Tuesday, February 28, 2017

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास में क्या अंतर हैं...........

बच्चों,
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास में क्या अंतर है? वर्णन करें।
उत्तर – बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास में निम्नलिखित अंतर है...
1. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी बुद्धिमता और कार्यकुशलता के आधार पर बिहार के मुख्यमंत्री बने, जबकि रघुवर दास भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कृपा पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री बने है।
2. बिहार के मुख्यमंत्री शराब बिक्री पर प्रतिबंध लगाते है, जबकि झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास शराब पिलाकर जनता को काल के गाल में समाने का प्रबंध करते है।
3. बिहार के मुख्यमंत्री सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते है, जबकि झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास, शाहरुख खान के नाम से जाने जाते है।
4. बिहार के मुख्यमंत्री गुरु गोविंद सिंह महाराज की 350वीं जयंती को इस प्रकार से मनाते है कि सारा विश्व उनका मुरीद हो जाता है, जबकि झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास मोमेंटम झारखण्ड कराते है जो रांची में ही रहकर सिमट जाता है, यहां तक कि देश के ही बहुत बड़े उद्योगपति इनके कार्यक्रम से दूरी बना लेते है।
5. बिहार के मुख्यमंत्री के कार्यों से वहां के आईएएस की हालत पस्त रहती है, जबकि झारखण्ड के आईएएस के कार्यों से झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास की हालत पस्त रहती है।
6. बिहार में तीन दलों की सरकार होने के बावजूद वहां नीतीश कुमार की तू-ती बोलती है, जबकि झारखण्ड में पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बावजूद यहां रघुवर सरकार की नहीं, बल्कि कनफूंकवों की चलती है।
7. बिहार में लड़कियों-महिलाओं का सम्मान सुरक्षित है, पर झारखण्ड में स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा चलाये जा रहे मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में महिलाएं सुरक्षित नहीं, और जब ये महिलाएं मुख्यमंत्री तक अपना आवाज बुलंद करती है, तो उनकी आवाज को सख्ती से दबा दिया जाता है।
8. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यक्रम में वहां कोई आईएएस अधिकारी भाषण नहीं देता, झारखण्ड में मुख्यमंत्री रघुवर दास इनका मनोबल बढ़ाते है, ताकि आनेवाले समय में ये अधिकारी लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ सके।
9. बिहार का सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग से निकला विज्ञापन राज्य का मान बढ़ाता है, जबकि झारखण्ड का सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग अपने ही विज्ञापन में राज्य को बंगाल की खाड़ी में फेंक देता है, राज्यपाल का सम्मान नहीं करता और अपने पुरुष मंत्री को स्त्री मंत्री के रुप में पेश करता है।
10.  बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वक्तव्य लेने के लिए, सुनने के लिए मीडिया तरसती है, जबकि झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का वक्तव्य मजाक का पात्र बन जाता है, उदाहरण अनेक है – फिलहाल फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट ने ही इनकी हवा निकाल दी है।

Monday, February 27, 2017

मुख्यमंत्री रघुवर दास उर्फ शाहरूख खान को कोई बतायें............

मुख्यमंत्री रघुवर दास उर्फ शाहरूख खान को कोई बतायें कि जब तक झारखण्ड को सही रूप में मुक्ति नहीं मिल जाता, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की आवश्यकता बनी रहेगी, हां ये अलग बात है कि इसका नेतृत्व कौन करेगा?
सच्चाई यह है कि इस सरकार के दो साल बीत गये। इस सरकार ने योजना बनाओ अभियान भी चलाया पर स्थिति क्या है? योजना बनाओ अभियान के माध्यम से कनफूंकवे, अधिकारी और ठेकेदार मालामाल हो गये, कमीशन का ऐसा धंधा चलाया कि कहीं काम नहीं दीख रहा और जनता लूटती चली जा रही है। जरा पूछिये इस मुख्यमंत्री रघुवर दास उर्फ शाहरूख खान से आखिर क्या कारण है कि झारखण्ड में ही भाजपा के वरिष्ठ नेता कड़िया मुंडा उसकी आलोचना क्यों करते है? आखिर क्या वजह है कि सरयू राय, सी पी सिंह जैसे नेता कैबिनेट में ही सरकार को कटघरे में क्यों खड़ा कर देते है?  मैं कहूंगा कि रघुवर दास उर्फ शाहरूख कान ज्यादा काबिल न बने, क्योंकि अब तो भाजपा कार्यकर्ता भी एक मौका खोज रहे है कि इस सरकार की कब बिदाई की जाय?, जिस दिन मौका मिल गया, रघुवर सरकार की औकात बताकर सर्वाधिक खुश भाजपा कार्यकर्ता ही होंगे न कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा।
जरा देखिये कल तक स्वयं को हनुमान बताने वाला राज्य का मुख्यमंत्री रघुवर दास उर्फ शाहरूख खान स्वयं को भगवान राम से तुलना कर रहा है। कल जमशेदपुर में पत्रकारों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आलोचना तो भगवान राम की भी हुई थी, पर उसे मालूम नहीं कि भगवान राम ने एक स्त्री के सम्मान के लिए लंकाधिपति रावण को उसके किये की सजा दी थी, पर क्या ये रघुवर दास उर्फ शाहरूख खान बता सकता है कि उसके राज्य में स्त्रियों और बालिकाओं के सम्मान की रक्षा का क्या हाल है?  ये तो वहीं हाल हो गयी, चला मुरारी हीरो बनने... अरे यार पहले कुछ करके दिखाओ, उसके बाद बोलो, तो अच्छा भी लगेगा।
तुम्हारे ही मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में लड़कियों का क्या हाल है? आखिर क्या वजह हुई कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र की दो लड़कियों ने राज्य महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया और आप तक अपनी आवाज पहुंचायी, पर नतीजा क्या निकला?, आपने उसकी आवाज ही दबा दी।
आज भी बूटी मोड़ कांड में दुष्कर्म की शिकार व मृत छात्रा की आत्मा आपको धिक्कार रही है, कभी आपको उसकी आत्मा की आवाज सुनाई पड़ी है। अरे आपको पलामू के छात्रों का समूह एक ज्ञापन देने जा रहे थे, उस ज्ञापन में वनांचल कालेज की छात्रा सोनाली की संदिग्ध मौत का मामला था, पर आपने तो उसकी अनसूनी कर दी, उलटे छात्रों पर लाठीचार्ज करा दिया। बताओ झारखण्ड के कस्तूरबा बालिका विद्यालय का क्या हाल है? गढ़वां के कस्तूरबा बालिका विद्यालय में एक बालिका गर्भवती कैसे हो गयी? ...और कैसे आपने ये मामला दबवा दिया। चले है, राम बनने, अरे आप रावण भी बन जाओ तो हमें खुशी होगी, क्योंकि रावण ने अपनी बहन शूर्पणखा के सम्मान की रक्षा के लिए पूरे लंका को दांव पर लगा दिया... अरे ये तो यहां की अखबार और चैनल है, जो आपकी स्तुति गा रहे है। नहीं तो, आम जनता की नजरों में तो आप कब के गिर चुके हो, जनता तो कब का आपको नजरंदाज कर चुकी है...
अखबार और चैनलवालों की क्या कहूं... ...उनकी हरकत ऐसी है कि हरकत भी शरमा जाये। शायद इन्हीं हरकतों को देखकर किसी ने लिखा है...
हैं रखैले तख्त की ये कीमती कलमें,
कंठ में इनके स्वयं का स्वर नहीं होता।
ये सियासत के दामन का खिलौना हैं,
ये किसी के आंसुओं से तर नहीं होतीं।।
हां, एक बात और, आज हमें खुशी हुई कि एक पत्रकार और शिशु भ्रूण हत्या को लेकर आंदोलन खड़ी करनेवाली महिला को किसी ने आंख उठाकर देखने की कोशिश की, जिसका जवाब उक्त महिला ने कड़े शब्दों में प्रतिकार कर दिया है, अगर यहीं प्रतिकार की ज्वाला राज्य की हर महिलाओं के मुख से निकलने प्रारंभ हो तो फिर किसी की हिम्मत नहीं होगी कि कोई महिला का अपमान करने का दुस्साहस कर सकें, मैं उक्त महिला के प्रति अपना सम्मान प्रकट करता हूं, साथ ही उन तमाम बालिकाओं और महिलाओं से गुजारिश करूंगा कि आप ऐसे मुख्यमंत्री रघुवर दास उर्फ शाहरूख खान पर विश्वास न करें, जो कभी हनुमान तो कभी राम से स्वयं की तुलना करता हो, आप स्वयं वीर बने, साहसी बने, लक्ष्मीबाई बने ताकि किसी की हिम्मत न हो, आप को आंख उठाकर देखने की...

Saturday, February 25, 2017

झारखण्ड में कनफूंकवों का शासन........

झारखण्ड में कनफूंकवों का शासन...
कनफूंकवों का एक सूत्री कार्यक्रम, मुख्यमंत्री रघुवर दास का चेहरा चमकाना और उसकी आड़ में अपना आधार मजबूत करना...
और अपनी सारी गलतियों के लिए एक व्यक्ति विशेष को जिम्मेवार ठहरा देना, जो इस राज्य में एक दिन भी ठहरना नहीं चाहता, हमारा इशारा मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार की ओर है। इसी बीच कनफूंकवों ने प्रोजेक्ट बिल्डिंग, मुख्यमंत्री आवास और सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग पर अपना झंडा फहरा दिया है। इन कनफूंकवों की ताकत इतनी बढ़ गयी है कि इसके खिलाफ बोलने का मतलब मुख्यमंत्री रघुवर दास का कोपभाजन बनना, क्योंकि मुख्यमंत्री रघुवर दास को सिर्फ ठकुरसोहाती वाले लोग पसंद हो गये है, जो भी उनको आइना दिखाता है, वे उस पर ऐसे टूट पड़ते है, जैसे भूखा सिंह किसी जानवर पर टूट पड़ता है...
इसी बीच कनफूंकवों के शासन में प्रत्यक्ष रूप से दखल देने के कारण बहुत सारे ईमानदार आईएएस आफिसर फिलहाल किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में आ गये है, परिस्थितियों को देख वे मुख्यमंत्री रघुवर दास की हर बातों में हां में हां मिला रहे है, क्योंकि वे जानते है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास को सिर्फ और सिर्फ कनफूंकवों की बात ही पसंद है।
इधर कनफूंकवों के शासन में आ जाने का प्रभाव देखिये....
1. पलामू के पांकी में दो महिलाओं को जिंदा जला दिया गया...
2. महेश भट्ट जैसे फिल्मकार ने सरकार के कार्यशैली पर अंगूली उठा दी...
3. 23 फरवरी को पलामू में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों पर पुलिस ने निर्ममतापूर्वक लाठियां भांजी, जिसमें कई की हालत गंभीर है...
4. इधर पलामू में छात्रों के उपर हुए हमले को लेकर बुलाया गया पलामू प्रमंडल बंद का पूरे पलामू प्रमंडल पर व्यापक असर पड़ा है, कल का पलामू बंद स्वतः स्फूर्त रहा, पर इस बंद का असर कनफूंकवों या यहां के मुख्यमंत्री रघुवर दास पर पड़ेगा, इसकी संभावना कम दिखाई पड़ रही है, क्योंकि वर्तमान में यहां का मुख्यमंत्री घमंड में चूर है।
5. कनफूंकवों के इशारे पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पलामू में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान अपने विरोधियों को धमकी दे डाला है कि जो विकास की राह में बाधा डालेंगे वे दंडित किये जायेंगे, यानी उनका इशारा विरोधी दलों के नेता तथा भाजपा विधायकों और मंत्रियों की ओर था, जो सरकार में ही रहकर, मुख्यमंत्री रघुवर दास के जनविरोधी नीतियों का खुला विरोध कर रहे है...
ये तो कुछ उदाहरण है, इधर जब से राज्य के कई प्रमुख अखबारों ने सरकार की आरती उतारने में थोड़ी कोताही बरती है, उन्हें भी कनफूंकवों ने धमकी देने का प्रयास किया है, उनका कहना है कि जो सरकार की आरती नहीं उतारेंगे, उन्हें विज्ञापन देने पर रोक लगायी जाय... ...इधर विज्ञापन रोके जाने की परवाह किये बिना कुछ अखबारों ने अपना पैंतरा बदला है, तथा सही खबरें देने शुरू कर दिये है, जिसमें हिन्दुस्तान फिलहाल प्रथम स्थान पर है...
अखबारों में मोमेंटम झारखण्ड समाप्त होने के बाद जब से सही खबरें प्रमुखता से स्थान लेने लगी है, सरकार की नींद उड़ गयी है। कनफूंकवों ने इसके लिए भी मुख्यमंत्री रघुवर दास से शिकायत कर दी और कहा कि इसके लिए मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार जिम्मेवार है। दूसरी ओर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के निदेशक की नींद उड़ी हुई है, कैसे समाचार पत्रों को मैनेज करें, उन्हें सूझ ही नहीं रहा, इसलिए वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विद्वान और मुख्यमंत्री के प्रेस एडवाइजर के शरण में जाकर अपनी बुद्धि बढ़ाने के लिए विशेष नुस्खे पर काम करना प्रारम्भ कर दिया है... इधर अखबारों ने जब से सही खबरे प्रकाशित करनी प्रारंभ की है, लोगों में आशा का संचार हुआ है, उन्हें लगता है कि अब जनहित में समाचार देखने को मिलेंगे, बाकी चैनलों का हाल तो वहीं है, वो क्या कहते है, अभी भी वे यहीं भजन गा रहे है – रघुवर शरणम् गच्छामि, कनफूंकवां शरणम् गच्छामि...

Thursday, February 23, 2017

मुख्यमंत्री रघुवर दास, क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धौनी से इतने चिढ़ते क्यों है.......

याद करिये, मोमेंटम झारखण्ड की ब्रांडिंग या झारखण्ड का इमेज दूसरे राज्यों में चमकाने के लिए महेन्द्र सिंह धौनी ने एक भी पैसे नहीं लिये। यह भी याद रखिये कि महेन्द्र सिंह धौनी लगातार मोमेंटम झारखण्ड के कार्यक्रम में अपने सारे कार्यों को छोड़ कर, इसमें स्वयं को हृदय से समायोजित किया है और ऐसे व्यक्ति से मुख्यमंत्री का चिढ़ जाना, उसके पोस्टर व बैनर देखकर भड़क जाना, हमें कुछ अच्छा नहीं लगा। कल की ही बात है रांची से प्रकाशित हिन्दुस्तान अखबार ने अपने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि मोमेंटम झारखण्ड के क्रम में कुछ अफसरों के बीच झड़प हुई थी। क्रिकेटर धौनी का बड़ा कट आउट देखकर सीएम भड़क गये थे, हालांकि सीएमओ ने इन सारे आरोपों से इनकार किया है। भले ही सीएमओ इन बातों से इनकार करें, पर सूत्रों के हवाले से दी गई इस खबर में छुपी सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता। सूत्र तो ये भी बताते है कि सीएम इतने भड़क गये थे कि वे गुस्से में कह रहे थे कि क्या महेन्द्र सिंह धौनी की ब्रांडिग करने से झारखण्ड में पूंजी निवेश होगा? मुख्यमंत्री रघुवर दास ने यह भी कहा था कि सिर्फ रघुवर दास ही इस राज्य में पूंजी निवेश करा सकता है, जो भी पूंजी निवेश होगा, वह रघुवर के कहने पर, न कि धौनी के कहने पर। जिस दिन यह घटना घटी, उसी दिन से धौनी का हाथी उड़ाते बैनर और पोस्टर की जगह, रघुवर ही रघुवर नजर आने लगे और इसके लिए दोषी एक अधिकारी को ठहरा दिया गया, जो निर्दोष था और बाकी वहां खड़े अधिकारी मुस्कुरा रहे थे, क्योंकि उनकी कारगुजारी सफल हो चुकी थी, कनफूंकवे कामयाब हो गये थे, राज्य के असली दो मुख्यमंत्री प्रसन्न मुद्रा में आ चुके थे, और जिस अधिकारी पर झूठा आरोप लगा, उसने उसी वक्त संकल्प लिया कि वह अब ज्यादा दिनों तक झारखण्ड में नहीं रहेगा और ठीक इस घटना के बाद उक्त अधिकारी ने केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए सीएम से अपनी मंशा जाहिर कर दी। ये अधिकारी कौन थे?  सब को पता है। हिन्दुस्तान अखबार ने स्पष्ट रुप से उक्त सत्यनिष्ठ अधिकारी का नाम प्रकाशित कर दिया है।
...और मुख्यमंत्री रघुवर दास का धौनी से चिढ़ने का एक नया उदाहरण देखना हो, तो जरा आज का प्रभात खबर देख लीजिये। धौनी जिसने मोमेंटम झारखण्ड की ब्रांडिंग की, उसे ही अपनी अकादमी खोलने के लिए जमीन नहीं मिली। आश्चर्य इस बात की है कि जो उस वक्त रांची के उपायुक्त हुआ करते थे, और जो आज राजस्व सचिव है, उन्हें ही पता नहीं कि धौनी को जमीन क्यों नहीं मिली? 6 वर्ष से यह मामला राजस्व विभाग ने लटका कर रखा है, और बड़े ही सहजता से राजस्व सचिव ये बयान देते है कि जब वे रांची के उपायुक्त थे, तब सरकार के आदेश पर यह प्रस्ताव बना था, अभी उसकी स्थिति की जानकारी, उन्हें नहीं है, इस बारे में जानकारी लेकर वे बतायेंगे। ये अधिकारी है – के के सोन। हद हो गयी, इससे बड़ा आश्चर्य और धौनी के साथ हुए धोखे का कोई दुसरा उदाहरण नहीं हो सकता।  अब बात आती है कि इससे नुकसान किसका हुआ, धौनी का या इस राज्य का। क्या इस सवाल का जवाब मुख्यमंत्री रघुवर दास दे सकते है?
मोमेंटम झारखण्ड का आयोजन करा लेने से क्या होगा? जरा आज का टेलीग्राफ का बॉटम लीड खबर पढ़ लीजिये कि महेश भट्ट रघुवर सरकार के अधिकारियों के कारगुजारियों से कितने खुश है?  मैं स्पष्ट बता देना चाहता हूं कि यहां के भ्रष्ट अधिकारियों ने पूरी तरह से प्रशासन को अपने कब्जे में कर रखा है, जिससे नाराज होकर कई अधिकारी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति का रूख कर रहे है, जैसे कल ही पता चला कि आईपीएस अजय भटनागर भी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते है, अगर ऐसा होता है तो सारे के सारे अच्छे अधिकारी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले जायेंगे और झारखण्ड लूटखंड में परिवर्तित हो जायेगा। एक बात और हिन्दुस्तान में ही दो और अधिकारियों के केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की बात कही गयी है, इसका मतलब ये भी नहीं कि जो भी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाह रहे है, वे सभी ईमानदार और देशभक्त ही है। मैंने उनकी देशभक्ति और ईमानदारी कई वर्षों से देख रखी है, ऐसे लोगों को तो जितना जल्दी हो सके, केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति का पत्र हाथ में थमा देना चाहिए, ताकि राज्य का भला हो।
अंत में जाते-जाते, सरकार की पारदर्शिता और ईमानदारी देखिये। मंगलवार-बुधवार की मध्य रात्रि में स्टेशन रोड पर एक घटना घटी, एक शराब पीये एक युवक ने अपनी चार चक्के की गाड़ी से होटल बीना के पास खड़ी इनोवा और मोटरसाइकिल को ऐसा धक्का मारा कि इनोवा और मोटरसाइकिल का नक्शा ही बदल गया, चूंकि ये दोनों गाड़ियां खड़ी थी, इसलिए किसी की जान नहीं गयी। कानूनी पचड़े में न पड़े, इसके लिए दोनों पक्ष चुटिया थाने में दूसरे दिन सुलह के लिए पहुंचे। दोनों पक्षों में सुलह भी हो गया और इस सुलह तथा कानूनी प्रक्रिया से मुक्त कराने के लिए इसमें बने आइओ ने बीस हजार रुपये दक्षिणा वसूले, जब मैंने उस आइओ से पूछा कि क्या आप ही आइओ है, तो उसने बड़ी ही शान से कहा, हां हम है आइओ।
बदलता झारखण्ड
विकास की ओर उन्मुख झारखण्ड।

Wednesday, February 22, 2017

सिर्फ मुख्यमंत्री रघुवर दास से.............

सिर्फ मुख्यमंत्री रघुवर दास से....
कल की ही बात है...
मैं स्टेशन रोड से गुजर रहा था, कि मैंने देखा कि सड़क के किनारे सोमा उरांव कुछ गा रहा था  और लोग उसकी गाने को सुनकर मजे ले रहे थे, जरा गाने का बोल देखिये...
न मंत्री खुश
न विधायक खुश
कनफूंकवे खुश तो
रघुवर खुश...
न जनता खुश
न कार्यकर्ता खुश
कनफूंकवे खुश तो
रघुवर खुश...
न सच्चे अधिकारी खुश
न सच्चे कर्मचारी खुश
कनफूंकवे खुश तो
रघुवर खुश...
न पेड़ के पत्ते खुश
न खेत – खलिहान ही खुश
कनफूंकवे खुश तो
रघुवर खुश...
न सदन खुश
न भवन खुश
कनफूंकवे संग तो रघुवर खुश
रघुवर खुश, रघुवर खुश...
ये आवाज, ये बोल, बहुत कुछ कह रहे है। जनता नाराज है, कार्यकर्ता नाराज है, विधायक नाराज है, अब तो मंत्री भी नाराज हो चले है, सहयोगी तो पहले से ही नाराज चल रहे थे, अगर ये नाराजगी को रोकने की कोशिश नहीं की गयी और आप गर्व में रहने की कोशिश करेंगे तो ये गर्व आपके लिए महंगा साबित हो जायेगा, मुख्यमंत्री रघुवर दास जी... यहीं मौका है, स्वयं में सुधार लाने का, सही निर्णय लेने का, कनफूंकवे आपको बहुत डैमेज कर चुके है, जो आपको राह दिखा रहे है, उनकी बात सुनिये, नहीं तो आप जानते ही है कि इसका परिणाम क्या होगा?  रोकिये उन्हें, उन लोगों को जो अच्छे है, और झारखण्ड छोड़कर जाना चाहते है, आखिर क्यों जायेंगे वे, यहां भी वे जनसेवा कर सकते है, पर आपने जो कनफूंकवों की बातों में आकर कुछ निर्णय लिये है, वे झारखण्ड के लिए महंगे साबित हो रहे है...
कुछ सवाल मुख्यमंत्री जी आपसे, ये जनता के सवाल है...
1, आखिर आपके ही कार्यकर्ता आपसे नाराज क्यों है?
2.  आखिर ढुलू महतो  जिनका अपराधिक पृष्ठभूमि रहा है, ऐसे विधायकों पर आप इतना प्यार क्यों लूटा रहे है?
3. राज्य सरकार शराब बेचे, क्या ये किसी भी दृष्टिकोण से उचित है? वह भी उस पार्टी द्वारा जिनके नेता पं. दीन दयाल उपाध्याय और डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रहे हो।
4. क्या अपने कैबिनेट के मंत्रियों की बात को अनसुनी कर देना और सिर्फ अपनी ही बात रखना, सहीं है?
5.  आखिर सरयू राय, सी पी सिंह जैसे मंत्री जिनका कार्यकर्ताओं के बीच, संगठन में भी जनाधार है, उनकी बातों को आप क्यों नहीं तवज्जों दे रहे है?
6.  आपसे विक्षुब्ध मंत्रियों का दल, आपके द्वारा लिये जा रहे एकतरफा निर्णयों से इतना नाराज क्यों है?
7. आखिर इन मंत्रियों और नेताओं को ये क्यों लग रहा है कि राज्य का मुख्यमंत्री आप नहीं, कोई और है?
8.  पहली बार, आप ही के एक विधायक फूलचंद मंडल ने आप पर जातिवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है, अगर देखा जाय तो पहली बार राज्य के किसी मुख्यमंत्री पर इस प्रकार का आरोप लगा है, आपको नहीं लगता कि ये राज्य के लिए सुखद नहीं है, जनता आपसे जवाब चाहती है?
9. पहली बार राज्य में देखा गया कि जिस विभाग का संचालन मुख्यमंत्री कर रहे है, उस विभाग ने आदिवासी समुदाय से आनेवाली झारखण्ड की राज्यपाल ही नहीं बल्कि एक दलित मंत्री का भी अपमान किया, ऐसे लोग या संस्थान जिन्होंने इस प्रकार का कृत्य किया, इस पर आप क्या एक्शन लेने जा रहे है?
10.  आखिर मूर्खों द्वारा आयातित कंपनियां जो आपके ब्रांडिंग के लिए राज्य में लाई गयी और जिन्होंने विज्ञापन के नाम पर राज्य के सम्मान को ठेस पहुंचाया, उनको आप कब ब्लैक लिस्टेड करने जा रहे है?
11. मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में पूर्व में कार्यरत जो बालिकाएं महिला आयोग को पत्र लिखी थी और जो आपसे भी न्याय का गुहार लगायी थी, उन बालिकाओं को आप कब न्याय दिलायेंगे?
12.  आखिर संजय कुमार जैसे अधिकारी का झारखण्ड से मोहभंग इतनी जल्दी कैसे हो गया? ये भी जनता जानना चाहती है।

Tuesday, February 21, 2017

आखिर क्यों झारखण्ड छोड़ना चाहते हैं संजय कुमार........

आखिर क्यों झारखण्ड से जाना चाहते है संजय कुमार...
जिनकी नियुक्ति स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास करते हो, जिनकी नियुक्ति तीन साल के लिए हुई हो, वह शख्स दो साल में ही झारखण्ड क्यों छोड़ना चाहेगा?, कुछ न कुछ तो कारण होगा, कारण क्या है?  हम आपको बतायेंगे, क्योंकि किसी में हिम्मत ही नहीं कि सच दिखाये या सच बताये...
मेरे विचार से, ईश्वर जो करता है, अच्छा करता है...
मैंने सपने भी नहीं सोचा था कि कभी सरकार के लिए काम करना पड़ेगा... पर एक व्यक्ति विशेष के कथन पर, जिनकी बातों को मैं ठुकरा नहीं सकता था, सरकार के लिए काम किया...
इसी दौरान मेरी पहली मुलाकात 5 जनवरी 2016 को मुख्यमंत्री आवासीय कार्यालय में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार से हुई। इसी बीच कई अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में इनके खिलाफ अनाप-शनाप छपते रहे, पर मेरा मन कभी नहीं माना कि संजय कुमार ऐसा करते होंगे, जैसा कि आरोप उन पत्र-पत्रिकाओं ने लगाया था, क्योंकि मुझे आदमी पहचानना आता है।
संजय कुमार की सबसे बड़ी विशेषताएं है कि वे प्रतिभा, योग्यता, बुद्धिमता, सादगी जीवन व्यतीत करनेवाले लोगों का बड़ा आदर करते है, वे ऐसे लोगों को भूलकर भी अपमानित नहीं करते, जबकि दूसरे लोग आईएएस का रौब इस प्रकार हांकते है, जैसे लगता हो कि दुनिया का सबसे बड़ा बुद्धिमान और योग्य आदमी वहीं है। ऐसे लोगों की संख्या झारखण्ड ही नहीं, पूरे भारत में भरी-पड़ी है। मैंने इसी झारखण्ड में देखा है कि एक आईएएस अधिकारी जो स्वयं को बहुत ईमानदार शो करता है, पर वो क्या है? मैं अच्छी तरह जानता हूं, क्योंकि प्रमाण मेरे पास मौजूद है।
चूंकि मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव ने स्वयं को झारखण्ड से मुक्त करने का फैसला ले लिया है, तो मैं भी उनसे कहूंगा कि वे जल्द झारखण्ड छोड़ दें, क्योंकि जहां सम्मान न मिले, वहां एक पल भी नहीं रहना चाहिए, और इसी बात पर मैं ताल ठोक कर कहता हूं कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने धर्म का परित्याग कर दिया। अब ये लाख कोशिश कर लें, इनके द्वारा न तो झारखण्ड का विकास हो सकता है और न ही उत्थान।
और अब हम कारण की ओर चलते है...
1. सारी जनता जानती है कि यहां मुख्यमंत्री रघुवर दास केवल शो पीस है, जबकि प्रत्य़क्ष रूप से असली शासन मुख्य सचिव राजबाला वर्मा और मुख्यमंत्री के सचिव सुनील बर्णवाल चला रहे है। जिस कारण यहां का कोई आईएएस आफिसर क्या करें और क्या नहीं करे, इसी भंवरजाल में फंसा है, जिससे काम प्रभावित हो रहा है।
2. मुख्यमंत्री रघुवर दास जो भी अच्छा काम हो रहा होता है, उसका सारा श्रेय मुख्य सचिव राजबाला वर्मा और अपने सचिव सुनील बर्णवाल को देते है, और जितना भी गड़बड़ होता है, उसका सारा श्रेय प्रधान सचिव संजय कुमार को दे देते है। उसका उदाहरण है – मोमेंटम झारखण्ड। ये कितना सफल होगा, ये तो समय बतायेगा पर इसके आयोजन की सफलता का सारा श्रेय मुख्यमंत्री ने यहां के मुख्य सचिव और सुनील बर्णवाल को दे दिया, जबकि मैं अच्छी तरह जानता हूं, मेरे पास प्रमाण है कि मोमेंटम झारखण्ड की सफलता के लिए संजय कुमार ने पिछले कई महीनों से जब मुख्यमंत्री देश-विदेश का चक्कर काट रहे थे, तो ये इसकी बेहतरी और प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। हद हो गयी, जिन्होंने मोमेंटम झारखण्ड के प्रचार-प्रसार को बदरंग कर दिया, वे मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित और जो बेहतर कार्य किया वह अपमानित, ये सिर्फ झारखण्ड में ही हो सकता है, अन्यत्र नहीं।
3. जितना जलन, ईर्ष्या, द्रोह, और एक दूसरे को नीचे गिराने की प्रवृत्ति उपर के अधिकारियों में है, उतना तो नीचे भी नहीं भाई, काहे का आईएएस। मैंने देख लिया। मुख्य सचिव, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का निदेशक राजीव लोचन बख्शी को बनायी, ये निदेशक करता क्या है?  ये तो अपने प्रधान सचिव की बात ही नहीं मानता, केवल मुख्य सचिव की बात मानता है, ये तो अपने विभाग में भी कम बैठता है, इसका ज्यादा समय प्रोजेक्ट बिल्डिंग में ही गुजरता है, क्यों आप समझते रहिये और इस कारण क्या हो रहा है, नतीजा आपके सामने है। मंत्री अमर कुमार, अमर कुमारी हो जाते है, राज्यपाल का नाम गलत लिख दिया जाता है, रांची को खनिज राजधानी बना दिया जाता है, और आश्चर्य कोई बोलनेवाला नहीं, आश्चर्य विज्ञापन की लालच में गलत विज्ञापन को भी अखबार परोस देता है। है न आश्चर्य... ये सिर्फ झारखण्ड में ही दिखता है।
4. ऐसे भी मुख्यमंत्री रघुवर दास अब ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री के रूप में नहीं रहेंगे, क्योंकि स्थिति उन्हें नहीं मालूम, कनफूंकवे उन्हें जो कह रहे है, वे मान ले रहे है, पर उन्हें पता नहीं कि जनता और कार्यकर्ता दोनों इनके व्यवहारों से क्षुब्ध हो गये, जरा देखिये कल ही की तो बात है, कृषि और श्रम मंत्री ने भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए भाजपा कार्यालय में दरबार लगाया, क्या मुख्यमंत्री और कनफूंकवे बता सकते है कि कितने कार्यकर्ता उनके दरबार में पहुंचे, ज्यादा जानकारी के लिए आज का प्रभात खबर का पृष्ठ संख्या 8 देख लीजिये, पता चल जायेगा, क्या स्थिति है...
अंत में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार जी, आप कहीं भी जाये, आपको कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर जो रघुवर दास को फर्क पड़ेगा, वे तो रघुवर दास भी नहीं जानते। सत्ता के मद में, एक सामान्य व्यक्ति कैसे असामान्य होने की कोशिश करता है, उसका उदाहरण है – मोमेंटम झारखण्ड और आपका यहां से जाना।
पुनः मेरी ओर से यहां से जाने की अग्रिम बधाई, स्वीकार करें, हालांकि अखबार ने आपके जाने की खबर आज छापी, पर मैं तो दो महीने पूर्व ही जान गया था कि आप यहां नहीं रहेंगे... क्योंकि धर्म कभी अधर्म के साथ नहीं रहा... वो तो सत्य है, शाश्वत है।
आपके जाने के बाद झारखण्ड ने क्या खोया, ये झारखण्ड को अवश्य ही पता चलेगा। ईश्वर आपका मार्ग प्रशस्त करें.......

Monday, February 20, 2017

कनफूंकवों की हालत खराब.......

कनफूंकवों की हालत खराब, गाली गलौज पर उतरे...
मैंने जब से मुख्यमंत्री रघुवर दास को आइना दिखाने की कोशिश क्या कर दी?
बेचारे कनफूंकवे परेशान हो गये...
अब वे अपने टूकड़ें पर पलनेवाले लोगों को मिलाकर एक टीम बनायी है, ये टीम रात में शराब पी लेने के बाद नशे में आकर खूब उटपुटांग बकती है और सोशल साइट का इस्तेमाल मेरे को गाली देने के लिए उपयोग कर रही है। मैं उन्हें बता देना चाहता हूं कि मैं इनसे भय खानेवाला नहीं हूं... क्योंकि मुझे किसी का सलाहकार नहीं बनना और न ही मुझे लोकसभा या राज्यसभा का टिकट पाकर उपकृत होना है, या रांची या किसी अन्य महानगर में महल खड़े करने है, हां जिनको करना है, वे करते रहे...
मुझे गाली देनेवाले, अगर ये सोचते होंगे, कि वे ऐसा कर मुख्यमंत्री रघुवर दास के बहुत प्रिय हो जायेंगे, तो हो जाये, इसकी हमें परवाह भी नहीं और न मैं इस हेतु लिखता हूं कि मुझे इसके बदले कुछ प्राप्त हो जाये... अगर मुझे चाटूकार बनने और जनता के पैसे की लूटने की आदत होती तो मैं भी अपने लिए वो सब कुछ कर लेता, जिसके लिए लोग अपनी जमीर बेचते है...
और मुझे बेरोजगार कहनेवालों, आओ मैं तुझे रोजगार दूंगा, बैठाकर खिलाऊंगा...
और मैं बेतूके प्रश्नों का जवाब भी नहीं देता, जिन प्रश्नों का जवाब बच्चा – बच्चा जानता है, और जिसका जवाब मैं स्वयं ही सोशल साइट पर दे चुका हूं।
और ये भी जान लो, जवाब भी मर्द को दिया जाता है, नामर्दों को नहीं, जो छद्म नाम से लिखा करते है मैं उन्हें ही नामर्द कहता हूं। मैं तो जो भी करता हूं, डंके की चोट पर करता हूं, अपने आइडी पर करता हूं, तुम्हारे जैसा किसी शाहरूख खान के आइडी का इस्तेमाल नहीं करता और न ही मुख्यमंत्री से संबंधित कार्यालय के आइडी का इस्तेमाल करता हूं...
मैं वह भाजपा विधायक भी नहीं, कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के आते ही, अपने पूर्व विधायकी का रौब दिखाकर, जातीयता का रौब दिखाकर, सीएम के टूकड़ों पर पलने लगूं...
आज मैं, जो भी हूं, अपनी प्रतिभा, अपनी ईमानदारी और अपनी काबिलियत पर....
किसी की रहमोकरम पर नहीं... आज तक मैं किसी के पास नौकरी मांगने भी नहीं गया, यहां नौकरी तो खूद मेरे दरवाजे पर आती है....
बेवकूफों, गलत दरवाजा खटखटा दिये, मेरे पास तो अभी बहुत सारे उदाहरण है, जो जनहित में हमें उठाने है, ताकि सत्ता में बैठे प्रमुख शासक को पता चले कि जनता उनके क्रियाकलापों से कितनी परेशान है, जब तक शासक को पता नही चलेगा कि उसके क्रियाकलापों से जनता को कितना नुकसान है, वो जानेगा कैसे?
आखिर जनता की बात, मुख्यमंत्री रघुवर दास को बतायेगा कौन? हम जैसे लोग ही तो बतायेंगे, ताकि जनता की बात मुख्यमंत्री रघुवर दास तक पहुंचे, तुम लोग तो केवल वाह-वाह करोगे, और उसके बदले राजा से उपकृत होगे। अखबारवाले – चैनलवाले अगर ईमानदारी से काम कर रहे होते तो हम जैसे लोगों को ये सब करने की जरूरत ही क्यों पड़ती?
मैं, इस लेखन के माध्यम से उन सारे पत्रकारों को धन्यवाद देता हूं जो विभिन्न समाचारपत्रों और चैनलों में काम करने के बावजूद अपना जमीर नहीं बेचा और सोशल साइट के माध्यम से जनता की आवाज सरकार तक, मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का कार्य किया... उन्हें दिल से आभार।
आशा है, मुख्यमंत्री जगेंगे, कनफूंकवों से सावधान रहेंगे...
और अंत में, एक बार फिर...
कल का ही अखबार देख लो... अब तो अवधेश कुमार पांडेय भी नहीं है, अब तो तुम्हारे ही कहने पर डायरेक्टर भी नियुक्त हो गया, वो क्या नाम है उसका राजीव लोचन बख्शी। कारण बताओ नोटिस प्राप्त करनेवाले एक अधिकारी को सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में बैठा दिया गया। उसके बाद भी राज्य के सभी प्रमुख अखबारों में छपे विज्ञापन इटखोरी महोत्सव में इतनी गड़बड़ियां क्यों?  मंत्री अमर कुमार बाउरी, अमर कुमारी कैसे हो गये, जय प्रकाश सिंह भोक्ता, भोगता कैसे हो गये... गलतियां ठीक नहीं कर रहे और चल दिये हम पर अंगूली उठाने... आज ही का विज्ञापन देखो। भला रांची खनिज राजधानी कब से बन गया, यानी जो मन करे, छाप दो, और कहो मैं ही सहीं हूं.... जब कोई गलती दिखाये तो सुधरने के बजाय उसे ही सुधारने का प्रयास बंद करो... बंद करो ये सब, नहीं तो कहीं के नहीं रहोगे।
कनफूंकवों याद रखो, अब भी वक्त है, मेरे से उलझने से अच्छा है, स्वयं में सुधार लाओ... मैं फिर लिखूंगा, जल्द ही देखना मेरे फेसबुक साइट पर, वह भी जनहित में, तुमको जो करना है, कर लो...

Friday, February 17, 2017

कुछ सवाल अपने मुख्यमंत्री रघुवर दास यानी शाहरूख खान से.....

कुछ सवाल अपने मुख्यमंत्री रघुवर दास यानी शाहरूख खान से......
भाई रघुवर दास जी उर्फ शाहरूख खान जी, अब तो मोमेंटम झारखण्ड खत्म हो चुका, खुब एमओयू भी कर लिये, हाथी भी उड़ा लिये, अब लगे हाथों जनता के सवालों का जवाब भी दे दीजिये...
सवाल इस प्रकार है...
1. आप हमेशा ईमानदार और पारदर्शी शासन की वकालत करने की दुहाई देते रहते है, तो लगे हाथों आप ये बताइये कि इस मोमेंटम झारखण्ड मेले में कितने रुपये खर्च हुए, ताकि हम आपकी पारदर्शिता को समझ सकें।
2. आपके पास सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग है, जिसका काम सरकार और जनता के बीच सेतु बनकर, सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाना है, फिर भी इस विभाग के रहते आपने अपनी ब्रांडिंग कराने के लिए तीन – तीन कंपनियों को झारखण्ड क्यों बुलाया?
3. क्या आप इस बात को स्वीकार करते है कि सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में जितने भी अधिकारी या कर्मचारी है, वे सभी अयोग्य है, जिसके कारण आपको प्रभातम, इवाई, एड फैक्टर, सीआइआइ जैसी कंपनियों को बुलाना पड़ा या कुछ और बात है।
4. जो कंपनियां माननीया राज्यपाल का नाम ठीक से नहीं लिख पाती, जिसे गवर्नर का स्पेलिंग नहीं आता, जो श्रीमती सही है या श्रीमति सही है का विभेद नहीं कर पाती, जो झारखण्ड के मानचित्र को बंगाल की खाड़ी तक पहुंचा देती है, ऐसी कंपनियों को आपने बुलाकर ये नहीं सिद्ध किया कि आपको ब्रांडिग के क्षेत्र में ज्ञान का अभाव है।
5. आखिर आप ये बताएं कि विभिन्न अखबारों में छपे विज्ञापन में जिस दिन मोमेंटम झारखण्ड का समापन होना है, उसमें राज्यपाल महोदया का फोटो क्यों नहीं है?
6. आपके द्वारा आयातित मूर्ख कंपनियों द्वारा लगाये गये राज्य के विभिन्न शहरों के होर्डिंगों में mineral को जिसने miniral लिख दिया, ताम्बा को जिसने तांबां लिख दिया, अबरख को जिसने अभ्रख लिख दिया, बोकारो को जिसने बुकारो लिख दिया। इस पर आप क्या कहेंगे?
7. आप यह भी बताये कि किसके कहने पर, किस अधिकारी के इशारे पर इन कंपनियों को झारखण्ड बुलाया गया, जिन्होंने राज्य के धन का दुरूपयोग किया, क्या इन कंपनियों के भाजपा या संघ या राज्य के किसी उच्चाधिकारियों के साथ संबंध है? क्योंकि अखबारों में छपे विज्ञापन से इनकी मूर्खता का स्पष्ट आकलन आम जनता को हो चुका है और यह भी सिद्ध हो गया कि सिर्फ इन्हें लाभ दिलाने के लिए और कमीशन प्राप्त करने के उद्देश्य से इन मूर्ख कंपनियों को मोमेंटम झारखण्ड में सम्मिलित किया गया।
8. आप यह भी बताये कि राज्य में असली शासन कौन चला रहा है, आप या कोई और, क्योंकि चर्चा यह भी है, कि असली शासन तो ब्यूरोक्रेट चला रहे है, आप तो सिर्फ मुहरे है।
9. आप यह भी बताये कि आइपीआरडी में जिस अधिकारी के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी हुआ, उक्त अधिकारी को आनन-फानन में आपने पुनः योगदान करने के लिए क्यों बुलाया और किसके इशारे पर ऐसा किया?
10. 16 फरवरी को आपके इशारे पर, जो चार पृष्ठों का पेड न्यूज की शक्ल में विभिन्न अखबारों में जो समाचार छपवाये गये, उसमें एक अखबार जिसका नाम दैनिक भास्कर है, उसने लिखा कि झारखण्ड ईज आफ डूइंग बिजनेस में शीर्ष पायदान पर पहुंच गया है, ये झारखण्ड कब शीर्ष पायदान पर पहुंचा, जरा आप आम जनता को बतायेंगे।
11. खेलगांव में जो मेक इन इंडिया का प्रतीक शेर बना है, उस शेर की आकृति को कुत्ते की शक्ल किसने दे दी?
12.  मोमेंटम झारखण्ड पर आप श्वेत पत्र जारी करेंगे?
कुछ सुझाव.....
1. मेले लगाकर कहीं भी निवेश नहीं होता, यह जान लीजिये, उसका सबसे सुंदर उदाहरण है – राजस्थान। जहां पिछले वर्ष इसी प्रकार का तामझाम कराकर निवेश हेतु मेला लगा था, पर हुआ क्या, नतीजा ठन-ठन गोपाल।
2. आप कहते है कि पूर्व में यहां स्थिर सरकार नहीं थी, जिसके कारण यहां निवेश नहीं हुआ, आज यहां स्थिर सरकार है, भाई रघुवर दास उर्फ शाहरूख खान जी, हम आपको बता दें कि राजस्थान में हमेशा से ही स्थिर सरकार रही है, फिर भी वहां निवेश नहीं हुआ, निवेश का स्थिर सरकार से उतना लेना-देना नहीं, जितना आधारभूत संरचना और कानून व्यवस्था से है।
3. आपके तो मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में लड़कियां सुरक्षित नहीं, कुछ लड़कियां तो डर से मुंह ही नहीं खोलती और जो खोलती है, उसका जीना दूभर आप करवा देते है, उसे न्याय भी नहीं देते और न दिलवाते है, आपको याद है, ये लड़कियां आपके पास भी गुहार लगायी और अभी तक उन्हें न्याय नहीं मिला, हद हो गयी...
4. आपही के राज्य में रांची बूटी मोड़ में जिस लड़की के साथ दुष्कर्म कर उसकी नृशंस हत्या कर दी गयी, उस लड़की के हत्यारों और दुष्कर्मियों को आपकी पुलिस पकड़ नहीं पायी, यहीं नहीं आपके यहां कस्तूरबा में पढ़ रही लड़कियों के साथ क्या हो रहा है? वो तो आपको मालूम ही होगा, ऐसे भी मालूम होने पर भी आप क्या कर लेंगे, आप उन लड़कियों को न्याय थोड़े ही दिला पायेंगे, ये आपके हाथ में भी नहीं है, क्योंकि यहां तो सरकार कोई और चला रहा है।
5. आधारभूत संरचना का हाल तो यह है कि जिस रास्ते से सीएम गुजरे वह रास्ता एक ही साल में कई बार बन जाता है और रांची से जमशेदपुर जाने का रास्ता कब ठीक हो पायेगा, इसका जवाब तो किसी के पास नहीं है।
6. अंत में, यह मत भूलिये कि असली ब्रांडिग सीएम का काम करता है, न कि धूर्त कंपनियां। आप जरा पड़ोस के राज्यों पर नजर डालिये। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक अपने कार्यों से जाने जाते है, न कि धूर्त कंपनियों से ब्रांडिंग कराकर।
आशा है, आप उपरोक्त सवालों का जवाब जनता को अवश्य देंगे और शासन व्यवस्था स्वयं अपने हाथों में लेकर जनहित में फैसले लेंगे, क्योंकि दो वर्ष गुजर गये, तीन वर्ष आप शासन कर पायेंगे या नहीं, ये आपके फैसले पर निर्भर करेगा, एक बात और हठधर्मिता छोड़िये, कल के मोमेंटम झारखण्ड में आपके द्वारा दिया गया भाषण घमंड से भरा था, किसी राज्य के मुख्यमंत्री को इतना घमंड में नहीं रहना चाहिए। सरल बनिये, सहज बनिये और सहृदय बनिये। हो सके तो जितना कटआउट और जितना पोस्टर आप रांची या रांची के बाहर लगवाये है, उसे शीघ्रता से हटवाइये, क्योंकि ज्यादा मिठास और ज्यादा नमक भी भोजन को बेकार बना देता है। आप तो ज्यादा होशियार है, जरा कभी चाय में ज्यादा चीनी अथवा सब्जी में ज्यादा नमक डालकर देख लीजियेगा, पता चल जायेगा।
एक बात और अब समय टाटा-बिड़ला का नहीं, अंबानी और अडानी का है, राज्य की जनता ने देख लिया, अंबानी ने तो आपके कार्यक्रम से दूरी बना ली, गौतम अडानी स्वयं न आकर, अपने प्रतिनिधि को भेजा, जो देश के प्रतिनिधि आये, उनकी धाक भी उतनी अपने देशों में नहीं कि वे अपने देश में आपके लिए कुछ कर सकें, जो भी यहां आये, वे आंख में धूल झोंक कर जनता को गये है, ऐसे आपने छह-सात महीने में निवेश को जमीन पर उतारने का फैसला किया है, छह – सात महीने बीतते देर नही लगती। कुल मिलाकर मोमेंटम झारखण्ड, सच पूछिये तो ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट कम, भाजपाई केन्द्रीय मंत्रियों का सम्मेलन ज्यादा नजर आया। इस दौरान रांची में टेम्पू व टैक्सी नहीं चले, लोगों को रेलवे स्टेशन तक आने और यहां से अपने गंतव्य तक जाने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, ये मत भूलिये, आनेवाले समय में जनता आपको माफ करने नहीं जा रही। अब भी मौका है, स्वयं को बदलिये, सीधे जनता से जुड़िये और जनसेवा में लग जाइये नहीं, तो जनता को हर नेता का इलाज करने आता है...
अरे हां, कभी मौका मिले तो ये गाना भी जरुर सुनियेगा, आपको फायदा पहुंचायेगा...
गाने के बोल है...
मीठी मीठी बातों से बचना जरा...
दुनिया के लोगों में है जादू भरा...

Wednesday, February 15, 2017

हर डाल पर रघुवर बैठा है........

हर डाल पर रघुवर बैठा है, अंजामे झारखण्ड क्या होगा......
जी हां, हर जगह रघुवर दास बैठे है, गलियों में, दुकानों में, घरों में, होर्डिंगों में, पोस्टरों में, बैनरों में, एलइडी में, सड़कों पर, पेड़ों पर, यानी कौन ऐसी जगह है, जहां रघुवर दास यानी अपना शाहरूख खान नजर नहीं आ रहा। आप कहेंगे कि शाहरूख खान, जी हां आजकल अपने रघुवर दास, शाहरूख खान के नाम से खासे लोकप्रिय हो रहे है। इनका नया नाम शाहरूख खान लोगों ने इसलिए दिया है कि वे फिलहाल स्वयं को शाहरूख खान से कम नहीं समझ रहे। उन्होंने स्वयं को शाहरूख खान बनाने और दिखने के चक्कर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है, अगर पोस्टर-बैनर-होर्डिंग की बात करें तो प्रचार में अपने रघुवर दास यानी शाहरूख खान शीर्ष पर है, दूसरे नंबर पर महेन्द्र सिंह धौनी तथा तीसरे स्थान पर उड़ता हाथी और चौथे स्थान पर कोई नजर ही नहीं आता, इसलिए आगे की बात करनी ही बेमानी है। हम आपको बता दें कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने, खुद को शाहरूख खान समझने के कारण, देश व राज्य के महान नेताओं व महान विभूतियों को मोमेंटम झारखण्ड कार्यक्रम में ठिकाने लगा दिया है।
जरा पूछिये रघुवर दास यानी शाहरूख खान से...
खुद का पासपोर्ट साइज का फोटो तो हर जगह लगवा दिया सत्ता की बदौलत, पर रांची की वह कौन सी जगह है, जहां इस शाहरूख खान ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का कट आउट लगवाया या महात्मा गांधी का छोटा सा पोस्टर ही लगवाया। जिन्होंने झारखण्ड निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के फोटो कहां है? जरा पूछिये रघुवर दास यानी शाहरूख खान से कि इस राज्य के महान पुरोधा भगवान बिरसा मुंडा, तिलका मांझी, जतरा टाना भगत, नीलाम्बर-पीताम्बर, विश्वनाथ शाहदेव, शेख भिखारी इस मोमेंटम झारखण्ड में कहां है? जरा पूछिये अखबारों में विज्ञापन निकालकर खुद के नाम के आगे श्री लगानेवाला और उदयोगपतियों को विज्ञापन में प्रमुखता से स्थान दिलानेवाले से, कि आखिर जिस सड़क को यह बार-बार बनवा रहा है, जिस सड़क को चमकाने में करोड़ों फूंक दिये, वहीं सड़क जो महात्मा गांधी मार्ग के नाम से जाना जाता है, वहीं पर स्थापित महात्मा गांधी की मूर्ति धूल-धूसरित क्यों है? वह जवाब नहीं दे पायेंगे, क्योंकि इसका जवाब अपने शाहरूख खान के पास नहीं है और नहीं कोई पूछेगा?
वह इसलिए नहीं पूछेगा कि सबको अपनी – अपनी बीबी और बच्चे प्यारे है, कल ही की तो बात है, सभी अपने बीवी के साथ वेलेन्टाइन डे मनाने में व्यस्त थे। जो अखबार नहीं आंदोलन है, वे तो रघुवर यानी अपने शाहरूख खान की स्तुति गा रहे है, ऐसे भी राज्य के सभी अखबार या बाहर के अखबार सभी अपने शाहरूख खान की स्तुति गा रहे है क्योंकि अपना शाहरूख खान सबके लिए व्यवस्था कर चुका है। दिल्ली से पत्रकारों की विशेष टीम अलग से बुलाई जा रही है और उन्हें वीवीआइपी ट्रीटमेंट देने की व्यवस्था कर दी गयी है, ये पत्रकारों की टीम आज ही रांची पहुंच रही है, उधर रांची स्थित पत्रकारों को सामान्य ट्रीटमेंट देने की व्यवस्था की गयी है, क्योंकि अपना शाहरूख खान जानता है कि रांची के पत्रकारों की क्या औकात है?  ऐसे भी इसके लिए रांची के पत्रकार ही दोषी है, क्योंकि स्वयं को इन्होंने मजबूत बनाया ही नहीं और न इनके आका इन्हें मजबूत बनने देना चाहते है।
इधर राज्य की प्रमुख विपक्षी दल झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने मोमेंटम झारखण्ड से स्वयं को दूर कर लिया है, अन्य दलों की भी यहीं स्थिति है, क्योंकि कोई नहीं चाहता कि वह जनता से दूर रहे, क्योंकि फिलहाल आनेवाल चुनाव में राज्य की जनता का खौफ उनके नेताओं के चेहरे पर साफ दिख रहा है। इधर राजद नेता गौतम सागर राणा तो मोमेंटम झारखण्ड पर ही सवाल उठा देते है, वे पूछते है कि पहले रघुवर ये बताये कि क्या राज्य में पुनर्वास आयोग का गठन हुआ है?  क्या जिन जमीनों को उन्होंने लैंड बैंक में दिखाया है, उन गैरमजरूआ जमीन पर जो बरसो से लोग रह रहे है, वे इनके कहने पर वहां से चले जायेंगे, उनकी व्यवस्था सरकार ने क्या किया है? आपने जमीनी स्तर पर कुछ नहीं किया और चल दिये मोमेंटम झारखण्ड कराने और अपना चेहरा चमकाने। पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी तो साफ कहते है कि जो यहां पूर्व में निवेश हुआ, और उस निवेश से जो लोगों को अनुभव प्राप्त हुए है, वे यहां के लोगों के अनुकूल नहीं है, इसलिए मोमेंटम झारखण्ड जैसे आयोजन का यहां कोई औचित्य नहीं।
दूसरी ओर आज अखबारों में एक समाचार पढ़ने को मिला, कि धनबाद के डिप्टी कलेक्टर मनीष कुमार और सिमडेगा के डिप्टी कलेक्टर सत्यम कुमार जो शराब पिये हुए थे, जो मोमेंटम झारखण्ड के लाइजनिंग अफसर है, ठेकेदार से ही उलझ पड़े, यानी जिस राज्य में ऐसे – ऐसे अधिकारी जो विशेष अवसरों पर, जिन्हें विशेष दायित्व मिले है, और वे शराब पीकर उलझते है, जिन्हें पकड़कर कोतवाली थाने लाया जाता है, जो पीआर बाउंड भरने पर थाने से छोड़े जाते है, ये बताने के लिए काफी है कि ये मोमेंटम झारखण्ड अथवा ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट इस राज्य में कितना सफल होगा? ऐसे भी जब अपने मुख्यमंत्री रघुवर दास यानी अपने शाहरूख खान ही दारू बेचने और बेचवाने के लिए तैयार है तो इन अधिकारियों के लिए तो पीना और जीना आम बात हो ही गयी है...
बदलता झारखण्ड
विकास की ओर उन्मुख झारखण्ड

Tuesday, February 14, 2017

एक राजा था.......

एक राजा था...
हां जी, एक राजा था। वो बहुत सनकी था। उसके राजदरबार में कनफूंकवों की संख्या ज्यादा थी। राजा कनफूंकवों की मदद से राज संचालन किया करता था। राजा को लगता था कि उसके राज्य में सर्वाधिक बुद्धिमान और सारे शास्त्रों के ज्ञाता कनफूंकवे ही है। इसलिए राजा कनफूंकवों की बातों को कभी नजरंदाज नहीं करता था। कनफूंकवें भी जानते थे कि राजा को आत्मप्रशंसा के अलावा, उसे राज्य और राज्य की जनता की कोई फिक्र नहीं, इसलिए वे बेमतलब की बातों को ही लेकर राजा के पास जाते और उसकी तारीफ में कुछ सुना दिया करते, जिससे राजा प्रसन्न हो जाता और कनफूंकवों की उसकी काबिलियत की खुब प्रशंसा करता।
एक दिन उसी राजा के राज में एक ठग आया। उसने जब राजदरबार की हकीकत देखी, तो उसे समझ में आ गया कि यहां का राजा सनकी और महामूर्ख है, यहां कनफूंकवे राज चला रहे है। ऐसे में उसकी दाल यहां आसानी से गल जायेगी, साथ ही वह खूब धन इकट्ठे करके वह अपने नगर को भी जा सकता है। उसने सर्वप्रथम पूरे राज में यह अफवाह फैलायी कि उसके पास ऐसा पतला कपड़ा है कि जिसे पहननेवाले को पता ही नहीं चलेगा कि उसने कुछ पहन रखा है, ये कपड़ा ऐसा है कि जो इसे पहनता है, उसकी शारीरिक सौंदर्य और बढ़ जाती है। बुढ़ा जवान और आकर्षक हो जाता है। वह ऐसा दिव्य कपड़ा यहां के राजा को भेंट करना चाहता है। जब राजा के कनफूंकवों की इस बात की जानकारी मिली तो वे लोग उस ठग के पास पहुंचे। कनफूंकवों ने ठग से कहा कि वे लोग, उसे राजा के पास ले जा सकते है, पर इसके बदले में कनफूंकवों को वह क्या देगा? ठग ने कहा कि राजा इस दिव्य कपड़े के बदले में जो भी राशि देगा, उसका दस प्रतिशत वह कनफूंकवों को दे देगा।
फिर क्या था... कनफूंकवों ने राजा से ठग को मिलवाने की हामी भर दी। जल्दी ही कनफूंकवों ने राजा को बताया कि यहां इस राज्य में एक ऐसा आदमी है, जो एक दिव्य कपड़ा लाया है, जिसे पहनने से पता ही नहीं लगता कि कोई कपड़ा पहना है और उस कपड़े को पहनने से व्यक्ति और सुंदर दिखता है। राजा ने कनफूंकवों से उस व्यक्ति को बुलाने का संदेश भिजवाया। ठग जल्द ही राजा के पास पहुंचा। राजा को वह पतली पारदर्शी प्लास्टिक की बनी कपडों को भेंट किया। साथ ही यह भी कहा कि इसकी सबसे बड़ी दुर्गुण यह है कि जो भी व्यक्ति इस कपड़े की आलोचना करता है या पहननेवाले की आलोचना करता है, या शिकायत करता है या हंसी उड़ाता है, वह पलक झपकते ही अंधा हो जाता है। राजा ने और कनफूंकवों ने जनहित में यह ढिंढोरा पिटवा दिया कि राजा जब ये विशेष कपड़े पहनकर निकले तो कोई भी ऐसा काम न करें, नहीं तो उसे अँधा होने का खतरा है।
इधर ढिंढोरा पीटवाने के बाद, राजा जब प्लास्टिक के बने पारदर्शी कपड़े पहनकर नगर परिभ्रमण को निकला तो सभी यह देखकर आश्चर्यचकित हो गये, राजा जो कपड़े पहना था, उससे राजा नंगा दिख रहा था, पर कनफूंकवें और राज्य की जनता अंधे होने के भय से राजा के खिलाफ कुछ बोल नहीं रहे थे। सभी राजा की वाह-वाह करने में लगे थे, तभी कहीं से कोई बच्चा, दौड़ता हुआ आया, जहां राजा था, उसने राजा को जब देखा तो कहा कि ये राजा कैसा कपड़ा पहना है, जो पूरी तरह से नंगा दीख रहा है, और वह देखते ही देखते चिल्लाने लगा – राजा नंगा है, राजा नंगा है....
बच्चे को इस तरह चिल्लाते और बच्चे पर कोई अँधापन का असर नहीं देख, राजा को समझते ये देर नहीं लगी कि उनके दरबारियों-कनफूकवों और उस व्यक्ति ने जिसने कपड़े दिये, राजा को उल्लू बनाया।  राजा तुरंत राजमहल गया, और उन कनफूंकवों को एक महीने तक पूरे नगर में नंगे होकर परिभ्रमण करने की सजा सुनाई। यह कहानी मैंने बचपन में सुनी थी। आज प्रत्यक्ष रूप से देख रहा हूं, अनुभव कर रहा हूं, ठीक उस राजा की तरह, झारखण्ड का भी हाल है। कनफूंकवों ने पूरे राज्य को हंसी का पात्र बना दिया है, स्थिति ऐसी है कि जनता त्रस्त है पर अधिकारी और कनफूंकवे मस्त है। सब को लगता है कि झारखण्ड मस्ती में डूबा राज्य है, पर सच्चाई से सब वाकिफ है, फिर भी कोई सच को स्वीकार करने को तैयार नहीं है, क्या हम समझे कि कोई बच्चे की आवाज यहां के राजा तक पहुंचेगी और यहां का राजा सच को स्वीकार करेगा और उन्हें दंडित करेगा, जो राज्य को दुख के सागर में ढकेलने के जिम्मेवार है।

महात्मा गांधी ने कहा था..........

महात्मा गांधी ने कहा था –
जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा? क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा? यानि क्या उससे उन करोड़ो लोगों को स्वराज्य मिल सकेगा? जिनके पेट भूखे है और आत्मा अतृप्त है तब तुम देखोगे कि तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम समाप्त हो रहा है।
हम महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मानते है, पर कोई बता सकता है कि हम महात्मा गांधी की बातों का कितना अनुसरण करते है?  संघ जिसकी राजनीतिक इकाई भाजपा है, क्या कोई बता सकता है कि संघ की विचारधाराओं को कितने स्वयंसेवक जो अभी राजनीतिक जीवन जी रहे है, उसका अनुसरण कर रहे है?  अगर जवाब है – ऐसा नहीं, तो फिर क्या आवश्यकता है? संघ को और महात्मा गांधी को ढोने की।
निरंतर स्वदेशी की बात करनेवाला संघ और उसके ईमानदार स्वयंसेवकों के हालत पस्त है, और ये हालत पस्त किसी और ने नहीं, बल्कि उन्हीं की राजनीतिक इकाई भाजपा ने कर दी है। कांग्रेस और उसके आनुषांगिक संगठनों ने तो महात्मा गांधी के स्वदेशी और ग्राम स्वराज्य को कब का आग लगा दिया था, तभी तो देश की हालत यह है कि आजादी के बाद से लेकर आज तक कभी भी भारत आर्थिक रूप से मजबूत ही न हो सका। ऐसे भी हमारे देश में आजादी के बाद एक-दो नेताओं को छोड़कर, कोई ऐसा नेता नहीं पैदा लिया, जिसने देश की आर्थिक समृद्धि के लिए ईमानदारी से प्रयास किया हो और विपक्ष ने ईमानदारी से ऐसे कार्य के लिए समर्थन किया। दोनों ओर यानी सत्तापक्ष और विपक्ष में शामिल नेताओं और एक नंबर के मूर्ख अधिकारियों के दल ने देश की ऐसी शक्ल बिगाड़ी कि यह देश कभी खड़ा ही नहीं हो सका और न अब लगता है कि यह खड़ा हो पायेगा।
जरा सोचिये जो चीन, संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारा खुलकर विरोध करता है, जो चीन हाफिज सईद का समर्थन करता है, जो चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकता है, उससे यह कहना कि वह मेरे देश में पूंजी निवेश करें और चीन ईमानदारी से पूंजी निवेश कर भारत को आर्थिक रूप से मजबूत करने का दावा करें, ये माननेवाली बात है। यह तो वहीं बात हुई कि बिल्ली को कहा जाय कि तुम दुध की रखवाली करो। कितने शर्म की बात है, कि हम आज भी अपने शत्रु से अपनी आर्थिक समृद्धि की कामना करते है।
अभी ज्य़ादा दिनों की बात नहीं, 2016 की दिवाली, याद करें। रांची से प्रकाशित एक अखबार ने स्थानीय कुम्हारों के दर्द बयां किये थे, बताया था कि दिवाली के पर्व से असली दिवाली का आनन्द हमारा पड़ोसी चीन उठा रहा है, हम उसे मजबूत कर रहे है, और वहीं चीन आर्थिक रूप से समृद्ध होकर भारत की तबाही का मंसूबा रखता है। इसी दौरान चीन के इस दोहरे मापदंड पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का बयान भी सुनने और पढ़ने को मिला कि लोग चीन का सामान न खरीदकर भारतीय सामान खरीदें और देश को आर्थिक रूप से मजबूत करें। एक भाजपा समर्थक तथाकथित संत रामदेव है, जो हर समय देश के विभिन्न चैनलों पर स्वयं द्वारा निर्मित सामग्रियों का प्रचार करते है, यह कहकर कि भारत को आर्थिक गुलामी से मुक्त करायें पर सच्चाई क्या है?
इन भाजपाइयों के दोहरे मापदंड, स्वयंसेवक के नाम पर संघ को धोखा देनेवाले इन नेताओं की जादूगरी, बाजीगरी, कलाकारी और देश व राज्य के साथ धोखाधड़ी देखिये।  उसका सुंदर नमूना है – मोमेंटम झारखण्ड। मूर्खों ने हाथी तक उड़ा दिया है। हाथी जो काले रंग का होता है, उसे लाल रंग का बना दिया है। यहीं नहीं उसके कान नीले रंग के बना दिये गये, उसे हरे पंख लगाकर उड़ा दिया गया और इस तमाशे रुपी हाथी के निर्माण मे सरकार के तीस लाख रुपये खर्च हो गये, यानी यहां बेवकूफों को भी पैसे देकर उसका सम्मान बढ़ाया जा रहा है। भाजपा कार्यकर्ता और संघ के स्वयंसेवकों को मूर्ख समझकर उन्हें उनकी औकात बतायी जा रही है, जबकि कनफूंकवों के इशारे पर बाहर से आये बेवकूफों पर करोड़ों खर्च किये जा रहे है, वह भी विज्ञापन के नाम पर, चेहरा चमकाने के नाम पर।
जिन अधिकारियों को जेल में रहना चाहिए, उनका मनोबल बढ़ाया जा रहा है, क्योंकि सत्ता में बैठे लोगों को मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर जो बेतहाशा राशि खर्च की जा रही है, उसको कमीशन के रूप में चूंकि ऐसे ही लोग उक्त राशि को उन तक पहुंचा सकते है, इसलिए उनकी सेवा विशेष रूप से ली जा रही है।
मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर उन सड़कों को पुनः निर्माण कराया गया है, जिनकी निर्माण की कोई आवश्यकता ही नहीं थी, वे पूर्व से ही इस स्थिति में थे, कि उसके निर्माण की कोई आवश्यकता ही नहीं थी, जबकि आज भी पूरे झारखण्ड की कई सड़कें ऐसी है, जिस पर यात्रा करना मौत को दावत देने के बराबर है, उस पर सरकार का ध्यान ही नहीं है। रांची के मुख्यमार्गों के विद्युत खंभो को सफेद रंग से पोता गया है, और उस पर चीन से मंगायी गयी विद्युतीय लत्तरों को लपेट दिया गया है ताकि रात में इससे रांची का सौंदर्य़ निखरें। सड़कों के दोनों किनारों के फुटपाथों को इस प्रकार जल्दबाजी में बना दिये गये कि आनेवाले समय में इस फुटपाथ पर लगे पेड़ जल्द ही दम तोड़ देंगे। सरकार और सरकार के अधिकारी मोमेंटम झारखण्ड को सफल बनाने में इस प्रकार लग गये है, जैसे लगता है, कि साक्षात भगवान झारखण्ड की धऱती पर अवतरित हो रहे हो। हद तो तब हो गयी कि पूरे रांची में मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर निषेधाज्ञा लागू कर दी गयी है, यानी आप अपने परिवार के साथ ठीक से दो दिन चल भी नहीं सकते, यानी जिनको रोजगार देने की बात कर, मोमेंटम झारखण्ड का आयोजन की बात करते है, उन्हें ही औकात दिखा रहे है। स्थिति यह है कि पूरे राज्य में विकास कार्य ठप है। पिछले दो महीनों से किसी भी आफिस में काम नहीं हो रहा। सभी जगह के अधिकारी और कर्मचारी मोमेंटम झारखण्ड ही रट रहे है, जैसे लगता है कि मोमेंटम झारखण्ड नहीं रटा तो उनकी जिंदगी ही प्रभावित हो जायेगी, यानी मानकर चलिए कि हाथी उड़ाने के चक्कर में राज्य की जनता कहीं की न रही और अधिकारियों और कनफूंकवों के तो जैसे दोनों हाथों में नहीं, बल्कि पूरा शरीर ही घी के लड्डू के कनस्तर में।

Saturday, February 11, 2017

ब्रांडिंग किसकी होती है?

ब्रांडिंग किसकी होती है?
ब्रांडिंग उसकी होती है, जिसे लोग नहीं जानते अथवा जिनकी लोकप्रियता नहीं होती... तो ऐसे में जब पूरे राज्य में सीएम रघुवर दास की ब्रांडिंग राज्य की बाहर की कंपनियां झारखण्ड एवं झारखण्ड के बाहर के राज्यों में कर रही है और इसी क्रम में, जगह-जगह सीएम रघुवर दास के कट आउट, बैनर-पोस्टर, होर्डिंग, अखबारों और चैनलों में सीएम के गुणगान संबंधी विज्ञापन प्रकाशित-प्रसारित हो रहे है, तो इससे साफ पता लग जाता है कि सीएम रघुवर दास की लोकप्रियता न तो पूरे राज्य में है और न ही राज्य के बाहर। भारत हो या भारत के राज्य, अगर आप इतिहास के पन्नो को पलटें तो कोई भी कंपनियां किसी की भी ब्रांडिग करने में कभी कामयाब नहीं हुई। कोई भी शासक अपने कार्यों के कारण देश व दुनिया में जाना गया, न कि ब्रांडिग कराकर। स्वयं नरेन्द्र मोदी ने अपनी कार्यकुशलता से गुजरात के लोगों को दिल जीता, लगातार गुजरात के सीएम बने, विपरीत परिस्थितियों में समय को अपने अनुकूल बनाया, तब जाकर वे देश के प्रधानमंत्री है, न कि ब्रांडिग कंपनियों के रहमोकरम पर... पर यहां झारखण्ड में तो मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके सलाहकारों और अधिकारियों ने ब्रांडिंग के नाम पर ऐसा गुल खिलाया है कि ये ब्रांडिंग राज्य की जनता के लिए जी का जंजाल बन गया है। कहीं ऐसा नहीं कि ये ब्रांडिंग ही सीएम रघुवर दास के शासन की अंतिम कील साबित हो जाय...
जरा देखिये ब्रांडिंग के नाम पर रघुवर सरकार क्या कर रही है?
रघुवर सरकार ने अपनी ब्रांडिग (चेहरा चमकाने) के लिए तीन कंपनियों को रांची बुलाया है...
पहली कंपनी है – प्रभातम, दूसरी कंपनी है- इवाइ और तीसरी कंपनी है – एड फैक्टर।
प्रभातम पर सरकार तीन करोड़ रुपये लगभग सलाना, इ-वाई पर 16 करोड़ रुपये लगभग सलाना, जबकि सिर्फ मोमेंटम झारखण्ड के लिए एड फैक्टर को करीब 5 करोड़ रुपये पर राज्य सरकार ने रांची बुलाकर प्रतिष्ठित किया है।
यहीं नहीं इसके अलावे अखबारों-चैनलों और अन्य प्रचार-प्रसार पर खर्च के लिए राज्य सरकार ने 40.55 करोड़ रुपये अलग से स्वीकृत किये है, गर अधिकारियों की माने तो जिस प्रकार मोमेंटम झारखण्ड के लिए राशि खर्च हो रही है, उससे लगता है कि यह राशि भी कम पड़ जायेगी और यह खर्च 100 करोड़ तक भी जा सकता है। मोमेंटम झारखण्ड को सफल बनाने के लिए राज्य सरकार ने मुक्तकंठ से पैसे लूटाने शुरु कर दिये है। शाही अंदाज में अतिथियों को राजसी ठाठ मुहैया करायी जा रही है। अतिथियों को उनके लाने से लेकर उन्हें गंतव्य तक छोड़ने तक की व्यवस्था राज्य सरकार ने कर दी है। अतिथियों को दिक्कत न हो, इसके लिए रांची में निषेधाज्ञा भी लागू कर दी गयी है, यानी स्थिति ऐसी है कि आज तक ऐसी व्यवस्था किसी ने न देखी और न सुनी। पूरे राज्य को सीएम को फोटो, बैनर, पोस्टर, होर्डिंग से पाट दिया गया है, रांची में तो शायद ही कोई इलाका होगा, जहां सीएम के कटआउट न लगे हो। आखिर ये सब कर के वे किसको क्या दिखाना चाहते है? राज्य की जनता समझ नहीं पा रही।
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जितनी शाही खर्च मोमेंटम झारखण्ड पर वर्तमान रघुवर सरकार कर रही है, वह बिना जनसहयोग के सफल नहीं हो सकता, क्योंकि राज्य की जनता की भागीदारी इसमें न के बराबर है, और यह राज्य की जनता के पैसों को दुरूपयोग है, जिसे रोका जाना चाहिए।
जनता को मालूम होना चाहिए कि, जब से रघुवर सरकार सत्ता में आयी। यहां के मुख्यमंत्री ने स्वयं को प्रतिष्ठित करने, अपनी ब्रांडिग कराने के लिए, सर्वप्रथम प्रयास तेज किये। इसी चक्कर में सलाहकारों की फौज रखी जाने लगी, ये ऐसे सलाहकार है, जो कुछ भी काम नहीं करते, पर राज्य सरकार इन सलाहकारों पर हर महीने लाखों खर्च करती है, जरा पूछिये मुख्यमंत्री रघुवर दास से कि ये सलाहकार करते क्या है? अब तक कौन-कौन से सलाह, इन्होंने मुख्यमंत्री रघुवर दास को दिये, जो जनोपयोगी थे। जरा दिल्ली में देखिये एक सलाहकार इन्होंने रखा है – शिल्प कुमार, जरा पूछिये ये करते क्या है? रांची में देखिये, एक है - अजय कुमार, दूसरे - योगेश किसलय और तीसरे - रजत सेठी। जब देखो तब एक नया सलाहकार यहां रखा जाने लगा है, ये सलाहकार कितने काबिल है, इनकी काबिलियत आपके सामने है। ऐसा नहीं कि इनमें सारे सलाहकार बेवकूफ या कर्तव्यहीन है। इन्हीं सलाहकारों में एक रजत सेठी भी है, जिनके पास ज्ञान है, जिनसे बेहतर की गुंजाइश है, पर रघुवर दास उन्हें सम्मान दें या उनकी सलाहों को माने तब न, यहां तो कनफूंकवों की बातों पर सरकार चलती है, कनफूंकवों ने कह दिया कि ये सही है तो सही और गलत कह दिया तो गलत... तो ऐसे में समझ लीजिये कि यहां राज्य कौन चला रहा है? अंत में, अभी जितनी ब्रांडिग मुख्यमंत्री रघुवर दास को अपनी करानी है, करा लें, पर जिस दिन जनता का दिमाग घुमा तो क्या होगा? उन्हें यह समझ लेना चाहिए। वो कहावत याद है न - पंडित जी अपने गये तो गये, जजमान को भी साथ लेकर चल दिये... यानी रघुवर दास स्वयं तो जायेंगे ही, पार्टी को भी ऐसा धराशायी करेंगे कि पुनः भाजपा, झारखण्ड में आने से रही।

लो कर लो बात, अब अपना रघुवर दारू बेचेगा.......

झारखण्ड के शराबियों के लिए खुशखबरी, 
अब उन्हें फिक्र करने की जरुरत नहीं, सरकार स्वयं शराब बेचेगी और झारखण्ड पुलिस शराब बेचवाने में मदद करेगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने मुख्यमंत्री रघुवर दास से सीख लेनी चाहिए। बिहार के मुख्यमंत्री है – नीतीश कुमार। उन्होंने 2016 में बिहार में शराबबंदी का ऐसा बीजारोपण किया कि पूरे देश में वे हीरो के रूप में उभरे। शराबबंदी के मुद्दे पर बिहार की महिलाएं तो उन्हें अपनी दुआओं से पाट दिया है। कुछ मामलों में तो, मैं नीतीश का घुर विरोधी हूं, पर शराबबंदी के मामले में, मैं नीतीश के साथ हूं। नीतीश की एक खासियत है कि वे राजनीति करना बहुत अच्छे ढंग से जानते है, तभी तो लालू और मोदी दोनों को समय-समय पर वे डोज देते रहते है। लालू की हिम्मत नहीं कि नीतीश से समर्थन वापस ले लें और मोदी की हिम्मत नहीं कि अब वे नीतीश को ठिकाने लगा दें... ऐसे भी 2016 में भारत में दो ही नेता कमाल दिखाये, एक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिन्होंने नोटबंदी कर देश को भ्रष्टाचारमुक्त करने का एक बड़ा फैसला लिया, जिसकी तारीफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी की, तो दूसरी ओर बिहार में शराबबंदी का ऐलान कर नीतीश कुमार ने बिहार को शराबमुक्त करने का जनोपयोगी फैसला लिया।
पर झारखण्ड को देखिये... यहां के मुख्यमंत्री को देखिये। हाल ही में कैबिनेट में जब शराब का मुद्दा उठा, तो जनाब रघुवर दास ने कहा कि राज्य में शराब सरकार बेचेगी। लीजिये फिर क्या था, रघुवर दास की यह सोच राज्य में चर्चा का विषय बन गया। हम अच्छी तरह से जानते है कि राज्य की कोई भी सरकार, अगर शराबबंदी का ऐलान करती है, तो शायद ही कोई दल होगा, जो इस फैसले का समर्थन नहीं करेगा। झामुमो तो इस मुददे पर सबसे पहले समर्थन करेगी, क्योंकि मैं शिबू सोरेन को अच्छी तरह जानता हूं कि वे शराबबंदी पर क्या सोचते है... स्वयं रघुवर मंत्रिमंडल में शामिल कई मंत्री ऐसे है, जो इस मुददे पर रघुवर दास के इस सोच का विरोध कर रहे है, जैसे राज्य के नगर विकास मंत्री सी पी सिंह ने साफ कह दिया कि सरकार शराब बेचे, ठीक नहीं है, राज्य में शराबबंदी लागू क्यों नहीं कर देते... राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय तो इस मुद्दे पर एक कदम और आगे बढ़ जाते है और कहते है कि शराबबंदी ही क्यों? पूर्णतः नशाबंदी पर सरकार अमल करें... पर हमारे मुख्यमंत्री तो ऐसे है, जिनकी सोच को कोई चुनौती दे ही नहीं सकता, क्योंकि वे इस मंत्र पर विश्वास रखते है कि एकोअहम् द्वितियो नास्ति।
इधर मुख्यमंत्री रघुवर दास से हरी झंडी मिली और लीजिये मुख्य सचिव ने भी इस पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया। मुख्य सचिव ने अधिकारयों को खुदरा शराब दुकान तलाशने का निर्देश दे दिया। उत्पाद अधिकारियों के अलावा इस काम में अंचलाधिकारियों और थाना प्रभारियों की मदद भी ली जा रही है। राज्य सरकार के इस फैसले को जमीन पर उतारने के लिए, इससे संबंधित निर्देश पत्र को सभी जिलों को भेजा जा चुका है और इस संबंध में तीन दिनों में रिपोर्ट भी मांगी गयी है, यानी इस मुद्दे पर युद्धस्तर पर काम शुरू हो गया। निर्देश यह भी है कि अधिकारी पूर्व में चल रहे शराब दुकानों के मालिकों से संपर्क स्थापित करें और उन्हें अपनी दुकान किराये पर देने के लिए लिखित सहमति लें। अब जरा सोचिये, कितना अच्छा लगेगा कि जब अधिकारी शराब बेंचेंगे, पुलिस उनकी मदद करेंगी तो राज्य में कितना सुंदर माहौल बनेगा। शराबियों का दल, मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस सोच पर अभी से ही बलिहारी है, और रघुवर दास की इस दूरगामी सोच की जय-जयकार करने में अभी से ही लग गये है...
बदलता झारखण्ड
विकास की ओर उन्मुख झारखण्ड

Thursday, February 9, 2017

रघुवर के अरे राज में, अर्जुन तीर चलाए............

ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट की, चर्चा है चहुंओर।
नेता - अधिकारी बने, देखो माखनचोर।।
विज्ञापन से सब नपे, नपे चैनल-अखबार।
गिफ्ट-रुपये से नपे, नपे संपादक-पत्रकार।।
सागर पवित्र स्नान को, जब मन करे ललचाय।
पूंजीपति-राजनीतिबाज को, चले सब माथ नवाय।।
कनफूंकवों की चल बनी, ईमानदार बौराए।
रघुवर के अरे राज में, अर्जुन तीर चलाए।।
सीएस के आगे डायरेक्टर, पीआरडी शीश नवाए।
जैसे-जैसे वे कहे, वैसे ही वह करते जाये।।
किसी की भी ना सुने, सिर्फ सुने वह कान लगाये।
सीएस की ही चाकरी, दिन-रात करत बिताये।।
सीएस की ही ब्रांडिंग, हो रही अखबार में आज।
पीछे हो गये सीएम, अब सीएस चलाये राज।।
कल तक पीएम को भूलो, अब पीएम को करो याद।
आनन-फानन में मोदी, अब पोस्टर दिखलाय।।
पूरे विश्व में हाथी, केवल झारखण्ड में भाई।
पूंछ उठाकर- सूड़ हिलाकर, दीखे गगन-उड़ाई।।
हा-हा करती जनता बोले, ये क्या चक्कर भाई।
क्या हाथी उड़ा है अब तक, जो सरकार दिखाई।।
क्या हुआ झारखण्ड को, जनता करे सवाल।
रघुवर जी मेरी सुनो, सुनो तुम कान लगाये।।
हमें नहीं दिलचस्पी, इस समिट में यार।
जो वादे तुम हमें किये, पूरी करो ध्यान लगाये।।
(ध्यान रखें - इस दोहे को हृदय से, मन लगाकर पढ़ने से, सीएम के आस-पास रहनेवाले कनफूंकवें, भ्रष्ट अधिकारी व ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से अनुप्राणित होनेवाले जीवात्मा प्रसन्न होते है तथा आप अंत में, परम आनन्द को प्राप्त करते हुए रघुवर लोक में पहुंच जाते है। - कृष्ण बिहारी मिश्र)

Wednesday, February 8, 2017

शुक्राचार्य जायेंगे जेल...............

शुक्राचार्य जायेंगे जेल...
शुक्राचार्य ने की फर्जीवाड़ा...
अपना और अपनी पत्नी के नाम पर संयुक्त एकाउंट खुलवाया...
और पैन नम्बर किसी दूसरे का दे डाला...
स्वयं द्वारा रखे काला धन को शुक्राचार्य ने बैंक में जमा कर उसे सफेद करने की कोशिश की...
आयकर विभाग ने कसा शिकंजा...
शुक्राचार्य सकते में...
रांची के मेयर्स रोड स्थित सूचना भवन के आइपीआरडी विभाग में कार्यरत और शुक्राचार्य के नाम से कुख्यात एक अधिकारी कल से सकते में है, उसके गोरखधंधे का अब धीरे-धीरे खुलासा होना शुरु हो गया है। कल यानी 7 फरवरी की ही बात है कि पता चला कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया, तब इस शुक्राचार्य ने अपने पास रखे काला धन को ठिकाने लगाने के लिए स्वयं और अपनी पत्नी के नाम पर रांची के धुर्वा स्थित बैंक ऑफ इंडिया में वहां के वरीय अधिकारियों के मिलीभगत से एक नया एकाउंट खुलवाया। एकाउंट खुलवाते ही, उसने अपने पूर्व के एकाउंट और नये खुले एकाउंट में ढाई – ढाई लाख रुपये जमा करवाये, ताकि वह आयकर विभाग की आंखों में धूल झोंक सकें। आश्चर्य इस बात की है कि इस शुक्राचार्य ने एकाउंट खुलवाने के क्रम में अपना और अपनी पत्नी के आधार कार्ड की छाया प्रति बैंक में जमा करवाया और पैन नम्बर देने की जगह, अपना पैन नंबर न देकर, आइपीआरडी में ही पूर्व में कार्यरत और वर्तमान में सेवानिवृत्त महिला अधिकारी का पैन नंबर दे डाला। जब आयकर विभाग ने सेवानिवृत्त महिला अधिकारी को एसएमएस के माध्यम से पूछा कि उनके एकाउंट में पांच लाख रुपये कहां से आये? तब महिला अधिकारी का माथा ठनका और वह असहज हो गयी, क्योंकि उन्होंने नोटबंदी के दौरान किसी भी प्रकार का पैसा जमा नहीं कराया था, बाद में उक्त महिला अधिकारी ने पता लगाया कि ऐसा कैसे संभव हुआ?, तो पता चला कि शुक्राचार्य ने अपने काला धन को ठिकाने लगाने के लिए उक्त महिला अधिकारी के पैन नंबर का इस्तेमाल किया। जिसकी पोल कल यानी 7 फरवरी को खुल गयी। इस बात की जानकारी मिलते ही, बैंक के वरीय अधिकारी और शुक्राचार्य के हाथ-पांव फुल गये है, क्योंकि उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा, कि अब आयकर विभाग को कैसे संतुष्ट किया जाय? फर्जी तरीके से किसी दूसरे के पैन नंबर का इस्तेमाल शुक्राचार्य के लिए भारी पड़ रहा है, साथ ही इस बात की भी अब जानकारी सब को हो गयी कि शुक्राचार्य के पास काला धन की राशि बड़ी मात्रा में थी, जिसे ठिकाने लगाने के लिए उसने अनेक जतन किये, अगर इसकी ठीक तरीके से जांच हो जाये, तो हो सकता है कि शुक्राचार्य, अपने और रिश्तेदारों के नाम पर खुले एकाउंट में भी काला धन जमा कराये हो।
कल यानी 7 फरवरी को पूरे सूचना भवन में, शुक्राचार्य के इस हरकत की दिन भर चर्चा होती रही। चर्चा यह भी है कि धुर्वा स्थित बैंक अधिकारी और शुक्राचार्य के बीच इस प्रकरण को लेकर तू-तू, में-में भी हुई। बैंक अधिकारी और शुक्राचार्य की दोस्ती बताई जाती है कि बहुत वर्षों से थी, जिसका गलत इस्तेमाल दोनों ने एक-दूसरे के लिए किया। फिलहाल सूचना भवन में कार्यरत सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच कल एक ही चर्चा चल रही थी कि आखिर इतना पैसा शुक्राचार्य के पास कहां से आया? कहीं ये दो नंबर का तो पैसा नहीं? क्या शुक्राचार्य पर फर्जीवाड़ा का मुकदमा होगा? क्या शुक्राचार्य जेल जायेंगे? अगर जेल जायेंगे तो आखिर कब जायेंगे? इसी बीच शुक्राचार्य कल दिन भर मुख्यमंत्री के साथ रहनेवाले कनफूंकवों से इस प्रकरण पर मदद मांगी। कनफूंकवों ने उसे कहा है कि उसे चिंता करने की कोई जरुरत नहीं, क्योंकि वे जब तक उनके साथ है, कोई उनका बाल बांका नहीं कर सकता। कनफूंकवों द्वारा मिले इस वार्तारूपी अभयदान के कारण ही, शुक्राचार्य मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री के सचिव सुनील कुमार बर्णवाल के साथ बैठा रहा, पर उसका चेहरा इस दौरान भी देखनेलायक रहा, क्योंकि उसे आभास हो गया है कि अब उसकी खैर नहीं...

Tuesday, February 7, 2017

बोलिये शुक्राचार्य की जय.............

झारखण्ड के रांची स्थित सूचना भवन में आइपीआरडी में एक शुक्राचार्य है, हालांकि उसके माता – पिता ने उसका बड़ा ही सुंदर नाम रखा है, पर आप तो जानते ही है कि हमारे देश में एक नाम परिवार रखता है तो दूसरा नाम समाज रखता है। परिवार जो नाम रखता है, उसमें केवल एक ही बात निहित रहता है कि उस बालक के नाम से उसका परिचय हो जाय, जबकि समाज उस बालक के क्रियाकलापों और चरित्र के आधार पर नामकरण कर डालता है। आइपीआरडी में जो शुक्राचार्य है, उसका शुक्राचार्य नामकरण उनके क्रियाकलापों और चरित्र के आधार पर ही, वहां कार्यरत कई अधिकारियों और कर्मचारियों ने कर दिया है। शुक्राचार्य भी, इस नाम को सुनकर बहुत ही प्रसन्न होता है।
बेशर्मी, कर्तव्यहीनता, मूर्खता भरे काम, सरकारी काम-काज में कैसे बैकडोर से मनपसंदीदा चीजें प्राप्त होती है?, किसी काम को कैसे लटकाया जाता है?, इन सारे कार्यों में उसे महारत हासिल है। मुख्यमंत्री रघुवर दास के आस-पास रहनेवाले कनफूंकवों से इसकी खूब पटती है। यह कनफूंकवों को खूब टिप्स देता है, साथ ही आइपीआरडी में कार्यरत सभी अधिकारियों और कर्मचारियों की छोटी से लेकर बड़ी गतिविधियों की जानकारी, ये मुख्यमंत्री के आस-पास रहनेवाले कनफूंकवों को दे दिया करता है (इस आधार पर आप फिल्म शोले के हरिराम नाई पात्र से इसकी तुलना कर सकते है), यहीं नहीं जब आइपीआरडी में टेंडर खुलता है तो यह अपने लोगों को टेंडर दिलवाने में रात-दिन एक कर देता है और जैसे ही उसके चाहनेवालों को टेंडर प्राप्त होता है, वह मिठाइयां बांटता और खूब अकड़ कर चलता है, साथ ही टेंडर प्राप्त करनेवालों को यह बताना नहीं भूलता कि उसी की कृपा से उसे टेंडर प्राप्त हुआ है, इसलिए टेंडर प्राप्त करनेवाला उसके प्रति हमेशा कृतज्ञ रहे, यह टेंडरप्राप्तकर्ता को इसका समय-समय पर भान दिलाता रहता है, साथ ही धमकी भी दे डालता है कि, नहीं तो वो मुख्यमंत्री के कनफूंकवों को कह देगा, जिससे उसकी परेशानी बढ़ जायेगी। टेंडर प्राप्त करनेवाला भी इस डर से शुक्राचार्य को अपनी सेहत के मुताबिक भेंट चढ़ा देता है, जिससे शुक्राचार्य आशीर्वाद के रूप में अभयदान दे देता है।
शुक्राचार्य की एक सबसे बड़ी विशेषता है कि जबसे बायोमिट्रिक एटेंडेंस बनना शुरू हुआ है तो वह आने और जाने के समय अपना अंगूठा बायोमिट्रिक सिस्टम में लगाना नहीं भूलता और उसके बाद बीच में वो कब आफिस से निकला और कब आया, आपको पता ही नहीं चलेगा। यहीं नहीं मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र की साप्ताहिक समीक्षा बैठक में अपना चेहरा चमकाना नहीं भूलता, साथ ही अखबारों में उसकी फोटो छपे, ये भी सुनिश्चित कराना नहीं भूलता, पर इधर कुछ दिनों से उसकी फोटो अखबारों में नहीं आ रही, क्योंकि नये निदेशक ने उससे कुछ और बड़े-बड़े काम लेना शुरु कर दिया है, क्योंकि निदेशक को लगता है कि आइपीआरडी में उसके जैसा विद्वान और कनफूंकवों का मददगार कोई है ही नहीं।
इसकी विद्वता का ही हाल था कि 23 जनवरी को जब मुख्यमंत्री रघुवर दास बजट पेश कर रहे थे तो बजट पेश करने के बाद इसने बजट की प्रति लेने के लिए पत्रकारों के बीच ऐसी व्यवस्था कर दी, जिसकी आलोचना सभी ने की। गड़बड़ियों के लिए दूसरों को दोष देना और हर अच्छे कार्यों के लिए स्वयं को प्रतिष्ठित करना इसकी यादों में शुमार है। चूंकि अभी सभी का ध्यान ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की ओर है तो नये निदेशक ने इसको अपना सबसे प्रिय व्यक्ति मानकर, कार्य करना शुरु कर दिया। हद तो यह भी है कि आजकल ये सूचना भवन में आये नये-नये पदाधिकारियों और समय-समय पर होनेवाले डीपीआरओ की मीटिंग में निदेशक के इशारे पर प्रवचन देना भी शुरु कर दिया है, जिस प्रवचन को उसके ही अधिकारी हवा में उड़ा देते है।
इसकी हरकतों से सभी परेशान है, पर कनफूंकवों के आशीर्वाद तथा नये निदेशक से उसकी मित्रता ने उसका भाव बढ़ा दिया है, जबकि दो महीने पूर्व तक इसकी हालत पस्त रहती थी, क्योंकि इसके गलत कार्यों के कारण तथा दीर्घसूत्रता के कारण शुक्राचार्य को हमेशा डांट पड़ती थी, पर इसके ढीठई ऐसी थी कि इसकी मोटी चमड़ी पर उसका असर ही नहीं पड़ता था, फिर भी आजकल ये स्वयं को निदेशक से कम नहीं समझता, कभी-कभी तो वह यह भी कह देता है कि वह निदेशक से कम है क्या?, क्योंकि जितना वेतन निदेशक को मिलता है, उससे कम तो उसे भी नहीं मिलता...

Monday, February 6, 2017

सीएम की ब्रांडिंग, कनफूंकवा और बेचारी जनता.....

ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का समय जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे इस कार्यक्रम के लिए सीएम की ब्रांडिंग करनेवाले कंपनियों के हाथ-पांव फूलते जा रहे है। हर दो-तीन दिन पर कनफूंकवों की टीम, सीएम के कान में कुछ फूंक दे रही है और लीजिये ब्रांडिंग करनेवाली कंपनियां नये-नये होर्डिंग्स लगाकर सीएम को खुश करने में लग जा रही है, दूसरी ओर मंत्रियों के दल ने इस समिट से धीरे-धीरे दूरियां बनानी शुरु कर दी है। कुछ तो सीधे कहते है कि यह पैसे और समय की बर्बादी है। कुछ तो यह भी कहते है कि हम दूसरे की मांग लाल देखकर, अपना मांग लाल नहीं कर सकते। झारखण्ड, गुजरात या मध्य-प्रदेश नहीं है। यह नवोदित राज्य है, यहां की जनता सर्वाधिक गरीबी से पीड़ित है, ऐसे में इस प्रकार के आयोजन से गरीबी बढ़ेगी, पूंजीपति और संपन्न होंगे।
दूसरी ओर विरोधी दलों के नेता तो ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के नाम से ही भड़क उठते है। वे कहते है कि इस प्रकार के आयोजन से झारखण्ड को नुकसान छोड़, लाभ किसी जिंदगी में नहीं हो सकता, क्योंकि सर्वाधिक पूंजी निवेश का हाल यहां की जनता भुगत रही है। पूरा प्रदेश विस्थापन का दंश झेल रहा है, पर मुख्यमंत्री रघुवर दास केवल अपनी मन की कर रहे है और अधिकारियों के कुछ समूह ने बे-सिरपैर की बातें कर पूरे प्रदेश को भ्रमित कर दिया है। विरोधी दलों के नेताओं का समूह तो यह भी कहता है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास जो नित्य नये-नये होर्डिंग्स और विज्ञापन के माध्यम से जो अपनी ब्रांडिंग कर रहे है, उससे जनता का भला नहीं हो रहा, ये राज्य की जनता के पैसे का अपव्यय है, मुख्यमंत्री को समझ लेना चाहिए।
हम आपको बता दें कि फिलहाल राज्य के बाहर की तीन-तीन कंपनियां सीएम की ब्रांडिंग में लगी है, जबकि राज्य सरकार के क्रियाकलापों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पूर्व से ही राज्य में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग कार्यरत है, पर स्थिति ऐसी है कि ये विभाग फिलहाल चूं-चूं का मुरब्बा हो गया है।
यह विभाग जो सीधे मुख्यमंत्री के सम्पर्क में है, स्वयं मुख्यमंत्री को इस विभाग के अधिकारियों पर विश्वास नहीं है, क्योंकि कनफूकवों की टीम, ऐसा मुख्यमंत्री के कान में फूंक देती है कि मुख्यमंत्री को लगता है कि उनके कनफूंकवें सही है और विभागीय अधिकारी गलत है। यहीं कारण रहा कि यहां एक वन विभाग में कार्यरत अधिकारी को विभाग का कार्यभार सौंपा गया, जिसे विभागीय कार्य की जानकारी ही नहीं। जैसे-तैसे विभाग चल रहा है, जो निकम्मे और आलसी थे, आज स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे है। आश्चर्य इस बात की है कि जिसके खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, उस अधिकारी को पुनः रांची मुख्यालय में महिमामंडित करने की तैयारी कनफूंकवों द्वारा शुरु कर दी गयी है। कुछ दिनों में ही वह अधिकारी जिसके खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, जल्द ही सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के मुख्यालय में दिखेगा, उसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है। ...और इधर देखिये ब्रांडिग करनेवाले कंपनियों का हाल, कनफूंकवों ने इनका क्या हाल बना दिया है?
आपको याद होगा कि सर्वप्रथम धौनी द्वारा हाथी को उड़ाते हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को सफल बनाने के लिए जनता से सहयोग मांगा जा रहा था, कनफूंकवों ने जैसे ही सीएम के कान में ये बात कही कि हाथी के उड़ाने से मोमेंटम झारखण्ड का मजाक उड़ रहा है। झट से आनन-फानन में हाथी के उड़ानेवाले बैनर-पोस्टर की जगह केवल धौनी का बैनर-पोस्टर जारी हुआ, हाथी को उड़ानेवाला दृश्य गायब किया गया। इसके बाद फिर कनफूंकवों ने कंपनियों के उपर अँगूली उठाई कि इससे तो धौनी का ब्रांडिग हो रहा है, सीएम रघुवर दास तो कहीं है ही नहीं। तब ऐसे हालत में कंपनियों ने धौनी और रघुवर दास, दोनों का फोटो समेत बैनर-होर्डिंग्स लगानी शुरु की। इस बैनर-पोस्टर लगाने के बाद फिर कनफूंकवों ने कहा कि सीएम इस बैनर-पोस्टर से भी खुश नहीं। कुछ नया होना चाहिए, जिसमें धौनी नहीं, सिर्फ और सिर्फ सीएम होने चाहिए, रघुवर दास होने चाहिए। ब्रांडिंग कंपनियों ने फिर से नया बैनर-पोस्टर बनवाया और आज जगह-जगह केवल रघुवर दास ही अब नजर आ रहे है और धौनी धीरे-धीरे गायब होते दिख रहे है। ज्यादा दिन नहीं, कुछ दिन के बाद, लगता है कि धौनी पूरी तरह से बैनर-पोस्टर से गायब हो जायेंगे और इन बैनरों-पोस्टरों पर रघुवर ही रघुवर दिखेंगे। ऐसे में आनेवाला ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का क्या हाल होगा? समझ लीजिये। बेचारी ब्रांडिंग कंपनियों का क्या? वो तो अपने करार के अनुसार, पैसे लेंगे चल देंगे, ब्रांडिंग किसकी हुई?, झारखण्ड की या सीएम की, ये वक्त बतायेगा, पर इतना तो तय है कि जनता को नुकसान के सिवा कुछ भी हाथ नहीं आयेगा, क्योंकि हाथी उड़ता नहीं है, यह विशालकाय प्राणी जितना खाता है, उतना ही नुकसान भी करता है, पर यहां तो राज्य सरकार और उनके अधिकारियों ने इसे उड़ाने की कोशिश कर दी है, ऐसे में झारखण्ड आज सर्वत्र हंसी का पात्र बन गया है।

मुख्यमंत्री रघुवर दास जी, जनभावनाओं को समझिये, जनता आपसे खुश नहीं हैं................

राज्य की रघुवर सरकार राजधानी रांची में एक ओर 16-17 फरवरी को ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन कर रही है, तथा राज्य में पूंजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए देश-विदेश के उद्योगपतियों को मनुहार कर रही है, वहीं 2 फरवरी को विधानसभा में पेश सीएजी की रिपोर्ट ने पूरे राज्यवासियों को हैरानी में डाल दिया है। सीएजी ने कहा है कि टाटा ने सरकारी जमीन बेच दी, जिससे राज्य को 4762 करोड़ की चोट पहुंची, जरा सोचिये अगर रघुवर सरकार द्वारा आयोजित 16-17 फरवरी का ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट अगर सफल हो जाता है तो राज्य की क्या भयावह स्थिति होगी?
संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने वर्ष 2015-16 के राजस्व प्रबंधन पर सीएजी की रिपोर्ट गुरुवार को विधानसभा में पेश की थी। रिपोर्ट में टाटा और डीवीसी समेत कई कंपनियों और सरकार के राजस्व उगाही करनेवाले विभागों के कार्यकलापों पर गंभीर टिप्पणी की गई है। इसमें कहा गया है कि 11,676 करोड़ रुपये के नुकसान में से 10,282 करोड़ रुपये अभी भी वसूले जा सकते है। शेष 1394 करोड़ रुपये की वसूली संभव नहीं है। महालेखाकार ने तो प्रेस कांफ्रेस कर बताया कि टेस्ट चेक और परफार्मेंस ऑडिट में पता चला कि टाटा स्टील और डीवीसी ने अनधिकृत रूप से सरकारी जमीन बेच दी। लीज खत्म होने के बाद भी 2547 एकड़ जमीन का उपयोग किया। इससे सरकार को 3969 करोड़ रूपये का नुकसान हुआ।
दैनिक भास्कर ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया है, जबकि अखबार नहीं आंदोलन कहीं जानेवाली अखबार प्रभात खबर ने इसे इस प्रकार छापा है, जैसे लगता है कि कुछ हुआ ही नहीं, यानी कल तक सदैव कांग्रेस और अपने विरोधियों को कोसनेवाली भाजपा पर उसी के शासन काल में ऐसा दाग लगा है कि जिसे वो चाहकर भी धो नहीं सकती, फिर भी मुख्यमंत्री रघुवर दास का यह कहना कि उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार नहीं हुआ, उनके अधिकारी ईमानदार है, इससे बड़ा मजाक दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
इस मामले को लेकर हालांकि विपक्षी दलों में सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। झाविमो सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी ने 4 फरवरी को एक प्रेस कांफ्रेस कर कहा कि कैग के रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि टाटा स्टील और डीवीसी ने अब तक 1279 – सब लीज के पट्टे बिना सरकारी अनुमोदन के जारी किये है, जिससे राज्य को 3,376.24 करोड़ का राजस्व घाटा हुआ है। अब बिना देर किये सरकार – गहराई से जांच एवं दोषियों को चिह्न्ति करने के लिए पूरे प्रकरण को सीबीआई को सौंप दे। झाविमो सुप्रीमो बाबू लाल मरांडी ने साफ कहा कि जब कैग की रिपोर्ट के आधार पर पशुपालन घोटाला, टू जी, थ्री जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कामनवेल्थ गेम घोटाला, कॉलगेट घोटाला की जांच सीबीआई को मिल सकती है, तो इसकी जांच सीबीआई को क्यों नहीं मिल सकती? झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी की बातों में दम भी है। झाविमो नेता ने तो यह भी कह दिया कि वे इस मामले को लेकर अन्य दलों के प्रतिनिधियों के साथ वे जल्द ही राज्यपाल से मिलेंगे।
इस राज्य का दुर्भाग्य है कि चाहे किसी की भी सरकार बने, अंततः यहां की निरीह जनता को ही कष्ट उठाना पड़ा है, वो कहावत है न कि कद्दू पर हसुंआ गिरे या हसुंआ पर कद्दू गिरे, नुकसान तो हर हाल में कद्दू को ही उठाना पड़ा है। सच्चाई यहीं है कि पूरे राज्य में राज्य सरकार ने ऐसी बयार बहा दी है, कि जैसे लगता है कि अगर राज्य में पूंजी निवेश नहीं हो, तो राज्य विकास करेगा ही नहीं, बल्कि इसके उलट झारखण्ड के पड़ोसी राज्य ओड़िशा, बिहार आदि राज्यों ने बिना किसी इस प्रकार के आयोजन के ही राज्य की जनता में ऐसा विश्वास भरा है कि लोगों को लगता है कि राज्य सरकार कुछ कर रही है, पर रघुवर सरकार ने झूठ का ऐसा आडम्बर रचा है कि पूछिये मत। इस झूठ के आडम्बर के खेल में हाथी को भी उड़ा दिया गया है, जबकि राज्य के सभी अखबारों और चैनलों को विज्ञापन की राशि देकर मुंह बंद कर दिया गया है, जिस कारण चाहे वह रांची से प्रकाशित होनेवाले अखबार हो या दिल्ली तथा कोलकात्ता से, सभी अखबारों और चैनलों ने अपने होठ सील लिये है। इससे होनेवाले नुकसान और राज्य की जनता की आवाज को ठेंगे पर रख दिया गया है, तथा रघुवर सरकार की आरती उतारी जा रही है। विपक्षी दलों के नेता अगर सरकार पर अंगूली भी उठा रहे है, तो उनकी बातें नहीं सुनी जा रही। राज्य की जनता इन हालातों को देखकर बेबस है, पर शायद वह अपनी खामोशी तब तक बर्दाश्त कर रही है, जब तक उसके पास विकल्प नहीं आ जाता। लोकतंत्र में पांच साल शासन की मर्यादा ने, राज्य की जनता की जान निकाल दी है। दो वर्ष बीत चुके है, तीन वर्ष अभी और राज्य की जनता को झेलना है, पर कहीं ऐसा नहीं कि राज्य की जनता सरकार के खिलाफ बगावत पर उतर जाये और राज्य के अधिकारी और राज्य के मुखिया, कुछ कर सकने की स्थिति में ही न हो, क्योंकि राज्य के मुखिया को ये नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र में जनता ही मालिक है...
टाटा सबलीज मामले ने पूंजी निवेश की असलियत को जनता के समक्ष रख दिया है, अब शायद ही कोई जनता होगी, जो राज्य सरकार के इस ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के प्रति थोड़ी भी सहानुभूति रखेगी, हांलाकि विरोध तो पंचायत स्तर तक हो रहा है, पर रघुवर दास को लगता है कि वहीं सहीं है, और बाकी जनता मूर्ख...

Saturday, February 4, 2017

रघुवर राज में बेटियां असुरक्षित...........

जिधर देखिये, उधर ही, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा बुलंद करनेवाली रघुवर सरकार में बेटियां असुरक्षित है। दुष्कर्म को अंजाम देनेवाले दुष्कर्मियों के हौसले बुलंद है, पर मुख्यमंत्री रघुवर दास हाथ पर हाथ धरे बैठे है। याद करिये रांची के बूटी की वह वीभत्स घटना, जब दुष्कर्मियों ने एक लड़की के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसकी नृशंस हत्या कर दी थी। जिसको लेकर पूरा रांची आंदोलित था। रांची बंद भी बुलाया गया था। राज्य सरकार ने जल्द दोषियों को पकड़ने की बात कहीं थी, दावा तो यह भी किया जा रहा था कि उक्त घटना में सम्मिलित लोगों तक स्थानीय पुलिस पहुंच चुकी है, जल्द ही वे गिरफ्त में होंगे, पर सच्चाई क्या है? सब को पता है। अब ये मामला सीबीआई को सौंप दिया गया है, यानी राज्य की पुलिस कितनी काबिल है, वह इस घटना से पता चल जाता है।
अभी इस घटना के कोई ज्यादा दिन भी नहीं हुए कि गढ़वा के कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय रंका में कक्षा छह में पढ़नेवाली आदिम जनजाति की एक नाबालिग छात्रा के गर्भवती होने और गर्भपात के प्रयास में उसकी स्थिति गंभीर होने का समाचार दिनांक 28 जनवरी को स्थानीय अखबार प्रभात खबर में देखने को मिला। 2 फरवरी को इसी अखबार में यह भी पढ़ने को मिला कि चाईबासा के रुंगटा प्लस टू हाई स्कूल की 12 वीं छात्रा के साथ दुष्कर्म किया गया, घटना 29 जनवरी की है। इसी अखबार में बिशुनपुर से समाचार है कि वहां तीन बच्चों की मां के साथ दुष्कर्म किया गया। गर्भ में पल रही बेटियों के मर जाने और मारनेवालों को तो आज तक पुलिस ढूंढ ही नहीं पाई, जबकि गर्भ में पल रही बेटियों के मारे जाने की खबर यहां सामान्य सी है।
कहनेवाले तो ये भी कहते है कि जब मुख्यमंत्री रघुवर दास, खुद द्वारा चलाये जा रहे मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र की बेटियों का गुहार नहीं सुनते, उसे अनसुना कर देते है, तो फिर इन सब घटनाओं में मुख्यमंत्री को रुचि कहा। ज्ञातव्य है कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में कार्यरत दो महिला संवादकर्मियों ने राज्य महिला आयोग से शिकायत की है कि यहां कार्यरत महिला संवादकर्मियों के साथ अमर्यादित व्यवहार होता है, जिसकी प्रतिलिपि मुख्यमंत्री को भी भेजी गयी। इस बात की जानकारी मुख्यमंत्री से संबंधित सारे वरीय पदाधिकारियों को है, पर इन महिला संवादकर्मियों को आज तक न्याय ही नहीं मिला। ऐसे में यह कहना कि राज्य में बेटियों का सम्मान सुरक्षित है, गलत होगा। राज्य की बेटियों को स्वयं अपने सम्मान की रक्षा के लिए आगे आना होगा, क्योंकि सरकार कैसे काम कर रही है? और किसके लिए काम कर रही है?, आपके सामने है। हद तो यह भी हो गयी है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास को राज्य की तीन करोड तीस लाख की आबादी में एक महिला तक नहीं मिल रही, जिसे राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया जा सकें, जबकि लंबी-लंबी बातें और भाषण देने की बात आये तो फिर देखिये रघुवर दास को, ये स्वयं को हनुमान भी बना डालेंगे, पर शायद रघुवर दास को पता नहीं कि हनुमान ने सीता के सम्मान की रक्षा के लिए रावण की नाक में दम कर दिया था, पर त्रेता के हनुमान और कलियुग के इस हनुमान में आकाश और जमीन का अंतर तो दिखेगा ही।

सीएम ने खोला है देखो...............

सीएम ने खोला है देखो...
केन्द्र जनसंवाद...
जनता है परेशान मगर...
न मिलता उचित जवाब...
नाम रखा है सीधी बात...
पर होती उलटी बात...
181 नंबर लगाकर...
जनता हुई परेशान...
हर महीने, हर सप्ताह...
नहीं पता, क्या करता है...
जनता निरंतर मूर्ख बनती...
अधिकारी खूब हंसता है...
दुख से परेशान जनता...
तब नारा स्वयं बनाया...
और कहा, बस तीन साल तुम...
उल्लू हमे बना लो...
उसके बाद मिलेगा झटका...
ये तुम अब जानो...
और, एक स्वर में जनता...
जोर-जोर चिल्लाई...
ऐसे सीएम पर नहीं भरोसा...
करेंगे जल्द बिदाई...
क्योंकि, सीएम करते उलटी बात...
बढ़ गई दूरी...
उलझ गई बात...

नेता जी के लिए विधानसभा..........

नेता जी के लिए विधानसभा...
वकीलों के लिए हाईकोर्ट...
पत्रकारों के लिए प्रेस क्लब...
और आम जनता के लिए...
बाबा जी का ठुल्लू...
एक साल हो गये पहाड़ी मंदिर से तिरंगा गायब है...
बड़ी ताम-झाम से साहेब ने यहां तिरंगा फहराया था...
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को रांची बुलाया था...
आम जनता को सपने दिखाया था...
आज वहां खंभा तो दिखता है, पर तिरंगा गायब है...
आज देखिये...
इसी रास्ते से साहेब का काफिला निकलता है...
पर समय नहीं कि वो तिरंगा को पुनः वहां लहरा दें...
आम जनता को एक बार फिर वहीं खुशी दिला दें...
खूब हल्ला करते है...
खेल विश्वविद्यालय देंगे...
सीसीएल से एमओयू किये है...
दो साल हो गये...
एमओयू पड़ा है...
खेल विश्वविद्यालय के लिए सब कुछ है...
ढांचा भी है, पर इनके निर्णयों और निश्चयों से ये गायब है...
एंटी करप्शन ब्यूरो बनाये है...
ये ब्यूरो ऐसा है कि...
उसे थर्ड और फोर्थ ग्रेड के कर्मचारी ही घूसखोर दिखते है...
पर ए ग्रेड और बी ग्रेड के अधिकारियों को पकड़ने में...
इसको दादी और नानी याद आ जाती है...
शायद इसे लगता है कि यहां के सारे आइएएस-आइपीएस...
दूध के धूले है...
कमाल है, बलात्कारियों का दल...
पूरे झारखण्ड में खुला घूमता है...
वो मां-बहनों की इज्जत से खेलता है...
मां-बहनों की हत्या भी कर डालता है...
पर,
अपनी पुलिस उन दुष्कर्मियों को पकड़ने में असफल रहती है...
सरकार ने इन्हें बड़े-बड़े वाहन दिये है...
ये बिना नंबर के इस वाहन पर चढ़कर खूब ऐश करते है...
पर सच्चाई ये है कि अपराधियों से ये नैन-मटका करते है...
विधि-व्यवस्था का ये हाल है...
कि बड़े – बड़े शैक्षिक संस्थानों में भी अपराधिक घटनाएं घटती है...
पर नेता और उनके दलाल...
उन शैक्षिक संस्थाओं को बचाने में ही ज्यादा समय लगाते है...
आम जनता मरने को विवश है...
किसानों-मजदूरों के लिए बड़े-बड़े दावे है...
किसान अपनी मेहनत से कमाये फसल को...
सड़कों पर फेंकने को मजबूर है...
पर मजाल है कि सरकार और उनके नुमाइंदे...
किसानों के आंसू पोछने के लिए उनके घरों तक पहुंच जाये...
पूंजीपतियों को बुलाने और झारखण्ड लूटवाने को पूरा कुनबा तैयार हैं...
जनता बेहाल है, सरकार और सरकार के नुमाइंदे मालामाल है...
इस बार हाथी उड़वाने के लिए सीएम मचल रहे है...
मचल तो आइएएस और आइपीएस भी रहे है...
यहीं मौका है...
मिलकर लूटने का पर्व जल्द ही आनेवाला है...
इन अंधेरों को पत्रकार नहीं देख पाते है...
क्योंकि उनके आका को ये राजनीतिबाज...
पहले ही खरीद चूके है...
मेडिकल हब बनाने का शोर...
हर रोज सुनाई देता है...
पर रांची में ही बने अस्पताल सदर...
कब खुलेंगे...
इसका जवाब किसी के पास नहीं है...
हरमू के सौंदर्य नाम पर खूब ढिंढोरा पीटा...
वो हरमू जो कल नदी थी...
आज नाली रुप धर लिया...
आग लगे ऐसे सौंदर्यीकरण को...
जो नदी को नाली बना दें...
नेता-अधिकारी-ठेकेदार का पेट बहुत बढ़ा दें...
जन-वन योजना, डोभा योजना...
सब बनते अखबारों में...
यहां पेड़ भी जगमग करते...
सिर्फ-सिर्फ अखबारों में...
ढूंढते रह जाओगे, मोबाइल...
नहीं मिलेगा सड़कों पे...
अपना पैसा जेब निकालो
खा लो, तुम हर हालों में...
झूठ-झूठ ही, झूठ-झूठ अब...
हर जगह दिखाई देता है...
क्या तिलिस्म है...
इस सरकार का...
वाह-वाह सब करता है...
असली मजा तो इन नेताओं की...
खूब कटती है मस्ती में...
मर गई जनता, मरती जनता...
हर हाल मरेगी, झारखण्ड में...

बियॉन्ड न्यूज.............

बियॉन्ड न्यूज, जब इस पुस्तक का लोकार्पण हो रहा था, तो मैं रांची में ही था, पर यह पुस्तक उस वक्त मेरे हाथ नहीं लगी। पुस्तक लोकार्पण के दूसरे दिन समाचार पत्रों को जब, मैं उलट रहा था। तब जाकर पता चला कि शक्ति व्रत और संजीव शेखर की लिखित पुस्तक बियॉन्ड न्यूज का लोकार्पण हुआ है। लोकार्पण के वक्त झारखण्ड विधानसभा के प्रथम विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा तथा अन्य विद्वान मौजूद थे। हम आपको बता दें कि संजीव शेखर से मेरी पहली मुलाकात उस वक्त हुई, जब वे स्टार न्यूज संवाददाता बनकर पहली बार रांची आये। बेहद ही शालीन और पत्रकारिता के प्रति गहरी निष्ठा, उनके स्वभाव में है, क्योंकि इनका बैक ग्राउंड बहुत ही प्रभावशाली रहा है। इनके पिता डा. शालीग्राम यादव बिहार के जाने माने शिक्षाविद् थे, जो आज दुनिया में नहीं है, पर उनकी कृति आज भी जीवित है। उपनिषद कहता भी है – कीर्तियस्य स जीवति।
विवादरहित संजीव अपने स्वभाव के कारण पत्रकार मित्रों में भी जल्दी ही लोकप्रिय हो जाते है, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यह लोकप्रियता सभी को नसीब नहीं होती। बियॉन्ड न्यूज पुस्तक में तीन पत्रकार मित्रों की कहानी है। जो संजय से जुड़े है। संजीव ने अपने पुस्तक में तीन पत्रकारों के माध्यम से वर्तमान पत्रकारिता में हो रहे ह्रास और सत्यनिष्ठ पत्रकार के दर्द को उकेरा है। एक ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार कैसे जीता है?, कैसे उसके बॉस, उसके तथाकथित पत्रकार मित्र जो दावा करते है कि उनके साथ है, पर समय – समय पर जलील करने से नहीं चूकते? कैसे एक गांव में एक पत्रकार तिल-तिल मर रहा होता है और बड़े महानगरों से आनेवाले संपादक और वरीय संवाददाताओं को दल उनका शोषण करने से नहीं चूकता? कैसे एक ईमानदार पत्रकार जो पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान एक आदर्श को लेकर आगे की ओर बढ़ता है, पर जैसे ही सच्चाई से भेंट होती है, तो उसके आदर्श एक – एक कर धूल – धूसरित होते जाते है? इस पुस्तक में एक पत्रकार के माता-पिता का दर्द तो दिखेगा ही, साथ ही उसकी आदर्श पत्नी का दर्द भी महसूस होगा कि वह कैसे अपने पति को ढाढ़स बंधाती है।
संजय के एक मित्र सजल जिसकी पत्नी मानसिक आरोग्यशाला में भर्ती है, जिसकी छोटी बेटी वसुंधरा है, फिर भी वह पत्रकारिता कर रहा है, अपने उसूलों से समझौता नहीं कर रहा, अपनी बीमार पत्नी को भी देख रहा है, छोटी बिटिया को भी संभाल रहा है, साथ ही पत्रकारिता का धर्म भी निर्वहण कर रहा है, पर उसके इस बलिदान को उसका संपादक नहीं समझ रहा, जब संपादक और अखबार की धज्जियां उड़ती है तो उसे संजय के मित्र सजल की याद आती है...
कमाल है, पत्रकारिता के आदर्श एक – एक कर धूल धूसरित हो रहे है, और उस धूल – धूसरित हो रही व्यवस्था को प्रणाम कर दोनों संजय और सजल आज एक अच्छे मुकाम पर है, सजल की बेटी वसुंधरा तो आईएएस आफिसर है, पर अंजन आज भी पत्रकारिता कर रहा है और उसे तिल-तिल मरना पड़ रहा है, वह जलील भी हो रहा है, जिसके लिए वह सब कुछ लूटा रहा है, वह उसे समझने को तैयार नहीं है...
जरा इसके संवाद देखिये...
संजय के पिताजी का ये कहना – ये सब जिंदगी का एक हिस्सा है। गिरना – उठना लगा रहता है, इससे विचलित और हताश होने के बजाय तुम्हें शिक्षा लेनी चाहिए।
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था – अगर आप सही हैं तो गुस्सा होने की जरुरत नहीं और यदि गलत हैं तो गुस्सा होने का हक नहीं है।
ईमानदार और मेहनती लोग पत्रकारिता में ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकते हैं।
मेरे विचार से, जो युवा पत्रकारिता को अपना लक्ष्य बनाकर चलना चाहते है, कम से कम वे यह पुस्तक अवश्य पढ़े, ये पुस्तक उनके लिए मार्गदर्शक का काम करेगा।
और
जो पत्रकारिता क्षेत्र में हैं, उनके लिए भी यह पुस्तक कम उपयोगी नहीं, उनके लिए तो यह पुस्तक हर प्रकार के रोगों के लिए रामबाण है...
सचमुच शक्तिव्रत और संजीव शेखर जी आपको इस पुस्तक के लिए साधुवाद...