स्तर तक हो रहा है, पर रघुवर दास को लगता है कि वहीं सहीं है, और बाकी जनता मूर्ख...
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