Thursday, June 15, 2017

धन्य है बिहार के लालू..........

धन्य है बिहार के लालू...
धन्य है उनके नेता...
धन्य है बिहार के पत्रकार...
इन दिनों बिहार के दो यादव नेताओं का पूरे देश में धूम है। एक है राजद सुप्रीमो लालू यादव और दूसरे है राजद के ही विधायक नीरज यादव। दोनों की समानता यह है कि दोनों पत्रकारों से ही भीड़ गये है। लालू यादव रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों को उनकी औकात बता रहे है, वहीं नीरज यादव तो प्रभात खबर के पत्रकार को गालियों से नवाज दिया है।
अगर इनसे संबंधित समाचारों की बारीकियों को देखें तो रिपब्लिक टीवी के पत्रकार लालू के समक्ष शेर की तरह भिड़ते नजर आ रहे है, वहीं प्रभात खबर का पत्रकार नीरज यादव के समक्ष मिमियाता नजर आ रहा है, प्रभात खबर के पत्रकार का नीरज यादव के समक्ष मिमियाने से एक बात स्पष्ट हो रही है कि प्रभात खबर के पत्रकार ने कुछ गड़बड़ियां की है, नहीं तो वह उक्त नेता के आगे मिमिया नहीं रहा होता, पर दूसरी ओर रिपब्लिक टीवी के पत्रकार का निर्भीकता के साथ लालू से भिड़ना और उनसे उन्हीं की भाषा में बात करना, सब कुछ सिद्ध कर देता है कि अब पहलेवाली बात नहीं रही। न तो लालू 1990 वाले लालू है और न उनकी अब वैसी गरिमा है। वह भी इसलिए कि, 1990 के लालू पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं था, वह गरीबी से निकले थे, और बिहार का सत्ता संभाला था, वह भी अपने दम पर, लेकिन इधर के कुछ सालों में, तो वे भ्रष्टाचार के साक्षात प्रतिमूर्ति बन गये है, इधर भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी द्वारा लगातार किये जा रहे राजनीतिक हमले ने उन्हें बेचैन कर दिया है। स्थिति ऐसी है कि इनसे बचने के लिए इनके पुत्रों ने तंत्र-मंत्र का भी सहारा लेना शुरु कर दिया है, पर इनसे भी इनकी रक्षा होगी, कहां नहीं जा सकता।
नीतीश कुमार तो ऐसे भी, मस्ती में है, वे जानते है कि लालू पर जितना राजनीतिक हमला अथवा भ्रष्टाचार का शिकंजा कसेगा, उनकी कुर्सी उतनी ही सुरक्षित रहेगी, क्योंकि लालू का ज्यादातर ध्यान अपनी राजनीतिक छवि को सुधारने और भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्ति पाने पर केन्द्रित रहेगा और नीतीश बहुत ही आसानी से ये पंचवर्षीय पारी भी खेल जायेंगे और अपनी छवि भी बिहार और बिहार के बाहर बना लेंगे. यह कहकर कि लालू जैसे भ्रष्टों के संग रहकर भी, उन पर कोई दाग नहीं है, इसी को तो राजनीति कहते है, पर लालू और नीरज ने जिस प्रकार से बिहार के सम्मान पर दाग लगाया है, वह बताता है कि आनेवाले समय में बिहारियों का गिन्जन होना तय है, क्योंकि जैसे उनके नेता होंगे, बिहारियों की छवि बिहार के बाहर, तो वैसे ही बनेगी। ऐसे भी जहां मूर्ख ट़ॉप करते हो, जहां महिला प्रदर्शनकारियों के साथ पुलिस खूलेआम बदतमीजी करता हो, सब कुछ बता रहा है कि बिहार की प्रतिष्ठा बाहर मे कैसी बन रही है और ले-देकर बिहार के कुछ पत्रकारों की मिमियानेवाली कला ने तो यहां के पत्रकारों के कुकृत्यों को भी सामने लाकर खड़ा कर दिया है. भाई नेताओं से लाभ भी लेंगे और उनकी धज्जियां भी उडायेंगे तो गाली सुनना ही पड़ेगा, भला इतनी बात कथित पत्रकारों को समझ नहीं आती।

Wednesday, June 14, 2017

यार हमारी बात सुनो.......

भोर सिंह ने एक-दो छापेमारी क्या कर दी? मिलावटखोरों को क्या पकड़ लिया, अपने रांची शहर में हर तरफ ईमानदार ही ईमानदार नजर आने लगे हैं अर्थात् हर क्षेत्र से बेईमानों की टीम, ईमानदार बनकर भोर सिंह की जय-जयकार कर रही है, उसमें अखबार के संपादक व पत्रकार भी शामिल हो गये, ये वहीं पत्रकार और संपादक है, जो कभी भोर सिंह यादव को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था, यह कहकर कि अहले सुबह भी कहीं हेलमेट जांच किया जाता है, ये अलग बात है कि जब चारो तरफ उनकी थू – थू होने लगी तो उन्हें ख्याल आया कि वे गलत पर है, यहीं नहीं  लगातार कश्मीर को पाकिस्तान का अंग बतानेवाले अखबार अब मिलावटखोरी पर संपादकीय लिख रहे है, सेक्स-कमजोरी के नाम पर युवाओं को दिग्भ्रमित करनेवाले विज्ञापन को छापने वाले समाज हित की बात कर रहे है...
भाई एक बात बता दूं, जैसे तेल, दूध और बीज में मिलावट करनेवालों को मत छोड़िये, उसी प्रकार युवाओं को दिग्भ्रमित करनेवाले समाचार और विज्ञापन छापनेवाले अखबारों को भी मत छोड़िये, क्योंकि ये भी बराबर के अपराधी है...
मैं तो सीधे यहीं कहूंगा ऐसा लिखनेवाले और ऐसा बोलनेवाले तथा आंदोलन करनेवालों को, कि वे फिल्म रोटी का गाना सुने...
गाने के बोल है...
यार हमारी बात सुनो...
ऐसा एक बेईमान सुनो...
जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो...
एक बात और,
कानून को अपना काम करने दीजिये, कानून अपना काम करेगा। एक बात और, दुनिया में दो प्रकार के कानून है – एक कानून जो व्यक्ति बनाया है, और दूसरा कानून जो प्रकृति का है।
आप मनुष्य के द्वारा बनाये गये कानून को धोखा दे सकते है, पर ईश्वर के बनाये गये कानून को धोखा नहीं दे सकते, इसलिए सभी अपना-अपना काम करें, ईमानदारी बरतें और झारखण्ड का नाम रोशन करें।
आज तो मैं ये भी देख रहा हूं कि भोर सिंह को लेकर उनकी जाति के लोग भी आंदोलन पर उतर आये है, वे नगर विकास मंत्री का पुतला दहन कर रहे है, भाई भोर सिंह सिर्फ यादवों के एसडीओ थे क्या?  अब जिस जाति का एसडीओ बनेगा, उस जाति के लोग उस एसडीओ का जिम्मा लेंगे क्या?  अरे भाई, वो एसडीओ है, उसे भी डीडीसी, डीसी और पता नहीं क्या-क्या?  बनना है, और बनने की इच्छा रखता है, क्या वह आपके लिए सदा के लिए एसडीओ ही बनकर रह जाये? ये क्या अंधेरगर्दी है भाई? जिसको देखो, हर बात में जातीयता घूसेर दे रहा है, अच्छे लोगो की सराहना थोड़ा सभी जाति के लोग करें, तो अच्छा है। ये एक ही जाति के लोग प्रदर्शन और पुतला दहन करने की सोच रखेंगे तो इस राज्य का क्या हालत होगा?  क्या हम सचमुच आगे बढ़ रहे है, या नीचे जा रहे है? हद कर दी है, सबने। हर जगह राजनीति, भोर सिंह का स्थानान्तरण हो गया तो गलत, भोर सिंह का स्थानान्तरण नहीं हुआ तो गलत,
भोर सिंह के समय का अधिकारी, सब का प्रमोशन हो गया और इसके साथ ही भोर सिंह का भी हो गया तो भी गलत और नहीं हुआ तो भी गलत। ऐ भाई, ऐसे में तो, हम मिलावटखोरी वाला सामान नहीं भी खायेंगे, तब भी ब्रेन हेमरेज हो जायेगा...

Tuesday, June 13, 2017

रांची में ऐसे पत्रकारिता हो रही हैं................

कल की ही बात है...
मैं रांची स्थित भाजपा मुख्यालय में था, नगर विकास मंत्री सी पी सिंह, भाजपा मुख्यालय के भूतल स्थित किसान प्रकोष्ठ में बैठे थे, उनके चाहनेवालों की भीड़ चारो ओर से उन्हें घेरे थी, तभी जीटीवी का कैमरामैन पहुंचा और सी पी सिंह को एक बाइट देने को कहा।
सी पी सिंह – किस संदर्भ में बाइट लेना है।
जीटीवी का कैमरामैन – अरे वहीं हत्या हो रहा है, न देश में, उसके बारे में।
सी पी सिंह – कौन सी हत्या, कैसी हत्या।
जीटीवी का कैमरामैन – अरे वहीं, किसान सब हत्या कर रहा है न।
सी पी सिंह – अरे भाई किसान किसी की हत्या क्यों करेगा? आप बताइये न कि आपको किस संदर्भ में बाइट चाहिए, मंदसौर पर चाहिए या महाराष्ट्र वाले पर।
जीटीवी का कैमरामैन – अरे भाई हम नहीं जानते, आप ऐसा करिये कि हमारे ब्यूरो चीफ का नंबर है न, उन्हीं से पूछ लीजिये, कि वो क्या बाइट चाहते है? हमको क्या मालूम? अरे हमें क्या? हमलोगों को भेज दिया जाता है और हमलोग चले आते है।
सी पी सिंह – फोन लगाओ जी।
अचानक फोन लगाया जाता है, जीटीवी के ब्यूरो चीफ को, उधर से प्रश्न बताया जाता है और लीजिये, नेता जी तैयार बाइट देने के लिए।
यानी इस प्रकार चल रहा है झारखण्ड में पत्रकारिता। यह केवल एक संस्थान की बात नहीं, बल्कि हर जगह की है, अब कोई भी रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ स्वयं समाचार संकलन करने के लिए नहीं निकलता, उसे लगता है कि वो समाचार संकलन को निकलेगा तो फिर उसकी इज्जत चली जायेगी, वो रिपोर्टर का काम करने के लिए नहीं बना है, वो तो पत्रकारिता का जगदगुरु शंकराचार्य बनने के लिए पैदा हुआ है, और वो यह बनकर रहेगा।
पूर्व में ऐसी बात नहीं थी, रिपोर्टर और कैमरामैन साथ-साथ चला करते थे, पर अब ये प्रथा पूरी तरह समाप्ति की ओर है, रिपोर्टर या संवाददाता या ब्यूरोचीफ अब घर में रहता है और कैमरामैन सारा काम करके चल आता है, बाद में रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ कार्यालय जाता है, और बना-बनाया उसे जब समाचार मिलता है, तब उस समाचार को अपना नाम देकर वह नोएडा या अपनी मनमुताबिक जगहों पर समाचार भेज देता है और मुख्यालय में बैठा व्यक्ति रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ की खूब वाह-वाही करता है। कहीं-कहीं तो कैमरामैन वो सारा काम कर देता है, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते, यानी काम करे कैमरामैन, नाम हो किसी ओर का।
यहीं नहीं आप यह भी जान लें कि आजकल रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ से भी ज्यादा लोग कैमरामैन को जानने और सम्मान देने लगे है, क्योंकि लोग जानते है कि यहीं सर्वेसर्वा है, ये विजूयल लेगा तभी दिखेगा, रिपोर्टर की कोई औकात नहीं कि उसके द्वारा लाये गये विजूयल को कोई काट दे, क्योंकि जो विजूयल वो लेगा, काटेगा, वहीं न जायेगा।
इधर देखने में आ रहा है कि ज्यादातर राजनीतिक दलों के नेता, विभिन्न प्रशासनिक, सामाजिक व धार्मिक संगठनों के लोग रिपोर्टरों, संवाददाताओं, व ब्यूरोचीफ की जगह इनके कैमरामैनों के मोबाइल नंबर रखे होते है, और समय-समय पर उनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की जानकारी देते रहते है, क्योंकि वे जानते है कि कैमरामैन के पास ही हमेशा कैमरा होता है और वो चाहेगा, न्यूज चलेगा, इसलिए वे इन्हीं लोगों से ज्यादा सम्पर्क में रहते है, समय-समय पर इनकी आवभगत भी खूब होती है। यानी रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ से ज्यादा सर्वाधिक लोकप्रिय गर कोई है तो वह है कैमरामैन।
स्थिति ऐसी है कि इन्हीं सभी कारणों से विभिन्न चैनलों के मालिक या संचालनकर्ता अब रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ की जगह सिर्फ कैमरामैन की बहाली कर रहे है, क्योंकि वे जान चुके है कि ये रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ कुछ नहीं करते, केवल ये दबंगई करते है, इसलिए अब ज्यादातर प्रमुख चैनल कैमरामैनों की बहाली कर रहे है, रांची में बहुत सारे ऐसे राष्ट्रीय चैनल है, जहां केवल कैमरामैन है, पर वे स्वयं को संवाददाता और ब्यूरोचीफ कहने में गर्व महसूस करते है, जो सफेद झूठ के अलावा कुछ भी नहीं है।

Monday, June 12, 2017

रघुवर सरकार के प्रति महिलाओं में गहरा आक्रोश........

झारखण्ड की महिलाओं के सपने पर वित्त विभाग ने लगाया ग्रहण...
मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा झारखण्ड की महिलाओं को दिखाया गया सपना दूर की कौड़ी...
अगर महिलाओं को दिखाये गये सपने नहीं पूरे हुए तो मुख्यमंत्री रघुवर दास को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है...
राज्य के महिलाओं में गहरा आक्रोश...
याद करिये, 3 मई 2017, झारखण्ड के मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी, कि अब राज्य में महिलाओं को मुफ्त रजिस्ट्री की सुविधा मिलेगी।
राज्य में महिलाओं के नाम जमीन जायदाद खरीदने पर रजिस्ट्री के लिए स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन फीस नहीं लिये जायेंगे। मात्र एक रुपये के टोकन स्टाम्प पर महिलाओं को फ्री रजिस्ट्रेशन किया जायेगा। मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस घोषणा को महिलाओं के सशक्तिकरण के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम बताया गया था, राज्य के सभी दलों तथा महिला संगठनों ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस कदम की भूरि-भूरि प्रशंसा कर दी थी, पर जब से इस पर वित्त विभाग ने अपनी आपत्ति दर्ज करायी है, राज्य की महिलाओं को लग रहा है कि उनके सपनों पर कुठाराघात किया गया है...
हो सकता है कि इसका खामियाजा मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनकी पार्टी को आनेवाले चुनाव में भुगतना पड़ जाये। सूत्र बताते है कि स्थिति ऐसी है कि अगर ऐसा होता है तो महिलाओं का कोपभाजन रघुवर दास को बनना पड़ सकता है।
कुछ ये भी कहते है कि...
बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछताय।
काम बिगाड़े आपना, जग में होत हसांय।
कहीं ऐसा नहीं कि अविचार पूर्वक किये गये मुख्यमंत्री के इस घोषणा से मुख्यमंत्री रघुवर दास की किरकिरी हो जाये।
बताया जाता है कि जिस दिन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस बात की घोषणा की थी, उसी वक्त से भू-राजस्व विभाग सक्रिय हो उठा था, तथा इस घोषणा को मूर्त्तरुप देने, तथा कैबिनेट से पास कराने के लिए तैयार किये गये प्रस्ताव को विधि विभाग को भेजा, जिसे विधि विभाग ने मंजूरी दे दी, इसके बाद यह प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा गया, जिस पर वित्त विभाग ने अपनी असहमति प्रकट कर दी, वित्त विभाग का कहना है कि ऐसा करना राज्यहित में नहीं है, अच्छा रहेगा कि महिलाओं की श्रेणी निर्धारित की जाय, नहीं तो आनेवाले समय में राजस्व की भारी क्षति होगी, और ये राज्य के विकास में घातक होगा।
हालांकि वित्त विभाग द्वारा आपत्ति दर्ज कराने के बाद इसे नये सिरे से लागू करने पर सरकार विचार कर रही है, पर जिस प्रकार से वित्त विभाग ने आपत्ति दर्ज करायी है और इसे लागू करने में देर हो रहा है, राज्य की महिलाओं में आक्रोश बढ़ता जा रहा है, साथ ही मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रति महिलाओं में नकारात्मक छवि बनती जा रही है, अगर ऐसा हुआ तो अंततः भाजपा का राज्य में पुनः सत्ता में आना, एक तरह से असंभव हो जायेगा...
क्योंकि आधी आबादी को नाराज करना, राज्य सरकार के लिए घातक हो जायेगा, हालांकि सूत्र बताते है कि राज्य सरकार नहीं चाहेगी कि वह राज्य की आधी आबादी को नाराज करें, जल्द ही एक-दो सप्ताह में इस पर निर्णय ले लिये जायेंगे, क्योंकि इस प्रकरण से पूरे राज्य में जमीन की रजिस्ट्री प्रभावित हो चुकी है, इसलिए जल्द इसमें फैसले लिये जाने की संभावना है।

Saturday, June 10, 2017

बहुत हो चुका......

बहुत हो चुका...
आंदोलन अथवा रैली के नाम पर किसी भी संगठन को गुंडागर्दी करने की इजाजत नहीं दी जा सकती...
गर इन गुंडागर्दी पर जल्द रोक नहीं लगा तो झारखण्ड हाथ से निकल जायेगा...
हालात नार्थ-ईस्ट जैसी हो जायेगी...
कुछ धार्मिक संगठन ऐसी स्थिति लाने की कोशिश कर रहे है, जिससे राज्य में रहनेवाले अन्य समुदायों की तकलीफें बढ़ रही हैं...
ऐसे समय में, राज्य सरकार का पहला और अंतिम दायित्व होना चाहिए कि वह राज्य की जनता को यह विश्वास दिलायें कि राज्य में अमन और शांति है, और इस अमन व शांति को कायम रखने के लिए सरकार वचनवद्ध है... लेकिन वर्तमान में, जो स्थितियां दिखाई पड़ रही है, ठीक इसके विपरीत है...
कल जो कुछ रांची की सड़कों पर देखने को मिला, वह पुलिस प्रशासन और राज्य सरकार की निष्क्रियता को दर्शाता है, और इसे इन दोनों को स्वीकार भी करना चाहिए...
कल एक संगठन ने रैली बुलाई और आपको पता नहीं चला, ये बताता है कि आपका खुफिया संगठन पूर्णतः फेल है। आश्चर्य इस बात की है कि लोग खूंटी से चलकर, रांची पहुंच गये और आपके पुलिस प्रशासन को भनक तक नहीं मिली, इससे बड़ी शर्मनाक की बात और क्या हो सकती है?
कहां गये भोर महाशय, जो विहिप कार्यालय में बिना बुलाये पहुंच जाते है, उन्हें हिदायत देते है, और इतनी बड़ी घटना रांची की जनता के साथ होती है और उनको भनक तक नहीं मिली...
ये सारी घटनाएं बता रही है कि राज्य में स्थिति को खराब करने में प्रशासन के कुछ लोग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है, क्या हम माने कि जिस तरह बच्चा चोरी अफवाह मामले में सरायकेला खरसावां के डीसी-एसपी को निलंबित किया गया, इस कल की घटना के जिम्मेदार पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को भी दंड दिया जायेगा।
कमाल है, कल भगवान बिरसा मुंडा का शहादत दिवस था और ये बिरसा के नाम पर आंदोलन और उलगुलान की बात करनेवाले बिरसा और झारखण्ड के ही अमर शहीदों के चित्रों पर लाठी बरसा रहे थे, ये गुस्सा बताता है कि ये आंदोलन गलत रास्ते की ओर बढ़ रहा है, इसका मकसद राज्य की जनता को बताना है कि वे उनके गुलाम है, उनके रहमोकरम पर है।
कमाल है, रैली आयोजित करनेवाले बतायें कि
उनके लोगों ने अरगोड़ा में पुलिस से भिड़ने की कोशिश क्यों की?  वे रैली में शामिल होने आये थे या पुलिस से भिड़ने।
हरमू बाइपास में उत्पात क्यों मचाया, तोड़-फोड़ क्यों की, इसका मतलब क्या है?
मोदी फेस्ट में शामिल लोगों ने उनका क्या बिगाड़ा था, जो उनके साथ दुर्व्यवहार किया?
बिरसा मुंडा समेत अन्य अमर शहीदों के पोस्टर-होर्डिंग्स क्यों फाड़ें, इन अमर शहीदों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?
कुछ सवाल पुलिस प्रशासन से भी...
ये रैली खुंटी से रांची तक पहुंच गई और आप कहते है कि, आपको मालूम नहीं, तब तो भाई मैं यहीं कहूंगा कि आपलोगों को ईमानदारी से अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए, जब हम राम भरोसे इस राज्य में है, तो फिर आप जैसे पुलिसकर्मियों की यहां क्या जरुरत है?  जैसे राम जी रखेंगे, वैसे रह लेंगे...
और अब सवाल मुख्यमंत्री रघुवर दास से...
आपको नहीं लगता कि पिछले तीन-चार महीनों से एक सुनियोजित साजिश के तहत राज्य को अस्थिर करने का षडयंत्र चल रहा है और इसमें आप ही के प्रशासनिक अधिकारी ही ज्यादा धमाल मचा रहे है, वहीं प्रशासनिक अधिकारी जिनसे आप सलाह लेते है और समय-समय पर उनकी पीठ भी ठोंकते है, और मैं जिन्हें कनफूंकवा के सिवा दूसरा कुछ नहीं कहता हूं...
अंतिम बात...
आप समझे या न समझे, पर इतना जरुर कहूंगा कि किसी को भी इस राज्य को अस्थिर करने और यहां की शांतिप्रिय जनता को अशांत करने का अधिकार नहीं है...
हमें लगता है, आप जल्द समझें तो अच्छा, नहीं तो राज्य की जनता देख रही है... वो उचित समय पर निर्णय स्वयं ले लेगी, हमें पूर्ण विश्वास है...

Thursday, June 8, 2017

भोर महाशय सावधान.................

भोर महाशय सावधान...
आप राजनीति के शिकार हो रहे है...
दुनिया में जब भी कोई व्यक्ति जो समाज व देश हित में अच्छा काम करता है, और जब वह राजनीति का शिकार होता है, तब सर्वाधिक नुकसान जनता और उस व्यक्ति का होता है, जो बेहतर काम कर रहा होता है...
यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि पहली बार एक अधिकारी रांची को मिला, जिसने राजधानीवासियों में प्रशासन के प्रति विश्वास जगाया है, लोगों को लगा है कि यह व्यक्ति मेरा नहीं, हमारा है, ऐसे मैं कुछ स्वार्थी राजनीतिक तत्व इसका सियासी फायदा लेने से नहीं चूक रहे...
वे तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे है, ताकि इसका सीधा फायदा उन्हें राजनीतिक लाभ के रुप में प्राप्त हो...
ये सारे राजनीतिक दल से जुड़े लोग अब सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में स्वयं को प्रतिष्ठित कर, आप के प्रति अपनी निष्ठा दिखा रहे है, ताकि आनेवाले समय में वे जनता के बीच में एक सच्चा और अच्छा व्यक्ति स्वयं को दिखा सकें।
ये आजकल एसडीओ कार्यालय जाकर, आपको बुके दे रहे है, कोई मार्निंगवाक के बहाने पैदल मार्च कर रहा है और अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहा है, जबकि सामान्य जनता को इससे कोई लेना देना नहीं।
मैंने स्वयं देखा कि 5 जून को मोराबादी मैदान में जदयू का नेता, मार्निंग वाक के बहाने पैदल मार्च में भाग लिया और आप के समर्थन में भाषण देने लगा। एक-दो दिन पहले एक भाकपा माले नेता को देखा कि वह भी सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में आपको अपना नैतिक समर्थन देने पहुंच गया। ये दो उदाहरण काफी है कि भोर सिंह यादव को लेकर राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही है।
दूसरी ओर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को रांची विश्वविद्यालय कार्यालय परिसर में जायज मांगों को लेकर उन्हें धरना-प्रदर्शन करने से रोकना और विश्व हिन्दू परिषद के कार्यालय में जाकर उन्हें अपना कार्य करने से रोकना यह भी कोई अच्छा संदेश नहीं दे रहा है। आपका काम कानून-व्यवस्था को ठीक रखना है और इसमें जो कोई अड़ंगा लगाये, उसे पकड़िये और कानून के तहत सजा दिलवा दीजिये, सबका दिमाग ठंडा हो जायेगा, पर किसी को मिले लोकतांत्रिक अधिकार पर हमला करने की छूट तो किसी को नहीं, क्योंकि कुछ सवाल अब लोगों के दिमाग में स्वतः उपजने लगे है...
सवाल है, क्या आपके समर्थन में जिन लोगों ने मोराबादी मैदान में पैदल मार्च निकाला, क्या उनलोगों ने इसके लिए प्रशासन से आदेश लिया था? और जब आदेश लिया ही नहीं तो फिर उस पैदल मार्च में एक जदयू नेता ने किस हैसियत से भाषण दिया और उन पर क्या कानूनी कार्रवाई हुई?
ऐसा तो नहीं कि कोई व्यक्ति या संस्थान प्रशासनिक व्यक्ति के पक्ष में कोई आंदोलन करें तो उसे छूट और बाकी लोग करें तो उन्हें कानून का डंडा दिखाकर चुप करा दिया जाय।
ये बातें, मैंने इसलिए लिखा है कि आप पर लोगों को बहुत भरोसा है, और इसमें केवल जदयू, कांग्रेस, भाकपा माले ही नहीं, बल्कि और भी जितने दल है, या अच्छे लोग है, या संस्थान है, वह आपको पसंद कर रहे है, कृपया आप इस सम्मान के झूठे लालच में नहीं पड़े।
सम्मान क्या होता है? जरा इस आदिवासी महिला का दास्तान सुनिये...
वह प्रतिदिन रांची के मेन रोड स्थित महावीर मंदिर में पत्तल बनाने का काम और बेचने का काम करती है, अचानक जब बजरंगियों का हुजूम देखा और इधर उसका विरोध करनेवाले एक समुदाय की तैयारी देखी, तो वह कांप गयी, वो सोचने लगी कि वह घर कैसे जायेगी? अगर कुछ हुआ तो? पर आपकी व्यवस्था देख, प्रसन्नचित्त वह घर गयी,  उसके मन में उपजा भय समाप्त हुआ। अब जरा सोचिये, जब वह घर पहुंची होगी, तो आपको वह कितनी दुआएं दी होगी, यह समझने की आवश्यकता है, आपको ऐसे ही दुआओं की आवश्यकता होनी चाहिए, न कि झूठी सम्मान और झूठे समर्थन की। बस आप अपना काम करते रहिये, लोग मुक्त कंठ से आपको दुआएं दे रहे है, पर हां, याद रखियेगा...
जीवन में ईमानदारी जरुरी है, न कि राजनीति... 

Wednesday, June 7, 2017

निदेशक, आइपीआरडी, झारखण्ड का कमाल देखिये.........

जी हां, निदेशक, आइपीआरडी, झारखण्ड का कमाल देखिये...
इन्होंने पिछले तीन महीनों से एक भी होर्डिंग डिजाइन्स विभागीय वेबसाइट पर नहीं डलवाये है, जिसके कारण राज्य के विभिन्न जिलों में एक भी विभागीय होर्डिग्स जो राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे विकासात्मक कार्य की जानकारी जनता को देते है, राज्य के किसी भी जिले में नहीं दिखाई पड़ रहे है...
एक जिला जनसम्पर्क अधिकारी ने निदेशक को याद दिलाया है, वे इस ओर ध्यान दें, आश्चर्य है कि निदेशक ने स्वीकार किया है कि यह सत्य है, वे इस ओर ध्यान देते है, पर आज तक इस ओर उनका ध्यान नहीं गया है।
आश्चर्य इस बात की है कि उक्त जिला जनसम्पर्क अधिकारी ने निदेशक को उनके काम याद दिलाये है, पर निदेशक का अभी ज्यादा ध्यान इस ओर न होकर, उन्हें खुश करनेवाले अधिकारियों और संस्थानों पर है, वे इधर आइपीआरडी के एक बदनाम अधिकारी पर इतने खुश है कि सारा काम आइपीआरडी के उस बदनाम अधिकारी को ही सौंप रहे है, नतीजा पूरा विभाग बदनामी की ओर अग्रसर है।
स्थिति ऐसी है कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र चलानेवाले संस्थान पर, जिस पर गंभीर आरोप वहीं पर कार्यरत महिलासंवादकर्मियों ने लगाया, उसे फिर से देने के लिए सारी तैयारियां पूरी कर ली गयी है। अब केवल टेंडर की औपचारिकता मात्र बाकी है। आपको आश्चर्य होगा कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र उक्त संस्थान को सौपने के लिए निदेशक ने जो आनन-फानन में टेंडर निकलवाये थे, उसे देखकर भी आइपीआरडी में चल रहे गोरखधंधे का पता लग जाता है। जरा ध्यान से देखिये 31 मई 2017 को प्रभात खबर के पृष्ठ संख्या 21 पर निकाले गये, नीचे कोने में पड़े आईपीआरडी के विज्ञापन को जो जनसंवाद से संबंधित है। जिसमें टेंडर की सारी तिथियां ही समाप्त हो चुकी है और उसे अखबार में प्रकाशित कराया गया। बाद में जब इस पर हंगामा मचा तो जाकर इस संबंध में एक नया विज्ञापन निकाला गया।
अब आप इसी से समझिये कि कनफूंकवों ने कैसे, मुख्यमंत्री रघुवर दास के इमेज को बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरु कर दी है?  पर पता नहीं क्यूं मुख्यमंत्री को कनफूंकवों की प्लानिंग ही सर्वाधिक रास आ रही है, नतीजा सामने है...
जरा मुख्यमंत्री जी आपही बताइये...
• जब आपके द्वारा चलाये जा रहे विकासात्मक कार्यों को आपका ही निदेशक आम जनता तक पहुंचाने में रोड़ा अटका दें, तो फिर आपकी इमेज जनता के बीच कैसे बनेगी, वह भी तब जबकि सरकार के इमेज बनाने के लिए ही, सरकार और जनता के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए ही इस विभाग का गठन हुआ और यह विभाग भी आपके ही जिम्मे है, पर वो कौन है कनफूंकवां? जो आपकी इमेज बनाने में पिछले तीन महीने से रोड़ा अटका दिया, आखिर पूछिये आप निदेशक से, वह किसके इशारे पर ऐसा किया और कर रहा है, और अगर वह नहीं बताता है, तो मैं बताने के लिए तैयार हूं।
• पूछिये आप इस निदेशक से कि आखिर किससे इशारे पर 31 मई को गलत विज्ञापन विभिन्न अखबारों में निकाला गया।
• आखिर क्या वजह है कि जो लोग आपको इमेज को बनाने में लगे है, उन्हें साइड कर, ऐसे लोगों से काम लिये जा रहे है, जो आप से पैसे भी ले रहे है और आपकी इमेज का बंटाधार कर रहे है।
भाई सरकार आपका, अधिकारी आपके,  जवाब मांगिये...
पर कनफूंकवे, आपको सच बतायेंगे...
उत्तर होगा – नहीं, कभी नहीं।

Sunday, June 4, 2017

हमें भोर पसन्द है..........

भला भोर किसे पसन्द नहीं होगा। जब से दुनिया बनी, लोगों को अंधकार की जगह प्रकाश अर्थात् भोर ही ज्यादा भाया है। झारखण्ड में ऐसे तो कई अनुमंडलाधिकारी है, पर हमसे पूछा जाय तो, मैं कहूंगा कि एक ही अनुमंडलाधिकारी है, जिसका नाम भोर सिंह यादव है क्योंकि जो जनता की अपेक्षाओं पर खड़ा उतरे, वो अनुमंडलाधिकारी और जो जनता की बजाय नेताओं, देश के दुश्मनों के पिछलग्गू बने, वो खुद क्या है?  खुद ही बताये तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
फिलहाल रांची के एसडीओ भोर सिंह यादव ने कई नेताओं, बिल्डरों, दो नंबर का काम करनेवाले अखबारों-पत्रकारों, मिलावटखोरी का धंधा करनेवाले कारोबारियों और दंगा में महारत हासिल करनेवाले दंगाइयों की हालत पस्त कर दी है, और जैसे ही इन लोगों के हालत पस्त होने शुरु हुए है, सभी ने मिलकर अब भोर सिंह यादव को हटाने के लिए हाथ मिला लिया है, जिसका परिणाम है आज रांची कोर्ट में भोर सिंह यादव के खिलाफ दायर मुकदमा। ऐसे तो इतिहास गवाह है कि जैसे ही आप अच्छा काम करना शुरु करेंगे, लोग आपको ऐसा केस में उलझायेंगे कि आपकी नानी-दादी याद आ जायेगी, पर क्या हम इन झूठे मुकदमों से डरकर, अच्छा काम करना बंद कर देंगे? उत्तर होगा – नहीं।
आप रांची की आम जनता से पूछिये, सभी ने भोर सिंह यादव को अपने दिल में स्थान दे रखा है, आखिर क्या कर दिया है भोर सिंह यादव ने, कि लोग उसके पीछे पागल हो गये है?  ये सवाल आज हर जगह चर्चा में है। मैं स्वयं पिछले 37 सालों से पत्रकारिता कर रहा हूं, पर आज तक मैंने ऐसा लोकप्रिय युवा एसडीओ नहीं देखा।
याद करिये, अभी कोई ज्यादा दिन नहीं हुआ है, घटना 20 अप्रैल की है, भोर सिंह यादव रांची की सड़कों पर अहले सुबह पहुंच गये, हेलमेट जांच करने हेतु, कुछ लोगों को उनका यह काम बहुत ही अच्छा लगा था, पर रांची से प्रकाशित प्रभात खबर को यह अच्छा काम, इतना बुरा लगा कि उसने दूसरे दिन 21 अप्रैल को पृष्ठ संख्या 2 में एसडीओ भोर सिंह यादव को ही कटघरे में खड़ा कर दिया, जिसकी हमने अपने फेसबुक में कड़ी आलोचना की थी और एसडीओ भोर सिंह यादव के इस सुंदर कार्य का समर्थन किया था। फेसबुक में मेरे द्वारा भोर सिंह यादव के इस कार्य का समर्थन का प्रभाव यह पड़ा कि प्रभात खबर को अंत में, बैकफूट पर जाना पड़ा तथा दूसरी ओर भोर सिंह यादव अपने कामों में बिना किसी लाग-लपेट के सेवा-भाव से लगे रहे।
इसी बीच कभी हेलमेट पहनने को प्रेरित करने का काम...
कभी मिलावटखोरों के खिलाफ कार्रवाई...
तो कभी बड़गाई बस्ती में उठी सांप्रदायिकता की आग को जड़ से उखाड़ फेकने के लिए सक्रिय होने का कार्य...
भोर सिंह यादव को और अधिक लोकप्रिय बना दिया...
स्थिति ऐसी हो गयी है कि रांची की आम जनता यह मानने को तैयार ही नहीं, कि रांची के एसडीओ भोर सिंह यादव किसी से दस लाख रुपये की डिमांड कर सकते है, हालांकि ये पूरा मामला अब धीरे-धीरे क्लियर होता जा रहा है, कि भोर सिंह यादव द्वारा आखिर दस लाख रुपये की डिमांड का आरोप क्यों लगाया जा रहा है...
इधर भोर सिंह यादव द्वारा मिलावटखोरों के खिलाफ की गयी कार्रवाई के बाद कुछ व्यापारियों द्वारा अपने कारोबार को एक दिन के लिए बंद रखने का काम, रांची की जनता को रास नही आया है।
हालांकि सुनने में आया है कि गलत कार्य करनेवाले व्यापारियों और राजनीतिज्ञों का दल रघुवर सरकार पर दबाव बना रहा है कि भोर सिंह यादव की रांची से विदाई कर दी जाय, पर आम जनता के बीच लोकप्रिय भोर सिंह यादव की बिदाई इतना आसान नहीं, क्योंकि भोर सिंह यादव के लिए राजधानी रांची की जनता, रांची की सड़कों पर उतरने के लिए तैयार है, कुछ युवा शक्तियां तो अभी से आंदोलन के मूड में है...
इसलिए भोर सिंह यादव जी, बधाई आपको, रांची की जनता आपके साथ, तो फिर डर किस बात का...
लगे रहिये और असामाजिक तत्वों को उनकी औकात बताते रहिये...
हमारी ओर से ढेर सारी आपको शुभकामनाएं...

Saturday, June 3, 2017

रघुवर की परीक्षा.......

पहले जमशेदपुर, फिर हजारीबाग और अब रांची को अशांत करने की कोशिश, दरअसल जिस राज्य में प्रशासन का भय समाप्त हो जाता है, वहां इस प्रकार की घटनाएं आम बात हो जाती है। मैं महसूस कर रहा हूं कि चाहे हिंदू हो या मुसलमान या ईसाई, इन दिनों बड़ी संख्या में खुराफातियों का जमावड़ा इन समुदायों में हो गया है, इनका काम अपने-अपने समुदायों में रह रहे लोगों का माइन्ड वाश करना है और एक दूसरे से लड़वाने के लिए नाना प्रकार के प्रशिक्षण देना है। इन खुराफातियों का मनोबल इतना बढ़ गया है, कि वे अब किसी से डरते नहीं, पुलिस को ये पाकेट में लेकर चलते है, अब तो ये पुलिस पर ही हमले करते है और पुलिस जान बचाने के लिए इधर – उधर भटक रही होती है, क्योंकि इन खुराफातियों का समाज में रह रहे बड़े-बड़े, स्वयं को संभ्रात कहलानेवाले लोगों का वरदहस्त प्राप्त है, कमाल है कि यहीं दंगे भी भड़काते है, और यहीं दंगा को शांत कराने में, सांप्रदायिक सद्भाव के लिए निकाले जानेवाले जुलूसों में बढ़-चढ़कर भाग भी लेते है, यानी दोनों तरफ से ये मलाई चाभ रहे है।
जमशेदपुर की घटना तो पूर्णतः राजनीतिक और एक समुदाय द्वारा प्रायोजित है, हजारीबाग में जिस प्रकार से एक बस पर हमला किया गया और कल देर रात जिस प्रकार रांची के बड़गाई में बारात पर हमला किया गया, वह साफ बताता है कि इन खुराफातियों ने अपना काम बहुत ही अच्छे ढंग से कर दिया है।
उसका उदाहरण है कल रांची के बडगाई बस्ती में एक बारात पर हुआ हमला। बताया जाता है कि फेसबुक वाल पर, आपत्तिजनक पोस्ट डाले जाने के कारण यह घटना घटी। मेरा सवाल है कि फेसबुक पर जिसने गलत किया, उसको दंडित करोगे, या जिसका फेसबुक से कोई लेना देना नहीं, उन बारातियों पर हमला करोगे, अगर किसी ने फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट डाली तो उसके लिए पुलिस में अपनी आपत्ति दर्ज कराओगे या स्वयं कानून हाथ में ले लोगे। दरअसल सच्चाई यह है कि फेसबुक तो बहाना है, खुराफातियों का दल, शांतिप्रिय लोगों को बताना चाहता है कि तुम्हारी अब खैर नहीं, तुम जिस तरफ से चलोगे, हम तुम्हे अपनी ताकत का ऐहसास करायेंगे। बस बात इतनी सी है।
खुराफातियों ने अपना काम कर दिया है और वे डायरेक्ट राज्य सरकार को चुनौती दे रहे है।
मैं कहूंगा, राज्य सरकार से, रघुवर सरकार से, थोड़ा अपनी शक्ति दिखाइये, किसी की मत सुनिये, बस चाहे वे खुराफाती किसी भी तरफ के क्यों न हो, उन्हें पकड़कर उनकी औकात बताइये। दंगाइयों की फौज कितनी भी विशाल क्यों न हो, उन्हें कानून का मजा चखाइये, फिर देखिये, न तो जमशेदपुर कांड होगा, न हजारीबाग जैसे घटना घटेगी और न रांची के बड़गाई में किसी की हिम्मत होगी कि वह बारात पर हमला करें।
रघुवर जी, बात को समझिये...
गुंडा, गुंडा होता है...
इन खुराफातियों को औकात बताइये...
इन्हें समाज में रहने का कोई हक ही नहीं...
इन्हें इनका उचित स्थान दिलाइये...
फिर देखिये, झारखण्ड कैसे शांत होता है...
इन खुराफातियों ने पूरे झारखण्ड को अशांत करने, बदनाम करने, विकास कार्य को प्रभावित करने का कार्य किया है, हो सकता है कि आपको इस कार्य को सफल बनाने में, राजनीतिक शक्तियां या अपने लोग आपके दुश्मन बन जाये, पर इससे अलग एक कीर्तिमान बनाने का यह समय है, इससे चूकिये मत...
क्योंकि शांतिप्रिय जनता में भय का वातावरण पनप रहा है, वे स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे है, उन्हें सुरक्षित रहने का ऐहसास दिलाना आपका कार्य है, इसमें अपनी भूमिका निभाइये।
नहीं तो, जिस दिन शांतिप्रिय जनता को ये महसूस हो जायेगा कि हम इस सरकार में असुरक्षित है, तो स्थिति भयावह हो जायेगी।
आपकी पुलिस भी जरा सुस्त है, जिसके कारण गुंडे, खुराफाती और असामाजिक तत्व उनसे भी उलझ रहे है, थोड़ा अपनी पुलिस को कहिये कि वे जरा स्वयं को समझे और इन दुष्टों को उनकी औकात बताये।
कानून से बड़ा कोई नहीं होता, कोई भी कानून हाथ में लेगा, उसे दंडित होना पड़ेगा, चाहे कोई भी हो, आशा है, आप जल्द इस पर ठोस निर्णय लेंगे और जल्द ही खुराफातियों का समूह सलाखों के भीतर होगा। ये आपकी अग्नि परीक्षा है, क्या आप इस परीक्षा में उतीर्ण होना चाहेंगे? सवाल जनता की ओर से आया है, आपको इस बार जवाब देना ही होगा...

Tuesday, May 30, 2017

यह अच्छा निर्णय है, इसका स्वागत होना चाहिए...........

यह अच्छा निर्णय है, इसका स्वागत होना चाहिए...
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने योगेश किसलय को प्रेस सलाहकार पद से हटा दिया और योगेश किसलय की जगह अपने राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार को इस पद पर नियुक्त कर दिया, अर्थात् आप कह सकते है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अजय कुमार का जहां पर कतरा, वहीं योगेश किसलय को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
आम तौर पर देखा जाय तो ऐसे पद मुख्यमंत्री अपनी सुविधानुसार बनाते है, रखते है फिर मिटा देते है, पर इससे आम जनता को क्या फायदा होता है? या मुख्यमंत्री को ये लोग कितना सलाह दे पाते है, उसका सबसे सुंदर उदाहरण है, योगेश-अजय प्रकरण।
पूर्व में ज्यादातर राज्यों में मुख्यमंत्री उन लोगों को अपने निकट रखते थे, जो सचमुच विभिन्न विषयों के अच्छे जानकार होते थे, ताकि उसका फायदा वे ले सकें और उससे राज्य की जनता को फायदा पहुंच सके, पर झारखण्ड में ज्यादातर देखा गया कि मुख्यमंत्रियों ने ऐसे लोगों को अपना सलाहकार रखा, जो उनकी समय-समय पर आरती उतारा करें, लाइजनिंग किया करें, अगर एक पंक्ति में कहें तो वह सारा काम उसका करें, जो एक सलाहकार को शोभा नहीं देता।
जरा नमूना देखिये। एक अखबार पढ़ रहा हूं, जिसमें योगेश किसलय का बयान है कि उनके पास कोई काम नहीं था, मन नहीं लग रहा था, इस वजह से उन्होंने इस्तीफा दे दिया, तो मेरा सवाल है कि जब कोई काम नहीं था तो आप दो सालों से वहां कर क्या रहे थे? आपको तो बहुत पहले इस्तीफा दे देना चाहिए था, पर आपने इस्तीफा कब दिया है? जब मुख्यमंत्री ने निर्णय ले लिया कि आपको हटाना है, और आपकी जगह पर अजय कुमार को रखना है, तब आपको ज्ञान प्राप्ति हुआ, और आप इस्तीफा देने का नाटक करने लगे। उदाहरण आइपीआरडी की अधिसूचना है, जो बताता है कि कब आपको हटाने का निर्णय लिया गया।
ऐसे भी योगेश किसलय मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार के रुप में कभी नजर नहीं आये और न उन्होंने इस पद की मर्यादा रखी, जरा इनका फेसबुक देखिये, क्या एक प्रेस एडवाइजर की ऐसी भाषा होती है? अपने विरोधियों के लिए गालियों का प्रयोग, एक समुदाय पर लगातार कड़ी टिप्पणी जो मर्यादा के अनुरुप नहीं और भी ऐसी-ऐसी बातें है, जो बताने के लिए काफी है कि योगेश किसलय ने प्रेस सलाहकार की मर्यादा नहीं रखी, इसलिए मुख्यमंत्री रघुवर दास को तो ये निर्णय लेना ही था।
जरा उदाहरण देखिये-
योगेश किसलय ने फेसबुक पर पाकिस्तान से लौटी उज्मा पर कुछ उलूल-जुलूल बाते लिखी। ये घटना 27 मई की है। जिस पर भाजपा प्रवक्ता प्रवीण प्रभाकर ने इनको करारा जवाब दिया। प्रवीण प्रभाकर ने अपने कमेंटस में कहा कि हल्की बातें करना ठीक नहीं। मुस्लिम समाज के किसी एक या कुछ व्यक्तियों के कारण पूरे समाज को न घसीटें। फेसबुक को सार्थक बहस का माध्यम बनाएं न कि अधकचरी बातों का। इस समाज ने कलाम और अब्दुल हमीद भी दिया है। जब भाजपा प्रवक्ता के अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार के विरुद्ध इस प्रकार के बयान हो, तो भला भाजपा का ही मुख्यमंत्री ऐसे लोगों को क्यों झेलेगा? इसी प्रकार ऐसे कई उदाहरण है, जो बताता है कि इनकी भाषा कैसी है? बहुत सारे युवा इनके बेकार की बातों पर गरमागरम बहस भी कर चुके है, जिन्हें ये बाद में अनफ्रेंड भी कर चुके है।
इन्हें मालूम होना चाहिए कि प्रेस एडवाइजर मुख्यमंत्री का इमेज बिल्डिंग करता है, न कि उसकी इमेज डैमेज करता है, जब प्रेस एडवाइजर की भाषा ही गलत होगी, तब मुख्यमंत्री की इमेज क्या होगी? समझा जा सकता है।
सच्चाई यह है कि इस व्यक्ति ने, न तो अपनी मर्यादा रखी और न ही कोई काम किया, ऐसे में ये व्यक्ति कैसे इतने दिनों तक बिना काम के, वेतन लेता रहा, आश्चर्य है। ये मैं नहीं कह रहा, ये  महोदय स्वयं कह रहे है कि उनके लिए कोई काम नहीं था। सच पूछिये, तो मैं ऐसे जगह पर एक दिन भी न ठहरूं, जहां बिना काम के पैसे लेने पड़े। मैंने स्वयं डेढ़ साल आइपीआरडी में सेवा दी है, कैसा काम किया है, लोग जानते है, मैं अपने काम का ढिंढोरा नहीं पीटता, पर जब कोई चुनौती देगा, तो मैं उसे बताउँगा कि देखों मैंने क्या किया, इसलिए हमें चुनौती देनेवाले संभल जाये।
हां, एक बात जरुर कहूंगा कि योगेश किसलय कनफूंकवा नहीं थे, क्योंकि सीएम रघुवर दास ने कभी इन्हें पसंद ही नहीं किया और न अपने आस-पास इन्हें फटकने दिया, इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये कनफूंकवा नहीं है, बल्कि अभी तक मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कनफूंकवों को उनकी औकात नहीं बताई है, जिस दिन कनफूंकवों की वे औकात बताना शुरु करेंगे और योग्य, ईमानदार व्यक्ति को सम्मान देना शुरु करेंगे, निश्चय ही ये उनके लिए भी और झारखण्ड राज्य के लिए भी शुभ संकेत होगा।

Friday, May 26, 2017

सचिन, सचिन................

सचिन, सचिन.....
26 मई, आज पूरे देश में विश्व के महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर को समर्पित एक फिल्म रिलीज हुई है, फिल्म का नाम है – सचिन ए बिलियन ड्रीम्स।
हमारे विचार से हर परिवार को यह फिल्म अपने बच्चों के साथ देखने चाहिए, क्योंकि बहुत दिनों के बाद ऐसी फिल्मे देखने को मिलती है, जिससे बच्चों को एक नई दिशा मिलती है।
फिल्म में क्या है? और फिल्म में क्या नहीं है? वो हर चीजे हैं, जो आप सचिन के बारे में जानना चाहते है।
जरा देखिये, सचिन तेंदुलकर ने क्या कहा, अपने पिता के बारे में, सचिन का कहना है कि उनके पिता ने कहा था कि जो तुम बनना चाहते हो, बनो, पर उससे ज्यादा जरुरी है कि तुम एक अच्छे इंसान बनो।
सचिन तेंदुलकर के शब्दों में, जब वे फील्ड में राष्ट्र गान गा रहे होते है, तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है, गर्व महसूस होता है, रोंगटे खड़े हो जाते है, पर मैंने सिनेमा हाल में देखा कि जब फिल्म प्रारंभ होने के पूर्व राष्ट्र गान प्रारंभ हुआ तो कई लोग ऐसे भी थे, जो खड़े तक नहीं हुए, क्यों खड़े नहीं हुए?, मैं इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहता, क्योंकि कुछ लोग जन्मजात लंठ होते है, उन्हें आप सुधार नहीं सकते।
देशभक्ति सीखना हो, तो सचिन तेंदुलकर से सीखिये...
इंसानियत सीखनी है, तो सचिन तेंदुलकर से सीखिये...
एक स्पोर्टसमैन कैसा होना चाहिए, तो उसका सबसे सुंदर उदाहरण है – सचिन तेंदुलकर।
खेल के प्रति ईमानदारी देखनी है, तो उसके सबसे सुंदर उदाहरण – सचिन तेंदुलकर।
देश में एकता और अखंडता के पर्याय है – सचिन तेंदुलकर।
पर अफसोस, यह फिल्म राज्य सरकार द्वारा करमुक्त नहीं हुई है। भाई करमुक्त करने का क्या पैमाना है? ये राज्य सरकार ही जाने।
पर मेरा मानना है कि राज्य सरकार को यह फिल्म बिना किसी हाय तौबा के करमुक्त कर देना चाहिए, ताकि लोग यह फिल्म आराम से देख सके, यहीं नहीं इस फिल्म को हर स्कूल व कॉलेज में दिखाया जाना चाहिए ताकि युवा समझ सकें कि देश उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है।
एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे सचिन अपनी ईमानदारी, खेल के प्रति निष्ठा, तथा देशभक्ति के कारण पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गये। वे भारत रत्न से सम्मानित हुए।
इस देश को कपिलदेव और धौनी के नेतृत्व में विश्व कप मिला। दोनो बेहतर इंसान है, पर इसमें कोई दो मत नहीं कि सचिन इन दोनों से भी बेहतर है।
सचिन तेंदुलकर को भारतीयों से बहुत प्यार मिला है, पर सच्चाई ये भी है कि कई बार इन्हें अपमान भी झेलने पड़े, उसके बावजूद एक अच्छे इंसान के रुप में सचिन ने जो प्रतिष्ठा पाई है, उसकी प्रशंसा करनी होगी।
बधाई, फिल्म निर्माताओं, फिल्म में शामिल कलाकारों आपने बहुत ही ईमानदारी से सचिन की छवि, भारतीय जनमानस में पेश की। मराठी और अंग्रेजी शब्दों का हिन्दी रुपान्तरण बहुत ही बेहतरीन ढंग से किया। सचिन की पाकिस्तान यात्रा और अब्दुल कादिर की बॉलिंग विश्लेषण खराब करना, आस्ट्रेलिया को बुलाकर खेलने की साहस करना और भारत को प्रतिष्ठित करना, उस वक्त जब भारत फार्म में नहीं था, ये फैसला सिर्फ सचिन ही ले सकते है, दूसरा कोई नहीं। पिता के निधन का समाचार सुनने के बाद भी विचलित न होते हुए देश के लिए, देश की ओर से क्रिकेट खेलने का फैसला लेना, सचमुच प्रशंसनीय ढंग से उसका फिल्मांकण कर, आप सब ने बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभाई। एक बार फिर आप सब को बधाई।

Thursday, May 25, 2017

रघुवर दास का आम जनता के बीच अलोकप्रिय होने के प्रमुख कारण...

झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का आम जनता के बीच अलोकप्रिय होने के प्रमुख कारण...
1. राज्य में कनफूंकवों के शासन की शुरुआत।
2. रघुवर शासन में लड़कियों और महिलाओं पर अत्याचार का बढ़ना, स्वयं जहां मुख्यमंत्री जन संवाद केन्द्र चलता है, वहां की लड़कियों ने राज्य महिला आयोग को पत्र लिखा कि यहां कार्यरत महिला संवादकर्मियों के साथ बराबर दुर्व्यवहार होता है। इन संवादकर्मियों को न्याय दिलाने के बजाय, इस पूरे मामले को ही मुख्यमंत्री जन संवाद केन्द्र चलानेवाले लोगों ने, मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ मिलकर उन लड़कियों का आवाज सदा के लिए दबा दिया। यहां तक कि राज्य महिला आयोग ने उन लड़कियों के द्वारा भेजे गये पत्र का संज्ञान तक नहीं लिया। यहीं नहीं ये लड़कियां सीएमओ तक गयी, सब ने कहां न्याय मिलेगा, पर न्याय तो दूर, उन लड़कियों की आवाज ही सदा के लिए दबा दी गयी।
3. एक पीड़ित पिता जब मुख्यमंत्री रघुवर दास से मिला तब मुख्यमंत्री ने उसे भरी सभा में बेईज्जत कर दिया, इसका फूटेज आज भी बहुत लोगों के पास है, जिसे जब चाहे देखा जा सकता है।
4. अयोग्यों और बेवकूफों को सम्मान और योग्य तथा विद्वानों को अपमान करने की परंपरा की शुरुआत।
5. आम जनता की बात को दरकिनार कर जबर्दस्ती सीएनटी-एसपीटी कानून को जमीन पर उतारने की कोशिश।
6. निकम्मे अफसरों पर नकेल नहीं कसना और छोटे-छोटे कर्मचारियों पर गाज गिराने की शुरुआत।
7. झारखण्ड लोक सेवा आयोग में भ्रष्टाचार चरम पर।
8. स्पष्ट नीति का अभाव, कई नीतियां बनी पर जमीन पर उतराने में नाकाम।
9. नक्सलियों को महिमामंडन करने की परंपरा की शुरुआत।
10.  डोभा निर्माण और वन लगाओं अभियान में बड़े पैमाने पर लूट।
11.  ठेकेदारों, अभियंताओं को लूट की छूट और आम जनता को अपमानित करने का काम प्रारंभ।
12.  आम जनता के प्रति मुख्यमंत्री रघुवर दास का नजरिया ठीक नहीं होना। जब सामान्य जनता इनसे मिलने की कोशिश करती है तो ये उससे इस प्रकार बाते करते  है, ऐसा इनका बॉडी लेग्वेंज होता है कि उनसे बात करनेवाला सामान्य नागरिक खुद को अपमानित महसूस करता है।
13.  भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ मुख्यमंत्री रघुवर दास का रवैया ठीक नहीं होना। स्थिति ऐसी है कि कोई भी भाजपा कार्यकर्ता आज की स्थिति में रघुवर दास को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है।
14.  संघ के स्वयंसेवकों से बढ़ती दूरियां। संघ के बड़े अधिकारियों ने मुख्यमंत्री की अक्षमता और स्वयंसेवकों के प्रति इनके द्वारा उठाये जा रहे कठोर रवैये की सूचना नागपुर और दिल्ली तक पहुंचाई।
15.  अपने विरोधियों के साथ दमनात्मक रवैया, तथा विपक्षी दलों के प्रमुख और शीर्षस्थ नेताओं को अपमानित करना।
16.  परिवारवाद को बढ़ावा देना।
17.  आत्मप्रशंसा के लिए अयोग्य कंपनियों पर करोड़ों लूटाना, उन कंपनियों पर जो राज्य के एक मंत्री अमर कुमार बाउरी को अमर कुमारी बना देता है, जो राज्य के नक्शे के साथ खिलवाड़ कर देता है और उस पर एक्शन तक नहीं लिया जाता, बल्कि उसे और बढ़ावा दिया जाता है।
18.  राज्य में आधारभूत संरचना का बुरा हाल। पूरे राज्य में अभूतपूर्व बिजली संकट, पेयजल संकट और सड़कों का बुरा हाल।
19.  झूठ बोलने की कला में माहिर। बोकारो के एक दो पंचायत को कैशलेस बनाने की घोषणा कर देना और बाद में पता चलता है कि वह पंचायत तो कैशलेस हुआ ही नहीं है।
20.  स्वच्छता अभियान की हवा निकल जाना।
21.  मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर करोड़ों का खेल करना और उसका फायदा झारखण्ड को न के बराबर मिलना।
22.  दीपावली के दिन चीनी सामानों का विरोध और बाद में चीन तथा अन्य देशों के व्यापारियों को झारखण्ड बुलाकर उनकी आरती उतारने की शुरुआत।
23.  आत्ममुग्धता में बहने के कारण अच्छे और सही लोगों की बात नहीं सुनना और कनफूंकवों मे रमे रहना।
24.  आरती उतारनेवाले पत्रकारों की जय-जय और राह दिखानेवाले पत्रकारों पर प्राथमिकी और उसे अपमानित करने का कार्य प्रारंभ।

Tuesday, May 23, 2017

कनफूंकवों के इशारे पर...........

कनफूंकवों के इशारे पर हुई प्राथमिकी.....
रांची से प्रकाशित कुछ राष्ट्रीय अखबारों ने मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवों को खुश करने के लिए हाथों में गजरा लगाकर ठुमरी गाया.....
भाजपा नेता ने ही रघुवर को राम बनाया और भाजपा नेता ने ही उस चित्र को मुझे भेजा और भाजपा नेता ने ही कनफूंकवों के इशारे पर मेरे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी, यानी ऐसे चल रहा है, रघुवर शासन और ऐसे चल रही है रघुवर के इशारे पर यहां की पत्रकारिता.....
जी हां, रांची में ऐसे ही पत्रकारिता हो रही है। हिन्दुस्तान अखबार को छोड़कर, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर और प्रभात खबर ने मुझे पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया है, जबकि प्रभात खबर अच्छी तरह जानता है कि उसके अखबार में मेरे कई आलेख पत्रकार के रुप में प्रकाशित हो चुके है, उसके द्वारा संचालित पत्रकारिता संस्थान में, मैं कई बार सेवा भी दे चुका हूं, पटना के दानापुर अनुमंडल से प्रभात खबर को मैंने संवाददाता के रुप में सेवा भी दी है, पर आज उसे रतौंधी हो चुकी है, इस रतौंधी के कारण उसने हमें पत्रकार के रुप में पहचानने से इनकार कर दिया। ये वहीं प्रभात खबर है, जो भारत के कश्मीर को एक नहीं कई बार पाकिस्तान का अंग बता चुका है, राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करता है, उसका गलत चित्र अपने अखबार में प्रकाशित करता है, पर उस प्रभात खबर के खिलाफ एक बार भी राष्ट्रद्रोह का मुकदमा न तो मुख्यमंत्री कराता है और न उसके आस-पास रहनेवाले कनफूंकवें, आखिर वे ऐसा क्यों नहीं करते, ये तो रघुवर और उनके कनफूंकवे ही बतायेंगे।
दैनिक जागरण, यहां भी मैंने मोतिहारी और धनबाद में कार्यालय प्रमुख के रुप में सेवा दी है, पर ये हमारे लिए शख्स का प्रयोग कर रहा है, ये ऐसा क्यों कर रहा है, वह मैं अच्छी तरह जानता हूं, यहां काम कर रहे एक शख्स को हमे देखते ही मिर्ची लग जाती है, इसलिए उसे एक छोटा सा मौका मिला, खूब जमकर अपनी भड़ास निकाल ली, ऐसे उसकी हिम्मत नहीं कि वो हमें दोषी ठहरा दें, पर अखबार में भड़ास अगर निकल जाता है, तो क्या गलत है?
दैनिक भास्कर तो नया – नया अखबार है, उसमें काम करनेवाले कई लोग हमारे फेसबुक फ्रेंड है, वहाटस ग्रुप में भी है, पर इसने भी मर्यादा को ताड़-ताड़ कर दिया, यानी इसके भी नजर में मैं पत्रकार नहीं हूं।
आखिर पत्रकार होता क्या है?
क्या जो मुख्यमंत्री के आगे नाचते हुए ठूमरी गाये, वो पत्रकार है।
क्या पत्रकार वो है, जो मुख्यमंत्री और उनके कनफूंकवों के आगे अपनी कलम बेच दे।
अरे पत्रकार तो वह होता है, जो अपनी जमीर किसी भी हालत में न बेचे।
इन अखबारों ने प्राथमिकी देखी और बस न्यूज लिख दिया, जबकि इन लोगों के पास हमारे मोबाइल नंबर है, पर इन लोगों ने पत्रकारिता की एथिक्स को ही मटियामेट कर दिया। यानी बेशर्मी की सारी हदें, पार कर दी, पर शायद इन्हें नहीं पता कि आज उनकी सारी हेकड़ी, सारी अकड़ सोशल साइट्स ने निकाल दी है।
इनकी वश चले तो ये हमें सूली पर चढ़ा दे, पर इन्हें नहीं पता कि मैं जब भी कुछ लिखता हूं तो उसका आधार होता है. और वह आधार मेरे पास है।
कौन ये चित्र बनाया,
किसने पेश किया,
किसने वायरल किया,
जवाब मैं दूंगा,
और जब मैं जवाब दूंगा तो सबकी फटेगी...
फटेगी उन कनफूंकवो की भी
और
फटेगी मुख्यमंत्री और कनफूंकवों के आगे ठूमरी गानेवाले उन तथाकथित अखबारों की भी।
और अब बात धार्मिक भावना की...
ये धार्मिक भावना तब नहीं भड़कती, जब मुख्यमंत्री खूलेआम श्रीरामचरितमानस की चौपाईयों से स्वयं को जोड़ता है...
ये धार्मिक भावना तब नहीं भड़कती, जब मुख्यमंत्री स्वयं को रघुकुल यानी भगवान राम के कुल से स्वयं को जोड़ता है...
ये धार्मिक भावना तब नहीं भड़कती, जब गोस्वामी तुलसीदास की रचना का इस्तेमाल एक मुख्यमंत्री स्वयं के लिए करता है, और संविधान के प्रस्तावना में उद्धृत धर्मनिरपेक्ष भावना का अनादर करता है।
सबूत आपके सामने है, जरा देखिये, पूरे रांची में कैसे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने श्रीरामचरितमानस की चौपाईयों और धर्मनिरपेक्षता की धज्जियां उड़ा दी...
आश्चर्य इस बात की है कि एक मुख्यमंत्री और उसका तबका खूलेआम धार्मिक भावना की धज्जियां उड़ा रहा है, पर उसके खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं होती, और एक व्यक्ति सत्य लिखता है, सत्य को प्रतिष्ठित करता है, तो ये मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवे तथा इनके इशारे पर ठूमरी गानेवाला कुछ अखबारों का समूह एक ईमानदार व्यक्ति को ही कठघरे में रख देता है।
अरे मैं चुनौती देता हूं कि इस पूरे मामले की जांच करो, पर तुम जांच नहीं करा पाओगे, क्योंकि फंसेगा और कोई नहीं, वहीं फंसेगा जो ज्यादा अभी काबिल बन रहा है, क्योंकि मेरे पास पक्के सबूत है कि किस भाजपा नेता ने रघुवर दास का राम के रुप में चित्र बनाया और किसने वायरल किया, और इस पर किसने, किससे क्या संवाद किया।
है हिम्मत तो मैं तूम्हे चुनौती देता हूं, इस चुनौती को स्वीकार करो।
और
धमकी किसे देते हो, मूर्खों,
मैं कोई बहुत बड़ा तोप थोड़े ही हूं,
अभी भी साधारण तरीके से एक किराये के घर में रहता हूं, आ जाओ, हमें खत्म करा दो।
तुम्हे किसने रोका है,
जागीर तुम्हारी,
शासन तुम्हारा
कनफूंकवे तुम्हारे
और ठुमरी गानेवाले अखबार तुम्हारा
फिर दिक्कत किस बात की....

Thursday, May 18, 2017

झारखण्ड रघुवर के हाथों असुरक्षित............

आज राज्य के सभी समाचार पत्रों में मुख्यमंत्री रघुवर दास का भारी-भरकम विज्ञापन छपा हैं। मात्र 3 माह के भीतर, 20+ परियोजनाएं, शिलान्यास को तैयार। 21000 से अधिक नौकरियों के सृजन की क्षमता। 8 क्षेत्रों में साझेदारी, यानी एक बार फिर राज्य की जनता की आंखों में धूल झोंकने की तैयारी।
शायद कनफूंकवों ने राज्य की जनता को निरा बेवकूफ समझ रखा है कि वे जो मुख्यमंत्री रघुवर दास से बोलवायेंगे, जनता मान लेगी। हमें लगता है कि जो ऐसा सोच रहे हैं, वे मुगालते में है।
• पहली बात, एमओयू और शिलान्यास में कोई फर्क नहीं होता। जैसे एमओयू हो गया तो वो काम हो ही जायेगा, इसकी अनिश्चितता बरकरार रहती है, ठीक उसी प्रकार शिलान्यास होने पर काम हो ही जायेगा, इसकी भी अनिश्चितता बरकरार रहती है। उदाहरणस्वरुप रघुवर दास से पूछिये कि जब वे बाबूलाल मरांडी सरकार में मंत्री थे, तो उसी वक्त भाजपा के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने सुकुरहुट्टू में नई राजधानी बनाने के लिए एक शिलान्यास किया था, क्या रघुवर दास बता सकते है कि वो राजधानी वहां बनी है या नहीं बनी। अरे छोड़िये, कम से कम वो पत्थर ही लाकर दिखा दें, जिस पर शिलान्यास किया गया। हम मान लेंगे कि रघुवर की सारी योजनाएं सफल हो गयी या हो जायेंगी।
• दूसरी बात, व्यवसायियों को जमीन दिलाने का काम अब मुख्य सचिव का रह गया है क्या? मैं तो देख रहा हूं कि व्यवसायियों को जमीन दिलाने का काम अब सिर्फ मुख्य सचिव का रह गया है, क्योंकि वहीं आजकल जमीन देखने का काम कर रही है, यानी जो काम हलका कर्मचारी, सर्किल इंस्पेक्टर, अंचलाधिकारी, भूमिसुधार उप समाहर्ता, उपायुक्त, राजस्व सचिव का है, वह काम अकेले मुख्य सचिव देख रही है, यानी राज्य में सारा सिस्टम फेल।
• तीसरी बात, आज जो खेलगांव में कार्यक्रम रखा गया, जिसमें कहा जा रहा है सरकार के पिछलग्गूओं द्वारा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खेलगांव से झारखण्ड के नवनिर्माण की नींव रखी तो ये बतायें कि इस प्रकार के शिलान्यासों को कराने के लिए व्यवसायियों ने इनको आमंत्रित किया था क्या? या खुद सरकार अपने विरोधियों को बताना चाहती है कि हम बहुत अच्छा कर रहे है, गर ऐसा ही है तो यह राज्य के लिए दुर्भाग्य की बात है, न की सराहनीय।
• सच्चाई यह है कि आज भी गोड्डा में अदानी परिवार को पावर प्लांट बनाने में पसीने छूट रहे है, ये अलग बात है कि एक अखबार ने अदानी को मजबूती प्रदान करने के लिए उसके पक्ष में समाचार छाप दिये है।
• आज भी रांची में सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल चलाने के लिए कोई तैयार नहीं है, जबकि रांची के अलबर्ट एक्का चौक पर ढांचा बनकर तैयार है।
• जो भी कंपनी का आज नाम दिया जा रहा है, वो सिर्फ राज्य सरकार अपना लाज बचाने के लिए तथा विरोधियों को जवाब देने के लिए ऐसा कर रही है, क्योंकि सच्चाई सब को पता है।
आजकल जो विभिन्न चौक चौराहों पर रघुकुल रीति वाली जो होर्डिंग्स लगाई गयी है, उससे कई लोग अभी से ही कांप गये है, क्योंकि उनका रघुवर दास का रघुकुल जमशेदपुर में किस प्रकार आतंक फैला रहा है, वह किसी से छुपा नहीं।
हां एक बात की दाद दुंगा, कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहा करते थे कि जब वे काला धन भारत लायेंगे तो प्रत्येक भारतीयों के खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख रुपये स्वयं आ जायेंगे, जिसका शुभारंभ राज्य सरकार द्वारा कुंदन पाहन जैसे नक्सलियों के खाते में पन्द्रह लाख रुपये देकर कर दिया गया।
यानी समझते रहिये कि झारखण्ड, रघुवर दास के हाथों में कितना सुरक्षित है?

Wednesday, May 17, 2017

“रघुकुल रीति सदा चलि आई” पर दाग मत लगाइये............

रघुवर जी, स्वयं को बदलिये...
आज जिस भाषा का आप प्रयोग कर रहे है, वो कतई ठीक नहीं, जनता को चिढ़ाइये नहीं, प्यार करिये।
माननीय मुख्यमंत्री जी, श्रीरामचरितमानस की सुंदर चौपाई “रघुकुल रीति सदा चलि आई” पर दाग मत लगाइये, इसे विवादित मत बनाइये। आप न तो रघुकुल में जन्म लिये है और न राम है। सत्ता संभालने के तुरंत बाद, जमशेदपुर के एक कार्यक्रम में अपने नाम का आपने सुंदर भाव प्रकट किया था। आपने कहा था रघुवर दास यानी रघुवर का दास अर्थात् हनुमान, पर शायद आपको मालूम नहीं कि हनुमान को हनुमान बनानेवाले जाम्बवन्त थे, पर आपके आसपास कोई जाम्बवन्त ही नहीं, जो आपको हनुमान बना सकें।
सच पूछिये, तो आप जाम्बवन्त की जगह कनफूंकवों से घिरे है, ऐसे में आप झारखण्ड का क्या हाल कर रहे है? वो किसी से छुपा नहीं। स्थिति ऐसी है कि आप जनता के बीच इतने अलोकप्रिय है कि कोई जनता आपको अब एक मिनट भी झेलने को तैयार नहीं, आज स्थिति यह है कि भाजपा नेताओं में अर्जुन मुंडा लोकप्रियता में शीर्ष पर है।
सीएनटी-एसपीटी पर आपका बयान, जनता के दिलों को चीर रहा है, आज तक भारत में कोई ऐसा नेता नहीं हुआ, जो जनता की बातों को तवज्जों न दें। आप शायद भूल रहे है कि इस देश में राजतंत्र नहीं लोकतंत्र है। आपको जनता ने आधारभूत संरचना को ठीक करने के लिए, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क आदि की बेहतरी के लिए चुना था, पर आप तो राजा बन बैठे और जनता के उपर मूंग दलने लगे।
आज नीतीश कुमार की सभा में आयी भीड़ नीतीश की लोकप्रियता के कारण नहीं आयी थी, कुछ महीने पहले अरविन्द केजरीवाल भी रांची आये थे, वहां भी भीड़ जुटी थी, वो अरविन्द केजरीवाल की लोकप्रियता के कारण नहीं जुटी थी, बल्कि आपकी अदूरदर्शिता और कनफूंकवों की मदद से चला रहे शासन, साथ ही आपकी अलोकप्रियता के कारण उनकी सभाओं में भीड़ जुटी थी।
इन दिनों आपके फोटो के साथ, जो एड फैक्टर ने विज्ञापन बनाया है, जो चौक-चौराहों पर लगे है, वो जनता को चिढ़ा रहा है, जनता इस विज्ञापन रुपी होर्डिंग को देख कर भड़क रही है, पर कनफूंकवे आपको बता रहे है कि जनता खुश है, ऐसा नहीं है।
अभी भी वक्त है, संभलिये, स्वयं को बदलिये, बहुत अच्छा लगा था, उस वक्त जब जनता के बीच आप जा रहे थे, उस वक्त माकपा की वृंदा करात, कांग्रेस के सुखदेव भगत और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने भी आपकी प्रशंसा की थी, पर इधर आप इस प्रकार स्वयं को जनता के समक्ष पेश कर रहे है, जैसे लगता है कि जनता आपकी दया पर निर्भर है, पता नहीं, कैसे-कैसे लोगों को आप अपने पास बैठाकर गलत निर्णय ले रहे है, जिससे जनता स्वयं को ठगी महसूस कर रही है।

Saturday, May 13, 2017

जनता की नजरों में मुख्यमंत्री रघुवर दास............

झारखण्ड की जनता की नजर में मुख्यमंत्री रघुवर दास की कोई इज्जत नहीं। कल की ही बात है, मैं रांची मेन रोड स्थित सुप्रसिद्ध व्यवसायी एवं उद्योगपति एक जैन परिवार से मिला। पूरा परिवार भाजपा एवं संघ से जुड़ा हुआ और जब मैंने उनसे राज्य और सरकार के बारे में खुलकर बात की, तो मैं सुनकर हैरान रह गया। वे इस बात को लेकर दुखी थे कि मुख्यमंत्री रघुवर दास को बात करने की तमीज तक नहीं। उनका कहना था कि मुख्यमंत्री रघुवर दास को कहा क्या बोलना है? कैसे बोलना है? कैसे अपनी बात रखनी है? इसका ज्ञान ही नहीं। ऐसे में यह राज्य उनके नेतृत्व में प्रगति करेगा, उन्हें ऐसा नहीं लगता। ढाई साल बीतने को आये, ढाई साल शेष है, जब आपने ढाई साल में कुछ काम नहीं किया तो मैं ये कैसे मान लूं कि आनेवाला ढाई साल ये कुछ अच्छा कर लेने में कामयाब हो जायेंगे। वे तो इतने दुखी थे कि वे ये भी कहने लगे कि यार काम करो या न करो, आपको बात करने में क्या परेशानी है? बात में रुखापन क्यों? आप किसी को इज्जत क्यों नहीं देते?
ठीक यहीं बात चर्च रोड स्थित एक व्यवसायी और गोस्सनर कॉलेज में पढ़ाई कर रहे एक युवा छात्र ने कहीं कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के लक्षण कुछ ठीक नहीं दीख रहे, अगली बार जब भी कभी विधानसभा के चुनाव होंगे, इस सरकार के जाने की पूरी गारंटी है, पर पुनः आने की संभावना दूर – दूर तक नहीं दीखती।
चुटिया में भाजपा कार्यकर्ताओं की एक बड़ी टीम बताती है कि आनेवाले लोकसभा चुनाव में वे मोदी जी के लिए काम करेंगे पर विधानसभा चुनाव में वे इस राज्य सरकार को हटाने के लिए जोर लगायेंगे, क्योंकि जनता को जवाब मुख्यमंत्री को नहीं देना होता है, कार्यकर्ताओं को देना होता है, इस मुख्यमंत्री के व्यवहार ने उन कार्यकर्ताओं को कहीं का नहीं छोड़ा है, इनसे कहीं अच्छे मुख्यमंत्री के रुप में अर्जुन मुंडा थे, जिनका कार्यकर्ताओं पर ध्यान रहता था, पर ये तो किसी को सुनते ही नहीं, पता नहीं कौन कनफूंकवा इनकी कान फूंक देता है और उसी के फूंक पर ये दीवाने होकर वे काम कर रहे है, जिससे पार्टी जनता से दूर होती चली गयी।

Monday, May 8, 2017

यहां तो सीएम और उनके उच्चाधिकारी टेंडर मैनेज कराते है, ये भ्रष्टाचार क्या रोकेंगे? – बाबू लाल मरांडी

बाबू लाल मरांडी यानी झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री, जिन्हें कभी झारखण्ड की राजनीति में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का वरद हस्त प्राप्त था। आज भी जो लोग राजनीति में शुचिता व शुद्धता की बात करते है, वे बाबू लाल मरांडी को पसंद करते है। हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह बयान की झारखण्ड के मुख्यमंत्री पद के लिए बाबू लाल मरांडी ही उपयुक्त है, ये बात बताती है कि आज भी विपक्षी खेमे में बाबू लाल मरांडी का व्यक्तित्व और उनका जादू बरकरार है।
याद करिये बाबू लाल मरांडी के मुख्यमंत्रित्व काल में झारखण्ड का विकास का पहिया कितनी तीव्र गति से चल रहा था, शायद यहीं कारण था कि बाबू लाल मरांडी उस वक्त देश के सर्वश्रेष्ठ तीन मुख्यमंत्रियों में बहुत जल्द शामिल हो गये थे।
उन्ही के शासनकाल में...
1.  स्कूली लड़कियों को साइकिल देने की योजना लागू हुई थी।
2.  उन्हीं के समय में बीटीबीसी की पुस्तकों की जगह झारखण्ड में एनसीईआरटी की पुस्तकों ने स्थान ले लिया था। लक्ष्य था झारखण्ड के बच्चों को राष्ट्रीय स्तर तक के पाठ्यक्रम से परिचय कराना।
3.  आधारभूत संरचनाओं को ठीक करने का काम, इन्हीं के शासनकाल में हुआ। जो सड़कें पूर्व में सिर्फ कागजों पर बन जाया करती थी, सहीं मायनों में सड़कों का रुप ले सकी थी, लोग कहने लगे थे कि हम झारखण्ड पहुंच गये है, वह भी तब जब लोग बिहार या ओड़िशा से सड़क मार्ग से झारखण्ड में प्रवेश करते थे, आज की क्या स्थिति है?  सभी को मालूम है।
4.  आदिवासी छात्र-छात्राओं के लिए होस्टल और खेलकूद में रुचि रखनेवाले छात्र-छात्राओं को विशेष व्यवस्था के साथ हॉस्टल खुलवाने का काम किया जाने लगा।
5.  लघु उद्योग जो दम तोड़ रहे थे, उन्हें भी ठीक किया जाने लगा।
6.  उग्रवाद कारण और निवारण विषयक संगोष्ठी कराकर, उग्रवाद के सफाये के लिए विशेष अभियान चलाने की कोशिश की गयी।
7.  आदिवासी इलाकों में विशेष ऋण देने, 90 प्रतिशत अनुदान पर बस उपलब्ध कराने की व्यवस्था करायी गयी ताकि आदिवासी समुदाय अपने पैरों पर खड़े हो सके।
8.  गांव – गांव में छोटे-छोटे पुल-पुलियों को ठीक किया जाने लगा।
9.  भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए निगरानी ब्यूरो को चुस्त-दुरुस्त किया गया। इन्हीं के समय में भ्रष्ट अधिकारियों के समूह में हड़कम्प मचा, कई जेल भेजे गये।
पर देखते  ही देखते बाबू लाल मरांडी की बढ़ती लोकप्रियता ने उस वक्त के नीतीश कुमार की पार्टी में रह रहे लाल चंद महतो, जलेश्वर महतो, बच्चा सिंह, रमेश सिंह मुंडा, मधु सिंह आदि मंत्रियों की नींद उड़ा दी। इन सभी ने ऐसा कुचक्र रचा, जिसके शिकार बाबू लाल मरांडी हो गये, हालांकि उस वक्त भी नीतीश कुमार और देश के उच्च स्तर के राजनीतिज्ञों ने बाबू लाल मरांडी का साथ नहीं छोड़ा। इन नेताओं का दबाव था कि बाबू लाल मरांडी अपने पद से इस्तीफा न दे, पर समय की परिस्थितियों को भांपते हुए बाबू लाल मरांडी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
जो लोग उन्हें जानते है, आज भी उन्हें सम्मान करते है, इधर वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सत्ता संभालने के बाद, जो कुछ ठोस निर्णय लिया था, उससे लगा था कि रघुवर दास, बाबू लाल मरांडी का रिकार्ड तोड़ देंगे, पर इधर कुछ छः सात महीनों से वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जो निर्णय लिया है, उससे वे राज्य की जनता ही नहीं, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं के नजरों से भी गिर गये है। हाल ही में धनबाद में भाजपा विधायक ढुलू महतो के घर वैवाहिक कार्यक्रम में शामिल होने गये मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भाजपा कार्यकर्ताओं से दूरियां बनाई, उससे भाजपा कार्यकर्ताओं में गहरा आक्रोश है, जिसे वहां के वरिष्ठ पत्रकारों ने अपने अखबारों और सोशल साइट पर स्थान भी दिया।
अब से दो दिन पूर्व ही हमारी मुलाकात बाबू लाल मरांडी से हुई। उनसे राज्य के राजनीतिक हालात, जनता के हालात और विभिन्न मुद्दों पर बातचीत हुई। उन्होंने हमसे खुलकर हर उन बिन्दुओं पर अपना पक्ष रखा, जो बताता है कि राज्य के वर्तमान हालात ठीक नहीं है।
कृष्ण बिहारी मिश्र – राज्य की जनता रघुवर सरकार से बहुत ही नाराज है, अभी चुनाव हो जाये तो रघुवर सरकार की बुरी तरह हार तय है, आप की पार्टी इस वक्त क्या कर रही है? क्या वर्तमान राजनीतिक हालात को देखते हुए कुछ आपने प्लान बनायी?
बाबू लाल मरांडी – इन्हीं हालातों को देखते हुए, हमने अपनी पार्टी को मजबूत करने का काम शुरु किया है, चूंकि झारखण्ड की स्थिति एक समान नहीं है, अलग – अलग क्षेत्रों में अलग – अलग लोगों की बाहुल्यता है, उनकी परंपराएं – संस्कृतियां अलग – अलग है, कहीं कोई और पार्टी मजबूत है तो कहीं और, ऐसे में समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मिलकर एकरुपता लाने की हम कोशिश कर रहे है। हम एक ऐसा एजेंडा तैयार कर रहे है, जिसमें एक समानता हो। इस कार्य में सफलता मिल रही है। सभी पार्टियां इस बात को स्वीकार कर रही है कि भाजपा को शिकस्त देने के लिए एकता आवश्यक है, वोटो का बिखराव न हो, इस पर ज्यादा ध्यान है।
कृष्ण बिहारी मिश्र – राष्ट्रपति चुनाव में किसे समर्थन करेंगे?
बाबू लाल मरांडी – निःसंदेह हम सत्तारुढ़ दल के प्रत्याशी का विरोध करेंगे और विपक्षी दलों के प्रत्याशी का समर्थन करेंगे।
कृष्ण बिहारी मिश्र – रघुवर सरकार को आप कहां-कहां गलत देख रहे है?
बाबू लाल मरांडी – आप स्वयं बताए कि ये सही कहा है?  राज्य में कानून-व्यवस्था नहीं है। गुंडागर्दी चरम पर है। जमशेदपुर में मुख्यमंत्री के परिवार का आंतक है, स्वयं भाजपा के लोग, कार्यकर्ता आंतकित है, उनसे दूर होने लगे है। भ्रष्टाचार चरम पर है, कोई ऐसा विभाग नहीं, जहां बिना घूस के काम हो जाये। हमें याद है कि जब मैं मुख्यमंत्री था तब मैने कहा था कि जब हमें जानकारी मिलती है कि कहीं भ्रष्टाचार हो रहा है तो हमें नींद नहीं आती, जिसे लोग ने बहुत बड़ा मुद्दा बनाया था, पर आज की क्या स्थिति है? यहां तो मुख्यमंत्री के लोग टेंडर मैनेज कराते है।  मुख्यमंत्री और उच्चाधिकारियों का दल इसमें संलिप्त रहता है। पैसे मिले और उधर टेंडर मनमुताबिक लोगों को मिला। ये क्या हो रहा है?  झारखण्ड में। ये कैसा विकास है कि कई साल पहले रांची में एक अस्पताल बन कर तैयार है और वह काम नहीं कर रहा है, कैसी सरकार है यहां,  जो अपने जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा उपलब्ध नहीं करा रही, स्किल डेवलेपमेंट के नाम पर इन सब ने लूट मचा रखी है। सिंचाई का बुरा हाल है, डोभा के नाम पर पैसे की खुली लूट हुई, जनता को क्या मिला?  सरकार बताये कि कहां डोभा है और उस डोभे में कितना पानी है?
कृष्ण बिहारी मिश्र – कहा जाता है कि आपकी पार्टी को प्रदीप यादव ने डूबा दिया, जो भी विधायक पार्टी छोड़े, उन्होंने प्रदीप यादव की निरंकुशता पर अपना ध्यान आकृष्ट कराया?
बाबू लाल मरांडी – ये सफेद झूठ है, जिन्हें जाना है, वे जायेंगे, उन्हें कुछ न कुछ बोलना है, बोलेंगे।
सच्चाई यह है कि भाजपा और भाजपा के लोगों को बाबू लाल मरांडी और उनका दल हमेशा आंखों में खटकता है। वे जानते है कि भाजपा का कोई नुकसान करेगा तो वह है बाबू लाल मरांडी, क्योंकि झारखण्ड में जितनी पार्टियां है, उनके वोट बैंक अलग है, वो भाजपा को प्रभावित नहीं करती, चूंकि हमारी पार्टी जितना मजबूत होगी, उतना ही भाजपा को नुकसान होगा, ये बाते भाजपा के लोग जानते है, इसलिए वे बाबू लाल मरांडी को नुकसान पहुंचाने का कार्य करते है. हाल ही में झाविमो विधायकों को लालच दिखाकर उन्हें तोड़ना और भाजपा में शामिल कराना उसी की एक कड़ी है और मैं इन सबसे न तो घबराता हूं और टूटता हूं, अपना काम करता हूं, जनता सब देख रही है, परिणाम आयेगा।
कृष्ण बिहारी मिश्र – सरकार विकास के लिए लैंड बैंक बनायी है, कहती है कि उनके पास जमीन की कोई कमी नहीं है?
बाबू लाल मरांडी – अगर उनके पास जमीन है तो फिर आदिवासियों के जमीन पर उनकी नजर क्यों गड़ी है?  वे उन जगहों पर अपनी नजर क्यों नहीं गड़ाते, जहां जनसंख्या नहीं है, कौन उन्हें रोक रहा है? सच्चाई यह है कि लैंड बैंक के नाम पर भी सरकार लोगों को धूल झोंक रहीं है, क्योंकि जो लैंड के नाम पर सर्वे हुए है, वे बहुत पहले हुए है, और आज की जो स्थिति है, वह दूसरी है, शायद रघुवर दास और उनके उच्चाधिकारियों को मालूम नहीं।
कृष्ण बिहारी मिश्र – आप जब सत्ता में थे तो ग्रेटर रांची की बात करते थे पर आज सरकार स्मार्ट सिटी की बात कर रही है तो आप उसका विरोध क्यों कर रहे है?
बाबू लाल मरांडी – ग्रेटर रांची और स्मार्ट रांची में आकाश – जमीन का अंतर है। मेरे ग्रेटर रांची में रांची की जनता और झारखण्ड की जनता के बीच अनुकूलता और उसकी उपयोगिता पर बल दिया गया है। हमारे ग्रेटर रांची में कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य आधारभूत संरचनाओं का समावेश है, वह भी जरुरतों को मुताबिक, जबकि स्मार्ट सिटी में ये बातें नहीं दिखती, ये उनलोगों के लिए बनायी जा रही है जो आर्थिक रुप से समृद्ध है, जिन्हें झारखण्ड की समझ नहीं है, इसका विरोध व्यापक स्तर पर होना चाहिए, अभी स्थिति है कि हमारे पास पीने को पानी नहीं है और चल रहे है स्मार्ट सिटी बनाने, ये क्या दिमागी फित्तूर है, हमें समझ में नहीं आ रहा, आज तो रांची के लोगों की जरुरतों को पूरा नहीं कर पा रही सरकार, स्मार्ट सिटी में बसनेवालों का क्या हाल होगा?
कृष्ण बिहारी मिश्र – राज्य सरकार स्थानीय नीति, सीएनटी-एसपीटी नीति लाई है, क्या आपकी सरकार आयेगी तो इसे बदलेंगे?
बाबू लाल मरांडी – निः संदेह बदलेंगे.  हम अपने झारखण्डियों के सपनों के अनुरुप कार्य करेंगे, न कि किसी पूंजीपतियों-उद्योगपतियों के मनोबल बढ़ाने और राज्य की जनता को गर्त में धकलेनेवाले नीतियों पर राज्य की जनता को ले चलेंगे।
कृष्ण बिहारी मिश्र – गोड्डा प्रकरण पर क्या कहेंगे?
बाबू लाल मरांडी – हमारा दृष्टिकोण साफ है, अगर कोई बेईमानी पर उतर जाये तो हम आंदोलन करेंगे।
कृष्ण बिहारी मिश्र – आपके दल से टिकट लेकर जीते लोग, दल बदल लिए, ढाई साल सरकार के होने चले, आखिर आपको न्याय कब मिलेगा?  जब सरकार अपने कार्यकाल पूरे पांच वर्ष पूरा कर लेगी तब?
बाबू लाल मरांडी – जब कोई बेईमानी पर उतर जाये, जब कोई संविधान को मानने से इनकार कर दें, जब अनुसूची 10 में स्पष्ट है कि कोई निर्दलीय भी अगर दल बदल करता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है, तो हम क्या कर सकते है?  हम कह सकते है कि झारखण्ड विधानसभा के विधानसभाध्यक्ष ने मर्यादा तोड़ी है, उन्होंने संविधान के प्रति निष्ठा न रखकर, अपने दल के प्रति निष्ठा रखी, जो सहीं नहीं है। ये तो उन्हें खुद आत्ममंथन करना चाहिए, क्योंकि स्पीकर का पद किसी दल का नहीं होता, वह तो संवैधानिक है।

Saturday, May 6, 2017

बदलता झारखण्ड, विकास की ओर उन्मुख झारखण्ड............

राज्य के सुखी संपन्न आईएएस-आईपीएस, ठेकेदारों, अभियंताओं, दलालों, कनफूंकवों एवं चाटुकारिता करनेवाले लोगों की कथित गरीबी दूर करने के लिए राज्य में अनेक योजनाएं लागू...
बदलता झारखण्ड, विकास की ओर उन्मुख झारखण्ड का नया अध्याय...
कई योजनाओं की शुरूआत...
1. कारपोरेट समृद्धि योजना – इसमें सरकार कारपोरेट जगत को उपर उठाने के लिए जमकर उन्हें लूटने का लाइसेंस देती है, जैसे हाल ही में एक पूर्व में ब्लैक लिस्टेड कंपनी को राज्य सरकार ने अपने ब्रांडिग के लिए बुलाया और उसे मुंहमांगी रकम देकर, झारखण्ड को बर्बाद और कारपोरेट जगत को मालामाल कर रही है, जिससे कारपोरेट जगत राज्य के सीएम की ब्रांडिग की चक्कर में झारखण्ड की असली तस्वीर ही दूसरों के समक्ष गायब कर दे रहा है। स्थिति ऐसी है कि झारखण्ड का मानचित्र बंगाल की खाड़ी में तैरता नजर आता है...
2. मारवाड़ी – पंजाबी संपन्न योजना – इसमें मारवाड़ियों और पंजाबियों को कहा जाता है कि वे झारखण्ड की ऐसी-तैसी कर दें। इन लोगों को कहा जाता है कि वे सड़ी गाड़ियों के सहारे पूरे राज्य में एलइडी चलाएं, वो एलइडी चले या न चले, पर वे समय – समय पर करोड़ों रुपये सरकार से अवश्य लें, इससे पंजाबियों की गरीबी दूर हो रही है। दूसरी ओर जनसंवाद जैसे कार्यक्रम के माध्यम से पूरे राज्य को उल्लू बनाते हुए मारवाड़ियों को संपन्न किया जा रहा है।
3. वैश्य समृद्धि योजना – अगर आप तेली या वैश्य जाति से है, तो राज्य सरकार आपको इसका लाभ देगी।
4. निवेशक बुलाओ, झारखण्ड लूटवाओ योजना – इसमें सरकार देश के अन्य उद्योगपतियों को या विदेशियों को बुलवाकर उनकी आरती उतारती है तथा यहां के नागरिकों की जमीन लूटवाती है तथा यहां के उद्योगपतियों को भीख मांगने पर मजबूर कराती है।
5. आईएएस संपन्न योजना – इस योजना के द्वारा यहां के आइएएस को खुली छुट देती है कि वे अपने बुद्धिहीन होने का विशेष परिचय देते हुए, पूरे अर्थतंत्र को पंगु बना दें ताकि ये राज्य कभी ठीक से खड़ा ही न हो सकें।
6. योजना लूटवाओं योजना – इसमें राज्य सरकार का मुखिया गांव – गांव जाकर, वहां के लोगों के बदहाली को देख, उनके नाम पर विभिन्न योजना बनाकर आईएएस और उनके परिवारों और एनजीओ संस्थाओं के साथ मिलकर योजना की राशि की बजट विधानसभा से पास करवाकर लूटवा देता है और उसमें ये सभी लोग बम बम हो जाते है और राज्य की जनता सदा के लिए भीख मांगने पर मजबूर रहती है।
7. गरीबी बढ़ाओ योजना – इस योजना में राज्य के गरीबों की गरीबी और बढ़ाने पर विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि अगर गरीबी खत्म हो गयी तो फिर योजनाओं की बाढ़ कैसे आयेगी? इसका ख्याल रखा जाता है।
8. मूरख बनाओ योजना – इस योजना में वैसे प्रोफेसरों – लेक्चररों और बुद्धिजीवियों को रखा जाता है, जो गाहे बगाहे टीवी, रेडियो अथवा अखबारों में बेवजह के प्रवचन दे जाते है, और राज्य सरकार को कटघरे में रख देते है, इससे राज्य बहुत तेजी से बढ़ता है और मूरख और मूरख बनाने की कला में पारंगत हो जाते है।
9. मेयर समृद्धि योजना – इस योजना में पार्टी से जूड़े मेयरों की आर्थिक शक्ति और उनकी गुंडागर्दी को और समृद्ध किया जाता है। जैसे हाल ही में धनबाद के मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल का पक्ष लेते हुए, एक ईमानदार आइएएस घोलप को धनबाद से ही आउट करा दिया गया।
10. ले और दे योजना – इसमें राज्य सरकार या उसके मातहत काम करनेवाले विभाग विभिन्न अखबारों और चैनलों, साथ ही विभिन्न संस्थाओं को मुंहमांगी रकम उपलब्ध कराती है, जिसके एवज में ये सारे लोग मुख्यमंत्री या उनके विभिन्न विभागों में कार्य कर रहे वरीय अधिकारियों को पीतल का सामान और सफेद कागज के टूकड़े पर कुछ-कुछ लिखकर दे देते है, जिन्हें सम्मान कहा जाता है।
गुंडागर्दी बढ़े, झारखण्ड लूटे
सत्तारुढ़ दल के नेता, बम बम रहे
आइये मिलकर लूटे, मिलकर अपनी शक्ति का इजहार करे
जब हम हैं, आपके साथ
तो डर किस बात का...
सबका साथ, सिर्फ उनका और उनके लोगों का विकास...

Wednesday, May 3, 2017

मर जवान, मर किसान...........

कभी इसी देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने एक नारा दिया था – जय जवान, जय किसान। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने वैज्ञानिकों की कर्मठता को देखा तो उस नारे में दो शब्द और जोड़े और फिर हुआ – जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, पर आज देश की क्या स्थिति है? न जवान की जय हो रही है, न किसान की जय हो रही है और न ही विज्ञान की जय हो रही है, तब जय किसकी हो रही है...
जाहिर है...
• नेताओं की, उनकी पत्नियों की और उनके बेवकूफ औलादों की।
• उद्योगपतियों की, उनके उदयोगों की तथा उनके नाजायज संपत्तियों की।
• आईएएस व आईपीएस अधिकारियों की, जो जब तक जिंदा रहे, मस्ती से नौकरी किये और फिर बाद में नेताओं के तलवे चाटकर नेतागिरी में पिल पड़े है।
• नीच पत्रकारों के समूहों की, जो अपना जमीर बेचकर इन तीनों की आरती उतारने में लगा है।
आखिर ये कब तक चलेगा?, जाहिर है जब तक देश का युवा, गरीब, चरित्रवानों का समूह इन्हें लूटने का मौका देगा।
जरा स्थिति देखिये...
देश की गरीब जनता की औलादें, कभी आतंकियों के हाथों सरहद पर, तो कभी देश के अंदर नरपिशाचरुपी नक्सलियों के हाथों मारे जा रहे हैं, और सरकार का काम क्या रह गया है? बस कड़ी निंदा करने की, क्योंकि इनके पास ताकत ही नहीं, ताकत आयेगी भी कहां से, इस देश का नेता तो अपनी बेवकूफ औलादों और अपनी पत्नी तथा प्रेमिकाओं के आगे कुछ जानता ही नहीं।
आखिर देश का जवान क्यों शहीद हो रहा है? उसका कारण जानिये...
• क्योंकि देश के लिए मर-मिटनेवालों में कोई नेता, कोई अधिकारी या कोई उद्योगपतियों का बेटा या बेटी शामिल नहीं होता। इन सभी का मानना है कि उनके औलादों का जन्म केवल मस्ती करने के लिए पैदा हुआ हैं।
• जिन गरीबों के बच्चे जवान बनते है, उन्हें मरने के लिए उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाता है, न तो उन्हें बेहतर खाना दिया जाता है, न बेहतर पोशाक और न ही आतंकियों और नरपिशाच रुपी नक्सलियों से लड़ने के लिए बेहतर हथियार उपलब्ध कराये जाते है। ये नेता इतने बेहूदे और कमीने होते है कि देश की रक्षा के लिए खरीदे जानेवाले हथियारों की खरीद में भी कमीशन खाते है।
• नरपिशाचरुपी नक्सलियों और आतंकियों के बचाव के लिए मानवाधिकार के नाम पर साम्यवादियों का दल देश के जवानों को ही कटघरें में खड़ा कर देता है।
जिस देश में बेईमान नेता, बेईमान अधिकारी, बेईमान पूंजीपति और बेईमान-लालची किस्म के पत्रकार होते है, उस देश में देश की रक्षा करनेवाला जवान तिल-तिल मरता हैं।
मैं कहता हूं कि ऐ देश में रहनेवालों गरीबों, वंचितों, भूख से मरनेवालों, क्या देश की सुरक्षा के लिए तुमने ही ठेका ले रखा है? 
मत भेजो, अपने बच्चों को, देश की रक्षा के लिए,  छोड़ दो तुम भी देश को अपने हाल पर, और तुम भी उसी प्रकार जिओ, जैसे तुम्हारा मन करता है, क्यों देश के लिए अपनी औलादों को शहीद करवा रहे हो?
अरे देश के सारे नेता एक ही है, चाहे वह मोदी हो या मनमोहन। सभी एक थैले के चट्टे-बट्टे है, जरा पूछो मोदी से, कि कल जैसे मनमोहन को इसी बात के लिए वह कटघऱे में खड़ा करता था, आज उसकी घिग्घी क्यों बंध गयी है?
पूछो, देश के रक्षा मंत्री अरुण जेटली से कि क्या उसे केवल धन इकट्ठे करने के सिवा, देश की रक्षा कैसे की जाती है? उसको पता है?
कमाल है, देश का रक्षा मंत्रालय प्रभार पर चल रहा है, प्रधानमंत्री मोदी के पास कोई ऐसा आदमी नहीं, जो रक्षा मंत्रालय को संभाल सकें?
देखो, इन नेताओं को अपने लिए पेंशन और हर प्रकार की सुविधा की व्यवस्था कर लिया और आपके बच्चे, जो अर्द्धसैनिक बलों में कार्य कर रहे है, उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया, यहां तक की उसकी पेंशन तक समाप्त कर दी, इन देश के गद्दारों ने। देश को नामर्द बना कर खड़ा कर दिया है, इनलोगों ने।
इसलिए, हम उन सारे लोगों से अपील करते है, खासकर उनसे...
• जो माता-पिता सुलेसन से चमड़े साटकर अपने बच्चों को जवान करते है...
• जो माता-पिता सफाईकर्मी का कार्य करते है...
• जो माता-पिता अट्टालिकाओं में स्वयं को शोषण का शिकार बनाते हुए, अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रहे है...
• जो पंडित दो पैसों के लिए, अपने जजमानों के यहां शंख फूंक रहे है।
• जो गली-कुची में छोटी-छोटी दुकानें खोलकर अपनी जिंदगी जी रहे है...
यानी वे सारे लोग, जो किसी भी जाति के क्यों न हो, पर गरीबी से जिनका नाता है, वे अब अपने बच्चों को सिर्फ मरने के लिए सेना या अर्द्धसैनिक बलों में न भेजे, क्योंकि वर्तमान सरकार हो, या पूर्व की सरकार या कोई भी आनेवाले समय में आनेवाली सरकार हो, सभी ने आपके बच्चों को मारने की तैयारी कर रखी है, ऐसे में, आप अपने बच्चों को अपने साथ रखे, भले गरीब रहेगा, पर कम से कम आंखों के सामने तो रहेगा, किसी नेता, किसी अधिकारी या किसी उदयोगपति के शोषण का शिकार तो नहीं बनेगा, नहीं तो सबसे पहले नेता, अधिकारी और उदयोगपतियों के घर की औलादे भी देश के लिए जवान गंवाने के लिए तैयार रहे, क्या देश की सुरक्षा के लिए जान गंवाने का ठेका, यहां के गरीबों ने ही केवल ले रखा है?

Sunday, April 30, 2017

सुकमा का दर्द...........

पिछले कुछ दिनों से सुकमा चर्चा में है। सुकमा में नरपिशाच रुपी नक्सलियों ने पच्चीस सीआरपीएफ के जवानों की नृशंस हत्या कर दी। इसके पूर्व में भी इन नरपिशाचों ने 12 जवानों की हत्या कर दी थी। इन शहीद हुए जवानों के परिवारों के दर्द पर मरहम लगाने के लिए सुप्रसिद्ध अभिनेता अक्षय कुमार और सुप्रसिद्ध क्रिकेटर गौतम गंभीर ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये है, जबकि अन्य धन्नासेठों के लिए सुकमा जैसी घटनाएं कोई महत्वपूर्ण नहीं रखती, वे आज भी अपने धनों की सुरक्षा के लिए तथा अपने नालायक बेटे-बेटियों के लिए धनसंग्रह पर ज्यादा ध्यान दे रहे है।
इधर कश्मीर में आतंकियों और इधर देश के अंदर नक्सली रुपी नरपिशाचों से लड़ने में देश का जवान शहीद हो रहा है और दूसरी ओर इन आतंकियों और नक्सली रुपी नरपिशाचों की सुरक्षा में स्वयं को बुद्धिजीवी कहनेवाला साम्यवादियों का दल इन नरपिशाचों के पक्ष में आकर खड़ा हो गया है। एक वायर रुपी पोर्टल में कुछ अनिल सिन्हा जैसे लोग सवाल उठा रहे है कि भाई आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सड़क बनाने की क्या जरुरत है? वह भी तब, जब आदिवासी चाहते ही नहीं कि उनके इलाके में सड़क बने।
ये वहीं लोग है, जो आदिवासी बहुल इलाकों में जब नक्सलियों का दल स्कूल भवनों को उड़ा देता है, तो बहुत ही प्रसन्न होते है, क्योंकि इन स्कूल भवनों के उड़ने से उन साम्यवादी बुद्धिजीवियों या पत्रकारों के बेटे-बेटियों का भविष्य नहीं प्रभावित होता, क्योंकि इनके बेटे-बेटियां तो देश के विभिन्न महानगरों में चलनेवाले प्रतिष्ठित स्कूलों की शोभा बन रहे होते है।
इन दिनों जब से नक्सलियों और आतंकियों के बीच गुप्त समझौते हुए है, नक्सलियों और आतंकियों ने अपना काम और तेजी से बढ़ा दिया है। आंतकियों ने कश्मीर में सेना पर आक्रमण प्रारंभ किये है तो आतंकियों को नैतिक रुप से समर्थन देने के लिए नक्सली रुपी नरपिशाचों ने देश के अंदर तबाही मचाना प्रारंभ कर दिया है।
जैसे...
• कश्मीर में सेना पर आक्रमण करने के लिए, उन पर हमले करने के लिए, उनकी हौसलों को पस्त करने के लिए पत्थरबाजों और पाकिस्तान परस्त अलगाववादियों ने हाथ मिलाकर सेना और अर्द्ध सैनिक बलों को अपना निशाना प्रारंभ किया है तो नक्सलियों ने देश के अंदर सेना और अर्द्धसैनिक बलों पर हमले करने शुरु कर दिये है ताकि देश पूर्णतः खंडित हो जाये।
• जैसे कश्मीर में सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवानों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें जनता की नजरों में गिराया जाता है, ठीक उसी प्रकार ये नरपिशाच रुपी नक्सली देश में रह रहे भोलेभाले आदिवासियों को इनके प्रति नफरत करने का पाठ पढ़ाते है और इसमें इनका मनोबल बढ़ा रहे होते है, वे लोग जो देश के महानगरों में, छोटे-छोटे शहरों में रहकर वैचारिक खाद देकर उन्हें पुष्ट करते है। इसके लिए इन बुद्धिजीवियों और चैनल में कार्य करनेवाले पत्रकारों को मुंहमांगी रकम विदेशों में रहनेवाले भारतविरोधी तत्वों से प्राप्त होते है, इनकी फंडिग इतनी मजबूत होती है कि पूछिये मत, पर दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए ये फटे पुराने थैले और कपडों का इस्तेमाल करते है, ताकि लोग इन्हें गरीबों का हमदर्द समझ सकें।
• ये आतंकवादी और नरपिशाच रुपी नक्सली हिन्दूओं को अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझते है, तथा धर्मांतरण के लिए ईसाई मिशनरियों और अन्य भारत विरोधी धार्मिक संगठनों के लिए भी काम करते है। ऐसा वे इसलिए करते है क्योंकि इनका मानना है कि जब तक हिन्दू बहुसंख्यक रहेंगे, भारत को तोड़ना मुश्किल रहेगा।
• कई साम्यवादी विचारधारा के लोग जो पूर्ण रुप से गुंडे होते है, ये पूरे देश को एक न मानकर कई देशों का समूह मानने का प्रचार करते हुए विदेशियों के आगे खिलौने बने हुए है तथा लोगों में भारत और भारतीय संस्कृति के खिलाफ विषवमन करने का प्रयास करते है।
• भारत में कई ऐसे चैनल है, जो पूर्ण रुपेण भारत विरोध के लिए काम करते है और समय-समय पर धर्मनिरपेक्षता की आड़ में भारत की अस्मिता पर गंभीर चोट करते है।
नक्सलीरुपी नरपिशाचों के बढ़ने के कारण और उसका निदान....
• भारत में नेता का बेटा नेता बनता है, अधिकारी का बेटा अधिकारी बनता है, फिल्मी हीरो का बेटा फिल्मी हीरो बनता है, कोई देश का जवान या अर्द्सैनिक बलों में शामिल होना नहीं चाहता, क्योंकि वो जानता है कि इसमें जो भी जाता है, मरने के लिए जाता है, हाल ही में पूर्व में जदयू में शामिल नेता जो आज भाजपा में चला गया, उसका तो बयान ही ऐसा था, पर देखिये थेथरई, राजनीतिज्ञों के, जबकि दूसरे देशों में ऐसा नहीं है। जब तक इस देश में इस प्रकार की मनोवृत्ति रहेगी, इस देश से न तो आतंकवाद खत्म होगा और न ही नरपिशाचों का समूह नक्सली।
• इस देश में देशभक्तों की संख्या कम है, ज्यादातर देशद्रोही है, ये भारतीय परंपरा है, ये कभी खत्म नहीं होगा। भगत सिंह को मरवानेवाला शोभा सिंह, महाराणा प्रताप के समय़ पैदा लेनेवाला मानसिंह, पृथ्वीराज चौहान के समय रहनेवाला जयचंद, महारानी लक्ष्मीबाई को मदद न कर अंग्रेजों के तलवे चाटनेवाला सिंधिया परिवार। ये उदाहरण है, जो बताते है कि भारतीय गद्दार होते है, उन्हें देशभक्ति के नाम पर दूसरे देशों के गद्दारों के तलवे चाटने में ज्यादा आनन्द आता है।
• भारत के राष्ट्रपिता है महात्मा गांधी, पर आप किसी भी साम्यवादी विचारधारावाली पार्टियों के कार्यालय में जाइये, आपको गांधी का चित्र नहीं मिलेगा, पर लेनिन, मार्क्स, स्टालिन, माओ के चित्र और उनकी प्रतिदिन पूजा होते आपको बराबर दीख जाया करेगा।
• भारत में सेना में या अर्द्ध सैनिक बलों में वहीं लोग शामिल होते है, जो सुलेशन से चमड़े साटने का काम करते है, जो खेतों-खलिहानों में काम करते है, जो फटेहाल है, जो कम पढ़े-लिखे है, जो गरीबी में ही जीते रहते है, कोई भी धनी-मानी व्यक्ति का परिवार देश के लिए मरना नहीं चाहता, उसका मानना है कि वो देश को मिट्टी में मिलाने के लिए पैदा हुआ है।
• हमारे देश में जो भी नेता है वह कड़ी निन्दा करने के लिए पैदा होता है, जब वह विपक्ष में होता है तो बड़ी-बड़ी ज्ञान की बातें करता है और जब सत्ता में होता है तो उसकी सारी ज्ञान चरने के लिए चली जाती है।
• हमारे देश में जो जवान देश के लिए शहीद होता है, जो वैज्ञानिक देश की सुरक्षा में, जो जासूस देश के लिए अपना प्राणोत्सर्ग करता है, उनके परिवारों के लिए, यह देश कुछ भी नहीं करता, पर जरा नेताओं को देखिये, एक बार विधायक या सांसद बन गये, उसके बाद विधायक या सांसद रहे या न रहे, जब तक जिंदा है, तब तक पेंशन लेंगे और मर गये तो उनकी बीवी और परिवार पेंशन का आनन्द लेंगे, पर अर्द्ध सैनिक बलों के जवान अगर देश के लिए मर भी जाये तो उनके परिवारों को सामान्य जिंदगी जीने के लिए तरस जायेंगे, उन्हें ये सरकार पेंशन तक नहीं देती। थूकता हूं, ऐसी सरकार पर, जो अपने देश के जवानों के परिवारों का सम्मान नहीं करना जानती।
कुल मिलाकर देखे तो फिलहाल अपना देश हिजड़ों का देश बनने में ज्यादा रुचि दिखा रहा है, अब फिल्में भी बनती है तो हिजड़े बनने का उपदेश दे रही होती है, यानी जवान हो जाओ, लड़की पटाओ, ऐश करो, बच्चे पैदा करो और फिर मर जाओ यानी जिंदगी मिलेगी न दुबारा के तर्ज पर खाओ, पीओ, ऐश करो। जो देश इस तर्ज पर चल रहा होता, वह कभी खड़ा नहीं होता, वहां आतंकियों और नरपिशाचों की ही चल रही होती है, यह देश तो आतंकियों और नरपिशाच रुपी नक्सलियों का आश्रयस्थली बन चुका है, जरा देखिये अपने आस-पास के ही देशों को जो कैसे जी रहे है? अरे ज्यादा दूर मत जाइये, छोटा सा देश भूटान और बड़ा सा देश चीन। आपके बगल में ही है, कैसे आगे बढ़ रहा है? और कैसे स्वयं को मजबूत कर रहा है? आप ही का माल, आप ही को दूसरे रुप में पेश कर रहा है और अपनी आर्थिक और सामरिक शक्ति को मजबूत कर रहा है और आप हिजड़े बनकर उसके आगे नाचने को विवश हो रहे है। शर्म आती है ऐसा परिदृश्य देखकर कि हम किस देश में रह रहे है?

Saturday, April 29, 2017

क्या है अक्षय तृतीया...........

अमिता पिछले पन्द्रह दिनो से अपने पति राज से झगड़ रही है कि पिछले साल जिस प्रकार से राज ने अक्षय तृतीया के दिन धोखा दिया था, वह इस बार धोखा नहीं देगा। इस साल अक्षय तृतीया के दिन सोने के कंठहार वह लेकर रहेगी, क्योंकि पिछले दिनों एक पंडित जी ने कहा था कि अक्षय तृतीया के दिन सोने का कोई न कोई आभूषण अवश्य खरीदना चाहिए, क्योंकि सोना कभी क्षय नहीं होता, उससे लाभ ही लाभ होता है, घर में सुख-शांति आती है, समृद्धि आती है। बेचारा राज, उसे पिछले साल की तरह इस साल भी आमदनी में कुछ खास वृद्धि नहीं हुई, पर पत्नी ने ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया है कि उसके हालत पस्त है। अमिता और राज की तरह ऐसे कई घर और परिवार है, जो अक्षय तृतीया के नये मिजाज से अपने घर को तबाह करने में लग गये है।
उसका कारण है कि इन दिनों नये ढंग के पंडितों, नये ढंग के अखबारों-चैनलों और नये ढंग के व्यापारियों ने जन्म ले लिया हैं। इन तीनों ने मिलकर इस प्रकार से अक्षय तृतीया की ब्रांडिंग कर दी है, कि आम आदमी इस पर्व के चक्कर में अपनी खुशियां बड़े-बड़े धन्ना सेठों के यहां गिरवी रखने को मजबूर हैं।
पंडितों (पंडित का मतलब जाति नहीं समझ लीजियेगा, अगर आप इसे जाति से तौलेंगे तो धोखे में पड़ जायेंगे, आजकल हर जातियों में नये – नये पंडित जन्म ले लिये है, जो गांवों-शहरों में जन्मकुंडली देखने का दुकान खोल लिये है, मैं उनकी बात कर रहा हूं) को देखिये तो वे बेसिर-पैर की बातें वैदिक मंत्रों से जोड़कर आम-आदमी को मूर्ख बना रहे है, जबकि उन वैदिक मंत्रों का उससे कोई लेना – देना नहीं होता।
दूसरी ओर अखबार और चैनलवाले बड़े-बड़े व्यापारियों, जिनकी दुकानें, व्यापारिक प्रतिष्ठानें शहरों में चल रही है, उनसे विज्ञापन इस प्रकार वसूलते है, वह भी उनके गर्दन पर छुरी रखकर, कि अगर वे विज्ञापन नहीं देंगे तो वे आयकर विभाग से उसकी शिकायत करके, उसकी सारी दुकानदारी मटियामेट कर देंगे और इस प्रकार व्यापारियों और मीडिया के लोगों का मधुर संबंध बनता है, भर-भर पेज विज्ञापन मुक्त कंठ से ये व्यापारी वर्ग अखबारों को उपलब्ध कराते है और इस प्रकार झूठ का व्यापार जमकर एक दिन चलता है, जिसका नाम है – अक्षय तृतीया।
मैं पूछता हूं कि आम जनता पूछे, उन ढोंगी पंडितों, अखबारवालों और व्यापारियों से कि वे बतायें कि...
• किस सनातन-वैदिक ग्रंथों में लिखा है कि हमारे भगवान राम सीता के संग, भगवान शिव पार्वती के संग, भगवान विष्णु लक्ष्मी के संग या कोई भी देवता अपनी-अपनी पत्नी के संग, किसी व्यापारी के यहां जाकर अक्षय तृतीया के दिन स्वर्णाभूषण या अन्य वस्तूएं खरीदी थी?
• अक्षय का अर्थ क्या होता है?
• दुनिया में वह कौन ऐसा चीज है, जो अक्षय है, जिसकी प्राप्ति के बिना जीवन सफल नहीं हो सकता, आगे नहीं बढ़ सकता?
• अक्षय तृतीया के दिन किस चीज को प्राप्त करने से जीवन सुलभ हो जाता है?
• आखिर अक्षय तृतीया के दिन सोने-चांदी या अन्य सुख-सुविधाओं के सामान क्यों नहीं खरीदने चाहिए?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर आपको कोई ढोंगी पंडित, कोई अखबार या कोई व्यापारियों का समूह नहीं देगा, क्योंकि ये सभी व्यापार के नाम पर यहां की जनता को बेवकूफ बना रहे है और अपना उल्लू सीधा करते है।
और
अब हम आपको सारे प्रश्नों का जवाब दे देते है...
• हमारे भगवान कभी भी विलासिता संबंधी वस्तुओं को खरीदने की सलाह नहीं देते, उनका केवल यहीं कहना होता है कि आप उन्हें स्मरण करें, जीवन सफल हो जायेगा।
• अक्षय का अर्थ होता है, जिसका कभी क्षय नहीं हो।
• दुनिया में जितनी वस्तूएं हैं, सभी क्षय होनेवाली है। उनका नाश तय है, इसलिए ये अक्षय हो ही नहीं सकती, इसलिए इन चीजों को खरीदना नहीं चाहिए, लेकिन दुनिया में एक चीज है, जिसका कभी क्षय नहीं होता, वह है प्रभुकृपा अथवा अपने से बड़ों का आशीर्वाद। यह ऐसी वस्तु है, जिसका कभी क्षय नहीं हो सकता, इसलिए हमें प्रभुकृपा और आशीर्वाद की ललक को जागृत करना चाहिए।
• जो भी व्यक्ति प्रभुकृपा और अपने से बडों का आशीर्वाद को त्याग कर भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए दिमाग लगाता है, वह उसी तरह नष्ट हो जाता है, जैसे भौतिक वस्तूएँ।
और अंत में,
इन ढोंगियों से पूछिये कि बताओं, राम, कृष्ण, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, कबीर, तुलसी, सूरदास, मीराबाई, लक्ष्मीबाई, सुभद्रा कुमारी चौहान जैसी महान विभूतियां किस साल अक्षय तृतीया के दिन भौतिक वस्तूओं की प्राप्ति के लिए, सुख-सुविधा की प्राप्ति के लिए अक्षय तृतीया तुम्हारे कथनानुसार मनाया था और जब उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो हमें आप ऐसा करने को प्रेरित क्यों कर रहे हो? आओ देश बनाएं, न कि स्वयं रसातल में चले जाये और ढोंगियों का बराबर शिकार बनते रहे।

Wednesday, April 26, 2017

देश के मूर्धन्य पत्रकारों और चैनलों का महापाप.............

देश के मूर्धन्य पत्रकारों और चैनलों का महापाप...
दिल्ली नगर निगम चुनाव को देश का चुनाव बना दिया...
ये आज के पत्रकार है, ये नगर निगम की चुनाव को देश का चुनाव बना देते है, लोगों की मजबूरियां है, उनके पास कोई विकल्प नहीं है, इसलिए मजबूरी में दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणाम को देखने के मजबूर है। दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणाम का कोई असर, देश के दूसरे इलाकों में नहीं पड़ने जा रहा, पर देश के मूर्धन्य पत्रकार विभिन्न चैनलों पर स्वयं और देश की जनता के दिमाग का दही बनाने में लगे हुए है, इसमें उन्हें बहुत आनन्द भी आ रहा है।
आज किसी भी चैनल ने अपने मर्यादा का ख्याल नहीं रखा, चाहे वह कोई चैनल हो, सभी पागलों की तरह एमसीडी-एमसीडी का रट लगा रहे है, ठीक उसी प्रकार जैसे देश में लोकसभा के चुनाव परिणाम आ रहे होते हैं। देश की जनता को भी देखिये, वे कर ही क्या सकते हैं? मजबूरी में देखने को मजबूर है, वे झेल रहे है, इन चैनलों के महापाप को।
आखिर दिल्ली नगर निगम को इतना माइलेज ये चैनलवाले क्यों दे रहे है? इसके लिए भी कोई सर्वाधिक दोषी है तो वह है यहां के राजनीतिबाज। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दिल्ली नगर निगम के चुनाव में दिलचस्पी लेना, आप के अरविन्द केजरीवाल का तो जवाब ही नहीं, उन्हें लगता है कि भगवान ने फुर्सत में बनाया है, कांग्रेस तो एक तरह से खत्म ही हो गयी और भाजपा ने जिस प्रकार से कांग्रेसियों और अन्य दलों के घटियास्तर के नेताओं का आयात करना प्रारंभ किया है, यकीन मानिये कांग्रेस को तो यहां की जनता ने 60 साल झेला, इन्हें पांच साल भी झेल पायेगी, कहना मुश्किल है। कमाल की बात है कि भाजपा जिन पार्टियों अथवा नेताओं को गाली दे रही होती है, वहीं पार्टी अथवा उसके नेता के लोग जब भाजपा का दामन थाम लेते है, तो वह पवित्र हो जाता है, पता नहीं भाजपा के पास कौन से नदी का पवित्र जल है, जिससे सभी का पाप धूल जाता है। उदाहरण के लिए झारखण्ड के बाघमारा विधानसभा सीट से जीता ढुलू महतो और हाल ही में दिल्ली में लवली नामक नेता जो कल तक कांग्रेस का झंडा ढोता था और आज भाजपाई बन गया। ज्यादा दूर मत जाइये, दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी को देखिये जो कल तक अटल बिहारी वाजपेयी को गरियाता था, गोरखपुर लोकसभा सीट से योगी के खिलाफ समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और आज भाजपा में जाकर, हर प्रकार के आनन्द को प्राप्त कर रहा है यानी पग-पग पर अपना जमीर बेचनेवाला, ऐसे नेता देश के भाग्य विधाता बन रहे और पत्रकारों का समूह ऐसे नेताओं के आधार पर समाचार की प्राथमिकता तय कर रहे है।
देश के हालात ऐसे है, कि पूछिये मत...
• हमारा पड़ोसी पाकिस्तान हमेशा हमें गरिया रहा है।
• चीन अरुणाचल प्रदेश को लेकर आंखे तरेर रहा है।
• नक्सली गुंडों का समूह हमारी आंतरिक व्यवस्था को चोट पहुंचा कर पूरे देश की आंतरिक व्यवस्था को बर्बाद कर, विदेशी ताकतों के हाथों को मजबूत कर रहा है।
• पूंजीपतियों का समूह केवल अपना लाभ देख रहा है और देश के आर्थिक हालात पर चोट पहुंचा रहा है।
• देश के संतों को उद्योगपति बनने का सनक सवार हो रहा है, और पत्रकारों का समूह ऐसे संतों की आरती उतार रहा है, उन पर पुस्तक लिख रहा है।
जरा सोचिये, ऐसे हालात में इस देश की हालात क्या होगी?  गुंडे पत्रकार बनेंगे, गुंडे नेता बनेंगे तो यहीं होगा, हमें बेवजह के नगर – निगम चुनाव परिणाम जबर्दस्ती देखने होंगे। आज तो देश के सारे चैनल यहीं कर रहे, कोई इससे अलग नहीं दीख रहा। हम ऐसी व्यवस्था और ऐसे चैनलों और ऐसे पत्रकारों की कड़ी भर्त्सना करते है।

Sunday, April 23, 2017

पैसा फेको, तमाशा देखो..................

याद करिये, फिल्म “दुश्मन” का वह गीत जिसमें  सुप्रसिद्ध अभिनेत्री मुमताज बाइसकोप लेकर गांवों में भटकती है और बच्चों का मनोरंजन करती है, साथ ही गा रही होती है “देखो, देखो, बाइसकोप देखो, दिल्ली का कुतुबमीनार देखो, घोड़े पे बांका सवार देखो, देखो ये देखो ताजमहल, घर बैठे सारा संसार देखो, पैसा फेको तमाशा देखो...”
ठीक इसी तर्ज पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री तथा विभिन्न विभागों के मंत्रियों और अधिकारियों ने पुरस्कार लेना प्रारंभ कर दिया है, वे पुरस्कार देनेवाले कंपनियों, अखबारों, चैनलों और आयोजनकर्ताओं को विज्ञापन के नाम पर मुंहमांगी रकम उपलब्ध करा देते है और उसके बदले एक कागज और पीतल का टुकड़ा इन्हें सम्मान के नाम पर थमा दिया जाता है और फिर इसे सामान्य जनता को दिखाते फिरते है कि उन्होंने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया, जबकि सच्चाई कुछ दूसरी होती है।
इस प्रथा की शुरुआत तब से हुई, जब झारखण्ड बना। झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने जब सत्ता संभाली तो उन्हें भी कुछ अच्छा बनने का शौक चढ़ा। इसके लिए उनके आसपास के लोगों ने व्यवस्था शुरु की, इंडिया टूडे ग्रुप से संबंध ठीक-ठाक किया गया, जम कर उन्हें पैसे उपलब्ध कराये गये और देखते ही देखते इंडिया टूडे ग्रुप ने उन्हें भारत का तीसरा सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री घोषित कर दिया,  जबकि उसी समय डोमिसाइल आंदोलन ने इन्हें पूरे देश का सर्वाधिक अलोकप्रिय मुख्यमंत्री बना चुका था, स्थिति ऐसी बनी कि जो उस वक्त फिसले फिर कभी सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर नहीं पहुंच सके, जिन्हें उन्होंने अपना उत्तराधिकारी चुना, यानी हमारा इशारा अर्जुन मुंडा की ओर है, उन्होंने भी इनकी वो हालत कर दी कि ये कहीं के नहीं रहे, स्थिति आज भी वहीं है, इन्हीं की मदद से, इन्हीं की पार्टी के टिकट पर कुछ लोग चुनाव जीते और चुनाव जीतने के कुछ ही दिनों बाद वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास के गोद में जाकर बैठ गये।
इधर मैं देख रहा हूं कि रघुवर दास स्वयं को सर्वाधिक बेहतर घोषित करने के चक्कर में वहीं काम कर रहे है, जो पूर्व के मुख्यमंत्रियों ने किया है। जैसे याद करिये कुछ महीने पहले जीटीवी ने रांची में एक होटल में एक कार्यक्रम आयोजित किया और इसका पैसा भी राज्य सरकार से ही लिया और इसके बदले में मुख्यमंत्री रघुवर दास को एक सम्मान का टुकड़ा थमा दिया, यानी रघुवर भी खुश और माल लेकर जीटीवी भी खुश।
हाल ही में हैदराबाद में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, आयोजनकर्ताओं ने एक स्टाल लगाने के लिए जोर डाला और पैसे मांगे। मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र हैदराबाद पहुंचा और उसे भी पुरस्कृत कर दिया गया।
अभी – अभी पता चला है कि इंडिया टूडे ग्रुप ने राज्य के पर्यटन मंत्री अमर कुमार बाउरी को सम्मानित किया। उसके फोटो आइपीआरडी ने जारी किये, अखबारों में छपा। यह भी पैसे के लेन-देन पर ही आधारित है, नहीं तो जिसके लिए उन्हें एवार्ड मिला, जाकर उस स्थान को देख लीजिये, पता लग जायेगा।
इधर रांची में कुकुरमुत्ते की तरह इस प्रकार के सम्मान प्रदान करनेवालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है, और ऐसे कार्यक्रमों में वे लोग भी शामिल हो रहे है, जिन्हें इससे भी बड़ा सम्मान मिल चुका है, पर चूंकि सम्मान और प्रतिष्ठा के लालचियों को इससे क्या मतलब? उन्हें तो सम्मान चाहिए, कागज और पीतल के टुकड़े में सम्मान नजर आता है, इसलिए वे यहां भी आ धमकते है।
इस प्रकार के आयोजन करने में अखबारों और चैनलवाले आगे है, जबकि इन्हीं के तर्ज पर अब न्यूज एजेंसी में काम करनेवाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है, एक ने तो अपने पिता को ही सम्मान दिलाने के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त एक कोयला व्यवसायी से पैसे लिये, सम्मान कार्यक्रम आयोजित कराया और ले-दे संस्कृति के आधार पर वह स्वयं भी दूसरे जगह सम्मानित हो रहा है और बदले में जो उन्हें दूसरे जगह सम्मान दे रहा है, उसे अपने यहां बुलाकर उसे सम्मान कर रहा है। ये है, झारखण्ड का हाल।
आज ही देखिए, इस ले – दे संस्कृति का क्या हाल है? सम्मान पुरस्कार की क्या स्थिति है?  एक फिल्म “अजब सिंह की गजब कहानी” के निदेशक है ऋषि प्रकाश मिश्र। उनसे स्टार देनेवालों ने पैसे की मांग कर दी, जिसका विरोध उन्होंने अपने फेसबुक वॉल के माध्यम से कर दिया है, यानी सम्मान-पुरस्कार के नाम पर अर्थ संचय करनेवालों ने देश और समाज को किस स्तर पर पहुंचा दिया, आप समझ सकते है। किसी ने ठीक ही कहा है कि जब तक लालचियों का समूह जिंदा है, ठगों की दुनिया आबाद होती रहेगी।

Friday, April 21, 2017

लीजिये, अब दीजिये जवाब मुख्यमंत्री रघुवर दास जी.......

ये तो होना ही था, मुख्यमंत्री रघुवर दास के बयान ने बवाल कर दिया है। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के कई नेता ही नहीं, बल्कि भाजपा को सहयोग कर रही आजसू पार्टी ने भी मुख्यमंत्री रघुवर दास के उस बयान की कड़ी आलोचना की है, जिसमें उन्होंने नेता विरोधी दल को डकैत व लूटेरा बताया था, तथा शिबू सोरेन पर कड़ी टिप्पणी की थी।
झामुमो के वरिष्ठ नेता स्टीफन मरांडी ने ठीक ही कहा है कि अगर बाप बुड्ढा हो जाय तो क्या उसे गड्ढे में फेंक देना चाहिए, मुख्यमंत्री रघुवर दास जवाब दें।
झामुमो के ही वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन ने भाजपा के नेताओं और विधायकों से पूछा है कि वे कब तक ऐसे मुख्यमंत्री रघुवर दास को ढोते रहेंगे, जो कभी अपने मतलब के लिए स्वयं को शिबू सोरेन का असली बेटा बताता है, कभी उनके पांव छूता है और कभी उन्हें उखाड़ फेंकने की बात कहता है।
झामुमो नेताओं ने यह भी कहा है कि अगर विधानसभा में सीएम ने इस वक्तव्य को लेकर माफी नहीं मांगी तो वे 27 को सदन चलने नहीं देंगे। इधर आजसू के प्रवक्ता देवशरण भगत ने तो मुख्यमंत्री रघुवर दास से ही पूछ डाला कि अगर हेमंत लूटेरे हैं तो सरकार उन पर कार्रवाई क्यों नहीं करती?
पूरे मामले पर सरकार की घिग्घी बंध गई है, भाजपा नेताओं को न बोलते बन रहा है और न ही सरकार में शामिल लोग ही कुछ बोल पा रहे है, सचमुच मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपनी ही भाषा से पार्टी और सरकार दोनों को असमंजस में डाल दिया है, आगे – आगे देखिये क्या होता है?  हमें नहीं लगता कि झामुमो इस मुद्दे को फिलहाल छोड़ना चाहेगा, वह भी तब, जब लिट्टीपाड़ा उप चुनाव में जनता ने ताल ठोक कर झामुमो प्रत्याशी साइमन मरांडी के सिर पर जीत का सेहरा बांधा है।
मुख्यमंत्री रघुवर दास जी, हो गया बंटाधार, भाजपा और सरकार का। आप विकास का राग अलापते रहिये, आपने तो कार्यकर्ताओं को भी कहीं का नहीं छोड़ा, वे फिलहाल रक्षात्मक मोड में चले गये है, आक्रामक होंगे तो उन्हें ही दिक्कत होगी, क्योंकि रहना है उन्हें, उन्हीं के साथ, जिनके बारे में आप कुछ ज्यादा ही उतावले होकर बयान दे रहे हैं...

प्रभात खबर के कारनामे..............

हम 100 प्रतिशत आश्वस्त है कि कल रांची के एसडीओ भोर सिंह यादव ने जरुर प्रभात खबर के किसी पत्रकार या वहां कार्यरत किसी खास व्यक्ति के दुखती रग पर हाथ रख दिया होगा, उसकी बात नहीं मानी होगी, जिसको लेकर प्रभात खबर ने अपना पृष्ठ संख्या 2, रांची के एसडीओ भोर सिंह यादव के खिलाफ रंग दिया।
मामला क्या है? इसे जानिये...
रांची एसडीओ ने कल सुबह करीब पौने 6 बजे यातायात जांच अभियान प्रारंभ किया, जिसमें करीब 150 से ज्यादा लोग यातायात नियमों का उल्लंघन करते हुए पकड़े गये। प्रभात खबर के अनुसार और पकड़े गये लोगों के अनुसार इतनी सुबह यातायात जांच अभियान नहीं चलाना चाहिए। अरे भाई तो तुम्ही बताओ, कब चलाना चाहिए? और कैसे चलाना चाहिए? क्या रांची एसडीओ को यातायात नियम तोड़नेवालों से पूछकर यातायात जांच अभियान चलाना चाहिए कि आप कब घर से निकल रहे है? कब यातायात नियम तोड़ रहे होंगे? ताकि हम आपके इस नियम तोड़ने के क्रम में आपका बाधक नहीं बने।
प्रभात खबर ये बताये कि जो उसने “पीड़ा एक आम आदमी की” के नाम से जो कुछ भी लिखा है। उस आम आदमी का नाम क्यों नहीं लिखा? जबकि वह पत्र के माध्यम से मुख्यमंत्री और झारखण्ड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का ध्यान आकृष्ट करा रहा है। इसका मतलब क्या है? इतनी मूर्ख तो रांची की जनता नहीं।
क्या प्रभात खबर इन सवालों का जवाब दे सकता है?
• क्या दुर्घटना समय देखकर होती है?
• क्या वाहन चालकों को यातायात नियमों को तोड़ने के लिए एक खास समय प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराना चाहिए?
• गलत करनेवालों को तो गलत का परिणाम तो स्वयं ही भुगतना होगा, इसके लिए कोई विशेष सहायता देने का प्रावधान कानून में उल्लिखित है क्या?
ढाई घंटे के बाद जुर्माने की रसीद काटी गयी तो इसके लिए भी दोषी वे लोग है, जो यातायात नियमों का उल्लंघन करते है, ऐसी घटना गर होने लगे तो फिर कोई यातायात नियमों को तोड़ने के पूर्व दस बार सोचेगा कि इसके परिणाम क्या हो सकते है, कम से कम रांची एसडीओ ने किसी के साथ गलत तो नहीं किया। यहां पर ऐसे कोई भी अच्छा काम करिये, यहां तो बदनाम करनेवाले लोगों को एक मौका चाहिए, जैसा मौका प्रभात खबर को आज मिल गया।
बधाई, रांची के एसडीओ भोर सिंह यादव को, जिन्होंने अपने विवेकपूर्ण कार्यों से स्थिति पर नियंत्रण किया और लोगों को एक संदेश भी दिया कि उनका जीवन कितना महत्वपूर्ण है, उनके परिवारों के लिए...

मुख्यमंत्री की भाषा...................

अगर ये मुख्यमंत्री की भाषा है...
तो माफ करें, राज्य की हर जनता को ऐसी भाषा पर गहरी आपत्ति होनी चाहिए...
मुख्यमंत्री रघुवर दास जी अपनी भाषा को संयंमित रखिये, नहीं तो बाद में आपको ही बहुत दिक्कत हो जायेगी। अपने से बड़ों और विपक्ष का आदर करना आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि आप सत्ता के सर्वोच्च पायदान पर खड़े हैं। आपकी भाषा से ही राज्य की जनता का मान बढ़ेगा और मान घटेगा भी।
आपने कल शिकारीपाड़ा में जिस प्रकार से संबोधन के क्रम में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और विरोधी दल के नेता हेमंत सोरेन के खिलाफ आग उगला, वह सहीं नहीं हैं। आपका यह कहना कि कब तक ढोओगे शिबू सोरेन को, दर्शाता है कि लिट्टीपाड़ा की हार, आपको अंदर से बेचैन कर दी है, आप ठीक से कई दिनों तक सोये नहीं है, रह-रह कर लिट्टीपाड़ा की हार आपको टीस दे रही है। आप इससे उबरिये, क्योंकि आप मुख्यमंत्री है।
आप ये गांठ बांध लीजिये कि शिबू सोरेन झारखण्ड आंदोलन की उपज है, उन्हें दिशोम गुरु कहा जाता है, झारखण्ड के कई इलाकों में मैंने स्वयं देखा है कि उन्हें भगवान की तरह पूजा जाता है, और ये सब ऐसे ही नहीं है, उन्होंने झारखण्ड को दिया है, आज भी उनकी सादगी, हर झारखण्डी को भा जाता है। ये अलग बात है कि पुत्र-परिवार मोह में, वे भी स्वयं को उबार नहीं पाये। रही बात कि उन्होंने रिश्वत लेकर सरकार बचायी, पर आप ये क्यों भूल जाते है कि आपकी पार्टी में भी एक राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके एक व्यक्ति ने नोट गिने थे, जिसे पूरा देश टीवी पर देखा था। आज सच्चाई यह है कि कोई भी राजनेता दूध का धुला नहीं है।
आज जिस झारखण्ड के आप मुख्यमंत्री है, वह शिबू सोरेन का ही देन है, आपकी पार्टी तो वनांचल का सपना देख रही थी। आप ये भी नहीं भूले कि कभी आप उनके नेतृत्व में उप मुख्यमंत्री बन कर राज्य की जनता को सेवा दी है, अगर आप से यहीं कोई सवाल पूछे कि जो शिबू सोरेन के बारे में आपने कल बातें कहीं, आपका ये ज्ञान 2010 में कहां चला गया था? जब आप विधानसभा में उनके बगल में उपमुख्यमंत्री के रुप में बैठा करते थे, यानी साथ में है तो ठीक और विरोध में हो गये तो गलत। कड़वा-कड़वा थू-थू और मीठा-मीठा चप-चप।
दूसरी ओर नेता विरोधी दल हेमंत सोरेन को लूटेरा और डकैत कहना क्या सहीं है? आपने अपने विरोधियों को डकैत और लूटेरा कहना कब से सीख लिया? कौन सीखा रहा है आपको? अपने विरोधियों के लिए इस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल करने के लिए, ये तो गैर-जिम्मेदाराना वक्तव्य है।  मैंने नेता विरोधी दल के रुप में संसद में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज को भी देखा है, साथ ही प्रधानमंत्री के रुप में अटल बिहारी वाजपेयी को भी देखा है, पर आज तक अपने विरोधियों के लिए आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग करते, मैंने भाजपा के इन महान नेताओं को नहीं देखा।
आप ये न भूलें कि आप भाजपा जैसी पार्टी के नेता है, झारखण्ड जैसे राज्य के मुख्यमंत्री है, जहां की भाषा में मिठास है, जहां की बोली में मिसरी घुली हुई है, कृपया अपने इस प्रकार के वक्तव्य से स्वयं को छोटा न करें और भाजपा के खिलाफ एक बड़ी फौज खड़ी करने की कोशिश न करें, क्योंकि लोकतंत्र में जनता सभी नेताओं और पार्टियों को देख रही होती है, अगर शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत ने गलत की है, तो आज उनकी स्थिति क्या है? वे सत्ता से बाहर है।
वक्त आने पर लोकतंत्र में जनता स्वयं ही निर्णय कर देती है, आप इसकी चिंता क्यों कर रहे है? आप चिंता करना छोड़िये। जिस प्रकार की भाषा आपने शिकारीपाड़ा में प्रयोग किया है, अगर ऐसी भाषा का प्रयोग आपने एकाध जगह और कर दिया, तो समझ लीजिये, आपने झामुमो को जीवनदान दे दिया। ऐसे भी आप जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग कर रहे है, आपके आस-पास रहनेवाले लोग भी उसी प्रकार की भाषा का प्रयोग करने लगे है। जो किसी भी प्रकार से सहीं नहीं है। सत्ता का दंभ बहुत को नीचे ले जाता है। ढाई साल पूरे होने को है, ढाई साल और खत्म होने में कितने समय लगेंगे। फिलहाल जो स्थिति है, उसे जानने की कोशिश करें। हेमंत धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहे है और आपकी स्थिति डगमगा रही है, शायद आपको नहीं पता।

Saturday, April 15, 2017

ऐसे-ऐसे लोग बनेंगे..............

ऐसे-ऐसे लोग बनेंगे मुख्यमंत्री के प्रेस एडवाइजर, तो झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का बेड़ागर्क होना तय है...
जी हां, झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रेस एडवाइजर है Yogesh Kislay, ये मुख्यमंत्री को क्या सलाह देते होंगे?, पत्रकारों के साथ कैसा इनका संबंध होगा? उसकी बानगी देखिये...
कल १४ अप्रैल था, यानी बाबा साहेब भीम राव अँबेडकर का जन्मदिन। सारा देश अपने – अपने ढंग से इस महापुरुष का जन्मदिन मना रहा था, उनके आगे कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा था, पर झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रेस एडवाइजर को इन सबसे अलग हटकर एक ऐसा फोटो हाथ लग गया कि वे इसे अपने फेसबुक वॉल पर डाल दिये और यह भी लिखा कि “आरक्षण का कमाल। भीमराव अंबेडकर जयंती पर नेताजी को माल्यार्पण। बिहार से आई तस्वीर” जिसे लगे हाथों Satya Prakash Prasad  ने मुद्दा बनाया और इसकी गंभीरता को बहस का विषय बनाया। जो जरुरी था। बहस आज भी चल रही है। इस बहस में कुछ लोग अच्छी बातें भी कर रहे है, जिससे सामाजिक समरसता को बल मिल रहा है, वहीं इस पर कुछ लोग ऐसे भी है जो बाल का खाल निकाल कर पूरे समाज को कैसे आग में झोंक दिया जाय? इसका भी उपाय ढूंढ रहे है, जैसे सत्य प्रकाश प्रसाद के पोस्ट पर  Vishnu Rajgadiya की टिप्पणी देखिये – जिसमें उन्होंने लिखा है कि “इससे यह भी समझ लें कि सवर्ण मानसिकता के निशाने पर सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं, दलित-पिछड़े और आदिवासी भी हैं।” यानी इस व्यक्ति के अंदर सवर्णों के प्रति कितना जहर भरा है, वह इस एक वाक्य से पता चल जाता है। भाई दलितों के उपर अत्याचार हो या किसी और पर, एक पत्रकार की ये भाषा या किसी सम्मानित व्यक्ति कि ये भाषा हो सकती है क्या? अगर कोई सवर्ण समुदाय में जन्म ले लिया तो आप उसके खिलाफ विष वमन करोगे, उसकी मानसिकता पर सवाल खड़ा करोगे, धिक्कार है ऐसी सोच पर और ऐसी मानसिकता पर।
और अब बात... योगेश किसलय से...
अगर किसी ने गलती से भी ऐसा कर दिया तो क्या आप इसे आरक्षण से जोड़ेंगे? क्या आपको पता है कि आप जिस जाति से आते है, वहां भी ऐसे लोगों की भरमार है, गलतियों और मूर्खताओं की जाति या आरक्षण से क्या मतलब? हमने बहुत सारे लोगों को देखा है जो विभिन्न जातियों से आते है, स्वयं को बहुत श्रेष्ठ मानते है, पर कुछ ऐसी गलतियां कर देते है, जिससे उनकी जगहंसाई हो जाती है, इसलिए इस पूरे प्रकरण को आरक्षण से जोड़ना निहायत बेवकूफी है, आपको स्वीकार करना पड़ेगा कि आपसे गलती हुई और अगर गलती हुई है तो उससे भी बड़ी बात, अपनी गलती को स्वीकार कर, क्षमा मांगना है, न कि उस पर धृष्टता के साथ अडिग रहना।
आपकी दूसरी गलती ये फोटो बिहार से आई है, आपको क्या लगता है कि बिहार के लोग ही ऐसा करने में माहिर है, ये मानसिकता भी ठीक नहीं, जबकि आपने एक व्यक्ति विशेष के हवाले से कमेंटस दिया है, जिसमें उस व्यक्ति विशेष ने आपको बताया है कि ये पूरा मामला हरदोई का है, तो अब आप बताये कि हरदोई कहां है?
अपना पक्ष...
गलतियां किसी से भी हो सकती हैं, उसे इस प्रकार से तूल देना, उसे जाति-धर्म से जोड़ना, आरक्षण की बातें करने लगना, इसे लेकर एक समुदाय को कटघरे में खड़ा करना, मूर्खता के सिवा कुछ नहीं, हम सब की जिम्मेवारी है, कि कहीं भी गलत होता है, तो उसका विरोध करें, पर बात का बतंगड़ और सामाजिक विद्वेष न फैलायें, एक बात और यह भी ध्यान रखे कि गलत करनेवाला कौन है? सामान्य व्यक्ति की गलतियों को सुधरने या सुधारने का मौका दीजिये, जबकि असामान्य व्यक्ति के लिए माफी की कोई जगह नहीं, यहां जो गलतियां हमें दीख रही है, वह अज्ञानता है औैर कुछ नहीं...

Friday, April 14, 2017

....... और लिट्टीपाड़ा में भाजपा हार गयी।

ये किसकी हार है? दस लोग दस किस्म की बातें...
कुछ लोग इसे रघुवर सरकार की हार मानते हैं।
कुछ लोग इसे रघुवर दास की व्यक्तिगत हार मानते हैं। कुछ लोग रघुवर सरकार की गलत नीतियों की हार मानते हैं।
कुछ लोग इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हार मानते हैं। कुछ लोग झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की परंपरागत सीट मानते हुए भाजपा की हार को अवश्यम्भावी मानते हैं, पर हार के मूल कारण सिर्फ यहीं है, मैं इसे नहीं मानता... लिट्टीपाड़ा में भाजपा की हार के और भी कई कारण है, जिस पर ध्यान देना जरुरी है, और इस हार पर कोई ध्यान दे या न दें, पर रघुवर दास को इस पर ध्यान देना जरुरी है, अगर वे चाहते है कि उनका राजनीतिक कैरियर उज्जवल रहे।
एक बात और, जो हमारे फेसबुक से जुड़े है या जो भले ही न जुड़े हो, पर गाहे-बगाहे हमारे फेसबुक वाल पर आकर नजरे चार करते है, वे अवश्य जानते है कि मैंने 1 अप्रैल को क्या लिखा था... मैंने खोलकर लिख दिया था कि लिट्टीपाड़ा में भाजपा की हार तय, साइमन को जीत की अग्रिम बधाई। ये बाते मैंने ऐसे ही नहीं लिख दी थी, ये मैंने अपने अनुभवों के आधार पर लिखी थी।
जरा रघुवर दास बताये कि
क्या अर्जुन मुंडा चाहेंगे कि हेमलाल मुर्मू लिट्टीपाड़ा सीट से चुनाव जीत जाये और इस जीत का श्रेय रघुवर दास लेकर चले जाये और फिर इस जीत पर रघुवर दास ये कहें कि जो भाजपा में रहते बाबूलाल नहीं कर सकें, अर्जुन मुंडा नहीं कर सकें, वो रघुवर दास ने कर दिया। क्या भाजपा में ही रहकर लुईस मरांडी चाहेंगी कि वो लिट्टीपाड़ा से हेमलाल मुर्मू को जीता कर संताल परगना क्षेत्र में एक नये प्रतिद्वंदी को जन्म दे दें, जो आगे चलकर उनका ही पत्ता काट दें। ये रघुवर दास को स्वयं सोचना होगा।
यहीं नहीं, लिट्टीपाड़ा में भाजपा के हार के और भी कई कारण है...
पहला कारण भाजपा में आत्मघातियों की संख्या का सर्वाधिक होना, जो कहने को तो भाजपा में थे, पर वे दिल से चाहते थे कि यहां से झामुमो जीते और इस हार का ठीकरा वे रघुवर दास के माथे फोड़े और ये कहें कि रघुवर की नीतियों को जनता नकार दी, वे जिस विकास के मुद्दे पर चल रहे है, जनता उनसे इत्तेफाक नहीं रखती, जबकि सच्चाई यह है कि जिस विधानसभा सीट के आज चुनाव परिणाम आये है, वहां की जनता को भी विकास से कोई मतलब नहीं, वह विकास और वोट का मतलब तीर-धनुष से अधिक नहीं जानती। वहां स्थिति ऐसी है कि आप चाहे जो कर लें, वहां जीतेगा भी तीर-धनुष और हारेगा भी तीर-धनुष, क्योंकि वहां की जो सामाजिक स्थिति ऐसी बन चुकी है कि उसे भेद पाना सामान्य सी व्यक्ति की औकात नहीं।
दूसरा कारण रघुवर दास के कनफूंकवों का आंतक है, मुख्यमंत्री रघुवर दास कनफूंकवों से इस प्रकार घिर गये है, जैसे लगता है कि कनफूंकवे उनके सर्वश्रेष्ठ शुभचिन्तक हैं                                                                                                                                                                                       जबकि सच्चाई यह है कि इन कनफूंकवों ने इनकी हर जगह ऐसी जगहंसाई कर दी है कि अब ये चाहकर भी अपनी बेहतरी नहीं कर सकते, मोमेंटम झारखण्ड का आयोजन कर हाथी को उड़वा देना, उन्हीं में से एक है, जिसकी आलोचना झारखण्ड ही नहीं बल्कि दूसरी जगहों के लोगों ने भी की।
तीसरा कारण भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं को सम्मान न देकर, उनकी खिल्ली उड़ाना, मजाक उड़ाना भी है, साथ ही अपने मंत्रियों को नीचा दिखाते हुए नौकरशाहों को तवज्जों देना भी है, आये दिन देखा जा रहा है कि जहां भी मुख्यमंत्री रघुवर दास का कार्यक्रम होता है, यहां की मुख्य सचिव स्वयं को नेता से कम स्वयं को नहीं शो कर रही है, यहीं हाल राज्य के अन्य आईएएस अधिकारियों का है, स्थिति यह हो गयी कि मंत्रियों को, विधायकों को ये अब आईएएस अधिकारी भाव ही नहीं देते, इससे जनता और जनप्रतिनिधियों में सरकार के प्रति गुस्सा पनप रहा है, जो वोट के रुप में सामने आ रहा है। हाल ही में कई कार्यक्रमों में भाजपा विधायकों-मंत्रियों को भाषण देने का मौका ही नहीं मिल रहा और ये सारा मौका मिल जा रहा है, आईएएस अधिकारियों को, जिनका काम भाषण देना कम, और सरकार के कार्यों और विकासात्मक योजनाओं को क्रियान्वयन करना है, पर देखा जा रहा है कि नौकरशाह काम कम और भाषण कुछ ज्यादा देने लगे है, जिसका परिणाम सामने है।
चौथा कारण संघ से सरकार की दूरी। ज्यादातर राज्यों में जहां भाजपा की सरकारें है वहां संघ और सरकार में एक मधुर संबंध है, जिसके द्वारा सरकार अनेक कार्यक्रमों का सृजन कर समाज और राज्य को नई दिशा दे रहीं है, जबकि इसके उलट यहां की सरकार संघ के पदाधिकारियों और उसके अनुषांगिक संगठनों को ही ठेंगा दिखा रही है, जिससे संघ के लोगों ने लिट्टीपाड़ा विधानसभा चुनाव से स्वयं को दूर कर लिया।
पांचवा कारण रघुवर सरकार ऐसे-ऐसे लोगों को आगे बढ़ा रहीं है, जो किसी भी दृष्टिकोण से भाजपा को पसंद नहीं करते, ऐसे लोगों को हर प्रकार से सहयोग कर रही है, उन्हें पुरस्कृत कर रही है, उन्हें खुलकर आर्थिक मदद कर रही है और जो लोग इनके लिये जान देते है, उन्हें ही शोषण कर रही है, आज ही का परिणाम देखिये एक झामुमो के परिवार को रघुवर सरकार ने कई बार पुरस्कृत किया, उसे मोमेंटम झारखण्ड में बुलाकर उसकी आरती उतारी और आज वहीं शख्स रघुवर दास को फेसबुक वॉल पर गाली दे रहा है, पर रघुवर दास को ये मालूम हो तब न...
छठा कारण रघुवर दास की कार्यप्रणाली के खिलाफ बढ़ता असंतोष, जिसकी जानकारी मुख्यमंत्री रघुवर दास को नहीं है, क्योंकि कनफूंकवें उन्हें इस प्रकार से अपहरण कर चुके है, कि उन्हें सही और गलत की जानकारी का ऐहसास नहीं, मैं देख रहा हूं कि जब भी कोई उन्हें सही जानकारी देने की कोशिश करता है, कनफूंकवे उसी व्यक्ति की मुख्यमंत्री के द्वारा मुख्यमंत्री का कान फूंककर, उसकी बांट लगा देते है, जिसका परिणाम सामने है, पहले लोहरदगा, फिर पांकी और अब लिट्टीपाड़ा।
सातवां कारण राज्य में विकास योजनाओं की लूट का बढ़ता प्रचलन- राज्य के आईएएस-आईपीएस अधिकारियों का दल जमकर लूट मचा रहा है और इस लूट में वे अपने घर के बेरोजगार बच्चों को भी शामिल कर रहे है, ठेकेदारों को कहा जा रहा है कि वे अपनी कंपनी में उनके बच्चों के शेयर दें, जिसका लाभ ठेकेदार और वरीय अधिकारी दोनों मिलकर सहजीविता के आधार पर उठा रहे हैं, अगर यहीं सब चलता रहा तो एक दिन झारखण्ड में एक भी विकास योजनाएं जमीन पर नहीं दिखेंगी, जबकि लूटेरों के घर और परिवार मालामाल होकर झारखण्ड से बाहर बस जायेंगे।
अभी भी वक्त है, मुख्यमंत्री रघुवर दास संभल जाये, नहीं तो आनेवाले समय में भाजपा एक भी लोकसभा की सीट नहीं जीत पायेंगी और न विधानसभा में उनका नाम लेनेवाला होगा।
जरा मुख्यमंत्री खुद सोचे, उन्होंने कनफूंकवों के कहने पर सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं को एक लाख स्मार्टफोन दिलवा दिये, तो क्या हुआ, वोट मिल गया... जिन आदिम जनजाति के युवाओं को नियुक्ति पत्र मिल चुकी थी, कनफूंकवों के कहने पर फिर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों नियुक्ति पत्र दिलवा दिया, क्या इससे वोट मिल गया... मैं पुछता हूँ कि साहेबगंज में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों इसी समय पुल का शिलान्यास कराने की क्या जरुरत थी, आपने सोचा कि इसका माइलेज मिलेगा और हो गया उलटा... अरे भाई जनता की नब्ज आप नहीं  जानते, इसलिए हम बताते है, कनफूंकवों की मत सुनिये, नौकरशाहों पर लगाम लगाइये, जो लोग योग्य है, उन्हें इज्जत दीजिये, जो गलत कर रहे है, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाइये, अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाइये, अपने परिवार के लोगों पर लगाम लगाईये तथा बेहतर झारखण्ड के निर्माण में प्रमुख भुमिका निभाइये पर आप ये बातें मानेंगे, हमें नहीं लगता, क्योंकि कनफूंकवों से आगे आप निकल ही नहीं पायेंगे।
दूसरी ओर झामुमो के हेमंत सोरेन को हम बधाई जरुर देंगे, क्योंकि जहां एक ओर सत्ता की सारी मशीनिरियां उनकी पार्टी को हराने में लगी थी, हेमंत ने सारी मशीनरियों को धत्ता बताते हुए अपने कार्यकर्ताओं की मदद से भाजपा को उसकी औकात बताई, साइमन को जीत दिलाई, पर साइमन कल क्या करेंगे? खुद साइमन को नहीं पता, इसलिए हेमंत को ज्यादा कूदने की आवश्यकता नहीं, बल्कि वे सामान्य ढंग से इस जीत को ले, ज्यादा न उछले, क्योंकि भाजपा की हार, उसके लोगों ने खुद इस बार मिलकर कराई है...