महात्मा गांधी ने कहा था –
जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा? क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा? यानि क्या उससे उन करोड़ो लोगों को स्वराज्य मिल सकेगा? जिनके पेट भूखे है और आत्मा अतृप्त है तब तुम देखोगे कि तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम समाप्त हो रहा है।
हम महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मानते है, पर कोई बता सकता है कि हम महात्मा गांधी की बातों का कितना अनुसरण करते है? संघ जिसकी राजनीतिक इकाई भाजपा है, क्या कोई बता सकता है कि संघ की विचारधाराओं को कितने स्वयंसेवक जो अभी राजनीतिक जीवन जी रहे है, उसका अनुसरण कर रहे है? अगर जवाब है – ऐसा नहीं, तो फिर क्या आवश्यकता है? संघ को और महात्मा गांधी को ढोने की।
निरंतर स्वदेशी की बात करनेवाला संघ और उसके ईमानदार स्वयंसेवकों के हालत पस्त है, और ये हालत पस्त किसी और ने नहीं, बल्कि उन्हीं की राजनीतिक इकाई भाजपा ने कर दी है। कांग्रेस और उसके आनुषांगिक संगठनों ने तो महात्मा गांधी के स्वदेशी और ग्राम स्वराज्य को कब का आग लगा दिया था, तभी तो देश की हालत यह है कि आजादी के बाद से लेकर आज तक कभी भी भारत आर्थिक रूप से मजबूत ही न हो सका। ऐसे भी हमारे देश में आजादी के बाद एक-दो नेताओं को छोड़कर, कोई ऐसा नेता नहीं पैदा लिया, जिसने देश की आर्थिक समृद्धि के लिए ईमानदारी से प्रयास किया हो और विपक्ष ने ईमानदारी से ऐसे कार्य के लिए समर्थन किया। दोनों ओर यानी सत्तापक्ष और विपक्ष में शामिल नेताओं और एक नंबर के मूर्ख अधिकारियों के दल ने देश की ऐसी शक्ल बिगाड़ी कि यह देश कभी खड़ा ही नहीं हो सका और न अब लगता है कि यह खड़ा हो पायेगा।
जरा सोचिये जो चीन, संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारा खुलकर विरोध करता है, जो चीन हाफिज सईद का समर्थन करता है, जो चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकता है, उससे यह कहना कि वह मेरे देश में पूंजी निवेश करें और चीन ईमानदारी से पूंजी निवेश कर भारत को आर्थिक रूप से मजबूत करने का दावा करें, ये माननेवाली बात है। यह तो वहीं बात हुई कि बिल्ली को कहा जाय कि तुम दुध की रखवाली करो। कितने शर्म की बात है, कि हम आज भी अपने शत्रु से अपनी आर्थिक समृद्धि की कामना करते है।
अभी ज्य़ादा दिनों की बात नहीं, 2016 की दिवाली, याद करें। रांची से प्रकाशित एक अखबार ने स्थानीय कुम्हारों के दर्द बयां किये थे, बताया था कि दिवाली के पर्व से असली दिवाली का आनन्द हमारा पड़ोसी चीन उठा रहा है, हम उसे मजबूत कर रहे है, और वहीं चीन आर्थिक रूप से समृद्ध होकर भारत की तबाही का मंसूबा रखता है। इसी दौरान चीन के इस दोहरे मापदंड पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का बयान भी सुनने और पढ़ने को मिला कि लोग चीन का सामान न खरीदकर भारतीय सामान खरीदें और देश को आर्थिक रूप से मजबूत करें। एक भाजपा समर्थक तथाकथित संत रामदेव है, जो हर समय देश के विभिन्न चैनलों पर स्वयं द्वारा निर्मित सामग्रियों का प्रचार करते है, यह कहकर कि भारत को आर्थिक गुलामी से मुक्त करायें पर सच्चाई क्या है?
इन भाजपाइयों के दोहरे मापदंड, स्वयंसेवक के नाम पर संघ को धोखा देनेवाले इन नेताओं की जादूगरी, बाजीगरी, कलाकारी और देश व राज्य के साथ धोखाधड़ी देखिये। उसका सुंदर नमूना है – मोमेंटम झारखण्ड। मूर्खों ने हाथी तक उड़ा दिया है। हाथी जो काले रंग का होता है, उसे लाल रंग का बना दिया है। यहीं नहीं उसके कान नीले रंग के बना दिये गये, उसे हरे पंख लगाकर उड़ा दिया गया और इस तमाशे रुपी हाथी के निर्माण मे सरकार के तीस लाख रुपये खर्च हो गये, यानी यहां बेवकूफों को भी पैसे देकर उसका सम्मान बढ़ाया जा रहा है। भाजपा कार्यकर्ता और संघ के स्वयंसेवकों को मूर्ख समझकर उन्हें उनकी औकात बतायी जा रही है, जबकि कनफूंकवों के इशारे पर बाहर से आये बेवकूफों पर करोड़ों खर्च किये जा रहे है, वह भी विज्ञापन के नाम पर, चेहरा चमकाने के नाम पर।
जिन अधिकारियों को जेल में रहना चाहिए, उनका मनोबल बढ़ाया जा रहा है, क्योंकि सत्ता में बैठे लोगों को मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर जो बेतहाशा राशि खर्च की जा रही है, उसको कमीशन के रूप में चूंकि ऐसे ही लोग उक्त राशि को उन तक पहुंचा सकते है, इसलिए उनकी सेवा विशेष रूप से ली जा रही है।
मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर उन सड़कों को पुनः निर्माण कराया गया है, जिनकी निर्माण की कोई आवश्यकता ही नहीं थी, वे पूर्व से ही इस स्थिति में थे, कि उसके निर्माण की कोई आवश्यकता ही नहीं थी, जबकि आज भी पूरे झारखण्ड की कई सड़कें ऐसी है, जिस पर यात्रा करना मौत को दावत देने के बराबर है, उस पर सरकार का ध्यान ही नहीं है। रांची के मुख्यमार्गों के विद्युत खंभो को सफेद रंग से पोता गया है, और उस पर चीन से मंगायी गयी विद्युतीय लत्तरों को लपेट दिया गया है ताकि रात में इससे रांची का सौंदर्य़ निखरें। सड़कों के दोनों किनारों के फुटपाथों को इस प्रकार जल्दबाजी में बना दिये गये कि आनेवाले समय में इस फुटपाथ पर लगे पेड़ जल्द ही दम तोड़ देंगे। सरकार और सरकार के अधिकारी मोमेंटम झारखण्ड को सफल बनाने में इस प्रकार लग गये है, जैसे लगता है, कि साक्षात भगवान झारखण्ड की धऱती पर अवतरित हो रहे हो। हद तो तब हो गयी कि पूरे रांची में मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर निषेधाज्ञा लागू कर दी गयी है, यानी आप अपने परिवार के साथ ठीक से दो दिन चल भी नहीं सकते, यानी जिनको रोजगार देने की बात कर, मोमेंटम झारखण्ड का आयोजन की बात करते है, उन्हें ही औकात दिखा रहे है। स्थिति यह है कि पूरे राज्य में विकास कार्य ठप है। पिछले दो महीनों से किसी भी आफिस में काम नहीं हो रहा। सभी जगह के अधिकारी और कर्मचारी मोमेंटम झारखण्ड ही रट रहे है, जैसे लगता है कि मोमेंटम झारखण्ड नहीं रटा तो उनकी जिंदगी ही प्रभावित हो जायेगी, यानी मानकर चलिए कि हाथी उड़ाने के चक्कर में राज्य की जनता कहीं की न रही और अधिकारियों और कनफूंकवों के तो जैसे दोनों हाथों में नहीं, बल्कि पूरा शरीर ही घी के लड्डू के कनस्तर में।
जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा? क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा? यानि क्या उससे उन करोड़ो लोगों को स्वराज्य मिल सकेगा? जिनके पेट भूखे है और आत्मा अतृप्त है तब तुम देखोगे कि तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम समाप्त हो रहा है।
हम महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मानते है, पर कोई बता सकता है कि हम महात्मा गांधी की बातों का कितना अनुसरण करते है? संघ जिसकी राजनीतिक इकाई भाजपा है, क्या कोई बता सकता है कि संघ की विचारधाराओं को कितने स्वयंसेवक जो अभी राजनीतिक जीवन जी रहे है, उसका अनुसरण कर रहे है? अगर जवाब है – ऐसा नहीं, तो फिर क्या आवश्यकता है? संघ को और महात्मा गांधी को ढोने की।
निरंतर स्वदेशी की बात करनेवाला संघ और उसके ईमानदार स्वयंसेवकों के हालत पस्त है, और ये हालत पस्त किसी और ने नहीं, बल्कि उन्हीं की राजनीतिक इकाई भाजपा ने कर दी है। कांग्रेस और उसके आनुषांगिक संगठनों ने तो महात्मा गांधी के स्वदेशी और ग्राम स्वराज्य को कब का आग लगा दिया था, तभी तो देश की हालत यह है कि आजादी के बाद से लेकर आज तक कभी भी भारत आर्थिक रूप से मजबूत ही न हो सका। ऐसे भी हमारे देश में आजादी के बाद एक-दो नेताओं को छोड़कर, कोई ऐसा नेता नहीं पैदा लिया, जिसने देश की आर्थिक समृद्धि के लिए ईमानदारी से प्रयास किया हो और विपक्ष ने ईमानदारी से ऐसे कार्य के लिए समर्थन किया। दोनों ओर यानी सत्तापक्ष और विपक्ष में शामिल नेताओं और एक नंबर के मूर्ख अधिकारियों के दल ने देश की ऐसी शक्ल बिगाड़ी कि यह देश कभी खड़ा ही नहीं हो सका और न अब लगता है कि यह खड़ा हो पायेगा।
जरा सोचिये जो चीन, संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारा खुलकर विरोध करता है, जो चीन हाफिज सईद का समर्थन करता है, जो चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकता है, उससे यह कहना कि वह मेरे देश में पूंजी निवेश करें और चीन ईमानदारी से पूंजी निवेश कर भारत को आर्थिक रूप से मजबूत करने का दावा करें, ये माननेवाली बात है। यह तो वहीं बात हुई कि बिल्ली को कहा जाय कि तुम दुध की रखवाली करो। कितने शर्म की बात है, कि हम आज भी अपने शत्रु से अपनी आर्थिक समृद्धि की कामना करते है।
अभी ज्य़ादा दिनों की बात नहीं, 2016 की दिवाली, याद करें। रांची से प्रकाशित एक अखबार ने स्थानीय कुम्हारों के दर्द बयां किये थे, बताया था कि दिवाली के पर्व से असली दिवाली का आनन्द हमारा पड़ोसी चीन उठा रहा है, हम उसे मजबूत कर रहे है, और वहीं चीन आर्थिक रूप से समृद्ध होकर भारत की तबाही का मंसूबा रखता है। इसी दौरान चीन के इस दोहरे मापदंड पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का बयान भी सुनने और पढ़ने को मिला कि लोग चीन का सामान न खरीदकर भारतीय सामान खरीदें और देश को आर्थिक रूप से मजबूत करें। एक भाजपा समर्थक तथाकथित संत रामदेव है, जो हर समय देश के विभिन्न चैनलों पर स्वयं द्वारा निर्मित सामग्रियों का प्रचार करते है, यह कहकर कि भारत को आर्थिक गुलामी से मुक्त करायें पर सच्चाई क्या है?
इन भाजपाइयों के दोहरे मापदंड, स्वयंसेवक के नाम पर संघ को धोखा देनेवाले इन नेताओं की जादूगरी, बाजीगरी, कलाकारी और देश व राज्य के साथ धोखाधड़ी देखिये। उसका सुंदर नमूना है – मोमेंटम झारखण्ड। मूर्खों ने हाथी तक उड़ा दिया है। हाथी जो काले रंग का होता है, उसे लाल रंग का बना दिया है। यहीं नहीं उसके कान नीले रंग के बना दिये गये, उसे हरे पंख लगाकर उड़ा दिया गया और इस तमाशे रुपी हाथी के निर्माण मे सरकार के तीस लाख रुपये खर्च हो गये, यानी यहां बेवकूफों को भी पैसे देकर उसका सम्मान बढ़ाया जा रहा है। भाजपा कार्यकर्ता और संघ के स्वयंसेवकों को मूर्ख समझकर उन्हें उनकी औकात बतायी जा रही है, जबकि कनफूंकवों के इशारे पर बाहर से आये बेवकूफों पर करोड़ों खर्च किये जा रहे है, वह भी विज्ञापन के नाम पर, चेहरा चमकाने के नाम पर।
जिन अधिकारियों को जेल में रहना चाहिए, उनका मनोबल बढ़ाया जा रहा है, क्योंकि सत्ता में बैठे लोगों को मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर जो बेतहाशा राशि खर्च की जा रही है, उसको कमीशन के रूप में चूंकि ऐसे ही लोग उक्त राशि को उन तक पहुंचा सकते है, इसलिए उनकी सेवा विशेष रूप से ली जा रही है।
मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर उन सड़कों को पुनः निर्माण कराया गया है, जिनकी निर्माण की कोई आवश्यकता ही नहीं थी, वे पूर्व से ही इस स्थिति में थे, कि उसके निर्माण की कोई आवश्यकता ही नहीं थी, जबकि आज भी पूरे झारखण्ड की कई सड़कें ऐसी है, जिस पर यात्रा करना मौत को दावत देने के बराबर है, उस पर सरकार का ध्यान ही नहीं है। रांची के मुख्यमार्गों के विद्युत खंभो को सफेद रंग से पोता गया है, और उस पर चीन से मंगायी गयी विद्युतीय लत्तरों को लपेट दिया गया है ताकि रात में इससे रांची का सौंदर्य़ निखरें। सड़कों के दोनों किनारों के फुटपाथों को इस प्रकार जल्दबाजी में बना दिये गये कि आनेवाले समय में इस फुटपाथ पर लगे पेड़ जल्द ही दम तोड़ देंगे। सरकार और सरकार के अधिकारी मोमेंटम झारखण्ड को सफल बनाने में इस प्रकार लग गये है, जैसे लगता है, कि साक्षात भगवान झारखण्ड की धऱती पर अवतरित हो रहे हो। हद तो तब हो गयी कि पूरे रांची में मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर निषेधाज्ञा लागू कर दी गयी है, यानी आप अपने परिवार के साथ ठीक से दो दिन चल भी नहीं सकते, यानी जिनको रोजगार देने की बात कर, मोमेंटम झारखण्ड का आयोजन की बात करते है, उन्हें ही औकात दिखा रहे है। स्थिति यह है कि पूरे राज्य में विकास कार्य ठप है। पिछले दो महीनों से किसी भी आफिस में काम नहीं हो रहा। सभी जगह के अधिकारी और कर्मचारी मोमेंटम झारखण्ड ही रट रहे है, जैसे लगता है कि मोमेंटम झारखण्ड नहीं रटा तो उनकी जिंदगी ही प्रभावित हो जायेगी, यानी मानकर चलिए कि हाथी उड़ाने के चक्कर में राज्य की जनता कहीं की न रही और अधिकारियों और कनफूंकवों के तो जैसे दोनों हाथों में नहीं, बल्कि पूरा शरीर ही घी के लड्डू के कनस्तर में।
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